class 11th hindi chapter 3 apu ke sath dhai saal question answer//chapter - 3 अपू के साथ ढाई साल
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अध्याय - 3
अपू के साथ ढाई साल - सत्यजित राय
1. सुबह शूटिंग शुरू करके शाम तक हमने सीन का आधा भाग चित्रित कर किया। निर्देशक, छायाकार, छोटे अभिनेता - अभिनेत्री हम सभी इस क्षेत्र में नवागत होने के कारण थोड़े बौराए हुए थे, बाकी का सीन बाद में चित्रित करने का निर्णय लेकर हम घर पहुंचते। सात दिन बाद शूटिंग के लिए उस जगह गए, तो वह जगह हम पहचान ही नहीं पाए। लगा,ये कहाँ आ गए हैं हम? कहां गए वे सारे काशफूल। बीच के सात दिनों में जानवरों ने वे सारे काशफूल खा डाले थे। अब अगर हम उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल कैसे बैठता? उसमें 'कंटिन्यूटी' नदारद हो जाती। उस सीन के बाकी अंश की शूटिंग हमने उसके अगले साल शरद ऋतु में जब मैदान काशफूलों से भर गया, तब की।
संदर्भ - यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' के पाठ 'अपू के साथ ढाई साल' से लिया गया है। इसके लेखक सत्यजीत राय हैं।
प्रसंग - जब फिल्म निर्माता फिल्म की शूटिंग नए स्थान पर करता है उसे वहां अनेक प्रकार की कठिनाइयां आती हैं। स्थान से परिचय न होने के कारण हर काम की जगह तय नहीं होती। दृश्य कहां से शुरू होगा, कैमरे वाला और तकनीशियन कहां बैठेंगे- यह तय नहीं हो पाता। उदाहरण गांववासी कुतूहल के कारण आसपास आ धमकते हैं। उनसे निपटना बहुत कठिन होता है। इस कारण फिल्म-निर्माता प्रायः बौराए हुए से रहते हैं।
व्याख्या - फिल्म के निर्देशक, फोटोग्राफर और हीरो-हीरोइन नए होने के कारण घबराए हुए हैं। आत: हमने सुबह से शूटिंग शुरू करके उस दिन सीन का आधा भाग चित्रित कर बाकी का सीन अगले सप्ताह चित्रित करने का निर्णय कर हम घर पहुंच गए। अगले सप्ताह जब शूटिंग के लिए पहुंचे तब बड़ी कठिनाई सामने आई। हमने देखा कि उस स्थान पर लगे सारे काशफूल गायब है। उन्हें जानवर खा गए थे। इससे वहां की दृश्यावली बदल गई। अगर हम आधे बचे सीने को वहां चित्रित करते हैं तो पहले सीन का मेल उससे नहीं बैठ पाता। जिससे फिल्म में निरंतरता नहीं बैठ पाती। परिणाम स्वरूप उस सीने की आधी शूटिंग अगले वर्ष शरद ऋतु के मौसम में जब दोबारा काशफूल आ गए तब की।
2. पैसों की कमी के कारण ही बारिश का दृश्य चित्रित करने में बहुत मुश्किल आई थी। बरसात के दिन आए और गए, लेकिन हमारे पास पैसे नहीं थे, इस कारण शूटिंग बंद थी। आखिर जब हाथ में पैसे आए, तब अक्टूबर का महीना शुरू हुआ था। शरद ऋतु में, निरभ्र आकाश के दिनों में भी शायद बरसात होगी, इस आशा से मैं अपू और दुर्गा की भूमिका करने वाले बच्चे, कैमरा और तकनीशियन को साथ लेकर हर रोज देहात में जाकर बैठा रहता था। आकाश में एक भी काला बादल दिखाई दिया, तो मुझे लगता था कि बरसात होगी। मैं इच्छा करता, वह बादल बहुत बड़ा हो जाए और बरसने लगे।
संदर्भ - यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' के पाठ 'अपू के साथ ढाई साल' से लिया गया है। इसके लेखक सत्यजीत राय हैं।
प्रसंग - फिल्म निर्माण के समय आने वाली बाधाओं को बताया गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि फिल्म निर्माता को भी प्रकृति पर निर्भर रहना पड़ता है।
