class 10th hindi chapter 1 solution/10vi hindi chapter 1 solution
Chapter - 1
पद
भाव सारांश
सूरदास के 'सूरसागर' के 'भ्रमरगीत' में गोपियों के व्यंग्यवाणों का चमत्कार विलक्षण है। कृष्ण मथुरा से उद्धव के माध्यम से संदेश भेजते हैं। उद्धव गोपियों से निर्गुण ब्रह्म की साधना तथा योग का उपदेश देकर उनकी वियोग वेदना को शांत करना चाहते हैं। प्रेम मार्ग को मानने वाली गोपियों को यह संदेश अप्रिय लगता है। इसी समय एक भौंरा वहाँ आ जाता है। उस भीर को सम्बोधित करते हुए गोपियाँ उद्धव पर तीखे प्रहार करती हैं। भ्रमरगीत में ये ही पद हैं। प्रथम पद में वे कहती हैं कि उद्धव ने कभी प्रेम किया होता तो वियोग की पीड़ा को अवश्य अनुभव करते। द्वितीय पद में गोपियों के गहरे प्रेम की अभिव्यक्ति है जिसकी पूर्ति न हो सकी। तीसरा पद योग साधना को कड़वी ककड़ी की तरह त्याज्य बताकर कृष्ण के प्रति एकनिष्ठ प्रेम में गहरी आस्था प्रकट करता है। चतुर्थ पद में गोपियाँ ताना मारते हुए कहती है कि श्रीकृष्ण ने मथुरा जाकर राजनीति सीख ली है। वे उद्धव को राजा के धर्म का भी ध्यान दिलाती हैं कि प्रजा की भलाई ही राजा का मूल धर्म होना चाहिए। इस तरह सूरदास लोक धर्म में अपनी आस्था प्रकट करते हैं।
महत्त्वपूर्ण पद्यांशों की व्याख्याएँ
पद
ऊधौ तुम हो अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्याँ जल माँह तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति नदी में पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी ।
'सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यों पागी ॥
[शब्दार्थ - अति = बहुत अधिक। बड़भागी= बड़े भाग्यशाली, भाग्यवान। अपरस = नीरस, अलिप्त, अछूते। सनेह प्रेम तगा धागे, बंधन अनुरागी प्रेममय। पुरइनि = पात कमल के पत्ते। दागी = दाग लगना, धब्बा लगना। देह = शरीर। जल माँह = पानी के भीतर। गागरि = मटकी। ताकौं = उसको। प्रीति-नदी = प्रेम की नदी। पाउँ = पैर। बोरयों = डुबोया। दृष्टि= नजर। परागी = पगी, मुग्ध हुई। भोरी = भोली-भाली गुरगुड़। ज्यौं = जिस तरह पागी = पग जाती हैं, लिपट जाती हैं।]
संदर्भ - प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक के ' पद ' पाठ से अवतरित है। इसके कवि सूरदास हैं।
प्रसंग - यहाँ गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि तुम कृष्ण के पास रहकर भी उनके प्रेम बंधन में नहीं बँधे हो।
व्याख्या - गोपियाँ कहती हैं कि हे उद्धव ! तुम बहुत भाग्यवान हो जो श्रीकृष्ण के पास रहकर भी तुम उनके प्रेम के धागे में नहीं बँधे हो। तुम उसी तरह श्रीकृष्ण के प्रेम से अछूते हो जिस तरह कमल के पत्ते पानी में रहते हैं किन्तु उन पर पानी का दाग भी नहीं लगता है। तुम उसी तरह प्रेम से अछूते रहे हो जैसे तेल की मटकी पानी में डूबने के बाद भी अछूती रहती है, पानी की एक बूँद भी उस पर नहीं टिकती है। उद्धव जी तुमने प्रेम की नदी में अपना पैर भी नहीं रखा है अर्थात् तुम प्रेम से दूर रहे हो तुम्हारी नजर प्रेम के रस में नहीं पगी है। सूरदास के शब्दों में गोपियाँ कहती हैं कि हम भोली-भाली निर्बल स्त्री हैं। इसलिए हम तो प्रेम में उसी तरह लिप्त हैं जिस तरह चींटी गुड़ में लिप्त हो जाती है।
विशेष - (1) उद्धव के श्रीकृष्ण-प्रेम से अछूते रहने पर गोपियों ने व्यंग्य किया है। (2) अनुप्रास, दृष्टांत, रूपक आदि अलंकार। ब्रजभाषा का सौन्दर्य अवलोकनीय है।
हमारे हरि हारिल की लकरी ।
मन क्रम वचन नंद नंदन उर, यह दृढ़ कर पकरी ।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसी, ज्याँ करुई ककरी।
सुती व्याधि हमको लौ आए, देखी सुनी न करी ।
यह ती 'सूर' तिनहि ले साँधी, जिनके मन चकरी ॥
संदर्भ - प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक के ' पद ' पाठ से अवतरित है। इसके कवि सूरदास हैं।
प्रसंग - यहाँ गोपियों के एकनिष्ठ प्रेम की अभिव्यक्ति है। वे योग को कड़वी ककड़ी की भाँति फेंकने योग्य मानती हैं।
