class 11th Political Science chapter 15 अधिकार solution

sachin ahirwar
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class 11th Political Science chapter 15 अधिकार full solution//कक्षा 11वी राजनीति विज्ञान पाठ 15 अधिकार  पूरा हल

NCERT Class 11th Political Science Chapter 15 Right Solution 

Class 11th Political Science Chapter 15 NCERT Textbook Question Solved


 अध्याय 15 

अधिकार


महत्वपूर्ण बिंदु


● सामाजिक जीवन की वह अनिवार्य परिस्थितियों जो व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास हेतु जरूरी होती हैं, अधिकार कहलाती है।

●‌ प्रायः अधिकारों को तीन भागों-प्राकृतिक नैतिक तथा कानूनी मैं विभक्त किया जा सकता है।

●आधुनिक राज्य में नागरिकों को नागरिक अधिकार राजनीतिक अधिकार तथा आर्थिक अधिकार प्राप्त है।

●वर्तमान में सूचना का अधिकार स्वच्छ वायु तथा पेयजल इत्यादि नए अधिकार भी अधिकारों की सूची में ही सूचीबद्ध हो रहे हैं।

●पिछले कुछ वर्षों से प्राकृतिक अधिकार सबसे अधिक मानवाधिकार शब्द का प्रयोग हो रहा है।

●अधिकारों के असीमित होने का तात्पर्य अराजकता एवं अव्यवस्था है।

●अधिकारा सीमित नहीं है इनको परिस्थितियों के अनुसार प्रतिबंधित  भी किया जा सकता है।

● कर्तव्य का तात्पर्य व्यक्ति का समाज अथवा राष्ट्र के प्रति है जो उसे इनसे सामाजिक राजनीतिक तथा आर्थिक अधिकारों के रूप में प्राप्त होता है।



★पाठात्त प्रश्नोत्तर★



प्रश्न 1. अधिकार क्या है और वह महत्वपूर्ण क्यों है? अधिकारों का दावा करने के लिए उपयुक्त आधार क्या हो सकते हैं?

उत्तर-अधिकार का अभिप्राय-हमारे चहुं मुखी विकास तथा सुख में जीवन को अनुसूचित करने वाली स्थितियों अधिकार कहलाती है। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि अधिकार ऐसे दावे हैं जिनका निश्चित औचित्य है तथा इनको समाज एवं शासन की सहमति एवं स्वीकृति भी हासिल है।

अधिकारों का महत्व-जहां अधिकार व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास में सहायक है वही सुदृढ़ एवं कल्याणकारी राज्य की स्थापना में भी मददगार सिद्ध होते हैं। मानवीय जीवन की अनिवार्य  आवश्यकता अधिकारों के आधार पर ही हम समाज में अपने कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व का उचित निर्वहन कर पाते हैं। अधिकार राज्य की मनमानी से भी हमारी सुरक्षा करने में सहायक है।

अधिकारों का दावा करने हेतु उपयुक्त आधार-अधिकारों के दावे का उपयोग आधार है, कि अधिकारों की मांग मानवीय गरिमा की रक्षा से संबंधित हो तथा अपनी भाषा शैली तथा संस्कृति के प्रचार-प्रसार की वजह से भी इनका दावा किया जाता है। सामाजिक जरूरतों से जुड़ी होने की वजह से विभिन्न अवसरों पर कुछ अधिकारों की आवश्यकता अनुभव की जाती है। अधिकार लोगों को उनकी दक्षता तथा प्रतिभा विकसित करने में भी सहायक होते हैं, अतः उनकी दावेदारी का एक आधार है भी होता है।

प्रश्न 2. किन आधारों पर है अधिकार अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक माने जाते हैं?

उत्तर-सर भूमिक का तात्पर्य धारणा एवं विचारों से है जिनी प्रत्येक स्थिति में हर स्थान पर सभी के लिए जरूरी माना जाता है तथा स्वीकार भी किया जाता है ।

अतः अधिकार अपनी प्रकृति में इस कारण सर भूमिक है, क्योंकि वह समाज के सभी लोगों को एक समान रूप से मिलते हैं। लोकतांत्रिक प्रणाली में समस्त व्यक्तियों को एक जैसा माना जाता है, जो अधिकार मुझे मिलते हैं भाई अधिकार दूसरे अन्य लोगों को भी दिए जाते हैं। यदि व्यक्तियों के पास अधिकार नहीं होंगे तो उनके उत्तरदायित्व का भी औचित्य समाप्त हो जाएगा।

