class 11th Political Science chapter 17 राष्ट्रवाद solution

sachin ahirwar
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class 11th Political Science chapter 17 राष्ट्रवाद  full solution//कक्षा 11वी राजनीति विज्ञान पाठ 17 राष्ट्रवाद पूरा हल

NCERT Class 11th Political Science Chapter 17 Nationalism Solution 

Class 11th Political Science Chapter 17 NCERT Textbook Question Solved


 अध्याय 17

राष्ट्रवाद


◆महत्वपूर्ण बिंदु


राष्ट्र अंग्रेजी शब्द 'नेशन' का हिंदी अनुवाद है, जो लैटिन भाषा रेशियो तथा नेटस से उदित हुआ है, जिसका तात्पर्य 'जन्म अथवा नस्ल' और' पैदा 'हुआ है।

राष्ट्र का अभिप्राय: उस जनसमूह है जो वंश, परंपरा अथवा जन्म की एकता में बांधता है

राष्ट्रवादी विचारधारा है जिसमें विचारक अपने राष्ट्र के प्रति तन मन से समर्पित रहते हुए उसे स्वतंत्र तथा प्रगति पथ पर निरंतर बढ़ते हुए देखना चाहता है।

राष्ट्रीयता एक ऐसी भावना है जो मानव के लंबी समयावधि तक एक निश्चित भू-भाग में सामूहिक रूप से रहने के फल स्वरुप उत्पन्न होती है।

● राष्ट्रवाद जहां अत्याचारी विदेशी शासन से मुक्ति दिलाने में मददगार सिद्ध हुआ है, वहीं यह विरोध कटुता तथा युद्धों का कारण भी बना है।

● 19वीं शताब्दी के यूरोप में राष्ट्रवाद ने अनेक छोटी-छोटी रियासतों के एकीकरण से विशाल राष्ट्र राज्य की स्थापना का रास्ता दिखाया।

● एशिया एवं अफ्रीका ब्रिटिश साम्राज्य के पतन के बाद राष्ट्रवाद ही सर्वाधिक प्रभावित कारण था।

● पिछली दो शताब्दियों से लोगों को अत्याधिक प्रभावित करने वाले सिद्धांत के रूप में राष्ट्रवाद उभर कर आया है।


★पाठांत प्रश्नोत्तर★



प्रश्न 1. राष्ट्र किस प्रकार से बड़ा की सामूहिक संबंध्दताओं से अलग है?

उत्तर समाज में विभिन्न संस्थाएं एवं समुदाय जैसे परिवार तथा धार्मिक समुदाय इत्यादि हैं। राष्ट्र इन सभी से निम्न प्रकार अलग है-

(1) समाज में विद्यमान विभिन्न समूह एवं समुदाय प्रत्यक्ष संबंधों पर आधारित हैं। उदाहरणार्थ- परिवार, जिसके सभी सदस्य परस्पर एक दूसरे को भली प्रकार से जानते हैं एवं समझते हैं। इसके विपरीत राष्ट्र ऐसा समुदाय है जिसके अधिकांश सदस्यों के मध्य प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संबंध नहीं होते हैं। अपने ही राष्ट्र के सदस्य दूसरे अन्य लोगों से ना तो मिल पाते हैं तथा ना ही परस्पर जान पाते हैं

(2) विभिन्न सामाजिक समुदायों में विवाद तथा वंश परंपरा इत्यादि पाई जाती हैं इसके ठीक विपरीत राष्ट्र के निर्माण में इनकी किसी प्रकार की कोई उपयोगिता नहीं होती है। अतः इस आधार पर राष्ट्र को अन्य सामाजिक समुदायों एवं संस्थाओं से अलग माना जाता है।

(3) जहां समाज के विभिन्न समुदाय वास्तविक संबंधों पर आधारित हैं वहीं राष्ट्र काल्पनिक संबंधों पर आधारित समुदाय है। राष्ट्र का निर्माण अपने सदस्यों के सामूहिक विश्वास, आकांक्षाओं एवं कल्पनाओं के द्वारा एक माला के रूप में बना हुआ होता है, जिस आधार पर यह अन्य सामाजिक समुदायों की तुलना में अलग प्रतीत होता है।


प्रश्न 2. राष्ट्रीय आत्म निर्णय के के अधिकार से आप क्या समझते हैं? किस प्रकार यह विचार राष्ट्र राज्यों के निर्माण और उनको मिल रही चुनौती में परिणत होता है?

