class 11th hindi chapter 7 rajni question answer//chapter - 7 रजनी
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अध्याय – 7
रजनी - मन्नू भण्डारी
1. आप बहस करके बेकार
ही अपना और मेरा समय बर्बाद कर रही हैं। मैंने कह दिया न कि इन कॉपियों को दिखाने
का नियम नहीं है और मैं नियम नहीं तोडूँगा।
सन्दर्भ – यह
गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ के पाठ ‘रजनी’ से लिया गया है। इसकी
लेखिका मन्नू भण्डारी हैं।
प्रसंग – एकांकी की प्रमुख पात्र
रजनी छात्र अमित के गणित विषय में कम अंक प्राप्त होने पर स्कूल हेडमास्टर से
परीक्षा कॉपी को देखने के लिए माँग करती है। हेडमास्टर परीक्षा कॉपी न दिखाने को
जिद करती है।
व्याख्या
– हेडमास्टर कहता है कि आप तर्क करके मेरा और अपना समय नष्ट कर रही हैं। कॉपी न
दिखाने का नियम हैं अत: मैं आपको कॉपी दिखाकर नियम नहीं तोड़ूँगा।
2. कुछ
नहीं कर सकते आप? तो मेहरबानी करके यह कुर्सी छोड़ दीजिए। क्योंकि यहाँ पर कुछ कर
सकने वाले आदमी चाहिए। जो ट्यूशन के नाम पर चालने वाली धाँधलियों को रोक सके ....
मासूम और बेगुनाह बच्चों को ऐसे टीचर्स के शिकंजों से बचा सके जो ट्यूशन न लेने
पर बच्चों के नंबर काट लेते हैं... और आप हैं कि कॉपियाँ न दिखाने के नियम से
उनके सारे गुनाह ढक लेते हैं।
सन्दर्भ – यह
गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ के पाठ ‘रजनी’ से लिया गया है। इसकी
लेखिका मन्नू भण्डारी हैं।
प्रसंग –
ट्यूशनबाजी के विरोध में रजनी का हेडमास्टर के साथ कथन है।
व्याख्या
– मेधावी छात्र जो ट्यूशन नहीं करते हैं परीक्षा में उन्हें कम अंक दिए जाते है।
उनकी परीक्षा कॉपियों दिखाने के लिए माँग की जाती है। हेडमास्टर द्वारा कहा जाता
है कि परीक्षा कॉपी दिखाने का नियम नहीं है। मेधावी छात्र को सामान्य छात्र की
अपेक्षा कम अंक प्राप्त होना यह सब ट्यूशनबाजी के कारण होता है। हैडमास्टर
ट्यूशन करने वाले शिक्षकों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं कर पाता। ऐसे मे रजनी
हैडमास्टर से कहती है कि यदि आप ट्यूशन प्रथा के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकते तो
अपने पद से त्यागपत्र दे दीजिए। आपका पद प्रशासकीय पद है। इस पर ऐसा व्यक्ति
होना चाहिए जो कठोर निर्णय ले सके ट्यूशन के नाम पर चलने वाली मनमानी को रोक सके।
भोले-भाले और निरपराध बच्चों को ऐसे शिक्षकों के दबाव से बचा सके। यहाँ तक कि
ट्यूशन न करने पर बच्चो के अंक काट लेते हैं उन शिक्षकों के दण्डित किया जा सके।
यह तो नहीं कर पाते अपितु कॉपी न दिखाने के नियम की आड़ में उनके अपराधों पर पर्दा
डाल देते हैं।
3. मुझे
बाहर करने की जरूरत नहीं। बाहर कीजिए उन सब टीचर्स को जिन्होंने आपकी नाक के नीचे
ट्यूशन का घिनौना रैकेट चला रखा है।
सन्दर्भ – यह
गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ के पाठ ‘रजनी’ से लिया गया है। इसकी
लेखिका मन्नू भण्डारी हैं।
प्रसंग –
हेडमास्टर स्कूल के चपरासी से रजनी को बाहर निकालने की कहता है। उस समय रजनी का
कथन है कि।
व्याख्या
