द्विवेदी युग किसे कहते हैं / द्विवेदी युग की विशेषताएं लिखिए
हिंदी गद्य साहित्य में सन् 1900-1920 ई. तक के युग को द्विवेदी युग के नाम से जाना जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के नाम पर इस युग का नाम द्विवेदी युग पड़ा। द्विवेदी जी को ही खड़ी बोली हिंदी को काव्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय जाता है। हिंदी कहानियों का वास्तविक विकास द्विवेदी युग से ही प्रारंभ हुआ।
द्विवेदी युग की विशेषताएं
1. देशभक्ति - द्विवेदी युग में देशभक्ति को व्यापक आधार मिला है। इस युग के कवियों ने देशभक्ति से संबंधित लघु एवं दीर्घ रचनाएं लिखीं।
जैसे - इतिहास यदि लिखना चाहो, आजादी के मंसूबे से।
तो सीचो अपनी धरती को, वीरों अपने खुनों से।।
2. अंधविश्वासों एवं रूढ़ियों का विरोध - इस काल की कविताओं में सामाजिक अंधविश्वासों और रूढ़ियों का विरोध किया गया है।
3. प्रकृति चित्रण - द्विवेदी युगीन कवियों ने पकृति का स्वतंत्र रूप से मनोहारी चित्रण किया है। प्रकृति का अत्यंत सुंदर चित्रण इस युग में मिलता है।
4. खड़ी-बोली का प्रतिनिष्ठित - खड़ी बोली में काव्यों की रचना ऐसे योगे की प्रमुख विशेषता है। कवियों ने खड़ी बोली में सरल, सुबोध एवं व्याकरण सम्मत रचनाएं की।
5. मानव प्रेम - इस युग के कवियों ने मानव मात्र के प्रति प्रेम की भावना का विशेष रूप से उल्लेख किया है।
जैसे - मानव वही जो मानव के लिए मरे।
द्विवेदी युग के रचनाकार और उनकी रचनाएं
1. महावीर प्रसाद द्विवेदी - साहित्य की महत्ता
2. सरदार पूर्ण सिंह - मजदूरी और प्रेम
3. मैथिलीशरण गुप्त - पंचवटी, साकेत
4. माखनलाल चतुर्वेदी - समर्पण, युगचरण
5. रामनरेश त्रिपाठी - मिलन, पथिक
6. बाबू श्यामसुंदर दास - समाज और साहित्य
7. चंद्रधर शर्मा गुलेरी - कछुआ धर्म
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