class 11th hindi chapter 6 spiti me barish question answer//chapter - 6 स्पीति में बारिश
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अध्याय - 6
स्पीति में बारिश - कृष्णनाथ जी
1. स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील है। लाहुल-स्पीति का यह योग भी आकस्मिक है। इनमें बहुत योगायोग नहीं है। ऊंचे दर्रों और कठिन रास्तों के कारण इतिहास में भी कम रहा है। अलंघ्य भूगोल यहां इतिहास का एक बड़ा कारक है। अब जबकि संचार में कुछ सुधार हुआ है तब भी लाहुल-स्पीति का योग प्रायः वायरलेससेट के जरिए है जो केलंग और काजा के बीच खड़कता रहता है। फिर भी केलंग के बादशाह को भय लगा रहता है कि कहीं काजा का सूबेदार उसकी अवज्ञा तो नहीं कर रहा है? कहीं बगावत तो नहीं करने वाला? लेकिन सिवाय वायरलेस सेट पर संदेश भेजने के वह कर भी क्या सकता है? बसंत में भी 170 मील आना-जाना कठिन है। शीत में प्राय: संभव है।
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' के पाठ 'स्पीति में बारिश' से लिया गया है। इसके लेखक श्री कृष्णनाथ जी हैं।
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में लेखक अपने यात्रा-वृतांत का वर्णन करता है।
व्याख्या - लेखक के अनुसार हिमाचल प्रदेश के एक जिले लाहुल-स्पीति की तहसील स्पीति का इतिहास में नाम ना होने का मुख्य कारण इसकी भौगोलिक स्थिति है। यहां बहुत ऊंचे पहाड़ी दर्रे और आने-जाने के रास्ते बड़े दुर्गम हैं। आज के आधुनिक युग में भी यहां एक दूसरे के पास संदेश भेजने का एकमात्र साधन वायरलेस सेट है। यहां के राजा को हमेशा यही डर लगा रहता है कि उसके कर्मचारी विद्रोह न कर दें। बसंत ऋतु में आने-जाने वाले कठिन रास्ते सर्दी के मौसम में प्राय: बंद जैसे हो जाते हैं अर्थात शरद ऋतु में यहां आना-जाना बहुत कठिन है।
2. स्पीति नदी के साथ-साथ मेरा थोड़ा परिचय स्पीति के पहाड़ों का भी है। स्पीति के पहाड़ लाहुल से ज्यादा ऊँचे हैं नंगे और भव्य हैं। इनके सिरों स्पीति के नर-नारियों का आतर्नाद जमा हुआ है। शिव का अट्टहास नहीं, हिम का आतर्नाद है। ठिठुरना है। गलन की व्यथा है।
इससे व्यथा की कथा पहाड़ों की ऊंचाई के आंकड़ों में नहीं कही जा सकती फिर भी जो सुंदरता को इंच में मापने के अभ्यासी हैं वे भला पहाड़ को कैसे बख्श सकते हैं। वे यह जान लें की स्पीती मध्य हिमालय की छाती है। जिसे वे हिमालय मानते हैं - स्केटिंग, सौंदर्य प्रतियोगिता, आइसक्रीम और छोले-बटूरे का कुल्लू मनाली, शिमला, मसूरी, नैनीताल, श्रीनगर वह सब हिमालय नहीं है। हिमालय का तलुआ है।
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' के पाठ 'स्पीति में बारिश' से लिया गया है। इसके लेखक श्री कृष्णनाथ जी हैं।
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में स्पीती की भौगोलिक स्थिति की तुलना हिमाचल के अन्य पहाड़ी व शहरी क्षेत्रों से की गई है।
व्याख्या - लेखक के अनुसार स्पीती के पहाड़ कुल्लू-मनाली, शिमला, मसूरी, नैनीताल, श्रीनगर जैसे प्रसिद्ध पहाड़ों से अलग है। इन क्षेत्रों में चारों तरफ हरियाली है इसलिए यहां लोग घूमने आते हैं। यहां आने वाले सैलानियों की संख्या बहुत होती है। इसके विपरीत स्पीती के पहाड़ बहुत ऊँचे और विशालता लिए हुए हैं। यहां न हरियाली है,न वर्षा होती है। यह पहाड़ सूनापन लिए हुए हैं। यहां भीड़ भी नहीं होती।
