class 11th hindi chapter 9 bharat mata question answer//chapter - 9 भारत माता
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अध्याय – 9
भारत माता -पं. जवाहरलाल नेहरू
1 अकसर जब मैं एक जलसे से दूसरे जलसे में जाता
होता, और इस तरह चक्कर काटता रहता होता था, तो इन जलसों में मैं अपने सुनने वालों से
अपने इस हिंदुस्तान या भारत की चर्चा करता। भारत एक संस्कृत शब्द है और इस जाति
के परंपरागत संस्थापक के नाम से निकाला हुआ है। मैं शहरों में ऐसा बहुत कम करता, क्योंकि वहाँ के सुनने वाले कुछ ज्यादा
सयाने थे और उन्हें दूसरे ही किस्म की गिज़ा की जरूरत थी। लेकिन किसानों से, जिनका नज़रिया महदूद था, मैं इस बड़े देश की चर्चा करता, जिसकी आज़ादी के लिए हम लोग कोशिश कर रहे थे
और बताया कि किस तरह देश का एक हिस्सा दूसरे से जुदा होते हुए भी हिंदुस्तान एक
था। मैं उन मसलों का जिक्र करता, तो उत्तर से लेकर दक्खिन तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक, किसानों के लिए यक-साँ थे और स्वराज्य का
भी जिक्र करता, तो थोड़े लोगों के लिए नहीं, बल्कि सभी के फायदे के लिए हो सकता था।
संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी
पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ के पाठ ‘भारत माता’ से लिया गया है। जिसके लेखक पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम
से लेखक हमारे देश की महानता लोगों को बताना चाहते हैं।
व्याख्या – लेखक कहते हैं कि जब वह
किसी जलसे मे जाते हैं तो वह जलसों में भाषण देते समय अपने सुनने वालों से अपने इस
हिन्दुस्तान या भारत की चर्चा करते हैं। भारत संस्कृत भाषा का एक शब्द है जो
जाति के परम्परागत संस्थापक राजा भरत के नाम पर रखा गया है। वे समझदार थे वे इन
बातों को जानते थे। गाँववासियों का सोचने का ढंग थोड़ा सीमित था। वे केवल अपने
गाँव, जिले या प्रांत
तक ही सीमित रहते थे। वे उन लोगों से चर्चा करते थे और उन्हें बताते थे कि भारत
कई हिस्सों में बँटा होने के बाद भी एक है। नेहरू जी गाँववासियों से अपने देश की
आजादी की चर्चा करते थे। वे उनसे स्वराज्य की भी बातें करते थे तथा उन्हें
बताते थे कि इससे पूरे देश को लाभ होगा।
2. मैं उत्तर-पश्चिम में खैबर के
दर्रे से लेकर धुर दक्खिन में कन्याकुमारी तक की अपनी यात्रा का हाल बताता रहा और
यह कहता कि सभी जगह किसान मुझसे एक-से सवाल करते,
क्योंकि उनकी तकलीफें एक-सी थीं- यानी
गरीबों, कर्जदारों, पूँजीपतियों के शिकंजे, जमींदार, महाजन, कड़े लगान और सूद, पुलिस के जुल्म और ये सभी बातें गुंथी हुई थीं, उस ढढ्ढे के साथ, जिसे एक विदेशी सरकार ने हम पर लाद रखा था
और इनसे छुटकारा भी सभी को हासिल करना था। मैंने इस बात की कोशिश की कि लोग सारे
हिंदुस्तान के बारे में सोचें और कुछ हद तक इस बड़ी दुनिया के बारे में भी, जिसके हम एक जुज़ हैं। मैं अपनी बातचीत में
चीन, स्पेन, अबीसिनिया,
मध्य यूरोप,
मिस्त्र और पश्चिमी एशिया में होने वाले
कशमकशों का जिक्र भी ले आता।
संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी
पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ के पाठ ‘भारत माता’ से लिया गया है। जिसके लेखक पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी हैं।
प्रसंग – इस गद्यांश के माध्यम से
लेखक ने देश-विदेश की यात्रा के दौरान मिलने वाले किसानों से हुई चर्चा का वर्णन
किया है।
व्याख्या – लेखक के अनुसार यात्रा
के दौरान किसानों से दो प्रकर की समस्याओं पर चर्चा करते थे। पहली – उनकी निजी
समस्याएँ जैसे- गरीबी, कर्ज, पूँजीपतियों का शोषण, ज़मींदारों और महाजनों द्वारा किया शोषण,