– हेडमास्टर जी मुझे बाहर निकालने की कोई आवश्यकता नहीं आपको निकालना है तो उन
शिक्षकों को स्कूल से बाहर निकालिये जो आपके स्कूल में ट्यूशन का धन्धा करते
हैं। ट्यूशन के कारण बाकी छात्रों के साथ न्याय नहीं हो पाता मन में घृणा पैदा
होती है।
4. देखो, तुम मुझे फिर गुस्सा दिला
रही हो रवि ... गलती करने वाला तो है ही गुनहगार, पर उसे बर्दाश्त करने वाला भी कम गुनहगार नहीं होता जैसे
लीला बेन और कांति भाई और हज़ारों-हज़ारों माँ-बाप। लेकिन सबसे बड़ा गुनहगार तो वह
है जो चारों तरफ अन्याय, अत्याचार
और तरह-तरह की धाँधलियों को देखकर भी चुप बैठा रहता है।
सन्दर्भ – यह
गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ के पाठ ‘रजनी’ से लिया गया है। इसकी
लेखिका मन्नू भण्डारी हैं।
प्रसंग –
रजनी अपने परिचित के बेटे अमित के परीक्षा में कम अंक आने का कारण ट्यूशन प्रथा को
जिम्मेदार समझती है। वह ट्यूशन प्रथा के विरुद्ध संघर्ष करती है। उसका पति रवि
उसे समझाता है कि तुम्हारे इस संघर्ष से कोई लाभ नहीं होने वाला। इस बात पर रजनी
कहती है कि –
व्याख्या
– दबाव बनाकर ट्यूशन करने शिक्षक तथा विद्यालय प्रबंधन एवं शिक्षा विभाग से जुड़े
लोग, ये सभी
अपराधी हैं लेकिन हजारों पालक भी इस अपराध के लिए जिम्मेदार हैं, क्योंकि ये अपने बच्चों
पर हो रहे अत्याचार को सह रहे हैा। समाज का वह वर्ग जो चारों तरफ हो रहे अत्याचार, अन्याय और मनमानियों को
देखकर कुछ नहीं बोलता सबसे बड़ा अपराधी है।
5. तो फिर
साथ दीजिए हमारा। अखबार यदि किसी इश्यू को उठा ले और लगातार उस पर चोट करता रहे
तो फिर वह थोड़े से लोगों की बात नहीं रह जाती। सबकी बन जाती है …. आँख मूँदकर नहीं रह सकता
फिर कोई उससे। आप सोचिए ज़रा अगर इसके खिलाफ कोई नियम बनता है तो ( आवेश के मारे
जैसे बोला नहीं जा रहा है। ) कितने पेरेंट्स को राहत मिलेगी … कितने बच्चों
का भविष्य सुधर जाएगा, उन्हें
अपनी मेहनत का फल मिलेगा, माँ-बाप
के पैसे का नहीं, … शिक्षा
के नाम पर बचपन से ही उनके दिमाग में यह तो नहीं भरेगा कि पैसा ही सब कुछ है।
सन्दर्भ – यह
गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ के पाठ ‘रजनी’ से लिया गया है। इसकी
लेखिका मन्नू भण्डारी हैं।
प्रसंग – रजनी
ट्यूशनबाजी के विरुद्ध लगातार संघर्ष कर रही है और सीभी लोगों को जोड़कर जनमत
तैयार कर रही है। इस सम्बन्ध में वह अखबार के सम्पादक से सम्पर्क करती है। वह
सम्पादक से कहती है।
व्याख्या
– किसी विषय पर चर्चा करने में अखबार भी शामिल हो जाये तो वह चर्चा का विषय थोड़े
लोगों को न होकर अधिकांश लोगों का हो जाता है। उस मुद्दे पर जनमत बनाने में
अखबारों की बड़ी भूमिका होती है। इससे सबको लाभ होता है और चाहे सरकार हो या
प्रशासन सबको उस विषय पर ध्यान देना पड़ता है। ट्यूशनबाजी के विरुद्ध यदि कोई
नियम बन जाता है तो उससे पालकों का सुख मिलेगा, बच्चों का भविष्य सुधर जावेगा। आम लोगों को मन की यह धारणा
कि पैसा ही सब कुछ है, पैसा
सब कुछ करा सकता है उससे भी भ्रम टूटेगा। यदि ऐसा कुछ हुआ तो बच्चों के दिमाग में
बचपन से सकारात्मकता बढ़ेगी।
6. बड़ा