स्पीति के पहाड़ों में चहल-पहल नहीं है। चारों और केवल बर्फ का साम्राज्य दिखाई देता है। बर्फ के कारण ही यहां का जनजीवन बड़ा कष्टकारी उदास और दुखी हो गया है। आबादी वाले क्षेत्र हिमाचल की तलहटी में हैं।
3. मध्य हिमालय की जो श्रेणियां स्पीती के घेरे हुए हैं उनमें जो उत्तर में है उसे बारालाचा श्रेणियों का विस्तार समझे। बारालाचा दर्रे की ऊंचाई का अनुमान 16,221 फीट से लगाकर 16,500 फिट का लगाया गया है। इस पर्वत श्रेणी में दो चोटियों की ऊंचाई 21000 फ़ीट से अधिक है। दक्षिण में जो श्रेणी है वह माने श्रेणी कहलाती है। इसका क्या अर्थ है? कहीं यह बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर दो नहीं है? 'ओं मणि पद्मे हूँ' इनका बीच मंत्र है इसका बड़ा महात्मा है। इसे संक्षेप में माने कहते हैं। कहीं इस श्रेणी का नाम है इस माने के नाम पर तो नहीं है? अगर नहीं है तो करने जैसा है। यहां इन पहाड़ियों में माने का इतना जाप हुआ है कि यह नाम उन श्रेणियों को दे डालना ही सहज है।
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' के पाठ 'स्पीति में बारिश' से लिया गया है। इसके लेखक श्री कृष्णनाथ जी हैं।
प्रसंग - उपरोक्त का गद्यांश में स्पीति की भौगोलिक स्थिति तथा पहाड़ों की ऊंचाई का अंदाजा लगाते हुए बौद्ध धर्म के माने मंत्र से तुलना की गई है।
व्याख्या - लेखक के अनुसार स्पीति घाटी चारों ओर से पहाड़ों से घिरी हुई है। उत्तर दिशा में बारालाचा की पर्वत श्रेणियां लगभग 16,221 फीट से लेकर 16,500 फीट की ऊंचाई लिए हुए हैं। यहां की दो चोटियाँ 21,000 फीट से अधिक ऊंची हैं। स्पीती के दक्षिण दिशा में बौद्ध धर्म के माने मंत्र
'ओं मणि पद्मे हूँ' से प्रभावित पहाड़ों की श्रेणियां हैं। इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म के इस मंत्र को यहां के निवासियों द्वारा अत्यधिक जाप या उच्चारण किए जाने के कारण ही इन श्रेणियों को माने श्रेणी कहा जाता है।
4. मैं ऊंचाई के माप के चक्कर में नहीं हूं। इनसे होड़ लगाने के पक्ष में हूं। वह एक बार लोसर में जो कर लिया सो बस है। ऊंचाइयों को से होड़ लगाना मृत्यु है। हां, कभी-कभी उनका मान-मर्दन करना मर्द और औरत की शान हैं। मैं सोचता हूं कि देश और दुनिया के मैदानों से और पहाड़ों से युवक-युवतियां आएं और पहले तो स्वयं अपने अहंकार को गलाएँ फिर इन चोटियों के अहंकार को चूर करें। उस आनंद का अनुभव करें जो साहस और कूवत से यौवन में ही प्राप्त होता है। अहंकार का ही मामला नहीं है। यह माने की चोटियां बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं। युवक-युवतियाँ किलोल करें तो यह भी हर्षित हों। अभी तो इन पर स्पीती का आतर्नाद जमा हुआ है। वह इस युक्त अट्टहास को गर्मी से कुछ तो पिघले। यह एक युवा निमंत्रण है।
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' के पाठ 'स्पीति में बारिश' से लिया गया है। इसके लेखक श्री कृष्णनाथ जी हैं।
