Jiwaji university bsc 3rd year hindi paper 2021 solution

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Jiwaji university bsc 3rd year hindi paper 2021 solution

Bsc 3rd year hindi paper solution




Friends, this time Jiwaji University has decided to conduct its examinations through open book method and by this decision, B.Sc third year papers are now being conducted through open book system, so in this post we are going to talk about B.Sc third year  About Hindi paper solution


दोस्तों इस बार जीवाजी यूनिवर्सिटी ने अपनी परीक्षाओं को ओपन बुक पद्धति के द्वारा कराने का निर्णय लिया है और इस निर्णय के द्वारा अभी बीएससी थर्ड ईयर के पेपर ओपन बुक प्रणाली से करवाए जा रहे हैं तो इस पोस्ट में हम बात करने वाले हैं बीएससी थर्ड ईयर के हिंदी के पेपर के सलूशन के बारे में 


खण्ड - अ


प्रश्न 1. मेरे सहयात्री संस्मरण में अमृतलाल वेगड़ ने किन-किन सहयात्री का उल्लेख किया है? स्पष्टतया लिखिए।


उत्तर - मेरे सहयात्री श्री अमृतलाल वेगड़ द्वारा अपनी नर्मदा पदयात्री के संदर्भ में लिखा गया है। इसमें लेखक ने बताया है कि जब 1980 ईस्वी में वे नर्मदा यात्रा में थे। तो उन्हें एक 75 वर्षीय बुजुर्ग मिले थे जो नर्मदा की निहलरी परिक्रमा कर रहे थे। उस उम्र में उनकी ऐसी पदयात्रा से लेखक अत्यधिक प्रभावित हुये थे। उन्होंने सोचा कि मैं जब 75 वर्ष का हो जाऊंगा तो नर्मदा पदयात्रा जरूर करूंगा। 3 अक्टूबर 2002 को लेखक 75वें वर्ष में प्रवेश कर गए तब इसी समय उनकी प्रथम नर्मदा पदयात्रा के 25 वर्ष भी पूरे हुए थे, इस कारण उसकी स्मृति में पुनः नर्मदा पदयात्रा पुनरावृति पद यात्रा पर जाने की योजना बनाई।

लेखा का अपनी पत्नी कांता और अपने बेटे के एक सहपाठी, अशोक तिवारी, मुंबई के चार लोग रमेश शाह उनकी पत्नी हंसा, पुत्र संजय और इस परिवार में एक अभिन्न मित्र गार्गी देसाई, दिल्ली के अखिल मिश्र, मंडला से अरविंद गुरु और उनकी पत्नी मंजरी, गोंड सेवक, फगनू, घनश्याम तथा गरीबा को साथ लेकर अपनी पुनरावृति यात्रा पर निकले।

वे अपने घर से पहले मंडला, फिर वहां से 20 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित गुरु स्थान पर गए। रात वहीं गुजार कर 7 अक्टूबर 2002 को नर्मदा के मनोट पर बने पुल पर आकर उन्होंने वहीं से नर्मदा के दर्शन कर ' नर्मदे हर' कहते हुए अपनी है नर्मदा यात्रा शुरू की।

2 महीने पहले पैर की एड़ी पर घर का दरवाजा ऐसा धड़ाम से लगा था कि 10 दिन तक घर से बाहर नहीं जा सकता था। परिक्रमा में कहीं गिर गिरा गया, हड्डी तरक गई सो जो दुर्गति होगी सो होगी जग हंसाई अलग होगी। लोग कहेंगे कि इस बुड्ढे की तो मति मारी गई है। आप पड़े रहो प्लास्टर में साल भर तक। किंतु दूसरे ही क्षण मैंने इस विचार को सिड़क दिया। यह समस्या मेरी नहीं नर्मदा की है। इसकी चिंता मैं क्यों करूं। नर्मदा को देखते ही हृदय झलक उठा। कैसा माधुर्य बिखेरती बह रही है। वह हमें विदा देने के लिए मंडला से नरेशचंद्र अग्रवाल अपने पूरे परिवार के साथ आए थे और हमारे लिए ढेर सारी खाद्य सामग्री लाए थे। इनसे भी पुस्तकों के कारण ही परिचय हुआ था।



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