class 11 hindi chapter 10 आओ, मिलकर बचाएँ question answer

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class 11 hindi chapter 7 गज़ल question answer hindi medium//कक्षा 11 पद्य खंड हल

अध्‍याय – 10

                        आओ, मिलकर बचाएँ    - निर्मला पुतुल


1 अपनी बस्तियों को

नंगी होने से 

शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे

बचाएँ डूबने से

पूरी की पूरी बस्‍ती को

हडि़या में

संदर्भ – पस्‍तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें संकलित, झारखंड की प्रसिद्ध कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा रचित आओ, मिलकर बचाएँनामक कविता से उद्धृत है।

प्रसंग – इन‍ पंक्तियों में कवयित्री अपने परिवेश को शहरों की अपसंस्‍कृति से बचाने की बात करती है। वह सबका आव्‍हन करती हुई कहती है कि –

व्‍याख्‍या – हमारी बस्तियाँ शहरी वातावरण की तरह प्रदुषण के प्रभाव में आती जा रही हैं। इस कारण हमारे क्षेत्र में पाई जाने वाली मर्यादाएँ टूटती जा रही हैं। हमारे इलाके के लोग शर्म छोड़कर नंगे होते जा रहे हैं। उनके तन के कपड़े भी तन ढ़ँकने की बजाय तन को दिखाने की होड़ कर रहे हैं। यहाँ के वृक्षों को काट-काटकर धरती को वृक्ष-विहीन किया जा रहा है। इस तरह तो एक दिन पूरी बस्‍ती हड्डियों का ढेर बन जाएगी अर्थात् शहरी संस्‍कृति के प्रभाव में यहाँ के निवासी रक्‍त-माँस हीन होकर दुर्बल हो जाएँगे और वातावरण प्रदूषित हो जाएगा।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) खड़ी बोली के मानक रूप का प्रयोग किया गया है। ( 2 ) नई कविता के लक्षण। ( 3 ) शांत रस का स्‍वाभाविक प्रयोग है।

2. अपने चेहरे पर

सन्‍थाल परगना की माटी का रंग

भाषा में झारखंडीपन

ठंडी होती दिनचर्या में

जीवन की गर्माहट

मन का हरापन

भोलापन दिल का

अक्‍खड़पन, जुझारूपन भी

संदर्भ – पस्‍तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें संकलित, झारखंड की प्रसिद्ध कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा रचित आओ, मिलकर बचाएँनामक कविता से उद्धृत है।

प्रसंग – इन पंक्तियों में कवयित्री अपने प्रदेश की स्‍वाभाविक विशेषताओं को बचाने का आग्रह करती हुई कहती है कि –

व्‍याख्‍या – मैं चाहती हूँ कि हमारे झारखंड के लोगों के चेहरों पर शहरी संस्‍कृति का प्रभाव न हो, बल्कि संथाल परगना की मिट्टी का स्‍वाभाविक रंग हो। आशय यह है कि लोगों के व्‍यवहार में क्षेत्रीय गुण बने रहें। उनकी भाषा का झारखंडी स्‍वाभाव नष्‍ट न हो। वे अपनी बोली में ही बोलें। शहरी संस्‍कृति के प्रभाव में आकर यहाँ के लोगों की दिनचर्या में ठहराव आ गया है। उनके जीवन का उत्‍साह नष्‍ट हो गया है। मैं चाहती हूँ कि उनके जीवन में वह उत्‍साह फिर-से-लौट आए। मन में फिर-से सरसता और मधुरता आ जाए। उनके दिलों में चालाकी और समझादारी की बजाय वही पहले जैसा भोलापन आ जाए। उनके स्‍वभाव का अक्‍खड़पन, उनका बात-बात पर गर्म होकर तन जाना और संर्घष करने के लिए तैयार रहना-सब गुण वापस लौट आएँ।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) कवयित्री का स्‍व-संस्‍कृति-प्रेम प्रकट हुआ है। उसे अपने संथाली लोक-स्‍वभाव पर स्‍वाभाविक गर्व है। ( 2 ) स्‍वतंत्र छंद ( मुक्‍त छंद ) काव्‍यांश। ( 3 ) खड़ी बोली के मानक रूप का प्रयोग किया।

3. भीतर की आग

धनुष की डोरी

तीर का नुकीलापन

कुल्‍हाड़ी की धार

जंगल की ताज़ा हवा

नदियों की निर्मलता

पहाड़ों का मौन

गीतों का धुन

मिट्टी का सोंधापन

फसलों की लहलहाहट

संदर्भ – पस्‍तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें संकलित, झारखंड की प्रसिद्ध कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा रचित आओ, मिलकर बचाएँनामक कविता से उद्धृत है।

