mp board class 11th Hindi chapter 2 solution// मियॉं निसारूद्दीन पाठ के प्रश्न उत्तर

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class 11th hindi chapter 2 miya nasiruddin question answer//chapter - 2 मियॉं निसारूद्दीन

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अध्‍याय 2

                            मियॉं निसारूद्दीन - श्रीमतिकृष्‍णासोबती

1 साहबों, उस दिन आपन मटियामहल की तरफ से गुज़र जाते तो राजनीति साहित्‍य और कला के हज़ारों-हज़ार मसीहों के धूम-धड़क्‍के में नानबाइयों के मसीहा मियाँ नसीरूद्दीन को कैसे तो पहचानते और कैसे उठाते लुत्‍फ उनके मसीहा अंदाज़ का। 

    हुआ यह कि हम एक दुपहरी जामा मस्जिद के आड़े पड़े मटियामहल के गढ़ैया मुहल्‍ले की ओर निकल गए। एक निहायत मामूली अँधेरी-सी दुकान पर पटापट आटे का ढेर सनते देख ठिठके। सोचा, सेवइयों की तैयारी होगी, पर पूछने पर मालूम हुआ खानदानी बानबाई मियँ नसीरूद्दीन की दुकान पर खड़े हैं। मियाँ मशहूर हैं छप्‍पन किस्‍म की रोटियाँ बनाने के लिए।

सन्‍दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहके पाठ मियॉं नसीरूद्दीनसे लिया गया है। इसकी लेखिका श्रीमति कृष्‍णा सोबती हैं।

प्रसंग –  प्रस्‍तुत पंक्तियों में लेखिका ने नसीरूद्दीन के मसीही अंदाज़ को बतलाया है।

व्‍याख्‍या- दोस्‍तों यदि हम मटियामहल की ओर नहीं निकलते तो राजनीति, साहित्‍य और कला संरक्षकों की भीड़ में नानबाई के कुशल कारीगर नसीरूद्दीन को नहीं पहचान पाते और न ही उनके मसीही अंदाज का मजा ले पाते। नसीरूद्दीन की दुकान जामा-मस्दि क्षेत्र में मटियामहल के गढ़ैया मुहल्‍ले में थी। य‍द्यपि वह छप्‍पन किस्‍म की रोटियाँ बनाने के लिए प्रसिद्ध था, परन्‍तु उसकी दुकान बहुत साधारण, छोटी तथा अँधेरी- सी थी। वहाँ पर बहुत सारा गूँथे जाते हुए सोचा कि यह सिवईयों के लिए होगा, परन्‍तु वह रोटी के लिए था। इसलिए उन्‍हें खानदानी नानबाई कहा जाता है। नसीरूद्दीन मसीहा था। क्‍योंकि वह छप्‍पन प्रकार की रोटी पकाने की कला में कुशल था। उसका बात करने का ढंग भी कुशल कारीगरों जैसा था। ऐसे मसी‍हा की दुकान प्रसिद्ध जगह न होते हुए गली में थी।

2 मियाँ नसीरूद्दीन ने पंचहज़ारी अंदाज़ से सिर हिलाया – निकाल लेंगे वक्‍त थोड़ा, पर यह तो कहिए, आपको पूछना क्‍या है ? फिर घुरकर देखा और जोड़ा- मियाँ, कहीं अखबारनवीस तो नहीं हो? यह तो खोजियों की खुराफात है। हम तो अखबार बनाने वाले  और अखबार पढ़ने वाले- दोनों को ही निठल्‍ला समझते हैं। हाँ- कामकाजी आदमी को इससे क्‍या काम है। खैर, आपने यहाँ तक आने की तकलीफ उठाई ही है तो पूछिए- क्‍या पूछना चाहते हैं।

सन्‍दर्भ- यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोह’ के पाठ मियॉं नसीरूद्दीन’ से लिया गया है। इसकी लेखिका श्रीमति कृष्‍णा सोबती हैं।

प्रसंग- प्रस्‍तुत गद्यांश मेें मियाँ नसीरूद्दीन और अखबारनवीस के बीच वार्ता का उल्‍लेख दिया है।