व्याख्या - गोपियाँ उद्धव को साफ-साफ शब्दों में कहती हैं कि हमारे लिए श्रीकृष्ण हारिल पक्षी की लकड़ी की तरह है जैसे हारिल पक्षी लकड़ी को पल भर के लिए भी नहीं छोड़ता है वैसे ही हम श्रीकृष्ण से क्षण भर के लिए भी अलग नहीं हो सकती हैं। हमने अपने मन, कर्म और वचन से श्रीकृष्ण को अपने हृदय में जकड़कर पकड़ लिया है अर्थात् हम उन्हें बहुत प्यार करती हैं। हम तीनों अवस्थाओं में जागते हुए, सोते हुए तथा स्वप्न में कृष्ण-कृष्ण की रट लगाए रहती हैं। हम उन्हें पल भर भी भूल नहीं पाती हैं। श्रीकृष्ण के एकनिष्ठ प्रेम में लीन गोपियों को उद्धव का योग का उपदेश कड़वी ककड़ी के समान फेंकने योग्य लगता है। वे उद्भव से कहती हैं उसी योग के रोग को तुम हमारे लिए लेकर आ गए हो जिसे हमने न कभी देखा है, न सुना है और न कभी भोगा है। सूरदास के शब्दों में गोपियाँ कहती हैं कि इस योग को तुम उन्हीं को जाकर दे दो जिनके मन चंचल हैं अर्थात् जिनके मन स्थिर नहीं हैं वे ही योग स्वीकार करेंगे। हमारे मन में तो श्रीकृष्ण के प्रति स्थिर प्रेम है।
विशेष - (1) गोपियों की श्रीकृष्ण के प्रति गहरी प्रेमभावना व्यक्त है। (2) योग के प्रति अस्वीकृति है तथा उसे त्याज्य माना है (3) अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश, दृष्टांत अलंकार तथा पदमैत्री की छटा दर्शनीय है। (4) साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए ।
एक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बड़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-संदेस पठाए ।
उधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए ।
अब अपने मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए ।
ते क्यौं अनीति करै आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तौ यहै सूर, जो प्रजा न जाहि सताए॥
संदर्भ - प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक के ' पद ' पाठ से अवतरित है। इसके कवि सूरदास हैं।
प्रसंग - उद्धव के योग के संदेश को सुनने के बाद गोपियाँ व्यंग्यपूर्वक कहती हैं कि कृष्ण तो चतुर राजनीतिज्ञ हो गये हैं। यहाँ प्रेम करते थे और संदेश योग का भेजा है।
व्याख्या - गोपियाँ कहती हैं कि श्रीकृष्ण ने तो मथुरा जाकर राजनीति के छल-कपट पढ़ लिए हैं। उन्होंने उद्धव के द्वारा जो संदेश भेजा है उसे सुनते ही समझ में आ गया है कि वे क्या समाचार देना चाहते हैं। यहाँ प्रेम करने वाले कृष्ण ने उद्भव के द्वारा योग का संदेश भेजा। है और प्रेम मार्ग को त्यागने को कहा है। वे कहती हैं कि एक तो श्रीकृष्ण पहले से ही बहुत चतुर चालाक थे इतने पर भी उन्होंने गुरु से बड़े-बड़े ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त कर लिया है। अब वे बड़ी बुद्धि वाले हो गए हैं। हमने उनकी बड़ी बुद्धि के ज्ञान को उनके द्वारा भेजे गए योग के संदेश से ही जान लिया है। गोपियाँ उद्भव से कहती हैं कि पुराने समय के लोग बहुत अच्छे थे जो दूसरों के काम करने के लिए घूमते-फिरते थे। वे कहती है कि उद्धव जी मथुरा जाकर श्रीकृष्ण से कह देना कि जाते समय हमारे जिस मन को चुरा ले गए थे अब उन्हें लौटा पायेंगे क्या ? आशय यह है कि पहले तो प्रेम करके हमारे मन चुरा ले गए अब योग का संदेश भेज रहे हैं। यह उनका अन्यायपूर्ण कार्य है, वे श्रीकृष्ण जो स्वयं अन्याय करने वालों के अन्याय छुड़ाते थे अब वे स्वयं ऐसा अन्यायपूर्ण व्यवहार क्यों कर रहे हैं ? इसी क्रम में वे सूर के शब्दों में स्मरण कराती हैं कि राजा का धर्म तो यह है कि किसी भी स्थिति में प्रजा को दुःखी नहीं करना चाहिए। राजा को सदैव प्रजा के हितकारी कार्य करने चाहिए।
विशेष - (1) श्रीकृष्ण की दोहरी नीति की ओर इशारा करते हुए गोपियों ने करारे प्रहार किए हैं। (2) राजा का मूल कार्य प्रजा हित है, प्रजा को दुखी करना नहीं। (3) अनुप्रास, रूपक अलंकार तथा साहित्यिक ब्रजभाषा का सौन्दर्य दर्शनीय है।
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. गोपियों द्वारा उद्भव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है ?