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में लेखक स्पीति की पहाड़ियों में प्रदर्शित उदासी की चादर को हटाने के लिए युवक-युवतियों से वहां आने का आग्रह कर रहा है।
व्याख्या - इस गद्यांश के माध्यम से लेखक देश-विदेश के युवक-युवतियों को स्पीति की पहाड़ियों में बुलाना चाहता है। उसके अनुसार यहां चारों और उदासी और वीरानी का माहौल है। अधिकांश निवासी बूढ़े लामा है जो माने मंत्र का जाप करते हैं। इसलिए यदि युवक-युवतियां यहां आकर क्रीड़ाएँ करें, अट्टहास करें तो यहां की उदासी दूर हो सकती हैं।
यदि युवा यहां की ऊंची पहाड़ियों पर चढ़ पाए तो पहाड़ियों का घमंड चूर-चूर हो जाएगा ऐसा करने की खुशी का अनुभव लेकर युवाओं को कराना चाहता है अर्थात लेखक युवाओं को पहाड़ों के प्राकृतिक सौंदर्य से सामना कराते हुए प्रकृति की विराटता के दर्शन कराना चाहता है। वह चाहता है कि युवा इन पहाड़ों को पार करने का प्रयास करें ताकि उनकी दुर्गमता को चुनौती मिले।
5. यह पावास यहां नहीं पहुंचता है। कालिदास की वर्षा की शोभा विंध्याचल में है। हिमाचल की इन मध्य की घाटियों में नहीं। मैं नहीं जानता कि इसका लालित्य लाहुल-स्पीति के नर-नारी समझ भी पाएंगे या नहीं। वर्षा उनके संवेदन का अंग नहीं है। वह यह जानते हैं कि 'बरसात में नदियां बहती हैं' बादल बरसते हैं, मस्त हाथी चिंधाड़ते हैं, जंगल हरे भरे हो जाते हैं, अपने प्यारों से बिछड़ी हुई स्त्रियां रोती कलपत्ती है, मोर नाचते हैं और बंदर चुप मारकर गुफाओं में जा छिपते हैं।
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' के पाठ 'स्पीति में बारिश' से लिया गया है। इसके लेखक श्री कृष्णनाथ जी हैं।
प्रसंग - इस गद्यांश में लेखक ने वर्षा ऋतु में उत्पन्न होने वाली प्राकृतिक सुंदरता को प्रदर्शित करते हुए स्पीती में होने वाली वर्षा से इसकी तुलना की है।
व्याख्या - लेखक के अनुसार लाहुल-स्पीति के लोग वर्षा के सुख से अनजान हैं। स्पीति में बारिश ना के बराबर होती है। अत्यधिक बर्फबारी के कारण भीषण ठंड पड़ती है। कालिदास के द्वारा जिस वर्षा ऋतु का पावस-प्रसंग का मनोहारी दृश्य नदियों के बहने, मास्त हाथियों के चिंघाड़ने, जंगल की हरियाली, बिरहा वियोग में डूबी नारियों के रोने-कलपने, मोरों के वर्षा ऋतु में पंख फैलाकर नाचने तथा बंदर जैसे जानवरों के चुपचाप गुफा में शरण लेने का वर्णन है वैसी ऋतु स्पीतीवासी लोगों ने नहीं देखी है इसीलिए वर्षा के सुख की अनुभूतियों, अनुभवों में नहीं है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
पाठ के साथ -
प्रश्न 1. इतिहास में स्पीति का वर्णन नहीं मिलता। क्यों?
उत्तर - स्पीति में जनजीवन बहुत सीमित है। खुलकर रहने योग्य स्थितियाँ नहीं है। वहां आठ-नौ महीने बर्फ रहती है जिसके कारण बाहर निकलना भी कठिन होता है। कठिनता से तीन-चार महीने बसंत ऋतु आती है। इतने कम समय में स्पीति का जनजीवन सामान्य नहीं हो पाता। वहां के पहाड़ भी विकसित नहीं है। न ही रास्ते हैं, न संचार के आधुनिक साधन है। अतः मानवीय गतिविधियों के अभाव में वहाँ इतिहास का निर्माण हो पाया। न कोई उल्लेखनीय हो घटनाओं हो पाई।
प्रश्न 2. स्पीति के लोग जीवनयापन के लिए किन कठिनाइयों का सामना करते हैं?