प्रश्न 3. सच्ची में उन नए अधिकारों की चर्चा कीजिए, जो हमारे देश में सामने रखी जा रहे हैं। उदाहरण के लिए आदिवासियों के अपने रहवासी और जीने के तरीके को संरक्षित रखने तथा बच्चों के बंधुआ मजदूरी के खिलाफ अधिकार जैसे नए अधिकारों को लिया जा सकता है।

उत्तर-पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश भारत में कुछ नवीन अधिकार उभरकर सामने आए हैं, जो समय समय पर वाद विवाद का प्रमुख विषय बने है। 

इन नवीन अधिकारों में सूचना का अधिकार, अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का अधिकार, महिलाओं के प्रति हिंसा को रोकने का अधिकार, विधायिका में महिला आरक्षण की व्यवस्था का अधिकार तथा भूमि के उचित मुआवजे का अधिकार इत्यादि विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

प्रश्न 4. राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों में अंतर बताइए। हर प्रकार के अधिकार के उदाहरण भी दीजिए।

 उत्तर-राजनीतिक, आरती कथा संस्कृतिक अधिकारों के अंतर को उदाहरण सहित निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-


राजनीतिक अधिकार

आर्थिक अधिकार

सांस्कृतिक अधिकार 

1. यह अधिकार लोगों के राज्य व्यवस्था में सहभागिता से संबंधित होते हैं।

1. यह अधिकार लोगों के आर्थिक जीवन से संबंध होते हैं।

1. यह लोगों की अपनी भाषा एवं धर्म इत्यादि के प्रचार से संबंधित है।

2. इन अधिकारियों द्वारा लोगों को देश की राज्य व्यवस्था में सहभागिता के समान अवसर दिए जाती हैं।

2. इन अधिकारों से लोग देश की अर्थव्यवस्था में सहभागी बनते हैं।

2. हे अधिकार लोगों को देश की प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति की भिन्नता का इंसा बनाए रखती हैं।

3. इस अधिकार के आधार पर व्यक्ति स्वयं अपनी सरकार चुनता है तथा उसमें से भागी भी बन सकता है।

उदाहरणार्थ-मताधिकार तथा राजनीतिक दल बनाने का अधिकार इत्यादि।

3. यह ऐसे दावे हैं जो व्यक्ति को स्वेच्छा से अपनी आजीविका अर्जित करने तथा उचित परिश्रमिक प्राप्त करने का अवसर देते हैं।

उदाहरणार्थ-न्यूनतम परिश्रमिक, समान कार्य एवं समान वेतन इत्यादि।

3. यह लोगों की अपनी धार्मिक मान्यताओं, रीति-रिवाजों तथा परंपराओं इत्यादि की रक्षा से संबंधित है।

उदाहरणार्थ-अपनी शिक्षण संघ संस्थाएं खोलने का अधिकार, अपनी स्वेच्छा से किसी भी धर्म का पालन इत्यादि।


प्रश्न 5. अधिकार राज्य की सत्ता पर कुछ सीमाएं लगाते हैं। उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।

उत्तर-हालांकि राज्य की जनता सर्वोच्च है, लेकिन इसके बावजूद राज्य की सत्ता पर अधिकार ओं द्वारा कुछ सीमाएं भी लगाई जाती हैं। अधिकार राज्य को किसी भी नागरिक के खिलाफ अमन बीए कार्य करने से रोकता है। अधिकार राज्य का कार्य क्षेत्र निर्धारित कर देते हैं जिससे राज्य किसी भी तरह का अमानवीय कार्य ना कर सके। उदाहरणार्थ-अधिकार राज्य पर इस प्रकार की सीमा लगा सकते हैं, जिससे कि राज्य किसी भी नागरिक से जाति, धर्म, अथवा भाषाई आधार पर कोई भेदभाव ना कर पाए। यदि राज्य अधिकारों की उपेक्षा करेगा तो जनसाधारण में क्रांति की भावना उत्पन्न  हो सकती हैं, जिससे राज्य का विघटन हो सकता है।


★अति लघु उत्तरीय प्रश्न★


प्रश्न 1. अधिकार का क्या अभिप्राय है?

उत्तर-अधिकार समाज द्वारा स्वीकृत उन मांगों को कहते हैं, जिनसे व्यक्ति समाज तथा राज्य तीनों का ही होता है ‌।

प्रश्न 2. नागरिक अधिकार कितने प्रकार के होते हैं?