उत्तर - गोपियाँ वस्तुतः उद्धव को भाग्यहीन मानती है जो श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनको प्रेम नहीं कर पाए। उनका हृदय कृष्ण के प्रेम के बंधन में नहीं बँधा। यही कारण हैं कि प्रेम की आनंदपूर्ण अनुभूति से ये अपरिचित हैं। वे उद्धव को कहती तो बड़भागी हैं किन्तु आशय उनका भाग्यहीन कहने का है।
प्रश्न 2. गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिये हैं ?
उत्तर - गोपियों ने कई उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिये हैं -
(i) कमल पत्रों का उदाहरण दिया है जो पानी में रहकर भी जल से प्रभावित नहीं होते हैं।
(ii) तेल की मटकी का उदाहरण दिया है जिस पर पानी की बूँद भी नहीं ठहरती है।
(iii) गोपियों ने योग का उदाहरण कड़वी ककड़ी से दिया है जिसे थूक दिया जाता है।
(iv) गोपियाँ उद्भव की भाग्यहीनता का उदाहरण देती हैं कि वे कृष्ण के निकट रहकर भी उनसे प्रेम नहीं कर सके।
प्रश्न 3. उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया ?
उत्तर - श्रीकृष्ण के मथुरा जाने पर उनके विरह से व्याकुल गोपियाँ उनके लौटने की प्रतीक्षा कर रही थीं किन्तु वे स्वयं नहीं आए। उन्होंने उद्धव को भेजा जिन्होंने गोपियों को योग का संदेश दिया तथा प्रेम को भुलाने की बात कही। इससे श्रीकृष्ण के प्रेम बंधन में बँधी गोपियाँ बेचैन हो उठीं। उनकी विरह की पीड़ा उस के संदेश से भभक उठी। उन्हें लगा कि अब श्रीकृष्ण कभी लौटेंगे नहीं, इससे उनकी विरह वेदना तीव्र हो गई। इस तरह उद्धव के योग के संदेश ने गोपियों के विरह में घी का कार्य किया।
प्रश्न 4. 'मरजादा न लही' के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है ?
उत्तर - प्रेम की मर्यादा है कि प्रेम के बदले प्रेम किया जाना चाहिए। किन्तु श्रीकृष्ण गोपियों में प्रेम भाव जगाकर स्वयं मथुरा चले गए। वहाँ से उन्होंने योग का संदेश दिया, कृष्ण के लौटने या उन्हें याद करने की बात ही नहीं की। इससे स्पष्ट कि श्रीकृष्ण ने प्रेम की मर्यादा का पालन नहीं किया उसी को 'मरजादा न लही' कहा गया।
प्रश्न 5. कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्य किया है ?
उत्तर - गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम को कई प्रकार से अभिव्यक्त किया है -
(i) गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रेम को गुड़ में लिप्त चीटियों के माध्यम से व्यक्त किया है जैसे-चीटी गुड़ से नहीं हटती हैं वैसे ही वे उनके प्रेम से बंधी है।
(ii) जैसे हारिल पक्षी पल भर के लिए भी लकड़ी को नहीं छोड़ता है। वैसे ही गोपिय
श्रीकृष्ण के प्रेम से क्षण भर के लिए भी अलग नहीं होती हैं। (iii) गोपियाँ श्रीकृष्ण को इतना गहन प्रेम करती हैं कि सोते जागते या स्वप्न में कृष्ण का जाप करती रहती हैं।
प्रश्न 6. गोपियों ने उद्धव के योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है।
उत्तर - गोपियों ने उद्धव के योग की शिक्षा चंचल मन वाले लोगों को देने की बात कही है। जिनका मन कभी कहीं और कभी कहीं रहता हो उन्हें योग की शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे उनकी चंचलता समाप्त हो सके। गोपियाँ कहती है कि हमारा मन तो श्रीकृष्ण के प्रेम में एकनिष्ठ है, वह चंचल नहीं है। इसलिए हमारे लिए योग व्यर्थ है।
प्रश्न 7. गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए ?
