class 11 hindi chapter 7 गज़ल question answer hindi medium//कक्षा 11 पद्य खंड हल
अध्याय – 8
अक्कमहादेवी - अक्कमहादेवी
1 हे भूख! मत मचल
प्यास, तड़प मत
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा तम उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने
ढील
लोभ, तम ललचा
हे मद! तम कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर! तम चूक
अवसर
आई हूँ संदेश
लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का।
संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी
पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ में कर्नाटक की प्रसिद्ध कवयित्री अक्कमहादेवी द्वारा रचित
है।
प्रसंग – अक्कमहादेवी भगवान शिव की
परम भक्त थीं। उन्होंने सांसारिकता त्यागकर शिव की आराधना में लीन होने का
संदेश देते हुए मनुष्य की इन्द्रियों पर नियंत्रण की बात कही है।
व्याख्या – हे भूख! सांसारिक
वस्तुओं की चाह ! तू कुछ पाने के लिए मत तड़प। हे सांसारिक प्यास ! तू
मन में और-और पाने की तृष्णा मत जगा। हे नींद ! तू सोने के लिए मज़बूर न कर। हे क्रोध ! तू मन में
उथल-पुथल और हलचल न मचा। हे मोह!
तू अपनी जकड़ ढीली कर। हे लोभ ! तू और
अधिक न ललचा। हे मद ! तू और अधिक पागल न बना। हे ईर्ष्या ! तू अन्य
लोगों की उन्नति से न जल।
कवयित्री कहती है – ओ जड़ और चेतन संसार! तुम्हारे लिए यह महत्वपूर्ण अवसर है। तुम
स्वयं को शिव की आराधना में लीन कर दो। मैं सबके लिए चिन्नमल्लिकार्जुन अर्थात्
शिव का भक्ति-संदेश लेकर आई हूँ। अत: सांसारिकता छोड़कर स्वयं को प्रभु के चरणों
में अर्पित कर दो।
काव्य सौंदर्य – ( 1 ) इन्द्रियों
के नियंत्रण पर बल दिया गया है। ( 2 ) भाषा सरस, सरल व प्रवाहयुक्त है।
( 3 ) मानवीकरण अलंकार।
2. हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपझकर छीन ले मुझसे।
संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी
पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ में कर्नाटक की प्रसिद्ध कवयित्री अक्कमहादेवी द्वारा रचित
है।
प्रसंग – इस पद्यांश में कवयित्री स्वयं
को ईश्वर के चरणों में पूरी तरह समर्पित करती हुई कहती है-
व्याख्या – हे जूही के फूल जैसे
कोमल और मनोरम ईश्वर! तुम मेरा सब कुछ छीन लो। केछ ऐसा करो कि मुझे भीख माँगनी
पड़े। मैं अपना घर, मकान और गृहस्थी पूरी तरह भूल जाऊँ। काश ऐसा हो कि मैं किसी
के सामने अपनी झोली फैलाऊँ, परन्तु मुझे भीख न मिले। कोई मुझे कुछ देने के लिए हाथ बड़ाए
किंतु वह मेरी झोली में न पड़कर नीचे जमीन पर गिर जाए। यदि मैं उसे उठाने के लिए
नीचे झुकूँ तो कोई कुत्ता आए और उसे झपटकर ले जाए। मैं लाचार हो जाऊँ। मेरा अहंकार
नष्ट हो जाए अर्थात् वह चाहती है कि उसकी स्थिति इतनी दयनीय हो जाए कि सिवाय
परमात्मा के उसे कुछ नजर न आए। ऐसी कृपा वह चाहती है।
विशेष – ( 1 ) भगवान शिव की कृपा की
इच्छा व्यक्त की गई है। ( 2 ) भाषा सरल, सहज एवं प्रावह युक्त है। ( 3 ) उपमा अलंकार।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