अथवा

कोई दो प्रमुख नागरिक अधिकार लिखिए।


उत्तर-साधारणतया अधिकार के तीन प्रकार-(1) प्राकृतिक अधिकार,( 2) नैतिक अधिकार तथा (3) कानूनी अधिकार है।

प्रश्न 3. कानूनी अधिकार कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर-कानूनी अधिकारों के तीन प्रकार-(1) सामाजिक तथा नागरिक अधिकार, (2) राजनीतिक अधिकार तथा (3) मौलिक अधिकार है।

प्रश्न 4. किस विद्वान ने प्राकृतिक अधिकारों को आधार से अधिकारों के रूप में मान्यता दि?

उत्तर-ग्रीन ने ‌।

प्रश्न 5. नागरिक अधिकारों के महत्व के कोई दो बिंदु लिखिए।

उत्तर-(1) अधिकार मानव जीवन के स्रोत हैं, तथा (2) वास्तविक लोकतंत्र के संस्थापक हैं।

प्रश्न 6. नागरिक कर्तव्यों से आप क्या समझते हैं?

उत्तर-कर्तव्य समाज तथा राज्य की व्यवस्था को कहते है , जिनके द्वारा व्यक्ति,  समाज एवं राज्य के हित हेतु कुछ कार्यों का करना तथा कुछ का ना करना उचित एवं जरूरी समझा जाता है।

प्रश्न 7. नागरिक कर्तव्य के कोई दो प्रकार लिखिए।

उत्तर-नागरिक कर्तव्यों के दो प्रकार-(1) नैतिक कर्तव्य, तथा (2) राजनीतिक अथवा वैधानिक या कानूनी कर्तव्य है।

प्रश्न 8. समाज के प्रति व्यक्ति के दो कर्तव्य बताइए।

उत्तर-(1) समाज में व्याप्त कुरीतियों का उन्मूलन करना, तथा (2) समाज के दिन- दुखियों एवं असहायो की मदद करना।

प्रश्न 9. वैधानिक कर्तव्यों की प्रमुख विशेषता क्या है?

उत्तर-वैधानिक कर्तव्यों का पालन व्यक्ति के लिए अनिवार्य है तथा इनका पालन ना करने पर राज्य द्वारा दंडित किए जाने का प्रावधान है।

प्रश्न 10 . मानवाधिकार से क्या तात्पर्य है?

उत्तर-मानव अधिकार संपूर्ण मनुष्य जाति से संबंधित व अधिकार है, जो लोगों के चहुमुखी विकास एवं कल्याण हेतु जरूरी होते हैं।

प्रश्न 11. मानव अधिकारों का उद्देश्य लिखिए।

उत्तर-मानव अधिकारों का उद्देश्य मानवीय जीवन का विकास, विश्व शांति की स्थापना तथा विश्व में सद्भावना आपसी विश्वास एवं प्रेम का वातावरण बनाना है।

प्रश्न 12. मानव अधिकारों के दो प्रकार बताइए।

उत्तर-(1) जीवन सुरक्षा एवं स्वतंत्रता का अधिकार, तथा (2) समुचित जीवन- यापन का अधिकार।


★लघु उत्तरीय प्रश्न★


प्रश्न 1. अधिकारों के चार प्रमुख लक्षण लिखिए।

उत्तर-अधिकारों के चार प्रमुख लक्षण निम्न वत है-

(1) अधिकारी तू समाज की स्वीकृति जरूरी है। जब किसी मांग को समाज स्वीकार ता है, तब अधिकार बन जाती है।

(2) अधिकार सर्व भूमिक होते हैं अर्थात वह समाज के सभी लोगों को समान रूप से प्रदत्त किए जाते हैं।

(3) अधिकारों में व्यक्तिगत स्वार्थ के साथ सार्वजनिक हित की भावना भी विद्यमान होती है।

(4) अधिकारों का स्वरूप कल्याणकारी होता है।

प्रश्न 2. नागरिक अधिकारों के कोई चार प्रकारों को समझाइए।

अथवा

कोई चार प्रमुख नागरिक अधिकार लिखिए।


उत्तर-प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के निम्न नागरिक अधिकार प्राप्त होते हैं-

(1) जीवन रक्षा का अधिकार-प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन की सुरक्षा का अधिकार होता है। इस अधिकार के बिना व्यक्ति का सामाजिक जीवन कष्ट दाई हो जाएगा।

(2) संपत्ति का अधिकार-इस नागरिक अधिकार के अंतर्गत व्यक्ति को संपत्ति अर्जित करने, खरीदने, बेचने तथा संपत्ति का उपभोग करने का अधिकार है।

