class 11 hindi chapter 7 गज़ल question answer

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class 11 hindi chapter 7 गज़ल question answer hindi medium//कक्षा 11 पद्य खंड हल

अध्‍याय – 7

गज़ल   - दुष्‍यंत कुमार

1 कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए,

कहाँ चिराग मयस्‍सर नहीं शहर के लिए।

संदर्भ – प्रस्‍तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें संकलित, दुष्‍यंत कुमार द्वारा रचित
गज़लपाठ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – इसमें समाज के अभावों और उनके प्रति लापरवाह और निष्क्रिय समाज को जगाने का प्रयत्‍न है। कवि समाज की कुव्‍यवस्‍था पर दुख प्रकट करता हुआ कहता है-

व्‍याख्‍या – स्‍वतंत्र भारत में हमने सपना लिया था कि अब यहाँ हर घर में दीपकों की माला जलेगी, अर्थात् सबको ढेर सारी खुशियाँ मिलेंगी, किंतु हुआ इसके विपरीत। अब तो पूरे शहर के लिए एक दीपक भी नहीं जलाया जा सका। सब जगह अँधेरा ही अँधेरा है। सफलता या प्रकाश के नाम पर कुछ भी नहीं हो पाया।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) कवि ने स्‍वतंत्र भारत के कटु यथार्थ का सटीक चित्रण किया है।        ( 2 ) चिरागआशा का प्रतीक है।  ( 3 ) मयस्‍सर चिरांगा जैसे उर्दू शब्‍दों का सफल प्रयोग हुआ है।    ( 4 ) भाषा में सहज प्रवाह और गतिशीलता है।


2. यहाँ दरख्‍तों के साये में धूप लगती है,

चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए।

संदर्भ – प्रस्‍तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें संकलित, दुष्‍यंत कुमार द्वारा रचित
गज़लपाठ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग –  इसमें शासन में फैली कुव्‍यवस्‍था पर कटाक्ष किया गया है।

व्‍याख्‍या – कवि कहता है – यहाँ तो पेड़ ( दरख्‍त ) भी ऐसे हैं कि जिनकी छाया में छाँव मिलने की बजाय धूप लगती है अर्थात् यहाँ की शासन-व्‍यवस्‍था और शासक ऐसे हैं कि उनके आश्रय में रहकर कोई सुख-चैन नहीं, बल्कि कष्‍ट ही कष्‍ट है। आज़ादी के बाद नेताओं ने देश के सुख-चैन के लिए कुछ नहीं किया। अब तो यह मन करता है कि यह देश छोड़कर और कहीं चले जाएँ-हमेशा के लिए।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) कवि ने स्‍वतंत्र भारत के कटु यथार्थ का प्रामाणिक वर्णन किया है। वह स्‍वतंत्रता-पश्‍चात् की निराशा और आम आदमी के दुख को व्‍यक्‍त करने में सफल रहा है।          ( 2 ) ‘चिराग और दरख्‍तआशा और सुव्‍यवस्‍था के सशक्‍त प्रतीक हैं। ( 3 ) दरख्‍त, साये, उम्र जैसे उर्दू शब्‍दों के प्रयोग से गज़ल अपने स्‍वाभाविक रूप को पा सकी है। ( 4 ) साये में धूप लगनामें विरोधाभास अलंकार का सशक्‍त प्रयोग हुआ है।

3. न हो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे,

 ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए।

संदर्भ – प्रस्‍तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें संकलित, दुष्‍यंत कुमार द्वारा रचित
गज़लपाठ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – इस कविता में उन्‍होंने दबे-कुचले भारतीयों की संतोषी वृत्ति और उदासीनता पर प्रकाश डाला है।

व्‍याख्‍या – भारत के लोग इतने दीन-हीन और दबे-कुचले हैं कि उन्‍हें कुर्ता उपलब्‍ध नहीं होगा तो ये लोग अपने पैरों से पेट को ढक लेंगे। इस यात्रा के लिए ये लोग कितने उपयुक्‍त हैं। तात्‍पर्य यह है कि अपनी दुरावस्‍था में भी जो लोग परिश्रम से अपनी मूलभूत आवश्‍यकताओं की पूर्ति कर लेने में सक्षम है, ऐसे लोग ही जीवने यात्रा को सुचारू रूप से चलाने के योग्‍य हैं।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) कवि ने यहाँ जनता के अभावग्रस्‍त जीवन को उजागर किया है। ( 2 ) पाँवों से पेट ढँकने का बिंब अत्‍यंत मनोहारी बन पड़ा है। ( 3 ) खड़ी बोली भावभिव्‍यक्ति में सहायक है।

4. खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्‍वाब सही,

   कोई हसीन नज़ारा तो हैं नज़र के लिए ।

संदर्भ – प्रस्‍तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें संकलित, दुष्‍यंत कुमार द्वारा रचित
गज़लपाठ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – यहाँ कवि ने आज प्रतिकूल परिस्थितियों वाले वातावरण में सभी मानवीय गुणों से सम्‍पन्‍न मानव की कल्‍पना की है।

व्‍याख्‍या – यदि मान लें कि ईश्‍वर नहीं होता, तो न सही। अगर यह मनुष्‍य की कल्‍पना मात्र है, तब भी अच्‍छा है। इस प्रकार से भी हमारी दृष्टि के लिए कोई सुन्‍दर दृश्‍य तो मिल रहा है। भाव यह है कि यदि ईश्‍वर के अस्तित्‍व को कोई स्‍वीकार नहीं भी करता तब भी मनुष्‍य के मन में आशा की ज्‍योति जलाए रखने के लिए उसकी उपयोगिता से कोई इंकार नहीं कर सकता। इस प्रकार ईश्‍वर की कल्‍पना कष्‍ट को सहने और धैर्य बनाए रखने में सहायता करती है।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) कवि ने भारत‍वासियों की दबी-कुचली आवाज़ पर कटाक्ष किया है। यहाँ की धार्मिकता यथा‍र्थ तले मुँह चुराने का एक साधन-भर है। इस यथार्थ का मार्मिक अंकन हुआ है। ( 2 ) उर्दू शब्‍दावली का स्‍वाभाविक प्रयोग हुआ है। ( 3 ) छोटे-छोटे स्‍वाभाविक शब्‍दों का स्‍वाभाविक एवं प्रवाहपूर्ण प्रयोग हुआ है।

 

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर 



गज़ल के साथ - 


प्रश्न 1. आखरी शेर में गुलमोहर की चर्चा हुई। क्या इसका आशय एक खास तरह के फूलदार वृक्ष से है या उसमें कोई सांकेतिक अर्थ निहित है? समझाकर लिखें ? 


उत्तर - गुलमोहर एक प्रकार के फूलदार पेड़ को कहते हैं। यह पेड़ ग्रीष्म ऋतु में फूल देता है। यहां गुलमोहर का आशय 'मानव जीवन की खुशियों' का प्रतीक बनकर प्रयुक्त हुआ है। कवि चाहता है कि हम अपना जीवन जीते हुए दूसरों के जीवन को सुखमय बनाएं। इसके लिए यदि उसे बेघरबार भी होना पड़े तो भी वह इन सपनों को पूरा करना चाहेगा।


प्रश्न 2. पहले शेर में चिराग शब्द एक बार बहुवचन में आया और दूसरी बार एकवचन में। अर्थ एवं काव्य सौंदर्य की दृष्टि से इसका क्या महत्व है? 


उत्तर - दोनों बार 'चिराग' शब्द रोशनी के लिए आया है। पहली बार आया 'चिरागाँ' शब्द बहुवचन है। अतः इसका अर्थ है- ढेर सारी रोशनी तथा अत्यधिक सुख-सुविधाएं। कवि हर घर में ढेर सारी खुशियाँ देखना चाहता था। दूसरी बार आया 'चिराग' शब्द छोटे-से एकमात्र सुख का प्रतीक है। कवि कहना चाहता है कि अब तक पूरा समाज एक नन्हे-से सुख के लिए तरस रहा है। किसी को भी यह कोई रोशनी नहीं मिल सकी। दोनों बार आया एक ही शब्द अपने-अपने संदर्भ में भिन्न प्रभाव रखता है।


प्रश्न 3. गजल के तीसरे शेर को गौर से पढ़ें। यहां दुष्यंत का इशारा किस तरह के लोगों की ओर है? 


