class 11th Political Science chapter 18 धर्मनिरपेक्षता solution

sachin ahirwar
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class 11th Political Science chapter 18 धर्मनिरपेक्षता full solution//कक्षा 11वी राजनीति विज्ञान पाठ 18 धर्मनिरपेक्षता पूरा हल

NCERT Class 11th Political Science Chapter 18 Secularism Solution 

Class 11th Political Science Chapter 18 NCERT Textbook Question Solved

 

अध्याय 18

धर्मनिरपेक्षता


◆महत्वपूर्ण बिंदु


● प्राचीन धारणा धर्मनिरपेक्षता का तात्पर्य राजनीतिक कार्यों हेतु धर्म को आधार न बनाना है।

● धर्मनिरपेक्षता के दो महत्वपूर्ण पहलू- अंतर धार्मिक वर्चस्व का विरोध तथा धर्म के अंदर छुपे वर्चस्व का विरोध करना है।

● धर्मनिरपेक्षता ऐसा नियामक सिद्धांत है, जो धर्म के आंतरिक एवं बाह्य दोनों ही वर्चव्यों से रहित समाज का निर्माण चाहता है।

● समस्त धर्मनिरपेक्ष राज्य किसी धर्म विशेष की स्थापना से दूर रहते हुए धार्मिक कानूनों द्वारा संचालित नहीं होते हैं।

● हालांकि भारतीय धर्मनिरपेक्षता पर पाश्चात्य धर्मनिरपेक्षता का अंधानुकरण करने का आरोप लगाया जाता है परंतु वास्तविक रूप से हमारी धर्मनिरपेक्षता पाश्चात्य धर्मनिरपेक्षता के मूलभूत रूप से अलग है।

● भारतीय धर्मनिरपेक्षता का संबंध व्यक्तियों की धार्मिक स्वतंत्रता से ना होकर अल्पसंख्यक समुदाय की धार्मिक आजादी से है।

● 42 वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्षता' शब्द जोड़कर देश को स्पष्ट रूप से धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है।


★पाठांत प्रश्नोत्तर★



प्रश्न 1. धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? क्या इसकी बराबरी धार्मिक सहनशीलता से की जा सकती है?

उत्तर- धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा नियामक सिद्धांत है जो विभिन्न धर्मों के मध्य तथा अनेक धर्मों के भीतर उठने वाले वर्चस्व की प्रतिस्पर्धा से रहित समाज का निर्माण करना चाहता है पूर्णब्रह्म यह एक ऐसी धारणा है जो धर्मों के भीतर आजादी तथा विभिन्न धर्मों के मध्य और उनके भीतर समानता को बढ़ावा देती है। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि धर्मनिरपेक्षता में सभी धर्मों को समान समझा जाता है तथा लोगों को धर्म की स्वतंत्रता मिलती है। शासन किसी भी धर्म को विशेष महत्व नहीं देता है तथा सभी धर्मों पर एक समान कानून लागू होते हैं पूर्णब्रह्म धर्मनिरपेक्षता तथा धार्मिक सहनशील कि बराबरी नहीं की जा सकती।


 प्रश्न 2. भारतीय धर्मनिरपेक्षता का जोर धर्म और राज्य के अलगाव पर नहीं वरन उससे अधिक कहीं बातों पर है । इस कथन को समझाइए ।

उत्तर- भारतीय धर्मनिरपेक्षता सिर्फ धर्म तथा राज्य के अलगाव पर ही बल नहीं देती है, बल्कि यह राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों पर भी पूर्ण समर्थन करती है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता विभिन्न समुदायों के मध्य समानता का पक्ष लेती है। अल्पसंख्यकों के अधिकारों की प्रबल समर्थक भारतीय धर्मनिरपेक्षता की मान्यता है कि राज्य को व्यक्ति तथा धार्मिक समुदायों अर्थात दोनों के अधिकारों का संरक्षण प्रदान करना चाहिए।