प्रसंग – इन पंक्तियों में कवयित्री अपने प्रदेश की पहचान और प्राकृतिक परिवेश को‍ फिर से लौटाने का आग्रह करते हुए कहती है कि –

व्‍याख्‍या – मैं चाहती हूँ कि झारखंड के लोगों के जीवने में उत्‍साह की ऊर्जा बनी रहे। उनकी उमंग नष्‍ट न हो। उनके धनुष की डोरी और तीर का नुकीलापन यथावत बना रहे। उनकी कुल्‍हाड़ी की धार भी बनी रहे। यहाँ की प्राकृतिक जीवन भी ज्‍यों-का-त्‍यों बना रहे। जंगल की ताज़ा हवा, नदियों की पवित्रता, पहाड़ों का शांत वातावरण, गीतों की मीठी लय, मिट्टी की स्‍वाभाविक सुगंध और लहलहाती फसलें ज्‍यों-की-त्‍यों बनी हरें। उन पर शहरी जीवन का साया न पड़े।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) खड़ी बोली के मानक रूप का प्रयोग किया गया है। ( 2 ) स्‍वतंत्र छंद अथवा छंद मुक्‍त कविता। ( 3 ) अनुप्रास अलंकार ।

4. नाचने के लिए खुला आँगन

गाने के लिए गीत

हँसने के लिए थोड़ी-सी खि‍लखिलाहट

रोने क लिए मुट्ठी भर एकान्‍त

बच्‍चों के लिए मैदान

पशुओं के लिए हरी-हरी घास

बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शान्ति

संदर्भ – पस्‍तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें संकलित, झारखंड की प्रसिद्ध कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा रचित आओ, मिलकर बचाएँनामक कविता से उद्धृत है।

प्रसंग – इन पंक्तियों में कवयित्री झारखंड के जन-जीवन के स्‍वाभाविक सुख-दुख को बनाए रखने का आग्रह करती हुई कहती है कि –

व्‍याख्‍या – मैं चाहती हूँ कि हमारे जन-जीवने में फिर से नाच-गान का उल्‍लासमय वातावरण हो। नाचने के लिए खुले-खुले आँगन हों। वहाँ नित-प्रति गीत गाए जाते हों। हमारे जीवन में हँसी को, खिलखिलाहट हो। रोने के लिए थोड़ा-सा अकेलापन भी मिले। बच्‍चों को खेलने के लिए खुले मैदान मिलें। पशुओं को चरने के लिए हरी-हरी घास उपलब्‍ध हो और बड़े-बूढ़ों को पहाड़ी प्रदेशों की शांत वातावरण मिल सके।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) भाषा सरस, सरल व प्रवाहयुक्‍त है। ( 2 ) अनुप्रास अलंकार।           ( 3 ) छंदमुक्‍त कविता।

5. औद इस अविस्‍वास-भरे दौर में

थोड़ा-सा विश्‍वास

थोड़ी-सी उम्‍मीद

आओ, मिलकर बचाएँ

कि इस दौर में भी बचाने को

बहुत कुछ बचा है,

अब भी हमारे पास!

संदर्भ – पस्‍तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें संकलित, झारखंड की प्रसिद्ध कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा रचित आओ, मिलकर बचाएँनामक कविता से उद्धृत है।

प्रसंग – इन पंक्तियों में कवयित्री लोकजीवन में मिलने वाले आपसी विश्‍वास और आशाओं को बचाने का आग्रह करती हुई कहती है कि –

व्‍याख्‍या – यद्यपि आज चारों ओर आपसी संदेह का वातावरण छाया हुआ है। लोग एक दूसरे को शक की दृष्टि से देखते हैं। ऐसे वातावरण में आपसी विश्‍वास को बनाए रखना बहुत आवश्‍यक है। अपने सपनों को तथा आशा को जीवित रखना बहुत जरूरी है।

हम मिलकर आशा, विश्‍वास और सपनों को बचाएँ। निराशा और अविश्‍वास के इस युग में भी ये भावनाएँ पूरी तरह मरी नहीं हैं। अभी समय है। हमें इन्‍हें बचाकर रखना चाहिए।  

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) खड़ी बोली के मानक रूप का प्रयोग किया गया है। ( 2 ) अनुप्रास अलंकार।   ( 3 ) छंद मुक्‍त कविता।


पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर


कविता के साथ -


प्रश्न 1. माटी का रंग प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है? 


उत्तर - माटी के रंग का प्रयोग करते हुए अपनी मातृभूमि की ओर संकेत किया गया है। जिस स्थान पर हम पल कर बड़े हुए हैं उस स्थान की मिट्टी से मिले हमारे भावों को हमें संजो कर रखना है। उस मिट्टी की हमें इज्जत करनी है और उसकी गरिमा को बनाए रखना है।


प्रश्न 2. भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?