उत्तर - स्पीती के लोग जीवनयापन के लिए कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करते हैं। वे संचार के साधनों से रहित हैं। बिजली, सड़क, दूरभाष आदि से भी रहित हैं। वहाँ न हरियाली होती है, न पेड़। वहां वर्षा भी नहीं होती। इसलिए फसलें भी बहुत कम होती हैं। वर्ष में एक बार बाजरा, गेहूं, मटर, सरसों की फसल होती है। वहां किसी प्रकार का फल पैदा नहीं होता। न ही घर को गर्म रखने के लिए लकड़ी पैदा होती है। वहां की चोटियां 14000 से 21000 फीट तक ऊंची तथा दुर्गम है। वहां सर्दी इतनी होती है कि खाल को छील डालती है। इसलिए अधिकांश समय घरों में दुबक कर रहना पड़ता है।
प्रश्न 3. लेखक माने श्रेणी का नाम बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर करने के पक्ष में क्यों है?
उत्तर - बौद्धों के माने मंत्रों की बहुत महिमा है। यहां इन मंत्रों का खूब उच्चार और प्रचार हुआ है। इसलिए लेखक का मत है कि माने पहाड़ियों का नाम माने मंत्रों के नाम से ही होना उचित है।
प्रश्न 4. यह माने की चोटियां बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं- इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने युवा वर्ग से क्या आग्रह किया है?
उत्तर - लेखक कहना चाहता है कि माने पर्वत श्रेणीयों में बूढ़े लामा रहते हैं और माने मंत्रों का उच्चार ( जाप ) करते हैं। उनके कारण यहां का वातावरण अत्यंत गंभीर, बोझिल और उदास हो गया है। यहां जीवन की चहल-पहल और दिल्लगी नहीं दिखाई देती। अतः यदि यहां युवक-युवतियां आएं। वे क्रीड़ा-कौतुक करें, प्रेम-भरे खेल करें, हंसे, नीचें-कूंदें और इन चोटियों पर आरोहण करें तो यह पहाड़ भी आनंदपूर्ण बन जाएंगे। इसलिए उन्होंने नवयुवकों को स्पीति की पहाड़ियों में आने के लिए आवाहन किया है।
प्रश्न 5. वर्षा यहां एक घटना है, एक सुखद संयोग है- लेखक ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर - लेखक के अनुसार स्पीति में वर्षा बहुत कम होती है। बल्कि कहना चाहिए कि न के बराबर होती है। यहां तक मानसून नहीं पहुंच पाता। इसलिए जब कभी वर्षा हो जाए तो लोग इसे अपना सुखद सौभाग्य मानते हैं। वर्षा के दिन को वे सुख का चिन्ह मानते हैं।
प्रश्न 6. स्पीति अन्य पर्वतीय स्थलों से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर - स्पीति की पहाड़ियां कश्मीर, शिमला, कुल्लू-मनाली जैसे पर्वतीय पर्यटन स्थलों से भिन्न है। यह भिन्नता अनेक प्रकार की हैं। जैसे -
1.स्पीति के पहाड़ों की ऊंचाई 14000 से 21000 मीटर तक है तथा अत्यंत दुर्गम हैं। अन्य पहाड़ इतने ऊंचे नहीं है।
2. स्पीती के पहाड़ों पर न वर्षा होती है, न हरियाली है, न पेड़ है। यहां बर्फ जमी रहती है या यह पहाड़ियां नंगी रहती हैं। अन्य पर्वतीय स्थल हरे भरे वृक्षों से भरपूर हैं। वहां खूब वर्षा होती है।
3. स्पीति में फसलें बहुत कम होती हैं। वर्षा में एक बार फसल होती है। फसलों के नाम पर गेहूं, बाजरा, मटर, सरसों होती है। फल नहीं उगते। अन्य पहाड़ों पर अनेक फसलें सब्जियां तथा फल उगते हैं।