उत्तर- राष्ट्र द्वारा अपने शासन एवं प्रशासन की व्यवस्था स्वयं करने के लिए मांगा जाने वाला अधिकार ही 'राष्ट्रीय आत्मनिर्णय' का अधिकार कहलाता है। राष्ट्र अधिकार के अंतर्गत अपनी सीमा में शासन एवं प्रशासन को स्वयं ही संभालते हैं। राष्ट्रीय आत्मनिर्णय के अधिकार के अंतर्गत राष्ट्रीय , अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यह मांग करते हैं कि उसे एक राजनीतिक इकाई के रूप में स्वीकार आ जाए।


राष्ट्रीय आत्मनिर्णय का अधिकार 19वीं तथा 20वीं शताब्दी में साम्राज्यवादी एवं उपनिवेशवादी शक्तियों के विरुद्ध एक मजबूत हथियार बना। सभी लोग इस मांग से एकजुट हुए जिसके फलस्वरूप राष्ट्र राज्यों का उदय होना शुरू हुआ।


राष्ट्रीय आत्मनिर्णय के अधिकार का एक महत्वपूर्ण अवगुण यह भी है कि इससे एक राष्ट्र राज्य के निर्माण की संभावना कम हो जाती है। अब इन राष्ट्रों मैं अपनी ही सरकारो के अलग स्वतंत्र अस्तित्व की मांग उठती रहती हैं। भारत का पाकिस्तान के रूप में विभाजन पाकिस्तान का बांग्लादेश के में विभाजन तथा विश्व के ताकतवर सोवियत संघ जैसे राष्ट्र राज्यों में विभक्त हो जाना इसके श्रेष्ठ उदाहरण कहे जा सकते हैं। अतः वर्तमान परिस्थितियों राष्ट्रीय आत्मनिर्णय का अधिकार राष्ट्रीय राज्यों के समक्ष एक चुनौती प्रस्तुत कर रहा है।

प्रश्न 3. वंश, भाषा, धर्म या नस्ल में से कोई भी पूरे विश्व में राष्ट्रवाद के लिए साझा कारण होने का दावा नहीं कर सकता टिप्पणी कीजिए।

उत्तर- विश्व में राष्ट्रवाद की स्थापना हेतु वंश , भाषा , धर्म अथवा नस्ल में से कोई भी एक संयुक्त कारण होने का दावा नहीं कर सकता है क्योंकि आंतरिक रूप से इन सभी में विभिन्नता ए देखने को मिलती है। प्रायः विश्व के समस्त बड़े धर्म आंतरिक रूप से विविधताओं से परिपूर्ण है। इसी प्रकार जहां एक स्थान की भाषा शैली दूसरे स्थान की भाषा शैली से पृथक होती है उसी तरह एक स्थान के निवासियों की संस्कृतियों में भिन्नता होती है। यहां भारत का उदाहरण दिया जा सकता है।

 क्योंकि राष्ट्र एक काल्पनिक समुदाय है  अतः मैं अपने सदस्यों के काल्पनिक विश्वास एवं आस्था से बना है। अतः वंश, भाषा, धर्म तथा नशे में से कोई भी संपूर्ण विश्व में राष्ट्रवाद के निर्माण का संयुक्त कारण होने का दावा नहीं कर सकता। 

प्रश्न 4. संघर्षरत राष्ट्रवादी आकांक्षाओं के साथ बर्ताव करने में तानाशाही की अपेक्षा लोकतंत्र अधिक समर्थ होता है, कैसे?

उत्तर- विश्व में में राष्ट्रवादी भावनाओं तथा कल्पनाओं को मूर्त रूप देने हेतु विभिन्न संघर्ष हुए हैं । इन संघर्षों की  प्रकृति, कारणों तथा परिणामों के अध्याय उपरांत स्पष्ट होता है कि ऐसे संघर्ष में लोकतंत्र तानाशाही की अपेक्षाकृत अधिक समर्थ एवं उपयोगी सिद्ध हुआ है । लोकतांत्रिक व्यवस्था में समाज के सभी लोगों को चाहे वह राष्ट्र के साथ है अथवा नहीं, अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार दिया जाता है। यह यहां भी उल्लेखनीय है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में संघर्षरत राष्ट्रवादी समूह के साथ वार्ता करके  तथा यदि संभव हो तब उसकी इच्छा अनुसार समझौता करके संधि की जा सकती है। अतः स्पष्ट है कि संघर्षरत राष्ट्रवादी आकांक्षाओं के साथ बर्ताव करने में तानाशाही की अपेक्षा लोकतंत्र अधिक कारगर सिद्ध होता है।


प्रश्न 5. आपकी राय में राष्ट्रवाद की सीमाएं क्या है?