अच्छा लगा जब टीचर्स की ओर से भी प्रतिनिधि ने आकर बताया कि कई प्राइवेट स्कूलों
में तो उन्हें इतनी कम तनख्वाह मिलती है कि ट्यूशन न करें तो उनका गुज़ारा ही न
हो। कई जगह तो ऐसा भी है कि कम तनख्वाह देकर ज्यादा पर दस्तखत करवाए जाते हैं।
ऐसे टीचर्स से मेरा अनुरोध है कि वे संगठित होकर एक आंदोलन चलाएँ और इस अन्याय का
पर्दाफाश करें।
सन्दर्भ – यह
गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ के पाठ ‘रजनी’ से लिया गया है। इसकी
लेखिका मन्नू भण्डारी हैं।
प्रसंग – रजनी
द्वारा ट्यूशन के विरुद्ध चलाये जा रहे आन्दोलन में लोगों की संख्या लगातार
बढ़ती जा रही है। रजनी द्वारा एक बैठक बुलाई जाती है जिसमें अभिभावक, शिक्षक, प्रेस रिपोर्टर उपस्थित
होते हैं। उस बैठक में शिक्षक प्रतिनिधि अपनी समस्या के बारे में बताता है।
व्याख्या
– शिक्षक प्रतिनिधि बताता है कि ट्यूशन करना हमारी विविशता है। हमारा वेतन बहुत कम
है और हम ट्यूशन न करें तो हमारा जीवन-यापन कठिन हो जावेगा। वेतन तो कम है ही साथ में यह भी है कि
हमें कम वेतन देकर हस्ताक्षर ऑफिस वेतन पर करवाया जाते हैं। इस समस्या से जब
रजनी परिचित होती है तो वह कहती है कि मेरा सभी शिक्षकों से निवेदन है कि वे इस
समस्या को समाने लायें और संगठित होकर एक आन्दोलन चलायें जिससे इस समस्या को
दूर किया जा सके।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
पाठ के साथ -
प्रश्न 1. रजनी ने अमित के मुद्दे को गंभीरता से लिया क्योंकि-
(क) वह अमित जी से बहुत स्नेह करती थी।
(ख) अमित उसकी मित्र लीला का बेटा था।
(ग) वह अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की सामर्थ्य रखती थी।
(घ) उसे अखबार की सुर्खियों में आने का शौक था।
उत्तर - (ग) वह अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की सामर्थ्य रखती थी।
प्रश्न 2. जब किसी का बच्चा कमजोर होता है, तभी उसके मां-बाप ट्यूशन लगवाते हैं। अगर लगे की कोई टीचर है लूट रहा है तो उसे टीचर से न ले ट्यूशन, किसी और के पास चले जाएं…. यह कोई मजबूरी तो नहीं- प्रसंग का उल्लेख करते हुए बताइए कि यह संवाद आपको किस सीमा तक सही या गलत लगता है, तर्क दीजिए।
उत्तर - प्रसंग - कहानी की नायिका रजनी जबरदस्ती ट्यूशन पढ़ाने की समस्या को लेकर पहले स्कूल के हेडमास्टर के पास जाती हैं। वे इसे अध्यापकों और बच्चों की समस्या कहकर टाल जाते हैं। फिर वह शिक्षा-निदेशक से मिलने जाती है। शिक्षा-निदेशक रजनी को यह तर्क देते हैं कि ट्यूशन करने में कोई मजबूरी तो है नहीं। यदि बच्चे को लगता है कि कोई अध्यापक उसे लूट रहा है तो वह किसी और अध्यापक के पास चला जाए।
तर्क - शिक्षा निदेशक का यह संवाद बिल्कुल ढीला-ढाला और गलत है। उसे जबरदस्ती ट्यूशन पढ़ाने में कोई गंभीरता नहीं नजर आती। वह समस्या की गहराई में गए बिना बात कह देता है की बच्चा कमजोर है टीचर लूट रहा है तो टीचर बदल दे। ऐसा लगता है कि मैं समस्या को समझने की वजह मूल समस्या से मुंह मोड़ लेता है।
प्रश्न 3. तो एक और आंदोलन का मसला मिल गया- फुसफुसाकर कही गई यह बात -
(क) किसे किस प्रसंग में कही?