व्याख्या - लेखक के अनुसार, फिल्म निर्माता को बारिश का दृश्य फिल्माने में काफी मुश्किल आई। धन की तंगी के कारण फिल्म निर्माता बारिश के दिनों में मनचाहे दृश्य शूट नहीं कर सका और उन्हें फिल्म की शूटिंग बंद करनी पड़ी। बाद में जब पैसों का प्रबंध हुआ, तब बारिश नहीं थी। शरद ऋतु थी। इस ऋतु में आसमान साफ रहता है फिर भी हम साफ आसमान को देखकर आश लगाए हुए थे। कलाकार बच्चों, कैमरा और तकनीशियन को साथ लेकर देहात में जाकर बैठा रहता था। आकाश में बादल को देखने के लिए उसका मन विचलित हो जाता था। उसे आसमान में एक छोटा काला बादल भी दिख जाता था तो वह सोचता था कि यह बादल बड़ा हो जाए और बरसात होने लगे। लेकिन बरसात नहीं होती। इस तरह से अनेक दिन प्रतीक्षा में बिताने पड़े।
3. एक दिन शॉट के मैंने साउंड के बारे में उनसे सवाल किया, लेकिन कुछ भी जवाब नहीं आया। फिर एक बार पूछा, 'भूपेन बाबू, साउंड ठीक है न?' इस पर भी कोई जवाब न आने पर मैं उनके कमरे में गया, तो देखा कि एक बड़ा सा सांप उस कमरे की खिड़की से नीचे उतर रहा था। वह साँप देखकर भूपेन बाबू सहम गए थे और उनकी बोलती बंद हो गई थी।
वह सांप हमने वहां आने पर कुछ ही दिनों के बाद देखा था। उसे मार डालने की इच्छा होने पर भी स्थानीय लोगों के मना करने के कारण उसे मार नहीं सके वह 'वास्तुसर्प' था और बहुत दिनों से वहाँ रह रहा था।
संदर्भ - यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' के पाठ 'अपू के साथ ढाई साल' से लिया गया है। इसके लेखक सत्यजीत राय हैं।
प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में बताया गया है कि साउंड रिकॉर्डिस्ट भूपेन बाबू सांप को देखकर किस प्रकार डर गए थे। इसका उल्लेख दिया है।
व्याख्या - लेखक के अनुसार, उन्होंने शॉट पूरा होने के बाद जब भूपेन बाबू से पूछा कि शॉट में आवाज तो ठीक रिकॉर्ड हुई है। परंतु भूपेन बाबू ने इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया। यही बात दोबारा पूछने पर भी कोई जवाब नहीं आया इसका कारण यह था कि जब मैं उनके कमरे में गया तो सामने वाली खिड़की के सहारे एक सांप नीचे की तरफ उतर रहा था। उसे देखकर भूपेन बाबू बुरी तरह डर गए थे उनके मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी। वहां आने के कुछ दिन बाद ही यह साँप हमने देखा था हमें उसे मारने की इच्छा हुई परंतु वहां के स्थानीय लोगों ने बताया कि वह सामान्य साफ नहीं है बल्कि कुलदेवता हैं। इसे बांग्ला में वास्तुसर्प कहते हैं। आत: हमने चाहते हुए भी उसे नहीं मारा।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
पाठ के साथ -
प्रश्न 1. पथरे पांचाली फिल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक क्यों चला।
उत्तर - पथरे पांचाली फिल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक इसलिए चला क्योंकि यह लेखक 'सत्यजित राय' की पहली फिल्म थी, उस समय लेखक जो कि फिल्म में निर्देशक थे, एक विज्ञापन कंपनी में कार्य करते थे, उनके पास समय व धन दोनों का अभाव था। कुछेक ऐसी परिस्थितियां थी, जिनके कारण इस फिल्म में ढाई साल लगे, उदाहरणतया काशफूलों का सप्ताह में समाप्त हो जाना, कुत्ते का मर जाना। पुनः नए कुत्ते को खोजना, श्रीनिवास नामक मिठाई वाले का मर जाना, मिठाई वाले की भूमिका के लिए नया श्रीनिवास खोजना, वर्षा का समय समाप्त हो जाने, वर्षाकालीन शॉट के लिए वर्षा की प्रतीक्षा करना आदि।
प्रश्न 2. अब अगर हम उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते, तो पहले आधे थी उनके साथ उसका मेल कैसे बैठता? उनमें से थे कंटिन्यूटी नदारद हो जाती है- इस कथन के पीछे क्या भाव है?