(3)आवागमन का अधिकार-नागरिक अधिकार के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को राज्य की सीमा के भीतर स्वतंत्रता पूर्वक एक स्थान से दूसरे स्थान तक  पर जाने का अधिकार होता है।

(4) सांस्कृतिक अधिकार-नागरिक अधिकारों के इस उत्तरप्रकार में प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार है कि वह अपनी भाषा एवं साहित्य का अध्ययन व विकास कर सकें।


प्रश्न 3. व्यक्ति के परिवारिक जीवन व्यतीत करने के अधिकार को समझा कर लिखिए।

उत्तर-सामाजिक जीवन का आधार स्तंभ 'परिवार' है। आता प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा के अनुसार परिवारिक जीवन व्यतीत करने का अधिकार होना चाहिए। लेकिन व्यक्ति के इस अधिकार का अर्थ यह कदापि नहीं है कि परिवार समाज की नैतिक सीमाओं का अतिक्रमण अथवा उल्लंघन करें तथा परिवार के सदस्यों को दुराचार की शिक्षा दें। ऐसी स्थिति में किसी व्यक्ति के परिवारिक जीवन में भी राज्य द्वारा दखलंदाजी की जा सकती है।

प्रश्न 4. समाज के प्रति व्यक्ति का क्या कर्तव्य है?

उत्तर-समाज व्यक्ति के जीवन का रक्षक होने के साथ उसकी विभिन्न जरूरतों की पूर्ति भी करता है। अतः समाज के सदस्य के रूप में व्यक्ति के अनेक कर्तव्य हैं। अनेक सामाजिक कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने, विभिन्न संघों व समुदायों के प्रति अपने दायित्वों का परिपालन करके, अधिकारों का उचित उपभोग करके तथा समाज के असहाय एवं दिन - दुखियों की मदद इत्यादि सामाजिक कर्तव्यों का पालन करके ही व्यक्ति समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का परिपालन कर सकता है।

प्रश्न 5. कोई चार प्रमुख नागरिक कर्तव्य लिखिए।

उत्तर -चार प्रमुख नागरिक कर्तव्य निम्नवत हैं।

( 1) प्रत्येक व्यक्ति का नागरिक कर्तव्य है कि वह राज्य के हित को अपने स्वहित से सर्वोपरि समझे।

(2) कानून के प्रति निष्ठा भाव रखना तथा कानूनों का परिपालन करना भी नागरिक कर्तव्य की श्रेणी में आता है।

(3) प्रत्येक व्यक्ति का नागरिक कर्तव्य है कि वैतनिक अथवा अवैतनिक पद पर कार्यरत करते हुए संबंधित का पद से सम्बद्ध दायित्वों का निर्वहन पूर्ण निष्ठाभाव से करना चाहिए।

(4) प्रत्येक व्यक्ति का यह नागरिक कर्तव्य है कि वह राज्य द्वारा समय-समय पर निर्धारित करो का भुगतान करें।

प्रश्न 6. मानव अधिकार का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

 उत्तर-मानव अधिकार संपूर्ण मानव जाति से संबंधित अधिकार है, जो व्यक्ति के चहुमुखी विकास तथा उसके कल्याण के लिए जरूरी होते हैं तथा इसी वजह से उन्हें विभिन्न राज्यों के संविधान एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा ओं द्वारा विहित किया जाता है। भारत की संसद द्वारा पारित मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 2 मैं मानव अधिकारों का आशय स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि ''मानवाधिकार व्यक्ति के जीवन, उसकी आजादी, समानता एवं गरिमा से संबंधित ऐसी अधिकार हैं, जो संविधान द्वारा प्रत्याभूत तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा ओं में सन्निहित है और भारतीय न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय है।


★दीर्घ उत्तरीय प्रश्न★


प्रश्न 1. अधिकारों के तत्वों को समझा कर लिखिए।

उत्तर-अधिकार के तत्वों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) समाज द्वारा स्वीकृत-अधिकारों के लिए समाज की स्वीकृति जरूरी होती है। समाज जब किसी मांग को शिकार ता है तो वह अधिकार में बदल जाती है।

(2) सार्वभौमिक प्रकृति-समाज के सभी लोगों को अधिकार एक समान रूप से प्रदान किए जाते हैं अर्थात अधिकार सार्वभौमिक होते हैं। इनकी सार्वभौमिकता ही कर्तव्यों के उदित होने में सहायक है।