लगान वसूली,
अधिक ब्याज लिया जाना तथा पुलिस द्वारा किए
गए अत्याचार तथा दूसरी – विदेशी शासन की समस्या। इन दोनों समस्याओं से निपटने
की बात किया करते थे।
नेहरू जी किसानों की सोच को व्यापक
बनाना चाहते थे। उनके अनुसार किसान केवल स्वयं के बारे में न सोचते हुए अपने
क्षेत्र, पूरे देश ही नहीं वरन् पूरे विश्व के बारे में विचारशील हों। पश्चिमी
देशों जैसे चीन, स्पेन, अबीसिनिया, मध्य यूरोप, मिस्त्र तथा पश्चिमी एशिया में होने वाले संघर्षों जैसे ही अपने संघर्षों
के विरुद्ध तैयार रहने की बात करते थे।
3. मैं उन्हें सोवियत यूनियन में
होने वाली अचरज-भरी तब्दीलियों का हाल भी बताता और कहता कि अमरीका ने कैसी तरक्की
की है। यह काम आसान न था, लेकिन जैसा मैंने समझ रखा था, वैसा मुश्किल भी न था। इसकी वजह यह थी कि हमारे पुराने महाकव्यों
ने और पुराणों की कथा-कहानियों ने, जिन्हें वे खूब जानते थे, उन्हें इस देश की कल्पना करा दी थी, और हमेशा कुछ लोग ऐसे मिल जाते थे, जिन्होंने हमारे बड़े-बड़े तीर्थों की
यात्रा कर रखी थी, जो हिंदुस्तान के चारों कोनों पर हैं। या हमें पुराने सिपाही मिल जाते, जिन्होंने पिछली बड़ी जंग में या धावों के
सिलसिले में विदेशों में नौकरियाँ की थीं। सन् तीस के बाद तो आर्थिक मंदी पैदा हुई
थी, उसकी वजह से
दूसरे मुल्कों के बारे में मेरे हवाले उनकी समझ में आ जाते थे।
संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी
पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ के पाठ ‘भारत माता’ से लिया गया है। जिसके लेखक पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी हैं।
प्रसंग – लेखक ने प्रस्तुत गद्यांश
में किसानों से विदेश में होने वाले परिवर्तन को समझाने के लिए भारतीय धर्मग्रंथों
की कहानियों का वर्णन किया है।
व्याख्या – प्रस्तुत गद्यांश के
अनुसार नेहरू जी के लिए अनपढ़ किसानों को पूरे देश के बारे में समझाना, कोई आसान काम नहीं था। चूँकि अनपढ़ किसान
भारतीय धर्मग्रंथों में वर्णित कथाओं, कहानियों से परिचित थे इसलिए नेहरू जी ने इन कहानी-किस्सों
के माध्यम से ही उन्हें समझाना उचित समझा। कुछ ग्रामीण तीर्थ यात्राएँ कर चुके
थे। इसलिए उन्हें देश की बातें समझने में आसानी रही। कुछ ग्रामीण जो कि विदेशी
यात्राएँ भी कर चुके थे। जिनमें से विश्व-युद्ध के सिपाही तो विदेशों में नौकरी
भी कर चुके थे। इन लोगों ने 1930 के बाद आई आर्थिक मंदी का दौर भी देखा था। इन
लोगों को इस स्थिति को समझने में आसानी रही अर्थात आर्थिक मंदी के बाद होने वाले
परिवर्तनों को वे लोग भली-भाँति समझ पाए।
4. कभी ऐसा भी होता कि जब मैं किसी
जलसे में पहुँचता तो मेरा स्वागत ‘भारत माता की जय!’ इस नारे से जोर के साथ किया जाता। मैं लोगों से अचानक पूछ बैठता कि इस
नारे का क्या तमलब है? यह भारत माता कौन है, जिसकी वे जय चाहते हैं। मेरे सवाल से उन्हें कुतूहल और ताज्जुब
होता और कुछ जवाब न बन पड़ने पर वे एक-दूसरे की तरफ या मेरी तरफ देखने लग जाते।
मैं सवाल करता ही रहता। आखिर एक हट्टे-कट्टे जाट ने,
जो अनगिनत पीढि़यों से किसानी करता आया था, जवाब दिया कि भारत माता से उनका मतलब धरती
से है। कौन-सी धरती? खास उनके गाँव की धरती या जिले की या सूबे की या सारे हिंदुस्तान
की धरती से उनका मतलब है? इस तरह सवाल-जवाब चलते रहते, यहाँ तक कि वे ऊबकर मुझसे कहने लगते कि मैं
ही बताऊँ।
संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी
पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ के पाठ ‘भारत माता’ से लिया गया है। जिसके लेखक पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में