उत्तर-  राष्ट्रवाद जब तक अपनी सीमाओं में रहे तब तक यहां एक उपयोगी धारणा है। हमारी राय में राष्ट्रवाद की निम्नलिखित सीमाएं प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं-

(1)भाषाई समस्या- राष्ट्रवाद के मार्ग की मुख्य बाद आए क्षेत्र में रहने वाले लोगों में पाई जाने वाली भाषा की समस्या है।

(2) क्षेत्रवाद तथा धार्मिक भिन्नताएं- लोगों के विचारों  को क्षेत्रवाद की भावना से काफी संकुचित कर दिया है जिसकी वजह से राष्ट्रवाद के रास्ते में रुकावट पैदा होती है। इसी तरह  धार्मिक भिन्नताएँ ने भी राष्ट्रवाद की भावना को समाप्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

(3) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं शांति- राष्ट्रवाद ने अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं शांति का जब भी उल्लंघन किया है तभी उसे भयानक मुस्कान उठाना पड़ा है। इस सीमा का उल्लंघन करने पर राष्ट्रवाद के औचित्य पर एक प्रश्न चिन्ह लग जाता है।  उदाहरणार्थ हमें  1914 से 18 तथा  1939 से 45 में दो बार विश्व युद्धों का सामना करना पड़ा । यहां इस सीमा के उल्लंघन का ही परिणाम था।

(4) उचित शिक्षा प्रणाली का अभाव- किसी भी राज्य में उचित शिक्षा प्रणाली  के अभाव की वजह से भी राष्ट्रवाद की भावना में रुकावट देखी जा सकती है।

(5)नैतिक मूल्यों में गिरावट एवं आर्थिक असमानता - नैतिक मूल्यों में हंस अथवा गिरावट के फल स्वरुप भी राष्ट्रवाद की भावना उत्पन्न होने में कठिनाई होती है पूनम राम इसी तरह आर्थिक असमानता भी राष्ट्रवाद के रास्ते की प्रमुख रुकावट है। 


★परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर★


◆अति लघु उत्तरीय प्रश्न◆



प्रश्न 1. राष्ट्र तथा राज्य में कोई दो अंतर लिखिए।

उत्तर-(1) राज्य का निर्माण चार आवश्यक तत्वों से होता है जबकि राष्ट्र के लिए कोई तत्व अनिवार्य नहीं है,

(2) राष्ट्रीय समुदाय है जिसमें एकता की भावना हो जबकि राज्य में लोगों में एकता की भावना होना जरूरी नहीं है।

प्रश्न 2. राष्ट्रवाद कितने प्रकार का होता है?

उत्तर- राष्ट्रवाद मुख्यतया, रूढ़िवादी, उदारवादी, जनवादी, सर्वसत्तावादी, अथवा एकाधिकारवादी तथा मार्क्सवादी प्रकार का होता है।

प्रश्न 3. उदारवादी राष्ट्रवाद के दो लक्षण अथवा विशेषताएं लिखिए।

 उत्तर- (1) उदारवादी राष्ट्र हिंसा में आस्था नहीं रखता,  तथा (2) प्रत्येक राष्ट्र का अपना अलग व्यक्तित्व होता है


प्रश्न 4. राष्ट्रवाद के कोई दो अवगुण संक्षेप में लिखिए।

 उत्तर-(1) अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए एक राष्ट्र तथा एक राज्य का सिद्धांत अत्यंत ही हानि प्रद है इन को मानने से विश्व सरकार स्थापित नहीं हो सकती।

(2) क्योंकि राष्ट्रवादी अपने राष्ट्र  को अन्य देशों की अपेक्षाकृत उच्च मानते हैं, तथा इससे अन्य राष्ट्रों के प्रति घृणा की भावना को बल मिलता है ।

प्रश्न 5. सर्वसत्तावादी राष्ट्रवाद का प्रयोग किन दो लक्ष्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है?