(3) कल्याणकारी स्वरूप-अधिकार लोगों के व्यक्तित्व के विकास से संबंधित होते हैं। अतः इनके द्वारा सिर्फ वही स्वतंत्रता एवं सुविधाएं मिलती हैं जो लोगों के व्यक्तित्व विकास हेतु जरूरी होती है अर्थात अधिकारों का स्वरूप कल्याणकारी होता है।

(4) सामाजिक हित की भावना से परिपूर्ण-अधिकारों में व्यक्तिगत स्वार्थ के साथ-साथ सर्वजनिक हित की भावना भी मौजूद होती है।

(5) राज्य का संरक्षण जरूरी -क्योंकि राज्य के संरक्षण में ही व्यक्ति अपने अधिकारों का समुचित उपयोग कर सकता है। अतः अधिकारों को राज्य का का संरक्षण मिलना बहुत ही जरूरी है

प्रश्न 2. अधिकारों का वर्गीकरण कीजिए।

अथवा

अधिकार कितने प्रकार के होते हैं? समझाइए।

उत्तर-अधिकारों के प्रकार अथवा वर्गीकरण

साधारणतया अधिकार के निम्नलिखित प्रकार हैं-

(1) प्राकृतिक अधिकार-जो अधिकार नागरिकों को प्रकृति द्वारा मिलते हैं, प्राकृतिक अधिकार कहे जाते हैं। वर्तमान में अधिकारों का है प्रकार अस्वीकार्य है, क्योंकि प्राकृतिक अधिकार समाज एवं राज्य के पश्चात प्राप्त ही नहीं किए जा सकते हैं। व्यक्ति सिर्फ वही अधिकार हासिल कर सकता है जो राज्य उसे प्रदत्त करता है ।

(2)नैतिक अधिकार-नैतिक अधिकार उन अधिकारों को कहते हैं, जिनका सरोकार व्यक्ति के नैतिक आचरण से होता है। इनका स्वरूप अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्य पालन में अधिक निहित होता है।

(3) मौलिक अधिकार-वेदिका जो मानवीय जीवन के लिए अपरिहार्य होने की वजह से संविधान द्वारा लोगों को प्रदत्त किए जाते हैं, मौलिक अधिकार कहलाते हैं।

(4) कानूनी अधिकार-यह नागरिकों के अधिकार है जिन्हें राज्य मान्यता प्रदान करता है तथा इनकी रक्षा राज्य के कानूनों द्वारा होती है। इन अधिकारों के उल्लंघन करने वाले को राज्य द्वारा दंडित किया जाता है।

नागरिकों के कानूनी अधिकार भी निम्न प्रकार के होते हैं-

(i) सामाजिक अथवा नागरिक अधिकार-हे अधिकार नागरिकों के व्यक्तित्व विकास हेतु  तथा सामाजिक जीवन के सभ्य, सुसंस्कृत एवं कुशल संचालन के लिए जरूरी होते हैं। ये अधिकार राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के मिलते हैं। इनमें जीवन में रक्षा, शिक्षा, धार्मिक स्वतंत्रता, विचार अभिव्यक्ति, मनोरंजन, आवागमन, तथा न्याय प्राप्त करने इत्यादि का नागरिक अधिकार शामिल है।

(ii) राजनीतिक अधिकार-राजनीतिक अधिकार का अवस्थाओं से है जिनमें नागरिकों को शासन के कार्यों में हिस्सा लेने का मौका मिलता है तथा में शासकीय प्रबंध को प्रभावित करते हैं। राजनीतिक अधिकारों के अंतर्गत मत देने, निर्वाचित, शासकीय पद हासिल करने, आवेदन पत्र देने तथा विदेशों में अपनी सुरक्षा इत्यादि का अधिकार सम्मिलित है।

(iii) आर्थिक अधिकार-व्यक्ति की भौतिक जरूरतों की पूर्ति का प्रमुख साधन संपत्ती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा अनुसार संपत्ति का उपयोग करने की करने का अधिकार है। इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा अनुसार काम करने, उचित पारिश्रमिक प्राप्त करने, विश्राम,आर्थिक समानता तथा आर्थिक सुरक्षा का अधिकार है।

प्रश्न 3. प्रमुख राजनीतिक अधिकारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर-लोकतांत्रिक देश में नागरिकों को निम्नलिखित राजनीतिक अधिकार होते हैं।