नेहरू जी द्वारा लोगों से भारत माता के बारे में समझाने का वर्णन किया गया है।
व्याख्या – लेखक के अनुसार वे जब
सभाओं में जाते तो उपस्थित लोग भारत माता की जय के नारे लगाते थे तब वे इस नारे के
अर्थ के बारे में लोगों से पूछते थे एक बार सभा में उन्होंने इसका अर्थ जानना
चाहा तो एक हट्टे-कट्टे व्यक्ति (किसान) ने बताया कि भारत माता से तात्पर्य धरती से है। नूहरू
जी इसी प्रकार के प्रश्न पुन: पूछते कि धरती से आपका क्या मतलब है? यह धरती कहाँ
की है ? गाँव की, क्षेत्र या प्रदेश की, या पूरे देश की धरती है। ऐसे सवालों को सुनकर जिज्ञासावश लोग नेहरू जी से
ही उसका अर्थ बता देने का अनुरोध करते।
5. मैं इसकी कोशिश करता और बताता कि
हिंदुस्तान वह सब कुछ है, जिसे उन्होंने समझ रखा है, लेकिन वह इससे भी बहुत ज्यादा है। हिंदुस्तान के नदी और
पहाड़, जंगल और खेत, जो हमें अन्न देते हैं, ये सभी हमें अज़ीज हैं। लेकिन आखिरकार जिनकी
गिनती है, वे हैं हिंदुस्तान के लोग, उनके और मेरे जैसे लोग, जो इस सारे देश में फैले हुए हैं। भारत माता दरअसल यही
करोड़ों लोग हैं और ‘भारत माता की जय!’ से मतलब हुआ इन लोगों कि जय का। मैं उनसे कहता कि तुम इस भारत माता के अंश
हो, एक तरह से तुम ही
भारत माता हो, और जैसे-जैसे ये विचार उनके मन में बैठते,
उनकी आँखों में चमक आ जाती, इस तरह, मानो उन्होंने कोई बड़ी खोज कर ली है।
संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश हमारी
पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ के पाठ ‘भारत माता’ से लिया गया है। जिसके लेखक पण्डित जवाहरलाल नेहरू जी हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में
नेहरू जी के द्वारा किसानों को ‘भारत माता की जय’ का अर्थ समझाया है।
व्याख्या – नेहरू जी किसानों और
जनता को समझाते हैं कि भारत माता का अर्थ यहाँ कि धरती, उसकी नदियाँ,
पहाड़, जंगल, खेत, खलियान आदि सब हैं। इसके अतिरिक्त भारत के करोडों लोग भी भारत माता के
अंग ही हैं। दूसरे शब्दों में भारत की प्रकृति,
संपत्ति और समस्त प्राणी मिलकर ही भारत
माता कहलाते हैं।
नेहरू जी के अनुसार किसान स्वयं को भारत माता का अंग मानकर बहुत खुशी और
हैरानी अनुभव करते थे। इसलिए उनकी आँखों में खुशी की चमक दिखाई देती थी।
पाठ के आस-पास -
प्रश्न 1. आजादी से पहले भारत-निर्माण को लेकर नेहरू के क्या सपने थे? क्या आजादी के बाद वे साकार हुए? चर्चा कीजिए।
उत्तर - आजादी से पहले भारत-निर्माण को लेकर नेहरू के निम्नलिखित सपने थे - कोई किसान गरीब न होगा। किसी पर कर्ज़ न होगा। सभी के कर्ज माफ कर दिए जाएंगे। उन्हें पूंजीपतियों, महाजनों और जमींदारों के शिकंजे से छुड़ाया जाएगा। उनसे लगान वसूली करने और ब्याज वसूली करने में नरमी बरती जाएगी। शर्तें आसान की जाएंगी। उन्हें पुलिस के अत्याचारों से मुक्त कराया जाएगा। जो विदेशी शासन इन सब कष्टों को हवा दे रहा है, उसे उखाड़ फेंका जाएगा।
क्या सपने सच हुए - यह सब सपने अब भी सपने हैं। करोड़ों किसान अब भी दो वक्त की रोटी नहीं जुटा पाते। कितने किसान भुखमरी के कारण आत्महत्या कर लेते हैं। कर्ज माफ होना ऐसी समस्या नहीं है जिसे एकदम समाप्त किया जा सके। किसानों को आवश्यकता पड़ने पर फिर से कर्ज लेना पड़ता है। उसके लिए अपने खेत-घर गिरवी रखने पड़ते। बैंक भी कर्ज़ देते समय संपत्ति गिरवी रखते हैं।
हाँ, लगान वसूली करने और सूद कम करने के संबंध में सुधार अवश्य हुआ है। अब बैंक किसानों को आसान शर्तों पर ऋण देते हैं। पुलिस के अत्याचार कभी कम नहीं हो सके। हाँ, विदेशी शासन जरूर उखड़ गया।
प्रश्न 2. भारत के विकास को लेकर आप क्या सपने देखते हैं?