व्‍याख्‍या – लेखिका ने मियाँ नसीरूद्दीन से प्रश्‍न पूछने के लिए कुछ समय माँगा तो मियाँ नसीरूद्दीन ने पंचहज़ारी अंदाज़ अर्थात् बडे सेनापतियों के अंदाज़ जिनकी चाल-ढाल और बोल- चाल में अकड़ और आत्‍मविश्‍वास होता था, उत्तर दिया कि आपको पूछना क्‍या है? मियाँ नसीरूद्दीन उन्‍हें घूरकर देखते हैं, फिर विन्रम भाव से पूछते हैं कि कहीं तुम अखबारनबीस अर्थात पत्रकार तो नहीं हो। अक्‍सर ऐसा होता है कि पत्रकार कहीं भी जाकर किसी से भी कुछ पूछकर अपने अखबारों में बिना सोचे समझते कुछ भी छाप देते हैं। मैं तो अखबार छापने वालों को ही नहीं, अखबार पढ़ने वालों को भी निठल्‍ला मानता हूँ। जो व्‍यक्ति कामकाज करते हैं उन्‍हें अखबारों के लिए कोई समय नहीं है। फिर भी आप बताइए, आप यहाँ तक आई हैं। आपने यहाँ आने का कष्‍ट उठाया, पूछिए आपको हमसे क्‍या पूछना है?


3. मियाँ नसीरुद्दीन ने आंखों के कंचे हम पर फेर दिए। फिर तरेरकर बोले- ' क्या मतलब? पूछिए साहब नानबाई इल्म लेने कहीं और जाएगा? क्या नगीनासाज के पास? क्या आईनासाज के पास? क्या मीनासाज के पास? या रफूगर, रंगरेज या तेली-तंबोली से सीखने जाएगा? क्या फरमा दिया साहब- यह तो खानदानी पेशा ठहरा। हां, इल्म की बात पूछिए तो जो कुछ भी सीखा, अपने वाले उस्ताद से ही। मतलब यह कि हम घर से निकले कि कोई पेशा अख्तियार करेंगे। जो बाप-दादा का हुनर था वही उनसे पाया और वालिद मरहूम के उठ जाने पर आ बैठे उन्हीं के ठीये पर!'


संदर्भ - यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' के पाठ 'मियाँ नसीरुद्दीन' से लिया गया है। इसकी लेखिका श्रीमती कृष्णा सोबती है।


प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में लेखिका ने पूछा कि उन्होंने नानबार्ड का काम कहां से प्राप्त किया, तो मियां लेखिका को अपने अंदाज में उत्तर देते हैं।


व्याख्या - लेखीका के अनुसार, उनके द्वारा पूछा गया प्रश्न बहुत ही सरल था, किंतु यह नसीरुद्दीन के लिए बेतुका था। इसलिए वह आंखें तरेरकार यह कहना चाहता है कि क्या यह भी पूछने योग्य प्रश्न है? यह तो स्वयं स्पष्ट है कि उसने किसी नानबाई से यह काम सीखा है। उन्होंने कहा नानबाई सीखने कहीं और जाएगा। क्या? नगीनासाज के पास, मीना साज के पास,रफूगर, रंगरेज या तेली-तंबोली से सीखने जाएगा क्या? अर्थात जो भी कार्य सीखना होता है, उसी के कार्य दक्ष के पास ही जाकर सीखा जा सकता है। हम तो खानदानी नानबाई हैं अर्थात हमारे बाप-दादा यही कार्य करते थे। हम अपने घर से किसी और कार्य को सीखने के लिए निकले ही नहीं। हम अपने पिता के कार्य को सीखकर उनकी मृत्यु के उपरांत उन्हीं की बनाई हुई जगह पर बैठ गए।


4. मियाँ कुछ देर सोच में खोए रहे। सोचा पकवान पर रोशनी डालने को है कि नसीरुद्दीन साहिब बड़ी रुखाई से बोले- ' यह  हम ना बतावेंगे। बस आप इतना समझ लीजिए कि एक कहावत है ना कि खानदानी नानबाई कुएं में भी रोटी पका सकता है। कहावत जब भी गड़ी गई हो, हमारे बुजुर्गों के करतब पर ही पूरी उतरती है।'

   मजा लेने के लिए टोका- 'कहावत यह सच्ची भी है कि…।' 

   मियां ने तरेरा- 'और क्या झूठी है? आप ही बताइए, रोटी पकाने में झूठ का क्या काम! झूठ में रोटी पकेगी? क्या पक्की देखी है कभी! रोटी जनाब पकती है आंच से, समझे!'