कविता के साथ -
प्रश्न 1. 'लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियां बाधक होती हैं' इस के संदर्भ में अपने तर्क दीजिए।
उत्तर - लक्ष्य-प्राप्ति में इंद्रियां निश्चय ही बाधक होती हैं। इंद्रियों का काम है- स्वयं को तृप्त करना। जब मनुष्य अपने लक्ष्य पद पर कदम बढ़ाता है तो इंद्रियां उसे स्वाद-सुख में भटका देती हैं, उसे ललचा लेती हैं।
ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग में तो इंद्रियां शत्रु का कार्य करती हैं। यह साधक को संसार में उलझाकर रखती हैं तथा प्रभु की ओर बढ़ने नहीं देती हैं।
प्रश्न 2. 'ओ चराचर! मत चूक अवसर' इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - 'ओ चराचर! मत चूक अवसर' से अभिप्राय है जड़ व चेतन पदार्थों! तुम मेरे इष्ट की कृपा का अवसर हाथ से मत जाने दो अर्थात मेरी इंद्रियों पर निग्रह करने में मेरी मदद करो।
प्रश्न 3. ईश्वर के लिए किस दृष्टांत का प्रयोग किया गया है। ईश्वर और उसके साम्य का आधार बताइए।
उत्तर - ईश्वर के लिए जूही के फूल दृष्टांत का प्रयोग किया गया है। दोनों में कुछ समानताएं हैं। जिस प्रकार जूही का फूल कोमल होता है, जो खिलकर अपनी महक को सर्वत्र बिखेरता है, सभी को आनंदित करता है। यद्यपि महक दिखाई नहीं देती लेकिन अनुभव की जाती है। ठीक उसी प्रकार प्रभु भी सर्वव्यापक हैं, हर व्यक्ति को अपना आवास करवाता रहता है।
प्रश्न 4. अपना घर से क्या तात्पर्य है? इसे भूलने की बात क्यों कही गई है?
उत्तर - 'अपना घर' से यहां अभिप्राय है- अपना स्वार्थमय संसार। अपना निजी जीवन। व्यक्तिगत व सुख-दुख और लाभ-हानि।
कवियित्री चाहती है कि मनुष्य अपने स्वार्थ के बंधनों को तोड़े तभी वह ईश्वर की ओर प्रवृत्त हो सकता है। 'अपने-घर' को छोड़कर ही 'ईश्वर के घर' में कदम रखे जा सकते हैं।
प्रश्न 5. दूसरे वचन में ईश्वर से क्या कामना की गई है और क्यों?
उत्तर - दूसरे वचन में ईश्वर से यह कामना की गई है कि उसका सारा सांसारिक सुख नष्ट हो जाए। यहां तक कि उसे पेट भरने के लिए भीख मांगकर गुजारा करना पड़े। भीख में मिलने वाला अभी तरसा-तरसा कर मिले। कवियित्री चाहती है कि इस प्रकार उसका अहंकार नष्ट हो और वह प्रभु के चरणों में समर्पित हो सके। अहंकार के नष्ट होने पर प्रभु प्राप्ति संभव है।
कविता के आसपास -
प्रश्न 1. क्या अक्कमहादेवी कन्नड़ मीरा कहा जा सकता है? चर्चा करें।
उत्तर - अक्कमहादेवी के वचनों में अपने आराध्य के प्रति एकनिष्ठता का भाव दृष्टिगोचर होता है, अक्कमहादेवी की कविता के भाव मीरा से मिलते-जुलते हैं। मीरा कृष्ण की दीवानी थी। उसने अपने जीवन में केवल कृष्ण को ही अपना लिया था। वे पूर्ण समर्पिता थीं। अक्कमहादेवी शिव की भक्त हैं। वे भी सांसारिकता छोड़कर उसी में लीन होना चाहती हैं। वे ईश्वर के सम्मुख पूरी तरह समर्पित हो जाना चाहती हैं। इसे देखते हुए अक्कमहादेवी को कन्नड़ की मीरा कहा जा सकता है।