उत्तर - भारत के विकास को लेकर हम निम्नलिखित सपने देखते हैं -
1. हर भारतवासी को रोटी, कपड़ा, मकान और शिक्षा सरकार की ओर से मिले।
2. हर भारतवासी को रोजगार का साधन प्रदान किया जाए।
3. देश के लिए अन्न उपजाने वाले किसानों का सम्मान हो, निर्माण करने वाले मजदूर खुशहाल हो और रक्षा करने वाले सैनिकों को गौरव प्राप्त हो।
4. भारत फिर से खुशी, समृद्ध और उन्नत बने।
प्रश्न 3. आपकी दृष्टि में भारत माता और हिंदुस्तान की क्या संकल्पना है? बताइए।
उत्तर - मेरी दृष्टि में भारत माता और हिंदुस्तान की संकल्पना निम्नलिखित है -
भारत की हरी-भरी धरती, इसके ऊंचे पर्वत, घने जंगल, सदानीरा नदियाँ, लहलहाते खेत, करोड़ों लोग, यहां की संस्कृति, यहां की परंपराएं, यहां के महापुरुष, यहां का साहित्य- सब मिलकर 'भारत माता' की रचना करते हैं। ये ही सच्चे अर्थों में हिंदुस्तान है जहां अपनी धरती की स्वस्थ परंपरा फलती-फूलती है।
प्रश्न 4. वर्तमान समय में किसानों की स्थिति किस समय तक बदली है? चर्चा कर लिखिए।
उत्तर - वर्तमान समय में किसानों की स्थिति एक सीमा तक ही बदल पाई है। उन्हें आसान शर्तों पर ऋण दिया जा रहा है। लगान वसूलने में भी नरमी बरती जा रही है। सूखा या बाढ़ के समय लगान कम कर दिया जाता है। कभी-कभी तो कर्ज माफ भी कर दिए जाते हैं। परंतु यह सुविधाएं इतनी कम है कि अभी भी अधिकांश किसान कठिनाई से पेट भर पाते हैं।
प्रश्न 5. आजादी से पूर्व अनेक नारे प्रचलित थे। किन्हीं दस नारों का संकलन करें और संदर्भ भी लिखें।
उत्तर - 1. 'भारत माता की जय' - सामान्य नारा जो हर सभा में बोला जाता था।
2. 'इंकलाब जिंदाबाद' - क्रांति को हवा देने के लिए यह नारा लगाया जाता था।
3. 'जय हिंद' - सुभाष चंद्र बोस का नारा।
4. 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' - सुभाष चंद्र बोस द्वारा सशस्त्र क्रांति का आह्वान।
5. 'करो या मरो' - गांधी जी का आह्वान।
6. 'स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है' - लोकमान्य तिलक।
7. 'हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान' - प्रताप नारायण मिश्र
8. 'हिंदू, मुस्लिम सिख ईसाई - सब आपस में भाई-भाई।' एकता से संबंधित सामान्य प्रचलित नारा।
9. 'नहीं रखनी सरकार, भाइयों' - नहीं रखनी। भारत छोड़ो आंदोलन का नारा।
10. 'साइमन वापस जाओ।' - साइमन कमीशन का विरोध करने के दौरान लगा नारा।
पद्य खण्ड
Chapter - 6 चंपा काले अक्षर नहीं चीन्हती
गद्य खण्ड
वितान
अध्याय - 2 राजस्थान की रजत बूंदें