(ख) इससे कहने वाले की किस मानसिकता का पता चलता है।
उत्तर - (क) यह बात रजनी के पति रवि ने पेरेंट्स की मीटिंग के दौरान रजनी का भाषण सुनते हुए कही। रजनी ने अपने भाषण के दौरान बताया कि कुछ अध्यापकों को अधिक तनख्वाह पर हस्ताक्षर करा कर कम तनख्वाह दी जाती है। इस सिलसिले में रजनी ने उन्हें कहा कि वे संगठित होकर आंदोलन करें और इस अन्याय का पर्दाफाश करें।
(ख) इससे कहने वाले की हटो-बचो की मानसिकता का पता चलता है। वह अपने काम से काम रखना चाहता है। समाज की समस्याओं में उलझना नहीं चाहता।
प्रश्न 4. रजनी धारावाहिक की इस कड़ी की मुख्य समस्या क्या है? क्या होता है अगर -
(क) अमित का पर्चा सचमुच खराब होता।
(ख) संपादक रजनी का साथ ना देता।
उत्तर - इस कड़ी की मुख्य समस्या है - स्कूली अध्यापकों द्वारा बच्चों को जबरदस्ती ट्यूशन पढ़ाने के लिए विवश करने के विरुद्ध जन जागरण करना।
(क) यदि अमित का पर्चा सचमुच खराब होता तो रजनी को अपनी भूल का ज्ञान हो जाता। वह आंदोलन न करती।
(ख) यदि संपादक रजनी का साथ न देता तो यह आंदोलन इतना सफल न हो पाता। न ही इतनी जल्दी बोर्ड के अधिकारी ट्यूशन संबंधी नियम बनाते।
पाठ के आस-पास -
प्रश्न 1. गलती करने वाला तो है ही गुनहगार, पर उसे बर्दाश्त करने वाला भी काम गुनहगार नहीं होता - इस संवाद के संदर्भ में आप सबसे ज्यादा कैसे और क्यों गुनहगार मानते हैं?
उत्तर - मेरी दृष्टि में दोषी दोनों है- ट्यूशन के लिए जबरदस्ती करने वाला अध्यापक भी और उस जबरदस्ती को सहने वाला व्यक्ति भी। जबरदस्ती सहन करने वाला व्यक्ति कुछ अधिक दोषी है क्योंकि वह अन्याय का विरोध करने की शक्ति नहीं जुटा पाता। वह अन्यायी को अन्याय करने की छूट देता है। इससे अन्यायी का साहस बड़ता है।
प्रश्न 2. स्त्री के चरित्र की बनी बनाई धारणा से रजनी का चेहरा किन मायनों में अलग है?
उत्तर - रजनी का चेहरा स्त्री के चरित्र की धारणा से बिल्कुल भिन्न है। भारतीय स्त्री शक्तिहीन, सहनशील और कोमल मानी जाती है। बहन लड़ना नहीं चाहती। इस नाटक की नायिका रजनी संघर्षशील, असहनशील, जुझारू, स्वाभिमानी और आत्मविश्वासी है। वह अपने सामने होता हुआ अन्याय नहीं देख सकती। वह तुरंत दोषी व्यक्ति के विरुद्ध संघर्ष छेड़ देती है और देखते-ही-देखते जन-आंदोलन खड़ा कर देती है।
प्रश्न 3. पाठ के अंत में मीटिंग के स्थान का विवरण कोष्टक में दिया गया है। यदि इसी दृश्य को फिल्माया जाए तो आप कौन-कौन से निर्देश देंगे?
उत्तर - छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 4. इस पटकथा में दृश्य-संख्या का उल्लेख नहीं है। मगर गिनती करें तो सात दृश्य है। आप किस आधार पर इन दृश्यों को अलग करेंगे?
उत्तर - छात्र स्वयं करें।
पद्य खण्ड
Chapter - 6 चंपा काले अक्षर नहीं चीन्हती
गद्य खण्ड
वितान
अध्याय - 2 राजस्थान की रजत बूंदें
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