mp board class 11th Hindi chapter 4 solution// विदाई-संभाषण के प्रश्न उत्तर

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class 11th hindi chapter 3 vidai smbhashn question answer//chapter - विदाई-संभाषण

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 अध्याय - 4

                           विदाई-संभाषण    - बालमुकुंद गुप्त


1. बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है। आपको बिछड़ते देखकर आज हृदय में बड़ा दुःख है। माय लॉर्ड! आप के दूसरी बाहर इस देश में आने से भारतवासी किसी प्रकार प्रसन्न न थे। भी यही चाहते थे कि आप फिर ना आवे। पर आप आए और उससे यहां के लोग बहुत ही दुखित हुए। वे दिन-रात यही मानते थे कि जल्द श्रीमान यहां से पधारे। पर अहो! आज आपके जाने पर हर्ष की जगह विषाद होता है। इसी से जाना कि बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है, बड़ा पवित्र, बड़ा निर्मल और बड़ा कोमल होता है। बैर-भाव छूटकर शांत रस का अविर्भाव उस समय होता है।


संदर्भ - यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह के पाठ विदाई-संभाषण से लिया गया है। इसके लेखक श्री बालमुकुंद गुप्त जी हैं।


प्रसंग - इन पंक्तियों में लेखक ने विदाई के समय उत्पन्न होने वाले भावों को प्रदर्शित किया है।


व्याख्या - इस गद्यांश में लेखक के अनुसार विदाई का समय बड़ा कष्टकारी होता है। मन बहुत दुखी होता है जब कोई हमसे दूर जाता है। किसी भी प्रकार का बैर मन में नहीं रह जाता। उस समय उपस्थित अनुभूति बड़ी पवित्र और कोमल होती है जिसे हम महसूस कर सकते हैं। लेखक के अनुसार यद्यपि लॉर्ड कर्जन के साथ बिताए पुराने दिन बड़े कष्टकारी थे। आम आदमी दुखी था। सभी चाहते थे कि वे आप दुबारा ना आए लेकिन आप आ गए और आपके आने से लोग अत्यंत दुखी हुए। अतः वे चाहते हैं कि आप अतिशीघ्र यहां से चले जाएं तथापि इस समय उनके जाने का दुख सभी को हो रहा था। बिछड़ते समय मन में वैराग्य भाव जागता है। उस समय बीते हुए दुःख, कष्ट, अन्याय और पाप भूल जाते हैं। बिछड़ने वाले व्यक्ति के प्रति मन में पवित्र भावनाएँ जागती हैं।


2. आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अंत में उनको जाना पड़ा। इससे आपका जाना भी परंपरा की चाल से कुछ अलग नहीं है, तथापि आपके शासनकाल का नाटक और दुखांत है, और अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जावेगा। जिसके आदि में सुख था, मध्य में सीमा से बाहर सकता, उसका अंत ऐसे घोर दुख के साथ कैसे हुआ? आह ! घमंडी खिलाड़ी समझता है कि दूसरों को अपनी लीला दिखाता हूं। परन्तु पर्दे के पीछे एक और ही लीलामय की लीला हो रही है, यह उसे खबर नहीं।


संदर्भ - यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह के पाठ विदाई-संभाषण से लिया गया है। इसके लेखक श्री बालमुकुंद गुप्त जी हैं।


प्रसंग - इन पंक्तियों में लेखक ने लॉर्ड कर्जन के शासनकाल में उत्पन्न परिस्थितियों का वर्णन करते हुए ईश्वर पर रहने वाले भरोसे को दर्शाया है।


