नाटक और एकांकी में अंतर
नाटक :- नाटक एक अभिनय परक एवं दृश्य काव्य विधा है जिसमें संपूर्ण मानव जीवन का रोचक एवं कुतूहलपूर्ण वर्णन होता है । नाटक के विकास क्रम को निम्न रूप में स्वीकार किया गया है -
भारतेंदु काल - 1837 ई. से 1904 ई. तक
सन्धि काल - 1904 ई. से 1915 ई. तक
प्रसाद काल - 1915 ई. से 1933 ई. तक
वर्तमान युग - 1933 ई. से आज तक
नाटक के तत्व :-
1. कथावस्तु - कथावस्तु का अर्थ है नाटक में प्रस्तुत घटना चक्र अर्थात जो घटनाएं नाटक में घटित हो रही हैं। यह घटना चक्र विस्तृत होता है और इसकी सीमा में नाटक की स्थूल घटनाओं के साथ पात्रों के आचार विचारों का भी समावेश है। 2. पात्र या चरित्र चित्रण - वैसे तो और नाटक में पात्रों की संख्या बहुत अधिक होती है, किंतु सामान्यतः एक-दो पात्र एसी मुख्य होते हैं। किसी विषय नाटक एक प्रधान पुरुष पात्र होता है जिसे हम 'नायक' कहते हैं और इसके अलावा प्रधान या मुख्य स्त्री पात्र को हम 'नायिका' कहते हैं। किसी भी चरित्र प्रधान नाटक में नाटक की कथावस्तु एक ही पात्र के चारों ओर घूमती रहती है। 3. देशकाल या परिवेश - परिवेश का अर्थ होता है देश काल। किसी भी नाटक में उल्लेखित घटनाओं का संबंध किसी ना किसी स्थान एवं काल से होता है। नाटक में यथार्थता, सजीवता एवं स्वाभाविकता लाने के लिए यह आवश्यक है कि नाटककार घटनाओं का यथार्थ रूप से चित्रण करें। 4. संवाद और भाषा - नाटक के भिन्न-भिन्न पात्र आपस में एक दूसरे से जो वार्तालाप करते हैं, उसे संवाद कहते हैं। इन संवादों के द्वारा नाटक की कथा आगे बढ़ती है, नाटक के चरित्र पर प्रकाश पड़ता है। नाटक में स्वगत कथन भी होते हैं। स्वगत कथन में पात्र स्वयं से ही बात करता है। इनके द्वारा नाटककार पत्रों की मानसिक स्थिति का चित्रण करता है। 5. शैली - रंगमंच की दृष्टि से नाटक की कई शैलियां है जैसे भारतीय शास्त्रीय नाट्य शैली, पाश्चात्य नाट्य शैली। इसके अतिरिक्त विभिन्न ने लोकनाट्य शैलियां भी हैं जैसे रामलीला, रासलीला, महाभारत आदि। 6. अभिनेता - अधिकतर नाटककार नाटक की रचना रंगमंच पर खेले जाने के लिए ही करते हैं। रंगमंच पर खेलने के बाद ही एक नाटक पूर्ण होता है। रंगमंच पर नाटक की प्रस्तुति जिस व्यक्ति के निर्देशन में संपन्न होती है, उसे निर्देश आके कहते हैं। निर्देशक रंगमंच के उपकरणों एवं अभिनेताओं के द्वारा उस नाटक को प्रेक्षकों के सामने प्रस्तुत करता है। 7. उद्देश्य - कोई भी नाटककार अपने नाटक के द्वारा गंभीर उद्देश्य को हमारे सामने प्रस्तुत करता है। अनेक नाटककारों ने स्वयं अपने नाटकों के उद्देश्य की चर्चा की है। उदाहरण के लिए प्रसाद जी ने 'चंद्रगुप्त', 'विशाख' आदि ऐतिहासिक नाटकों के लिखने के उद्देश्य पर प्रकाश डाला है।
छायावाद की विशेषताएं लिखिए
नाटक की प्रमुख विशेषताएं :-
1. नाटक में प्रमुख कथा के साथ गौण कथाएं भी जुड़ी रहती हैं।
2. इसमें कई अंक होते हैं।
3. पात्रों की संख्या अधिक होती है।
4. यह एक दृश्य काव्य है।
प्रमुख नाटक एवं नाटककार :-
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| नाटक और नाटककार |
डॉ रामकुमार वर्मा के अनुसार - "एकांकी में एक ऐसी घटना रहती है, जिसका जिज्ञासापूर्ण एवं कौतूहलमय नाटकीय शैली में चरम विकास होकर अंत होता है।"
एकांकी के प्रमुख तत्व :-
1. कथावस्तु,
2.चरित्र-चित्रण,
3.संवाद (कथोपकथन),
4.अभिनेता,
5.संकलनत्रय,
6.द्वन्द,
7.भाषा-शैली ।
एकांकी की विशेषताएं :-
1. एकांकी में एक ही कथा और कुछ ही पात्र होते हैं।
2. यह रंग मंच पर अभिनीत किया जा सकता है।
3. एकांकी उद्देश्य पूर्ण होता है।
4. संघर्ष एकांकी का प्राण तत्व होता है।
प्रमुख एकांकी एवं एकांकीकार :-
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| एकांकी और एकांकीकार |