उत्तर-(1) राष्ट्रीय स्वतंत्रता के संघर्ष को सफल बनाने, तथा

(2) साम्राज्य की वृद्धि।


◆लघु उत्तरीय प्रश्न◆


 प्रश्न 1. उपराष्ट्रवाद को संक्षेप में समझाइए । 

उत्तर- हालांकि वर्तमान आधुनिक युग में 'एक राष्ट्र, एक राज्य,' सिद्धांत पर विशेष जोर दिया जाता है। लेकिन अभी भी अनेक ऐसे राज्य हैं जो बहु राष्ट्रीय तथा बहु सांस्कृतिक हैं। उदाहरणार्थ- सोवियत रूस स्विट्जरलैंड चीन तथा भारत इत्यादि देशों में अनेक राष्ट्रीयता हैं। भारत में विभिन्न भाषाओं, धर्म तथा जातियों इत्यादि के समूह निवास करते हैं। किसी एक एक राष्ट्र के भीतर विशेष भावना को ही उपराष्ट्रीयता की उपमा दी जाती है। भारत में आजादी से पहले मुस्लिम राष्ट्रवाद था। जब मोहम्मद अली जिन्ना के  'द्विराष्ट्र सिद्धांत' प्रतिपादित किया तो उसने मुस्लिम राष्ट्रवाद पर विशेष जोर दिया । वर्तमान भारत में मुस्लिम सिख तथा ईसाई राष्ट्रवाद के ही उदाहरण हैं। जब तक उपराष्ट्रीयता की भावना एक व्यापक राष्ट्रीय भावना के अंतर्गत कार्य करती है, तब तक तो इसका राज्य के क्रियाकलाप पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन जैसे ही उपराष्ट्रीयता राष्ट्र बनने का प्रयत्न करती है वैसे ही इससे देश की एकता एवं शांति बुरी तरह से प्रभावित होने लगती है। प्रायः सभी राष्ट्र एक राष्ट्र की भावना पर जोर देते हैं।


 प्रश्न 2. सर्वसत्तावादी राष्ट्रवाद की चार विशेषताएं अथवा लक्षण लिखिए। 

उत्तर- सर्व सत्तावादी राष्ट्रवाद के चार प्रमुख लक्षण निम्न प्रकार हैं-

(1) सर्व सत्तावादी राष्ट्रवाद में राष्ट्रहित व्यक्ति से श्रेष्ठ है जिसमें राष्ट्र का आधार सैन्य शक्ति है।

(2) सर्व सत्तावादी राष्ट्रवाद साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का समर्थन करता है। 

(3)सर्व सत्तावादी राष्ट्रवाद शक्ति संपन्न लोगों को कमजोर वर्ग पर शासन करने का अधिकार देता है।

(4) सर्व सत्तावादी राष्ट्रवाद का एक अन्य लक्षण है कि इसमें व्यक्ति साधन तथा राज्य साध्य है।


प्रश्न 3. मार्क्सवादी राष्ट्रवाद के प्रमुख लक्षण लिखिए।

उत्तर-

(1) मार्कस बाद राष्ट्रवाद पूंजीवादी राष्ट्रवाद के खिलाफ है जिसमें श्रमिकों का प्रभुत्व होता है।

(2) अंतर्राष्ट्रीय श्रमिकों की क्रांति का समर्थक मार्क्सवादी राष्ट्रवाद आत्मनिर्णय के सिद्धांत का समर्थन करता है 

(3) मार्क्सवादी राष्ट्रवाद आदर्श की अपेक्षा वास्तविकता पर विशेष जोर देता है।

(4) मार्क्सवादी राष्ट्रवाद की एक विशेषता यह भी है कि यह धर्म तथा नैतिकता इत्यादि को महत्व नहीं देता है।


प्रश्न 4. राष्ट्रीय आत्म निर्णय मांग से संबंधित स्पेन में वास्क के राष्ट्रवादी आंदोलन  संक्षिप्त प्रकाश डालिए

उत्तर- वर्तमान में विश्व के विभिन्न देशों से राष्ट्रीय आत्म निर्णय की मांग जोर पकड़ती रही है। इसका एक ज्वलंत उदाहरण स्पेन में मास्क के राष्ट्रवादी आंदोलन से जुड़ा हुआ है। पहाड़ी एवं समृद्ध क्षेत्र वार्षिक स्पेन को वहां की सरकार ने राज्य संघ के अंतर्गत स्वायत्त क्षेत्र के अंतर्गत रखा है। वास्क के राष्ट्रवादी आंदोलनकर्ताओं इस स्वायत्तता से असंतुष्ट हैं अब  वे वास्क को एक अलग स्वतंत्र राष्ट्र बनाने की पुरजोर मांग कर रहे हैं।