उत्तर - इस कथन के पीछे भाव यह है कि कोई भी फिल्म दृश्य हमें तभी प्रभावित करता है जब उसमें आपस में मेल बैठे। उसके अगले और बाद वाले अंस में एक निरंतरता हो। इसी से दृश्य स्वाभाविक बना रहता है और विश्वसनीय बनता है। यदि किसी दृश्य का पहला अंस कुछ और तथा पिछला अंस और हो दर्शक को वह दृश्य नकली प्रतीत होने लगता है।
प्रश्न 3. किन दो दृश्यों में दर्शक यह पहचान नहीं पाते कि उनकी शूटिंग में कोई तरकीब अपनाई गई है?
उत्तर - कुत्ते और श्रीनिवास नामक पात्र के दृश्यांक में दर्शक यह नहीं पहचान पाते कि इनमें किसी तरकीब को अपनाया गया है। भूलो नामक कुत्ता आधे दृश्यांक उसके बाद मर गया। अतः उसकी जगह उससे मिलता-जुलता एक और कुत्ता लाया गया। शेष उस पर शूट किया गया। लेखक ने यह दृश्य इतनी कुशलता से अंकित किया कि दर्शक कुत्तों के अंतर को नोट नहीं कर पाए।
श्रीनिवास नामक पात्र को मिठाई बेचने वाले की भूमिका दी गई। वह भी आधे सीन के बाद चल बसा। उसकी जगह जिस पात्र को ढूंढा गया वह डील डोल में तो श्रीनिवास जैसा था परंतु उसका चेहरा अलग प्रकार का था। इसलिए दूसरे दृश्य में उसकी पीठ दिखा कर काम चलाया गया। यह तरकीब इतनी कारगर रही कि दर्शक पात्र के अंतर को नोट नहीं कर पाते।
प्रश्न 4. 'भूलो' की जगह दूसरा कुत्ता क्यों लाया गया? उसने फिल्म के किस दृश्य को पूरा किया?
उत्तर - 'भूलो' की भात खाने के दृश्य देने से पहले ही मृत्यु हो जाने के कारण दूसरा कुत्ता लाया गया। बीमा अपू की मां अपू को भात खिलाती है, भात का बचा अंश गमले में डाल देती है। इस बात को दूसरा कुत्ता खा कर दृश्य पूर्ण करता है।
प्रश्न 5. फ़िल्म में श्रीनिवास की क्या भूमिका थी और उनसे जुड़े बाकी दृश्यों को उनके गुजर जाने के बाद किस प्रकार फिल्माया गया?
उत्तर - फिल्म में श्रीनिवास की भूमिका घूमता हुआ मिठाई वाले की थी। उनके गुजर जाने के पश्चात एक ऐसे सज्जन मिले जिसका चेहरा पहले वाले श्रीनिवास से मिलता-जुलता नहीं था। लेकिन शरीर से वह पहले श्रीनिवास जैसा था। फिल्म में दिखाई देता है कि एक नंबर श्रीनिवास बोस बनकर बाहर आता है और अगले शॉट में दो नंबर श्रीनिवास कैमरे की ओर पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर जाता है। फिल्म देखते समय श्रीनिवास के मामले में यह बात किसी के ध्यान में नहीं आई।
प्रश्न 6. बारिश का दृश्य चित्रित करने में क्या मुश्किल हुई और उसका समाधान किस प्रकार हुआ।
उत्तर - बारिश का दृश्य चित्रित करने में मुश्किल यह आई कि, पैसों की कमी के कारण बारिश के दृश्य को वर्षा ऋतु में नहीं कर पाए। अतः वर्षा ऋतु निकल गई। लेखक काफी समय तक उस दृश्य को फिल्माने के लिए गांव में जाकर बरसात का इंतजार करता रहा। एक दिन आसमान में बादल छा गए और धुआंधार बारिश शुरू हो गई। उसी बारिश में अपू व दुर्गा के शॉट लिए गए। परंतु मारे ठंड के अपू व दुर्गा सिहर रहे थे। उन्हें दूध में ब्रांडी देकर उनका शरीर गर्म किया गया।
प्रश्न 7. किसी फिल्म की शूटिंग करते समय फिल्मकार को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है उन्हें सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर - 1.धन की समस्या, 2.समय का अभाव, 3.कलाकार ढूंढने की समस्या, 4.स्थान निर्धारित करना, 5.साधनों की समस्या, 6.वातावरण की समस्या, 7.पात्रों के अस्वस्थ होने की समस्या, 8.रहने के स्थान के पड़ोसियों का स्वभाव आदि अनेक ऐसी समस्याएं हैं जिनका फिल्म शूटिंग करते समय फिल्मकार को सामना करना पड़ता है।