व्याख्या - इस गद्यांश में लेखक के अनुसार शासकों के आने-जाने की पारंपरिक व्यवस्था बताया है। लॉर्ड कर्जन का शासन काल भारतवासियों की दृष्टि से बहुत दुखमय, दमनकारी और कष्टपूर्ण रहा। परंतु लॉर्ड कर्जन के लिए यह शासनकाल बहुत अनुकूल तथा सुख कारी रहा। उसने अपने शासनकाल के आरंभ तथा मध्य में मनमाना शासन किया तथा सुख भोगा। परंतु उसका अंत बहुत दुखमय हुआ। बंगाल-विभाजन के कारणों से भारतीय जनता का क्रोध झेलना पड़ा तो उधर ब्रिटिश साम्राज्य ने उस का इस्तीफा स्वीकार करके असीम दुख पहुंचाया। परंतु लॉर्ड कर्जन के समय में उत्पन्न असंतोष तथा कष्टकारी व्यवस्थाएं स्वयं लॉर्ड कर्जन के विपरीत हो गई। स्वयं लॉर्ड कर्जन को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। आम जनता को अपनी ईश्वर पर पूरा भरोसा था। जनता का ईश्वर के प्रति विश्वास फलीभूत हुआ और लॉर्ड साहब को जाना पड़ा। लेखक के अनुसार घमंडी शासक को यह घमंड होता है कि मैं जो भी की चाहता हूं कर सकता हूं लेकिन सुख दुख का वास्तविक सूत्रधार कोई शासक नहीं होता, बल्कि स्वयं परमात्मा होता है। वही किसी को उठाता है तो किसी को गिरता है।


3. इस बार मुंबई में उतरकर माइ लॉर्ड! आपने जो इरादे जाहिर किए थे, जरा देखिए तो उनमें से कौन-कौन पूरे हुए? आपने कहा था कि यहां से जाते समय भारतवर्ष को ऐसा कर जाऊंगा कि मेरे बाद आने वाले बड़े लाटों को बरसों तक कुछ करना ना पड़ेगा, बे कितने ही वर्षों सुख की नींद सोते रहेंगे। किन्तु बात उल्टी हुई। आपको स्वयं इस बार बेचैनी उठानी पड़ी है और इस देश में जैसी अशांति आप फैला चले हैं, उसके मिटाने में आप के पद पर आने वालों को ना जाने कब तक नींद और भूख हराम करना पड़ेगा। इस बार आपने अपना विस्तारा गर्म राख पर रखा है और भारतवासियों को गर्म तवे पर पानी की बूंदों की भांति नचाया है। आप स्वयं भी खुश न हो सके और यहां की प्रजा को सुखी न होने दिया, इसका लोगों में चित्त पर बड़ा ही दुख है।


संदर्भ - यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह के पाठ विदाई-संभाषण से लिया गया है। इसके लेखक श्री बालमुकुंद गुप्त जी हैं।


प्रसंग - इन पंक्तियों में लेखक ने लॉर्ड कर्जन के दूसरी बार भारत में वायसराय बनकर आने पर जनता से किए गए व्यवहार को वर्णित किया।


व्याख्या - इस गद्यांश में लेखक के अनुसार वे लॉर्ड कर्जन से पूछते हैं कि आपने भारत आकर जनता से जो वादे किए थे वह कितने पूरे किए। आपने सोचा था कि ऐसा काम कर देंगे कि आगे समय में आने वाले सभी शासकों को कोई परेशानी नहीं होगी। उन्हें लंबे समय तक कोई काम नहीं करना पड़ेगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ। आपने बंगाल - विभाजन का कठोर लोकविरोधी निर्णय ले लिया। इससे पूरे भारत में क्रांति, संघर्ष और अशांति की ज्वाला जल उठी। इस ज्वाला को शांत करने के लिए आने वाले अंग्रेज शासकों को अपनी नींद और भूख हराम करनी पड़ी। आपने भारतवासियों को कष्ट दिए और स्वयं भी कष्ट में आ गए। भारतवासी लॉर्ड कर्जन के भारत विरोधी रुख के कारण दुखी हुए। उन्हें इस बात का अफसोस है कि यह आदमी ना तो अपनी करतूतों से स्वयं सुखी हुआ, न इसने भारतवासियों को सुख से जीने दिया। इसी बात का आम जनता को बड़ा दुख है।