4. स्पीति में केवल दो ऋतुएँ होती हैं - शीत और बसंत। बसंत ऋतु भी तीन-चार मास के लिए होती है। अन्य पहाड़ों पर छहों ऋतुओं का श्रृंगार देखने को मिलता है।
5. स्पीति में न परिवहन के साधन है, न संचार के। यहां न बिजली है, न सड़क है, न टेलीफोन। अन्य पहाड़ों पर सब प्रकार की आधुनिक सुविधाएं हैं।
6. स्पीति में प्रति किलोमीटर केवल चार व्यक्ति रहते हैं तथा पर्यटक भी नहीं आते। अन्य पहाड़ों में जनसंख्या का घनत्व इससे बहुत अधिक है तथा वर्ष-भर पर्यटकों का मेला लगा रहता है।
पाठ के आस-पास -
प्रश्न 1. स्पीति में बारिश का वर्णन एक अलग तरीके से किया गया है। आप अपने यहां होने वाली बारिश का वर्णन कीजिए।
उत्तर - हमारे यहां वर्षा का मौसम बहुत सुहाना होता है। गर्मियों की वर्षा का तो कहना ही क्या! जब धरती लू बरसा रही होती है तो वर्षा की रिमझिम बूंदे स्वर्ग-सा सुख प्रदान करती हैं। मैदानी इलाकों में सबसे रोमांटिक और सुहानी ऋतु वर्षा ऋतु ही होती है। चारों तरफ पानी ही पानी बरसता है। सड़कों, गलियों में पानी भर जाता है। मूसलाधार वर्षा में नहाते बच्चे खूब आनंद-विनोद करते हैं।
प्रश्न 2. स्पीति के लोगों और मैदानी भागों में रहने वाले लोगों की जीवन की तुलना कीजिए। किन का जीवन आपको ज्यादा अच्छा लगता है और क्यों?
उत्तर - स्पीति में जनजीवन तथा मैदानी भागों के जन-जीवन में जमीन-आसमान का अंतर है। यह अंतर इस प्रकार है -
1. स्पीति के लोग आधुनिक सुख-सुविधाओं से वंचित रहते हैं। मैदानी लोग आवागमन और संचार के साधनों के कारण परिवार की भांति जीवनयापन करते हैं।
2. स्पीति में केवल दो ही ऋतुएँ होती हैं, फसलें कम होती हैं, जनसंख्या का घनत्व भी कम है। मैदानों में यह सब चीजें पर्याप्त मात्रा में होती हैं।
3. स्पीति के मौसम शरीर को कष्ट देते हैं। मैदानी क्षेत्रों का हर मौसम सुहाना होता है। सुहावने मौसम एवं आधुनिक सुख-सुविधाओं की उपलब्धि के कारण हमें मैदानी क्षेत्रों का जीवन अधिक अच्छा लगता है।
प्रश्न 3. स्पीति में बारिश एक यात्रा-वृतांत है। इसमें यात्रा के दौरान किए गए अनुभवों, यात्रा-स्थल से जुड़ी विभिन्न जानकारियों का बारीकी से वर्णन किया गया है। आप भी अपनी किसी यात्रा का वर्णन लगभग 200 शब्दों में कीजिए।
उत्तर - छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 4. लेखक ने स्पीति की यात्रा लाभ तीस वर्ष पहले की थी। इन तीस वर्षों में क्या स्थिति में कुछ परिवर्तन आया है? जानें, सोचें, और लिखें।
उत्तर - मेरे विचार से इन तीस वर्षों में स्पीति में निम्न परिवर्तन आया होगा -
1. आवागमन के साधन पहले से अच्छे,
2. नदी पर बांध बिजली उत्पादन,
3. आवाज के लिए कुछ छोटे होटल,
4. दूरसंचार व्यवस्था,
5. टेलीविजन देखने की सुविधा,
6. विदेशी पर्यटकों का आवागमन।
पद्य खण्ड
Chapter - 6 चंपा काले अक्षर नहीं चीन्हती
गद्य खण्ड
वितान
अध्याय - 2 राजस्थान की रजत बूंदें