उत्तर - भाषा में 'झारखंडीपन' से अभिप्राय झारखंड के लोगों की स्वाभाविक बोली से है।


प्रश्न 3. दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?


उत्तर - कवयित्री को अपने परिवेश की स्वाभाविक विशेषताओं से लगाव है। मैं भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन  को भी आवश्यक मानती है। कारण यह है कि भोले आदमी ही जरा-जरा सी बात पर अकड़कर तन जाते हैं और संघर्ष करने के लिए तैयार हो जाते हैं। दिल से भोले बना रहना, बुरी बात को न सहकार उसके प्रति रोष प्रकट करना और लड़ जाना इन तीनो गुणों का उपयोग है। इसलिए इनकी आवश्यकता है।


प्रश्न 4. प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज कि किन बुराइयों की ओर संकेत करती है? 


उत्तर - प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज कि निम्न बुराइयों की ओर संकेत करती है - 

1 यह समाज शहरी जीवन से प्रभावित हो रहा है। 2. अब इनके जीवन में उत्साह समाप्त हो रहा है। 3. इन में अविश्वास की भावना बढ़ती जा रही है। 4. अपनी भाषा और परंपराओं को गलत समझना जैसे दुर्गुण भी आते जा रहे हैं।


प्रश्न 5. 'इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है' से क्या आशय है?


उत्तर - इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है से आशय विश्वास को बचाए रखने से है। कवयित्री को अविश्वास-भरे दौर में आपसी विश्वास, उम्मीदों और सपने बचाने योग्य प्रतीत होते हैं। उसके शब्दों में - 

                   और इस अविश्वास-भरे दौर में

                   थोड़ा-सा विश्वास

                   थोड़ी-सी उम्मीद 

                   थोड़े-से सपने।

प्रश्न 6. निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए - 

( क ) ठंड होती दिनचर्या में 

        जीवन की गर्माहट

( ख )  थोड़ा-सा विश्वास

          थोड़ी-सी उम्मीद 

          थोड़े-से सपने

         आओ, मिलकर बचाएं।


उत्तर - ( क ) ( 1 ) यह काव्य-पंक्ति लाक्षणिक है। 'ठंडी होती दिनचर्या' का आशय है- उत्साहहीन, उमंगहीन,नहलचल-शून्य जीवन। 'गर्माहट' उमंग, उत्साह और क्रियाशीलता की प्रतीक है।

( 2 ) भाषा प्रतीकात्मक होते हुए भी अत्यंत सरल है।

( 3 ) छंद मुक्त कविता।


( ख ) ( 1 ) इसमें प्रेरणा का स्वर है तथा कुछ कर गुजरने का आह्वान।

( 2 ) अभिव्यक्ति प्रवाहपूर्ण है। थोड़ा-सा, थोड़ी-सी, थोड़े-से, तीनों प्रयोग थोड़े-से अंतर के साथ एक ही अर्थ के वाहक हैं। इनके कारण लय का समावेश हुआ है।

( 3 ) भाषा सरल सहज एवं भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।


प्रश्न 7. बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?


उत्तर - बस्तियों को शहर की नग्नता 'जड़ता' लालची पानी की आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है। शहरी वातावरण में दिखावा, एकाकीपन, अलगाव, व्यस्तता आदि के साथ पर्यावरणीय प्रदूषण भी एक बहुत बड़ी समस्या है। यह बस्तियां भी इस प्रभाव को ग्रहण करने लगेंगे तो बस्तियों में सांस्कृतिक और पर्यावरणीय प्रदूषण फैल जाएगा। इन्हीं प्रभावों से कवयित्री बस्तियों को बचाना चाहती है।


कविता के आस-पास - 


प्रश्न 1. आप अपने शहर या बस्ती की किन चीजों को बचाना चाहेंगे? 


उत्तर - हम अपने शहर या बस्ती की प्राचीन धरोहर, यहां के रीति-रिवाज, स्वाभाविक रुचियां और परंपराओं को बचाना चाहेंगे।


प्रश्न 2. आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करें।


उत्तर - आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति में शनै:-शनै परिवर्तन हो रहा है। आदिवासी बाहुल क्षेत्रों में शिक्षा की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए शिक्षा केंद्र खोले जा रहे हैं। आदिवासी समाज में बेरोजगारी की ओर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। वहां की पारंपरिक कलाकृति, हस्तशिल्प आदि को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे वहां के लोगों के आर्थिक स्तर में सुधार आया है। आदिवासी सांस्कृतिक पहचान को भी बचाने के निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। इस प्रकार आदिवासी समाज की पहचान को बनाए रखते हुए उन्हें आधुनिक समाज से जोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं।



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