4. आप बहुत धीर-गंभीर प्रसिद्ध थे। उसे सारी धीरता-गंभीरता का आपने इस बार कौंसिल में बेकानूनी कानून पास करते और कन्वोकेशन वक्तृता देते समय दिवाला निकाल दिया। यह दिवाला तो इस देश में हुआ। उधर विलायत में आपके बार-बार इस्तीफा देने की धमकी ने प्रकाश कर दिया की जड़ हिल गई है। अंत में वहाँ भी आपको दिवालिया होना पड़ा और धीरता गंभीरता के साथ दृढ़ता को भी तिलांजलि देनी पड़ी। इस देश के हाकिम आप की ताल पर नाचते थे, राजा-महाराजा डोरी हिलाने से सामने हाथ बांधे हाजिर होते थे। आपके एक इशारे में प्रलय होती थी। कितने ही राज्यों को मट्टी के खिलौनों की बातें आप ने तोड़-फोड़ डाला। कितने ही मट्टी काट के खिलौने आपकी कृपा के जादू से बड़े-बड़े पदाधिकारी बन गए। आपके इस इशारे में इस देश की शिक्षा पायमाल हो गई, स्वाधीनता उड़ गई। बंग देश के सिर पर आरह रखा गया। आह! इतने बड़े माइ लॉर्ड का यह दर्जा हुआ कि फौजी अफसर उनके इच्छित पद पर नियत ना हो सका और उनको उसी गुस्से के मारे इस्तीफा दाखिल करना पड़ा, वह भी मंजूर हो गया। उनका रखाया एक आदमी नौकर न रखा, उल्टा उन्हीं को निकल जाने का हुक्म मिला।


संदर्भ - यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह के पाठ विदाई-संभाषण से लिया गया है। इसके लेखक श्री बालमुकुंद गुप्त जी हैं।


प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश लॉर्ड कर्जन द्वारा एक फौजी अफसर को अपनी इच्छा का पद दिलाने की सिफारिश करने तथा उनकी बात ना मानने पर इस्तीफा दिए जाने के समय का है।


व्याख्या - लॉर्ड कर्जन धीरता व गंभीरता के लिए प्रसिद्ध थे। कर्जन ने कौंसिल में बंगाल विभाजन जैसा गैरकानूनी कानून पास करवाया। दीक्षांत समारोह में भाषण देते समय उन्होंने भारत विरोधी बातें करें। इससे सारा भारत उनके विरुद्ध खड़ा हो गया। इस प्रकार भारत में उनकी स्थिति कमजोर पड़ गई। इंग्लैंड में उन्होंने छोटी सी जिद पर इस्तीफा दे देने की धमकी दे दी। इस इस्तीफे से ब्रिटिश सरकार को लगा कि यह भारत में कमजोर हो चुके हैं। इस प्रकार इंग्लैंड में भी वे शक्तिहीन सिद्ध हो गए और उन्हें अपनी धीरता, गंभीरता और मजबूती को छोड़ना पड़ा। लॉर्ड कर्जन भारत के अत्यंत प्रभावशाली वाइसराय थे। इस देश के सभी शासक उनके इशारों पर चलते थे। विभिन्न राजा-महाराजा उनका संकेत पाते ही हाथ जोड़कर उनके सामने आ खड़े होते थे। वे इशारा भी कर दें तो विनाश का दृश्य उपस्थित हो जाता था कितने ही राजाओं के राज्य उन्होंने छीन लिए, कितने लोगों को अपनी कृपा से बड़ा पदाधिकारी बना दिया। उन्होंने ही अपने प्रभाव से देश की शिक्षा-प्रणाली को नष्ट कर डाला, स्वतंत्रता को समाप्त कर दिया तथा बंगाल का विभाजन कर दिया परंतु इतना होने पर भी उनका यह हश्र हुआ कि लॉर्ड साहब ने अपने पसंद के आदमी को नौकरी देने की सिफारिश अपने बड़े अधिकारियों से की जिसे नहीं माना गया। नाम आने पर इस्तीफा देने की धमकी भी दी, जिसे ब्रिटिश सरकार ने स्वीकार कर लिया। साथ ही उनके द्वारा भर्ती किए गए आदमियों को भी नौकरी से निकाल दिया गया। 


5. क्या आंख बंद करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ ना सुनने का नाम ही शासन है ? क्या प्रिया की बात पर कभी गाना देना और उसको दबाकर उसकी मर्जी के विरुद्ध जिद्द से सब काम किए चले जाना ही शासन कहलाता है? एक काम तो ऐसा बतलाइए, जिसमें आपने जिद छोड़कर प्रजा की बात पर ध्यान दिया हो। कैसर और जार भी  घेरने-घोटने से प्रजा की बात सुन लेते हैं पर आप एक मौका तो बताइए, जिसमें किसी अनुरोध या प्रार्थना सुनने के लिए प्रजा के लोगों को आपने अपने निकट भटकने दिया हो और उनकी बात सुनी हो। नादिरशाह ने जब दिल्ली में कत्लेआम किया तो आसिफजहां के तलवार गले में डालकर प्रार्थना करने पर उसने कत्लेआम उसी दम रोक दिया। पर आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आपने जरा भी ध्यान नहीं दिया। इस समय आपकी शासन अवधि पूरी हो गई है तथापि बंग-विच्छेद किए बिना घर जाना आपको पसंद नहीं है! नादिर से बढ़कर आपकी जिद्द है।