 वास्क राष्ट्र वादियों की स्पष्ट मान्यता है कि उनकी संस्कृति स्पेन की सामान्य संस्कृति से जरा भी मेल नहीं खाती। उनकी अपनी भाषा शैली है क्योंकि स्पेनी भाषा से एकदम अलग है। रोमन काल से  लेकर वर्तमान तक वास्क के क्षेत्र में स्पेनी शासकों के साथ अपनी स्वायत्तता का कभी समर्थन नहीं किया। स्पेनी तानाशाह प्रैंकों की दमनात्मक नीतियों ने 20वीं शताब्दी में वास्क  के राष्ट्रवादी आंदोलन को भटकाने में अहम भूमिका का निर्वाह किया।  हालांकि बाद में लोकतांत्रिक शासन  ने वास्क की उसकी स्वायत्तता वापस करके इस जटिल समस्या को हल कर दिया इसके बावजूद भी वर्तमान में वास्क के राष्ट्रवादी आंदोलनकारी अलग राज्य की मांग को छोड़ नहीं कर रहे हैं।


◆दीर्घ उत्तरीय प्रश्न◆



 प्रश्न 1. राष्ट्रवाद पर रवींद्रनाथ टैगोर  की समालोचना की विवेचना कीजिए। 

 उत्तर - गुरुदेव  रविंद्रनाथ टैगोर ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान प्रखर  रूप से राष्ट्रवादी भावनाओं की समालोचना  करते हुए कहा था कि“ राष्ट्रवाद कभी भी हमारी अंतिम आध्यात्मिक मंजिल नहीं  हो सकती मेरी  शरणस्थली  तो ”मानवता” है।  मैं  हीरों की कीमत पर कदापि काँच का टुकड़ा नहीं खरीदूंगा। जब तक मेरा जीवन है तब तक देश भक्ति को मानव पर विजयी  नहीं होने दूंगा।” यदि वास्तविक रूप से देखा जाए तो भारत में रविंद्र नाथ ठाकुर औपनिवेशिक शासन के विरोधी थे तथा वे हमारे देश भारत में आजादी के अधिकार का दावा भी करते थे।


 रविंद्र नाथ टैगोर का उक्त दावा तथ्य पर आधारित था कि ब्रिटिश प्रशासन ने मानवीय संबंधों की गरिमा जारी रखे जाने की कोई भी संभावना नजर नहीं आती है। उन्होंने पाश्चात्य साम्राज्यवाद का विरोध करने तथा पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण विरोध किए जाने में अंतर किया।उनका स्पष्ट अभिमत था कि भारत वासियों को अपनी संस्कृति एवं विरासत में गहरी अटूट आस्था होने के साथ-साथ बाह्य दुनिया  से भी मुक्त भाव से सीखने तथा लाभान्वित होने का कदापि विरोध नहीं करना चाहिए। 


उल्लेखनीय है कि रविंद्र नाथ टैगोर की 'देशभक्ति' की समालोचना उनके दूरदर्शी लेखन का स्थाई विषय रहा। उन्होंने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में विद्यमान राष्ट्रवाद की संकुचित भावना की कटु आलोचना की थी।


 रविंद्र नाथ टैगोर को यह डर सदैव प्रेरित करता रहा कि जिसे भारतीय परंपरा के रूप में हम प्रसारित एवं प्रचारित कर रहे हैं, उस के पक्ष में पाश्चात्य सभ्यता को नकारने वाला दृष्टिकोण केवल यही तक सीमित नहीं रहेगा । उन्होंने माना कि यह विचार सरलतापूर्वक अपने देश में मौजूद भारतीय, ईसाई, इस्लाम तथा यहूदी सहित विभिन्न विदेशी प्रभावों के विरुद्ध आक्रमक स्वरूप धारण कर सकता है।



रविंद्रनाथ टैगोर की राष्ट्रवाद पर समालोचना के निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि हमें मानवता की सुरक्षा प्रत्येक परिस्थिति में करनी चाहिए तथा राष्ट्रवाद के नाम पर कभी भी मानवता का बलिदान नहीं होने देना चाहिए।


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