(1) मताधिकार-किसी देश के नागरिकों को जाती, वर्ण, धर्म, संप्रदाय तथा लिंग इत्यादि के भेदभाव के बिना जो मत देने का अधिकार दिया जाता है, वह राजनीतिक अधिकार की श्रेणी में ही आता है।

(2) निर्वाचन होने का अधिकार-देश के सभी नागरिकों को योग्यता संबंधी कुछ प्रतिबंधों के साथ जन प्रतिनिधि के रूप में निर्वाचित होने का अधिकार, राजनीतिक अधिकार ही रूप है।

(3) सार्वजनिक पद ग्रहण करने का अधिकार-देश के सभी सार्वजनिक पदों पर नागरिकों को योग्यता के आधार पर नियुक्ति पाने का समान राजनीतिक अधिकार है।

(4) जागरण राजनीतिक दल बनाने का अधिकार-किसी भी नागरिक को अलग राजनीतिक दल बनाने का अधिकार भी राजनीतिक अधिकारों का ही एक प्रकार है।

(5) आवेदन -पत्र तथा  सम्मति देने का अधिकार-नागरिक व्यक्तिगत अथवा सामूहिक रूप से सरकार को शासन संबंधी शिकायतें दूर करने हेतु अथवा उसे और अधिक  जनकल्याणकारी बनाने के लिए आवेदन -पत्र दे सकते हैं। वे शासकीय नीतियों के समर्थन में अपनी सम्मति भी प्रकट कर सकते हैं।

प्रश्न 4. मानव जीवन में अधिकारों के महत्व को लिखिए।

अथवा

'' नागरिक अधिकार सभ्यता एवं संस्कृति के वाहक हैं।" कल्पना समझाइए।

उत्तर - अधिकारों का महत्व

व्यक्ति के जीवन में अधिकार विशेष उपयोगी है। संक्षेप में इनके महत्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

(1)मानव समाज हेतु जरूरी- जिस तरह व्यापार संचालित करने हेतु धनराशि की जरूरत होती है उसी तरह समाज के अस्तित्व हेतु अधिकारों की आवश्यकता होती है। अधिकार रूपी करें समाज के सदस्यों को आपस में जोड़ती है इस कड़ी के बिना व्यक्ति का जीवन एकाकी एवं नीरज तो होगा ही साथ ही समाज भी विघटित हो जाएगा।

(2) मानव जीवन का स्त्रोत एवं विकास का साधन- मानव जीवन के स्त्रोत अधिकार के बिना व्यक्ति का जीवित रहना संभव नहीं है । यदि व्यक्ति को जीवन रक्षा का अधिकार ना मिले तो वह अपनी रक्षार्थ छिपता फिरेगा तथा स्वतंत्र रूप से कोई कार्य नहीं कर पाएगा। इसी तरह व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास हेतु अधिकार महत्वपूर्ण है।

(3) शांति एवं सुव्यवस्था के परिचायक-अधिकार समाज में शांति एवं सुव्यवस्था कयाम करने में मददगार है अधिकारों के बिना व्यक्ति के कार्यों की कोई सीमा नहीं रहती तथा उसके पास में संघर्षरत होने की प्रबल संभावना उत्पन्न हो जाती है।

(4) न्याय का आधार स्तंभ-अधिकारों द्वारा सभी नागरिकों के कर्तव्य की सीमा तय कर दी जाती है , जिससे समाज में न्याय की स्थापना होती है। इस तरह राज्य में जंगलराज स्थापित नहीं होता है।

(5) वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना में सहायक-अधिकारों द्वारा ही वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना होती है, क्योंकि इनके हासिल होने पर ही जनता का, जनता द्वारा तथा जनता के लिए शासन स्थापित होता है।

(6) सभ्यता एवं संस्कृति के वाहक-नार एकाधिकार सभ्यता एवं संस्कृति के वाहक हैं। इनकी वजह से ही जीवन रक्षा, शिक्षा, धार्मिक स्वतंत्रता, विचार अभिव्यक्ति मनोरंजन, आवागमन तथा न्याय हासिल करना संभव होता है।

प्रश्न 5. नैतिक कर्तव्य किसे कहते हैं तथा इसके अंतर्गत कौन-कौन से कर्तव्य आते हैं?