संदर्भ - यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह के पाठ विदाई-संभाषण से लिया गया है। इसके लेखक श्री बालमुकुंद गुप्त जी हैं।


प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश बंगाल विभाजन के समय का है।


व्याख्या - गद्यांश के माध्यम से लेखक पूछता है कि शासन क्या है? बिना सोचे समझे आज्ञा देना, किसी की कोई बात ना सुनना, जनता की बात को न सुनकर उसके विरुद्ध जबरदस्ती सारे कार्य करना। क्या यही शासन है। कोई भी एक प्रजा हित का कार्य बताइए जो आपने किया हो। लॉर्ड कर्जन बहुत ही क्रूर वाइसराय था। लेखक ने लॉर्ड कर्जन की क्रूरता की तुलना जर्मन के शासक 'कैसर',रूस के तानाशाह 'जार' तथा ईरान के 'नादिरशाह' से की है। हालांकि इन शासकों ने प्रजा के अनुरोध पर अपने निर्णयों को बदल दिया था, परंतु लॉर्ड कर्जन ने बंगाल की आठ करोड़ जनता के गिड़गिड़ाने के बाद भी अपने अनन्यापूर्ण निर्णय को नहीं बदला। जिस वजह से बंगाल का विभाजन हो गया।


6. माई लॉर्ड! जिस प्रजा में ऐसे राजकुमार का गीत गाया जाता है, उसके देश से क्या आप भी चलते समय कुछ संभाषण करेंगे? क्या आप कह सकेंगे, "अभोग भारत! मैंने तो सोचा प्रकार का लाभ उठाया और तेरी बदौलत वह स्थान देखी जो, इस जीवन में असंभव है। तूने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा; पर मैंने तेरे बिगाड़ने में कुछ कमी न की। संसार के सबसे पुराने देश! जब तक मेरे हाथ में सकती थी, तेरी भलाई की इच्छा मेरे जी में न थी। अब कुछ शक्ति नहीं है, जो तेरे लिए कुछ कर सकूं। पर आशीर्वाद करता हूं कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से लाभ करें। मेरे बाद आने वाले तेरे गौरव को समझें।" आप कर सकते हैं और यह देश आपकी पिछली सब बातें भूल सकता है, पर इतनी उदारता माइ लॉर्ड में कहां?


संदर्भ - यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह के पाठ विदाई-संभाषण से लिया गया है। इसके लेखक श्री बालमुकुंद गुप्त जी हैं।


प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश लॉर्ड कर्जन के द्वारा भारत छोड़ते समय से लिया गया है।


व्याख्या - गद्यांश के माध्यम से लेखक लॉर्ड कर्जन से कहता है कि भारतवर्ष के लोग बहुत दयालु है। नरवरगढ़ में आश्रय पाने वाले राजकुमार ने वहां की जनता के बीच रहकर उनकी सेवा की, जिससे वहां की जनता उनकी प्रशंसा करते नहीं थकती। क्या आप भी कुछ भाषण देंगे और कहेंगे कि - हे भाग्यहीन भारत ! मैंने हर प्रकार से तुझे लूटा और उससे अपनी शान बढ़ाई जिसे वह कभी नहीं पा सकता था। मैंने भारतीयों का बहुत कुछ बिगाड़ा तथा भारत की भलाई नहीं की। भारत ने मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ा उसे पूरा मान-सम्मान दिया। विश्व के प्राचीन देश मेरे हाथ में ताकत होते हुए भी मेरे मन में तेरी कोई भी भलाई करने की इच्छा नहीं थी। अब यदि मैं तेरी भलाई करना चाहूं तो मेरे हाथ से ताकत जा चुकी है।

लेखक लॉर्ड कर्जन के मुंह से भारतवासियों के प्रति सद्भाव और भारत की महिमा का गुणगान चाहता है। वह चाहता है कि कर्जन जाते-जाते भारत के गौरवशील प्राचीन संस्कृति का

मान स्वीकारें तथा उसकी उन्नति के लिए कामना प्रकट करें। भारतवासी हृदय से अत्यंत करुणावान और क्षमावान हैं। वे लाख अत्याचार सहन करने के बावजूद अपने प्रति सद्भावना प्रकट करने वाले मनुष्य के सब दोष भूल जाते हैं तथा उसे क्षमा कर देते हैं।


पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर


पाठ के साथ -


प्रश्न 1. शिव शंभू की दो गायों की कहानी के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?