उत्तर - गजल के तीसरे शेर में दुष्यंत कुमार का इशारा उन लोगों की ओर है जो अभावग्रस्त जीवन जीते वह भी अत्यंत कर्मठतापूर्वक निरंतर कर्मशील बने हुए हैं। वे विपरीत परिस्थितियों में भी नहीं घबराते और आशावादी बने रहते हैं। ऐसे लोग ही जीवन रूपी यात्रा को सफलतापूर्वक तय करते हैं।


प्रश्न 4. आशय स्पष्ट करें -

तेरा निजाम है सिल दे जुबान शायर की,

ये एहतिहात जरूरी है इस बहर के लिए।


उत्तर - व्याख्या देखें।


गज़ल के आसपास - 


प्रश्न 1. दुष्यंत की इस गज़ल का मिजाज बदलाव के पक्ष में हैं। इस कथन पर विचार करें।


उत्तर - दुष्यंत की यह गज़ल व्यवस्था के बदलाव की इच्छा को व्यक्त करती है। गजल में दुष्यंत कहते हैं कि इस व्यवस्था का निर्माण जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया गया था, उसमें यह पूर्णतया असफल रही है। जनसामान्य को कठिनाइयों से मुक्ति दिलाकर उन्हें पर्याप्त सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराना इस व्यवस्था का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य था। परंतु परिणाम के एकदम विपरीत रहा। सभी लोगों के जीवन स्तर में सुधार की बात तो दूर, यहां आम आदमी में से किसी की भी दशा में सुधार नहीं हुआ, किसी का भी सपना पूरा नहीं हुआ। वह सत्ता को चुनौती भी देता है कि मैं अब तुम्हारे विरुद्ध कविता लिखने जा रहा हूं, तुम सावधान हो जाओ और रोक सको तो रोकने का प्रयास कर लो। इस प्रकार कवि व्यवस्था में बदलाव के लिए जनसामान्य का आह्वान करता है। उसकी गज़ल का मिजाज बदलाव चाहने वाला है।


प्रश्न 2. हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन

         दिल के खुश रहने को गालिब ये ख्याल अच्छा है

दुष्यंत की ग़ज़ल का चौथा शेर पाढ़े और बताएं कि गालिब के उपरोक्त शेर से वह किस तरह जुड़ता है?


उत्तर - दुष्यंत का यह शेर - 

              'खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही।'

              कोई हसीन नज़ारा तो है नजर के लिए।

गालिब के उपरोक्त शेर से पूरी तरह प्रभावित है। दोनों का अर्थ एक है। गालिब ने 'जन्नत' की बात की है और दुष्यंत ने 'खुदा' की। दोनों मानव की कल्पनाएं हैं। दोनों अनुभूति के विषय में हैं। दोनों में यह बहाव है कि खुदा और जन्नत 

( भगवान और स्वर्ग ) दोनों मनुष्य को संतोष प्रदान करते हैं।


प्रश्न 3. 'यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है' यह वाक्य मुहावरे की तरह अलग-अलग परिस्थितियों में अर्थ दे सकता है मसलन, यह ऐसी अदालतों पर लागू होता है, जहां इंसाफ नहीं मिल पाता। कुछ ऐसी परिस्थितियों की कल्पना करते हुए निम्नांकित अधूरे वाक्यों को पूरा करें।

( क ) यह ऐसे नाते-रिश्तों पर लागू होता है,......

( ख ) यह ऐसे विद्यालयों पर लागू होता है,.......

( ग ) यह ऐसे अस्पतालों पर लागू होता है,.......

( घ ) यह ऐसी पुलिस व्यवस्था पर लागू होता है,.....


उत्तर - ( क ) यह ऐसे नाते-रिश्तों पर लागू होता है जिनमें रिश्ते-नाते सुख देने की बजाय दुख देते हैं।

( ख ) यह ऐसे विद्यालयों पर लागू होता है, जहां छात्रों को ज्ञान नहीं दिया जाता।

( ग ) यह ऐसे अस्पतालों पर लागू होता है, जहां मरीजों का उचित उपचार नहीं किया जाता।

( घ ) यह ऐसी पुलिस व्यवस्था पर लागू होता है, जहां अपराधों पर अंकुश नहीं लगाया जाता है, बल्कि अपराधियों से सांठ-गांठ कर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया जाता है।








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