अथवा

नैतिक कर्तव्य क्या है? कोई पांच नैतिक कर्तव्य लिखिए।

उत्तर-नैतिक कर्तव्य

जो कर्तव्य व्यक्ति की नैतिक भावना अंतः करण एवं सही कार्य करने की प्रवृत्ति से संबंधित होते हैं उन्हें'नैतिक कर्तव्य'कहा जाता है। इन कर्तव्य को राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होती। राज्य के नैतिक कर्तव्य को अग्र प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) समाज के प्रति कर्तव्य-समाज व्यक्ति के जीवन को सुरक्षित करते हुए उसकी समस्त जरूरतों की पूर्ति करता है। अतः समाज का सदस्य होने की वजह से व्यक्ति के उसके प्रति अपने कर्तव्य है। सामाजिक बुराइयों का अंत, विभिन्न संघों एवं समुदायों के प्रति अपने दायित्वों का परिपालन, अधिकारों का उचित प्रयोग तथा समाज के असहाय एवं दिन दुखियों की मदद करना इत्यादि किसी भी व्यक्ति के सामाजिक कर्तव्य ही हैं।

(2) ग्राम, नगर तथा राष्ट्र के प्रति कर्तव्य- प्रत्येक नागरिक का अपने ग्राम, नगर तथा राष्ट्र के प्रति भी है कर्तव्य है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं सफाई इत्यादि की तरफ विशेष ध्यान दें। नागरिकों का है नैतिक कर्तव्य है कि अपने ग्राम, नगर तथा राष्ट्र  की प्रगति में प्रत्येक प्रकार से मददगार हो।

(3) परिवार के प्रति कर्तव्य - क्योंकि व्यक्ति के सामाजिक जीवन का आधार स्तंभ परिवार है अतः उसे अपने परिवार के प्रति कर्तव्य पालन के उत्तर दायित्व का निर्वहन करना चाहिए। प्रत्येक नागरिक का है नैतिक कर्तव्य है कि वह अपने परिवार के सभी लोगों के प्रति सद् भाव, सहानुभूति तथा प्रेम एवं सहयोग के भाव प्रदर्शित करें।

(4) अपने श्याम के प्रति कर्तव्य - प्रत्येक नागरिक का है नैतिक कर्तव्य है कि वह अपने विकास पर पूरी तरह ध्यान दें। इसके लिए उसे स्वस्थ, संयामी, अनुशासन प्रिय, शिक्षित तथा परोपकारी होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति अपने शारीरिक एक एवं मानसिक विकास के प्रति उदासीन है तब यह माना जाएगा कि वह अपने नैतिक कर्तव्य का पालन नहीं कर रहा है।

(5) मानवता के प्रति कर्तव्य- प्रत्येक नागरिक का हैवी दायित्व है कि वह मानवता के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करें। जहां व्यक्ति को विश्व शांति की स्थापना में वांछित योगदान देना चाहिए वहीं संपूर्ण मानव समाज के कल्याण को अपने अंतिम आदर्शों में शुमार( शामिल) करना चाहिए।

प्रश्न 6. वैधानिक अथवा कानूनी एवं राजनीति कर्तव्य को समझा कर लिखिए।

अथवा

प्रमुख नागरिक कर्तव्य लिखिए

उत्तर- वैधानिक अथवा कानूनी और राजनीतिक कर्तव्य

नागरिक के कर्तव्य होते हैं, जैन का निर्धारण राज्य द्वारा किया जाता है। नागरिकों को इनका पालन आवश्यक रूप से करना होता है तथा इनके उल्लंघन करने पर राज्य दंडित करता है। नागरिक के वैधानिक अथवा कानूनी और राजनीतिक कर्तव्य को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) राज्य के प्रति निष्ठा- राज्य के प्रति निष्ठा एवं भक्ति भावना नागरिक का पहला कर्तव्य। उसे शत्रुओं से देश को बचाने के लिए देश के भीतर शांति एवं सुव्यवस्था बनाए रखने में राज्य की मदद करनी चाहिए। आपातकाल में अनिवार्य सैनिक सेवा इसी कर्तव्य का फल  है।

(2) राज्य के कानूनों का पालन- राज्य समाज के कल्याण के लिए कानून बनाता है। अतः प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह राज्य द्वारा समय-समय पर बनाए गए कानून अथवा नियमों का पालन करें। ऐसा करके वह राज्य के लक्ष्य की प्राप्ति में मददगार सिद्ध होगा।

(3) करो का भुगतान- शासन के संचालन तथा नागरिकों की प्रगति के लिए प्रत्येक राज्य को आर्थिक शक्ति की जरूरत होती है और इस शक्ति को हासिल करने के लिए राज्य समय-समय पर अनेक प्रकार के कार्यों को लागू करता है। अतः प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि मैं सहर्ष इस प्रकार के करो का निश्चित समयावधि तक भुगतान जरूर ही करें।