उत्तर - शिवशंभु की दो गायों के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि भारत के पशु हो या मनुष्य में अपने संगी-साथियों के साथ गहरा लगाव रखते हैं। चाहे वह आपस में लड़ते-झगड़ते भी हो, तो भी उनका परस्पर प्रेम अटूट होता है। एक दूसरे से विदा होते समय वे दुख अनुभव करते हैं। लेखक यह भी कहना चाहता है कि विदाई का समय करुणाजनक होता है।


प्रश्न 2. आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आपने जरा भी ध्यान नहीं दिया- यहां किस ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया गया है?


उत्तर - लेखक ने यहां बंगाल-विभाजन की ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया है। लॉर्ड कर्जन ने भारत में नित-प्रति होने वाली क्रांतिकारी घटनाओं का समाधान करने के लिए एक कूटनीतिक योजना बनाई। इसके अंतर्गत उसने बंगाल क्षेत्र का विभाजन करने की योजना बनाई। भारत की जनता कर्जन के कलुषित इरादों को समझ गई। आत: बंगाल की आठ करोड़ जनता ने तो बंग-भंग का पुरजोर विरोध किया है, पूरा भारत के विरुद्ध खड़ा हो गया। इससे घटना ने स्वतंत्रता-आंदोलन की चिंगारी को और अधिक भड़का दिया। 


प्रश्न 3. कर्जन को इस्तीफा क्यों देना पड़ गया?


उत्तर - कर्जन के इस्तीफा के दो कारण हैं - 1. बंग-भंग की योजनाओं को मनमाने ढंग से लागू करने के कारण सारे भारतवासी उसके विरुद्ध उठ खड़े हुए। इससे कर्जन की जड़े हिल गई।वह इंग्लैंड वापस जाने के बहाने खोजने लगा। 

2. कर्जन ने इंग्लैंड में एक फौजी अफसर को अपनी इच्छा से नियुक्त कराना चाहा। उसकी सिफारिश को अनसुना कर दिया गया। इससे क्षुब्ध होकर उसने इस्तीफा देने की धमकी दी। ब्रिटिश शासन ने उसका इस्तीफा ही मंजूर कर लिया।


प्रश्न 4. विचारिए तो, क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गई! कितने ऊंचे होकर आप कितने नीचे गिरे! आशय स्पष्ट कीजिए।


उत्तर - लॉर्ड कर्जन को भारत में जैसा मान-सम्मान और जैसी शान-शौकत भोगने को मिली, वैसी किसी भी अन्य शासक को नहीं मिली होगी। दिल्ली दरबार में उसकी कुर्सी सोने की थी। उसका हाथी जुलूस में सबसे आगे और ऊंचा चलता था। उसे सम्राट एडवर्ड के भाई से भी अधिक सम्मान मिला। उसके एक इशारे पर देश के धनी-मानी लोग और राजा-महाराजा हाथ बांधे खड़े रहते थे। उसने अपने संकेत भर से बड़े-बड़े राजाओं को मिट्टी में मिला दिया और अनेक निकम्मों को आसमान तक ऊंचा उठा दिया। कहां तो उसकी ऐसी ऊंची आन-बान थी और कहां, ऐसी हालत हो गई है कि एक अदना-सा-फौजी-अफसर भी उसकी सिफारिश पर नहीं रखा गया, उल्टे उसी का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया।


प्रश्न 5. आपके और यहां के निवासियों के बीच कोई तीसरी शक्ति भी है- यहां तीसरी शक्ति किसे कहा गया है?


उत्तर - यहां 'ईश्वर' को तीसरी शक्ति कहा गया है। उसकी शक्ति के आगे न तो लॉर्ड कर्जन का जोर चल सकता है, न भारतीय जनता का। उसी की इच्छा के अनुसार दुनिया का संचालन होता है।


पाठ के आस-पास -


प्रश्न 1. पाठ का यह अंश शिवशंभू के चिट्ठे से लिया गया है। शिवशंभू नाम की चर्चा पाठ में भी हुई है। बालमुकुंद गुप्त ने इस नाम का उपयोग क्यों किया होगा?