 प्रश्न 3. 'सैद्धांतिक दूरी' क्या है? उदाहरण सहित समझाइए।

उत्तर- सैद्धांतिक दूरी का आशा है कि राज्य धार्मिक मामलों में औपचारिक रूप से दूरी बनाए रखें। मान्यता है कि राज्य ना तो पुरोहितों द्वारा संचालित होता तथा न ही किसी धर्म विशेष की स्थापना करेगा। इस प्रकार किन्हीं दो  क्षेत्रों में परस्पर दूरी रखने की धारणा ही सैद्धांतिक दूरी कहलाती है। उदाहरणार्थ- पहले महायुद्ध के बाद तुर्की में कमाल पाशा ने संगठित धर्म से सैद्धांतिक दूरी बनाए रखने की अपेक्षाकृत धर्म में सक्रिय हस्तक्षेप द्वारा उसके दमन का समर्थन किया था। इसी प्रकार यदि कोई धार्मिक संस्था महिलाओं के पुरोहित होने पर प्रतिबंध लागू करती है तो सैद्धांतिक दूरी के अंतर्गत राज्य इस प्रकरण में कुछ भी करने में असमर्थ है।


★परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर★


◆अति लघु उत्तरीय प्रश्न◆



प्रश्न 1. भारत में धर्मों के बीच वर्चस्व विवाद से जुड़े कोई दो उदाहरण लिखिए।

उत्तर-

(1) 1984 में दिल्ली तथा देश के विभिन्न भागों में लगभग 4000 सिख मारे गए । पीड़ित परिजन मानते हैं कि अभी तक दोषियों को दंडित नहीं किया गया है।

(2) 2002 में गुजरात में लगभग 2000 मुस्लिम मारे गए। इन परिवारों के जीवित बचे हुए बहुत से सदस्य अभी भी अपने अपने गांव में वापस नहीं जा पाए हैं।


 प्रश्न 2. धर्मनिरपेक्ष राज्य की दो विशेषताएं लिखिए।

उत्तर-(1) धर्मनिरपेक्ष राज्य  का अपना कोई धर्म नहीं होता, 

(2)राज्य के दृष्टिकोण से सभी धर्म एक समान है तथा धार्मिक मामलों  मैं वह तटस्थता की नीति अपनाता है


प्रश्न 3. भारतीय धर्मनिरपेक्षता की दो विशेषताएं लिखिए।

 उत्तर-(1) भारतीय धर्मनिरपेक्षता राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति देती है तथा भारतीय

 (2) धर्मनिरपेक्षता का सारा ध्यान अल्पसंख्यक अधिकारों पर है।

प्रश्न 4. पाश्चात्य धर्मनिरपेक्षता की दो विशेषताएं लिखिए।

 उत्तर-(1) पाश्चात्य धर्मनिरपेक्षता में धर्म एवं राज्य का परस्पर एक दूसरे के मामलों में अहस्तक्षेप की नीति है तथा

(2) पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता एक धर्मों के विभिन्न पदों के मध्य समानता पर बल देती है। 



◆लघु उत्तरीय प्रश्न◆



प्रश्न 1. कमाल अतातुर्क ने धर्मनिरपेक्षता को किस प्रकार लागू करने का प्रयत्न किया?

उत्तर- प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात आधुनिक विचारक मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने तुर्की की सत्ता संभाली ।कमाल अतातुर्क  जिसका वास्तविक नाम मुस्तफा कमाल पाशा था ने तुर्की को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने हेतु आक्रमक तरीके से कठोर कदम उठाए थे । उन्होंने 'हैट कानून'  द्वारा मुस्लिम द्वारा परंपरागत रूप से पहनी जाने वाली 'फैज'  टोपी पर प्रतिबंध लगा दिया। इसी प्रकार उन्होंने महिलाओं एवं पुरुषों के लिए पाश्चात्य पोशाकों को बढ़ावा दिया। अतातुर्क ने देश के पंचांग के स्थान पर पाश्चात्य (ग्रेगेरियर) पंचांग लागू किया। इतना ही नहीं 1928 में उन्होंने तुर्की वर्णमाला को संबोधित करते हुए उसका लेटर रूप देश में लागू कराया। कमाल अतातुर्क ने तुर्की के सार्वजनिक जीवन में बगावत को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया था। उसने अपने 'अतातुर्क' के तात्पर्य  :तुर्कों का पिता' को प्रमाणित करते हुए देश में अनूठी  धर्मनिरपेक्षता को कठोरता पूर्वक लागू कराया।


प्रश्न 2. क्या धर्मनिरपेक्षता भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल है? कोई चार कारण लिखिए।