(4) राजनीतिक कर्तव्य- हालांकि इन कर्तव्यों का स्वरुप से स्वेच्छा परक है तथा साधारणतया  इन का परिपालन न किए जाने की दशा में राज्य द्वारा दंडित किए जाने का कोई प्रावधान नहीं है। नागरिकों के यह कर्तव्य निम्न प्रकार है-

(¡) मत का उचित प्रयोग- क्योंकि लोकतंत्र को चलाने के लिए जनता के प्रतिनिधियों की जरूरत होती है तथा इन जनप्रतिनिधियों पर ही देश का भविष्य निर्भर करता है। अत: नागरिकों का कर्तव्य है कि वे जन प्रतिनिधियों का चयन खूब सोच विचार कर ही करें तथा जाति, धर्म तथा धन इत्यादि को मत का आधार कदापि ना बनाएं।

(¡¡) सार्वजनिक पद ग्रहण करना- प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वे सार्वजनिक पद को ग्रहण करने हेतु हमेशा तैयार हैं। इसके साथ ही समाज द्वारा शॉप पर गए उत्तरदायित्व का निष्ठा पूर्वक निर्वाह करें।

(¡¡¡) शासकीय कार्यों में सहयोग- कोई भी सरकार जन सहयोग एवं विश्वास प्राप्त होने पर ही शासन को सफलतापूर्वक संचालित कर सकती है। अतः प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह शासन कार्यों में राज्य कर्मचारियों को अपना पूरा सहयोग दें।

प्रश्न 7. मानवाधिकारों का क्या अर्थ है? मानवाधिकारों के प्रकारों की विवेचना कीजिए।

अथवा

मानव अधिकारों का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-[ मानवाधिकारों के अर्थ के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 6 के उत्तर का अवलोकन कीजिए।]

मानवाधिकारों के प्रकार

हालांकि मानवाधिकारों का क्षेत्र काफी विस्तृत है ,लेकिन साधारणतया इन्हें निम्नलिखित चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

(1) लोगों के जन्मजात अधिकार जो मानवीय जीवन के विभिन्न अंगों के अंतर्गत आते हैं उदाहरणार्थ- जीवन एवं सुरक्षा का अधिकार ऐसी श्रेणी के अंतर्गत आता है।

(2) लोगों के भी अधिकार जो मानव के विकास के लिए जरूरी तथा आधारभूत होते हैं। उदाहरणार्थ- विभिन्न प्रकार की स्वतंत्रता इत्यादि की अधिकार।

(3) नागरिकों के अधिकार जिनके उपभोग के लिए समुचित परिस्थितियों का निर्माण एक पूर्व शर्त है। इस श्रेणी में समता इत्यादि के अधिकार शामिल है।

(4) वे अधिकार जो मानव की प्राथमिक जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी है तथा उनका संरक्षण करना प्रत्येक राज्य का दायित्व है। अथवा राज्य इन अधिकारों को अपने संविधान में शामिल करके इनको कानूनी मान्यता देता है। उदाहरणार्थ- आर्थिक न्याय प्राप्त करने का अधिकार इसी श्रेणी में आता है।

मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को विधिक रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी तरीके से लागू करने हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने 16 सितंबर, 1976 को उक्त चारों वर्गों के मानवाधिकारो  से संबंधित दो प्रसविदाएं-(अ) नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों की प्रसंविदा तथा(ब) आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों की प्रसंविदा स्वीकार की।


उक्त दोनों पर संविधान में निम्नलिखित मानवाधिकारों को उल्लेखित किया गया है-

(अ) नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार- इस प्रसंविदा में उल्लेखित नागरिक एवं राजनीतिक मानव अधिकार निम्नांकित हैं-


(1) जीवन, सुरक्षा एवं स्वतंत्रता का अधिकार,

(2) विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार,

(3) कानून के समक्ष समानता का अधिकार तथा

(4) बेगारी अथवा बलपूर्वक श्रम एवं दासता से मुक्ति का अधिकार इत्यादि।

(ब)आर्थिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार- मानवाधिकारों से संबंधित प्रसंविदा में वर्णित मानव अधिकार निम्नांकित हैं-

(1) स्वतंत्रता का अधिकार,

(2) जीवन एवं समुचित जीवन यापन का अधिकार,

(3) काम की न्यायोचित दशाओं से संबंधित अधिकार, तथा

(4) शिक्षा चिकित्सा एवं स्वास्थ्य का अधिकार।







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