उत्तर - 'शिवशंभू' बालमुकुंद गुप्त द्वारा प्रयुक्त एक काल्पनिक नाम है। यह पात्र सदा भांग के नशे में मस्त रहता है तथा सबके सामने खरी-खरी बातें कहता है। यह पोल खोलने वाला पात्र है। 

  लेखक ने अंग्रेजी सरकार के कारनामों की पोल खोलने के लिए पात्र की कल्पना की होगी। लेखक ने यह भी सोचा होगा कि व्यंग्य-कार्टून की तरह, या ' बुरा ना मानो होली है' की तरह, वह इस भांग पीने वाले पात्र की आड़ में वह सुरक्षित भी रह सकेगा। इस तरह पात्र भी लोकप्रिय होगा, शैली भी रोचक होगी और व्यंग्य की चोट भी गहरी हो सकेगी।


प्रश्न 2. नादिर से भी बढ़कर आपकी जिद्द है - कर्जन के संदर्भ में क्या आपको यह बात सही लगती है? पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।


उत्तर - जी हां, कर्जन की जिद्द नादिर से भी बढ़कर थी। एक शासक के नाते उसका कर्तव्य बनता था कि वह जन-भावनाओं का आदर करे। वह जनता की इच्छाओं का सम्मान करें तथा सदा उसके हित की सोचे। इसके विपरीत कर्जन इस देश को मनमाने ढंग से चलाना चाहता था। बंगाल के आठ करोड़ लोगों ने उसके सामने गिड़गिड़ाकर प्रार्थना की कि बंगाल का विभाजन न किया जाए। किंतु उसके कानों पर जूं भी नहीं रेंगी। इससे अच्छा और उदार तो नादिरशाह जिसने आसिफजहां द्वारा क्षमा मांग लिए जाने पर तत्काल कत्लेआम रोक दिया था।


प्रश्न 3. क्या आंख बंद करके मनमाने हुक्म चलाना किसी की कुछ ना सुनने का नाम ही शासन है? इन पंक्तियों को ध्यान में रखते हुए शासन क्या है? इस पर चर्चा कीजिए।


उत्तर - लॉर्ड कर्जन ने अपने शासनकाल में प्रजा के हितों को ध्यान में नहीं रखा बल्कि उसने मनमाना हुक्म चलाकर शासन किया था। इन पंक्तियों को ध्यान में रखते हुए शासन उसे कहते हैं कि जिस में प्रजा की मर्जी के विरुद्ध शासक के जिद के अनुसार कानून बनाया जाता है। जनता के अनुरोध या प्रार्थना सुनने के लिए उन्हें अपने पास भी भटकने ना दिया जाता हूं।


प्रश्न 4. इस पाठ में आए अलिफ लैला, अलहदीन, अबुल हसन और बगदाद के खलीफा के बारे में सूचना एकत्रित कर कक्षा में चर्चा कीजिए।


उत्तर - छात्र स्वयं करें।


पद्य खण्‍ड 

Chapter - 1 कबीर

Chapter - 2 मीरा

Chapter - 3 पथिक

Chapter - 4 वे आँखें

Chapter - 5 घर की याद

Chapter - 6 चंपा काले अक्षर नहीं चीन्‍हती

Chapter - 7 गज़ल

Chapter - 8 अक्‍कमहादेवी

Chapter - 9 सबसे खतरनाक

Chapter - 10 आओ मिलकर बचाएं


गद्य खण्‍ड 

अध्याय - 1 नामक का दारोगा

अध्‍याय – 2 मियाँ नसीरूद्दीन


अध्याय – 3 अपू के साथ ढाई साल


अध्याय – 4 विदाई-संभाषण 


अध्याय – 5 गलता लोहा 


अध्याय – 6 स्‍पीति में बारिश


अध्याय – 7 रजनी


अध्याय – 8 जामुन का पेड़


अध्याय – 9 भारत माता 


अध्याय – 10 


वितान  

अध्याय - 2 राजस्थान की रजत बूंदें


अध्याय - 3 आलो आंधारि


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