दहेज प्रथा पर निबंध

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दहेज प्रथा पर निबंध//dahej pratha par nibandh

दहेज दुल्‍हे के परिवार द्वारा दुल्‍हन के परिवार से मांगी गई संपत्ति होती है। यह‍ प्रथा भारत में प्र‍चलित है। दहेज प्रथा समाज में फैली हुई सबसे गंभीर समस्‍या है। 




प्रस्‍तावना – दहेज का अर्थ वि‍वाह के अवसर पर कन्‍या के संरक्षकों द्वारा वर पक्ष को दी जाने वाली धनराशि से लागाया जाता है। मैक्‍स रेडिन ने दहेज की परिभाषा प्रस्‍तुत करते हुए कहा है – ‘’ साधारणतया दहेज वह सम्‍पत्ति है जो एक व्‍यक्ति विवाह के समय अपनी पत्‍नी अथवा उसके परिवार वालों से पाता है।‘’

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दहेज का प्रचलन – दहेज प्रथा का प्रचलन प्राचीनकाल से ही विद्यमान है। तुलसीकृत रामचरित मानस में शिव-पर्वती के विवाह में पार्वती के पिता हिमाचल ने अपनी बेटी के विवाह के अवसर पर अपार सम्‍पत्ति और दास-दासी प्रदान किए थे। प्राचीनकाल में हमारा देश भारत एक समृद्ध देश था, इसलिए इसे सोने की चिडि़या की संज्ञा दी जाती थी। इस समय माता-पिता अपनी सम्‍पत्ति का एक बड़ा भाग लाड़ली कन्‍याओं को विवाह के अवसर पर अपनी स्‍वेच्‍छा से दिया करते थे। समाज में इसके पीछे कोई लालच या सौदेबाजी की भावना नहीं थी।

दहेज एक शिष्‍टाचार के रूप में – शिष्‍टाचार वर पक्ष को दिया जाने वाला उपहार और यथाशक्ति दिया जाने वाला दहेज प्रचीन समय में कोई अनुचित बात नहीं थी, परन्‍तु आ‍धुनिक युग में जबकि गरीबी, बेरोजगारी तथा महंगाई व बढ़ती जनसंख्‍या के कारण मनुष्‍य का जीवन दुष्‍कर है, ऐसी स्थिति में गरीब समाज के लिए दहेज प्रथा एक अभिशाल है। अमीर परिवारों द्वारा वैवाहिक अवसरों पर बड़ी धनराशि तथा दहेज पर खर्च करना शान-शौकत है वहीं गरीब परिवार के लिए अपनी कन्‍या का विवाह करना एक समस्‍या है। इस बुराई ने सुन्‍दर, सुशील और सु‍शिक्षित कन्‍याओं के साथ अन्‍याय किया है, बेमेल विवाहों को जन्‍म दिया है तथा पारिवारिक कलहों को बढ़ावा दिया है। इन सब कारणों से इस कुप्रथा ने समाज में यह रूप धारण कर लिया है।

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दहेज एक कुप्रथा के रूप में – आज का युग भौतिकवादी युग है। इसमें धन को सर्वाधिक महत्‍व दिया जाता है, परिणामस्‍वरूप जिन लोगों के पास धन अधिक होता है, वे अनुकूल लड़के को धन देकर क्रय कर लेते हैं। कन्‍या की शिक्षा व सुन्‍दरता पर ध्‍यान नहीं दिया जाता है। वस्‍तुत: दहेज एक पापपूर्ण चक्र है जो एक बार चलने पर कभी समाप्‍त नहीं होता। वास्‍तव में निर्धन माता-पिता के लिए दहेज एक अभिशाप बन चुका है, जिसके कारण वह अपनी लाड़ली पुत्री को किसी सदगृहस्‍थ को देने में सदा असमर्थ रहते हैं।

                                                   इस कुप्रथा की बुराईयॉं विवाह के पहले तक ही सीमित नहीं, अपितु विवाहोपरान्‍त भी प्रभावित करती रहती है। कई-कई बार तो इस विषय को लेकर दम्‍पत्तियों में विवाह-विच्‍छेद तक हो जाते हैं। बहुत सी गृहणियॉं आए दिन के दहेज के प्रश्‍न को सुलझाने के लिए आत्‍मदाह कर लेती हैं। इस प्रकार दहेज-प्रथा वैवाहिक जीवन को दुखी बना देती है और अनेक मानसिक बीमारियों को लगा देती हैं।

दहेज एक सामाजिक बुराई – दहेज प्रथा अब एक आम बुराई बन चुकी है। अत: इसे समाप्‍त करने के लिए शिक्षा का प्रसार किया जाना चाहिए, जिससे समाज में नवीन मूल्‍यों का निर्माण हो सके। स्त्रियों में शिक्षा को बढ़ावा और उनको उन्‍नतिशील बनाने की अति आवश्‍यकता है। जब उनमें शिक्षा का अच्‍छा विकास हो जाएगा तो उनका स्‍तर पुरष के बराबर बन जाएगा, वे स्‍वयं ही इतनी सक्षम हो जाएंगी कि अपने लिए उचित वर का चयन कर सकें। ऐसा होने पर माता-पिता स्‍वत: ही दहेज की चिन्‍ता से मुक्‍त हो जाएंगे।

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दहेज प्रथा का उन्‍मूलन – दहेज उन्‍मूलन अधिनियम के द्वारा सरकार ने इस कुप्रथा को कानूनी अपराध घोषित कर दिया है परन्‍तु यह प्रथा इतनी मजबू‍त हो चुकी है कि इसे अकेली सरकार दूर नहीं कर सकती। आधुनिक युग में दहेज प्रथा के उन्‍मूलन के उद्देश्‍य से सामाजिक विवाह, कोर्ट मैरिज, अन्‍तर्जातीय विवाह, प्रेम विवाह आदि को प्रोत्‍साहन मिल रहा है। आज का शिक्षित नवयुवक जाति बन्‍धन एवं सामाजिक बन्‍धनों को तोड़कर दहेज-प्रथा समाप्‍त करने में पूर्ण योगदान कर रहा है। समाज सुधारकों एवं महिला संगठनों को बाल-विवाह तथा सती प्रथा की भॉंति दहेज प्रथा का उन्‍मूलन करने हेतू अग्रसर होना चाहिए।

उपसंहार – यदि समाज के लोगों को जीवित रखना है तो इस बुराई का समय रहते अन्‍त किया जाना बहुत जरूरी है, जैसा कि ए.एस.आल्‍टेकर ने कहा है – ‘’ अब समय आ गया है कि मनुष्‍य को समाज में दहेज जैसी कुप्रथा का अन्‍त कर देना चाहिए जिसने समाज की अनेक निर्दोष कन्‍याओं को आत्‍मदाह करने हेतू मजबूर कर दिया है। ऐसा होने पर समाज को इस महाव्‍याधि से मुक्ति मिल सकेगी।‘’


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