उत्तर- धर्मनिरपेक्षता भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल है जिसके चार प्रमुख कारण निम्न वत हैं।

(1) कांग्रेस का कराची अधिवेशन - 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का कराची अधिवेशन हुआ जिसमें सभी कांग्रेसियों द्वारा एक मत से भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने पर बल दिया गया था।

(2) विभिन्न धर्मों का  राज्य  -  हमारे देश भारत में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग निवास करते थे तथा किसी भी बहुत धर्मी राज्य में किसी भी एक धर्म को राज्य धर्म के रूप में कदापि मान्यता नहीं दी जा सकती है।

(3) भारत का बंटवारा- सर्वविदित तथ्य है कि भारत का बंटवारा अर्थात विभाजन धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना को दृष्टिगत रखते हुए ही किया गया था 

(4)देश का लोकतांत्रिक स्वरूप - भारत लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित राज्य है तथा   धर्म तांत्रिक राज्य परस्पर एक दूसरे के खिलाफ होते हैं। जनसाधारण को धार्मिक आजादी प्रदत्त करना लोकतंत्र की ही महत्वपूर्ण विशेषता होती है।


प्रश्न 3. धर्मनिरपेक्षता के मार्ग की कोई चार बाधाएं लिखिए।

उत्तर- धर्मनिरपेक्षता के मार्ग की प्रमुख बाधाएं निम्नलिखित हैं 

(1) शासन की अहस्तक्षेपता -  धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत की मान्यता है कि सामाजिक रीति-रिवाजों एवं परंपराओं में सरकार किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। लेकिन सामाजिक न्याय की धारणा  की मांग मांग रहती है कि सामाजिक ढांचे में प्रगतिशील बदलाव किए जाते रहे।

(2)जाति प्रथा- धर्मनिरपेक्षता के मार्ग की एक बड़ी रुकावट जाति प्रथा है। उल्लेखनीय है कि वर्ग विहीन समाज की स्थापना के लक्ष्य धारी साम्यवादी दल को जातीयता से समझौता करना पड़ा है।

(3) सांप्रदायिकता- धर्मनिरपेक्षता के मार्ग में सांप्रदायिकता ने भी बाधा पैदा की है। समय-समय पर देश के विभिन्न हिस्सों में हुए सांप्रदायिक दंगों से देश की एकता को खतरा पैदा हुआ है।

(4) सांप्रदायिक दल - धर्मनिरपेक्षता के रास्ते में विभिन्न सांप्रदायिक दलों ने भी रोड़े अटका आए हैं पूर्णब्रह्म उदाहरणार्थ - हमारे देश में मुस्लिम लिंग तथा अकाली दल इत्यादि ने सांप्रदायिकता की आग और भड़क आई है



◆दीर्घ उत्तरीय प्रश्न◆


प्रश्न 1. धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की अनिवार्य शर्तों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की अनिवार्य शर्तें

  निम्न प्रकार हैं-

(1)राज्य सत्ता तथा धर्म में पर्याप्त दूरी- धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के लिए यह परम आवश्यक है कि राज्य सत्ता तथा धर्म के बीच में उचित एवं पर्याप्त दूरी होनी चाहिए । राज्य सत्ता के फैसलों कानूनों तथा नीतियों इत्यादि पर धर्म का किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं होना चाहिए।

(2) राज्य सत्ता का गैर धार्मिक सिद्धांतों एवं मूल्यों में विश्वास- धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना हेतु यह भी जरूरी है कि राज्य सत्ता की गैर धार्मिक स्रोतों से उत्पन्न सिद्धांतों एवं मूल्यों के प्रति अटूट विश्वास होना चाहिए । राज्य तथा का प्रत्येक क्रियाकलाप न्यूनतम अथवा अधिकतम इन्हीं सिद्धांतों एवं मूल्यों पर आधारित होना चाहिए।

(3) धार्मिक अल्पसंख्यक अधिकारों की सुरक्षा- धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना भी एक अनिवार्य शर्त यह भी है कि उसमें धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों तथा हितों की आधिकारिक सुरक्षा की जाए। इस प्रयोजन को पूरा करने के लिए सरकार विशेष नीतियां एवं कानून भी बना सकती है।