पाठ के आस-पास -
प्रश्न 1. तीन प्रश्नों में राय ने कुछ इस तरह की टिप्पणियां किया है कि दर्शक पहचान नहीं पाते की… यह फिल्म देखते हुए इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया कि... इत्यादि? यह प्रसंग कौन से हैं, चर्चा करें और इस पर भी विचार करें कि शूटिंग के समय की असलियत फिल्म को देखते समय कैसे छुप जाती है।
उत्तर - यह तीन प्रसंग हैं -
1. कुत्ते के मरने के पश्चात कुत्ते की भूमिका दूसरे कुत्ते द्वारा निभाना।
2. श्रीनिवास मिठाई वाले की मृत्यु के पश्चात दूसरे व्यक्ति द्वारा श्रीनिवास की भूमिका निभाना।
3. रेलगाड़ी के सीन में तीन रेलगाड़ियों का इस्तेमाल करना।
इस प्रकार यह ऐसे प्रश्न हैं जिनके कारण शूटिंग के समय फिल्मकार को कई समस्याएं उत्पन्न हुई। फिर भी कला की विचित्रता के कारण फिल्म देखने वालों को असलियत का पता ही नहीं चलता। नए मिले कलाकारों जैसे- कुत्ता व श्रीनिवास के शॉट इतनी दक्षता से लिए गए हैं कि फिल्म देखने वालों से असलियत छिपी रहती है। फिल्म देखने वाले से असलियत इसीलिए भी छप जाती है क्योंकि हर फिल्म देखने वाला निर्माता नहीं होता। उसमें यह शक्ति नहीं होती कि इस तरह की त्रुटि ढूंढ पाए।
प्रश्न 2. मान लीजिए कि आप को अपने विद्यालय पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनानी है? किस तरह की फिल्म में आप किस तरह के दृश्यों को चित्रित करेंगे। फिल्म बनाने से पहले और बनाते समय किन बातों पर ध्यान देंगे।
उत्तर - छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 3. पथेर पांचाली फिल्म में इंदिरा ठाकरून की भूमिका निभाने वाली अस्सी साल की चुन्नीबाला देवी ढाई साल तक काम कर सकीं। यदि आधी फिल्म बनने के बाद चुन्नी बाला देवी की अचानक मृत्यु हो जाती तो सत्यजित राय क्या करते? चर्चा करें।
उत्तर - यदि आधी फिल्म बनाने के बाद चुन्नी बाला देवी की अचानक मृत्यु हो जाती तो सत्यजित राय अन्य कलाकारों (श्रीनिवास मिठाई वाले, कुत्ते) की भांति एक अन्य चुन्नीबाला देवी जैसी दिखने वाली स्त्री का चयन करके अपनी फिल्म पूरी करते। सत्यजित राय कार्यकुशल, दक्ष व धैर्य रखने वाले, कला में निपुण कलाकार रहे हैं। वे किसी भी कार्य को सूझबूझ से करने में निपुण है। वे अपनी फ़िल्म के हर दृश्य को बहुत सावधानी से पूरा करते हैं।
प्रश्न 4. पाठ एक पाठ के आधार पर यह कह पाना कहां तक उचित है कि फिल्म को सत्यजित राय एक कला-माध्यम के रूप में देखते हैं, व्यवसायिक माध्यम के रूप में नहीं?
उत्तर - यदि सत्यजित राय एक व्यवसायिक माध्यम के रूप में फिल्म को देखते तो फिल्म के प्रारंभ में ही वे अर्थाभाव से न जूझते, ना ही इतनी मुसीबतों को झेलते जैसे शरद ऋतु में वर्षा का दृश्य प्रस्तुत करना, बॉलीवुड का प्रशिक्षित कुत्ता ना ले पाना कितनी बार आधे सीन की शूटिंग करना आदि।
सत्यजित कला के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुके हैं। वे कला को साधना मानते हैं, पैसा कमाने का साधन नहीं। इसीलिए इतनी साधन हीनता के बीच भी वे अपनी कला दृष्टि को साकार करने का हर संभव संघर्ष करते हैं।
अतः हम कह सकते हैं कि सत्यजीत राय फिल्म को एक कला माध्यम के रूप में देखते हैं न कि व्यवसायिक माध्यम के रूप में।
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