उत्तर - गोपियों के अनुसार राजा का धर्म प्रजा के हित का पूरा ध्यान रखना होन चाहिए। प्रजा को किसी प्रकार से नहीं सताया जाना चाहिए। राजा का दायित्व प्रजा की भला का ध्यान रखना है।
प्रश्न 8. गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं ?
उत्तर - गोपियों को कृष्ण में कई ऐसे परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस लेने की बात कहती हैं -
(i) श्रीकृष्ण गोकुल से मथुरा गए थे तो गोपियों को उनके लौटने की आशा थी किन्तु अब जब उन्होंने उद्धव को भेज दिया है जो योग का संदेश दे रहे हैं और प्रेम को भूलने की कह रहे हैं तो ये समझ गई कि श्रीकृष्ण ने राजनीति की शिक्षा पा ली है। अब वे बहुत बुद्धिमान है गए हैं जो प्रेम को भूलने की बात कह रहे हैं।
(ii) वे यहाँ प्रेम के बदले प्रेमपूर्ण व्यवहार करते थे किन्तु मथुरा जाकर प्रेम की मर्याद को भूल गए है इसलिए हमसे प्रेम को भुला देने की बात कहते हैं। वे प्रेम के बदले प्रेम नहीं करते हैं।
(iii) जब कृष्ण गोकुल में थे तो अन्याय करने वालों से छुटकारा दिलाते थे और अब वे स्वयं अन्यायपूर्ण व्यवहार कर रहे हैं।
(iv) कृष्ण का का संकेत देना सबसे बड़ा कारण है जिससे वे अपना मन वापस लेना चाहती है।
प्रश्न 9. गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर - गोपियों की बात करने की चतुराई अद्भुत है। वे उद्धव को भाग्यहीन न कहकर बड़भागी (भाग्यवान) कहती हैं जो कृष्ण के पास रहकर भी प्रेमबंधन से दूर रहे। वे उद्धव के अछूते रहने के उदाहरण भी अकाट्य देती हैं। कमल के पत्ते पानी में रहते हैं किन्तु पानी उन पर टिकता नहीं है। ऐसे ही तेल की गागर पर पानी की बूँद नहीं ठहर पाती है। वे प्रेम की मर्यादा के निर्वाह न करने की बात भी उद्धव को बता देती हैं। वे अपने एकनिष्ठ प्रेम के बारे में बड़ी चतुराई से उद्धव से कह देती है कि उस योग को उन्हें जाकर दे दो जिनके मन चंचल है। योग को कड़वी ककड़ी के समान थूकने योग्य बताना उनके वाक्चातुर्य का प्रमाण है। वे उद्धव से सहायता की माँग न करके राज धर्म के बारे में बताती हैं कि राजा को प्रजा के हित के कार्य करने चाहिए, अहित नहीं करना चाहिए।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 1. उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य से मुखरित हो उठी ?
उत्तर - उद्धव बुद्धिमान तथा ज्ञानवान थे। वे नीति निपुण भी थे जबकि गोपियाँ भोली-भाली सरल निर्बल स्त्रियाँ थीं। शिक्षा-दीक्षा, ज्ञान आदि के न होते हुए भी उनके पास एक ऐसी शक्ति थी जो उनकी शक्ति बनी। वह शक्ति उनका श्रीकृष्ण के प्रति निश्छल, निर्मल तथा एकनिष्ठ प्रेम है। एकनिष्ठ प्रेम की शक्ति ही उनके वाक्चातुर्य से मुखरित हो उठी। उनके तर्कों के सामने ज्ञानी उद्भव की एक न चली। वे परास्त हो गए।
प्रश्न 2. गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - गोपियों ने 'हरि' अब राजनीति पढ़ आए हैं। यह इसलिए कहा कि राजनीति मैं छल-कपट आदि का सहारा लिया जाता है। श्रीकृष्ण स्वयं तो लौटे नहीं उन्होंने संदेशवाहक उद्धव बनाए जो ज्ञानी थे, योग का उपदेश देते थे। इस तरह उन्होंने स्वयं गोपियों से प्रेम की मना न करके उद्भव के माध्यम से कहलवाया। समकालीन राजनीति में भी माध्यम ही अधिक काम करते हैं। छल-कपट का सहारा भी आज की राजनीति में लिया जाता है। इस तरह समकालीन भ्रष्ट राजनीति की झलक इसमें स्पष्ट दिखाई देती है।