(4) नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मिले- एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के लिए यह भी परम आवश्यक होता है कि उसके सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से अपने अंतःकरण के अनुसार किसी भी धर्म को मानने तथा उससे संबंधित रीति रिवाजों एवं परंपराओं को अपनाने की संपूर्ण आजादी दी जाए। ऐसा कदम उठाने से राज्य में धार्मिक सौहार्द एवं शांति कायम होगी तथा प्रत्येक धर्म के अनुयायी को संपूर्ण सम्मान मिलेगा।


प्रश्न 2. भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।

उत्तर- जॉब इन आलोचकों द्वारा भारतीय धर्मनिरपेक्षता की कठोर शब्दों में आलोचना की जाती है जिसे संक्षेप में निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

(1) पाश्चात्य धर्मनिरपेक्षता की नकल- आलोचकों द्वारा भारतीय धर्मनिरपेक्षता पर पाश्चात्य धर्मनिरपेक्षता की नकल होने जैसा गंभीर आरोप लगाया गया है। उनका मानना है कि धर्मनिरपेक्षता ईसाइयात से जुड़ी हुई अवधारणा है अतः यह भारतीय परिस्थितियों में सर्वथा विपरीत है। लेकिन आलोचकों का उक्त विचार हमें अनुचित ही लगता है, क्योंकि भारतीय धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा का प्रादुर्भाव हमारे देश की परिस्थितियों के अनुरूप ही हुआ है।

(2) असंभव परियोजना- विभिन्न आलोचक धर्मनिरपेक्षता पर प्रहार करते हुए इसे एक असंभव परियोजना बतलाते हैं। उनका उनका मानना है कि यह गंभीर धार्मिक मतभेद उत्पन्न करने वालों का एक साथ हमेशा शांतिपूर्वक रखना चाहती है, जो कि असंभव कि नहीं है। वास्तविक रूप में देखा जाए तो आलोचना का यह बिंदु व्यर्थ ही प्रतीत होता है। इतिहास इस तथ्य का साक्षी है कि इस तरह साथ साथ रहना एकदम संभव है।

(3) धर्म विरोधी अवधारणा- भारतीय धर्मनिरपेक्षता के आलोचक इसे धर्म विरोधी मानते हैं। लेकिन इस प्रकार का आरोप संभवतया इस कारण से लगाया जाता है कि यह किसी भी तरह के संस्थागत धार्मिक वर्चस्व का विरोध करती है। व्यावहारिक दृष्टिकोण यह है कि इसके धर्म विरोधी होने का कोई आधार प्रतीत नहीं होता है। आलोचकों द्वारा तो यह यहां तक कह दिया गया है कि यह धार्मिक पहचान हेतु खतरा उत्पन्न करती है , परंतु यह तर्क भी असत्य ही है क्योंकि भारतीय धर्मनिरपेक्षता धार्मिक स्वतंत्रता तथा समानता को प्रोत्साहित करती है।

(4) अल्पसंख्यकों को प्रोत्साहन- भारतीय धर्मनिरपेक्षता पर अल्पसंख्यकों को अत्याधिक बढ़ावा अथवा प्रोत्साहन देने का गंभीर आरोप लगाया जाता है। आलोचक कहते हैं कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता अल्पसंख्यक अधिकारों को अत्याधिक प्रोत्साहन अथवा बढ़ावा देने वाली अवधारणा है। लेकिन आलोचकों का यह तर्क सत्यता से दूर है, क्योंकि हमारे देश भारत में धर्मनिरपेक्षता अल्पसंख्यक वर्गों को भी समान धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करती है इसे सुनिश्चित करने हेतु कुछ विशेष कानूनों एवं नीतियों को निर्मित किया जाता है, जो भारतीय एकता एवं अखंडता को कायम करने के दृष्टिकोण से अत्यधिक ही उपयोगी है।

अंत में हम परिणाम स्वरूप कह सकते हैं कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता स्वयं अपने आप में विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण है। हमारे देश की एकता एवं अखंडता में इसका योगदान किसी से छुपा हुआ नहीं है । अतः इसकी आलोचनाएं आवेश एवं जल्दबाजी का प्रतिफल मात्र है जिनमें वास्तविक तथ्यों की प्राय: अनदेखी ही की गई है।
















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