सन्दर्भ - यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' के पाठ 'मियाँ नसीरुद्दीन' से लिया गया है। इसकी लेखिका श्रीमती कृष्णा सोबती है।


प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में मियाँ नसरुद्दीन लेखिका को अपने खानदान और अपने हुनर के बारे में बताते हैं।


व्याख्या - लेखिका के पूछने पर मियाँ थोड़ी देर सोचने लगे कि पकवान के बारे में जाने तभी नसीरुद्दीन ने रुखेपन से कहा कि हम पकवान के बारे में नहीं बताएंगे। इस बारे में नसीरुद्दीन ने कहावत कही की खानदानी नानबाई कुएं में भी रोटी पका सकता है। यह कहावत जब भी गढ़ी गई हो, हमारे बुजुर्गों पर ही पूरी उतरती है। यह सुनते ही लेखिका ने इस  कहावत के बारे में संदेह प्रकट किया। संदेह की बात सुनते ही नसरुद्दीन तुनक उठा।  तब उसने आंखे तरेरकर तीखा जवाब दिया।  क्या आपको यह बात झूठी लगती है। रोटी पकाने में झूठ काम नहीं आएगा। रोटी आज से पकती है। झूँठ से नहीं।


5. मन में आया पूछ ले आपके बेटे-बेटियां हैं पर  मियां नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अंधड़ के आसार देख यह मंजूमन न छेढ़ने का फैसला किया। इतना ही कहा- 'यह कारीगर लोग आपकी शागिर्दी करते हैं।'

   'खाली शागिर्दी ही नहीं साहिब, गिनके मजूरी देता हूं। दो रुपये मन आटे की मजूरी। चार रुपये मन मैदे की मजूरी!हाँ!'


सन्दर्भ - यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' के पाठ 'मियाँ नसीरुद्दीन' से लिया गया है। इसकी लेखिका श्रीमती कृष्णा सोबती है।


प्रसंग - प्रस्तुत  गद्यांश में मियाँ नसीरुद्दीन द्वारा बेटे -बेटियों से संबंधित प्रश्न टालने व अपने कर्मचारियों के साथ व्यवहार को दर्शाया गया है।


व्याख्या - लेखिका ने सोचा कि नसीरुद्दीन से उनके बेटे बेटियों के बारे में पूछे। परंतु उन्होंने सोचा कि उसकी बातों से और प्रश्नों से मियाँ नसीरुद्दीन को झल्लाहट होने लगी है। अब वह अपने काम में लगना चाह रहा है। काम का समय जानकर उसने बेटे-बेटियों का प्रसंग में छोड़ दिया। बस इतना ही कहा कि क्या यह कारीगर आपके शिष्य हैं तब मियाँ नसीरुद्दीन ने कहा कि वे कर्मचारियों से मुफ़्त सेवा नहीं लेते थे। भी उन्हें अच्छी मजदूरी भी देते हैं जैसे कि एक मनाने की मजदूरी दो रुपए और एक मन में दिखी मजदूरी चार रुपए साथ ही उन्हें काम भी सिखाते हैं।


6.फिर तेवर चढ़ा हमें घूरकर कहा- 'तुनकी पापड़ से ज्यादा महीन होती है। हाँ । किसी दिन खिलाएंगे, आपको।'

   एकाएक मियाँ की आंखों के आगे कुछ कौंध गया। एक लंबी सांस भरी और किसी गुमशुदा याद को ताजा करने को कहा- ' उतर गए हुए जमाने। और गए हुए कद्रदान जो पकाने-खाने की कद्र करना जानते थे! मियाँ अब क्या रखा है… निकाली तंदूर से- निकली और हज़म।'


संदर्भ - यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह' के पाठ 'मियाँ नसीरुद्दीन' से लिया गया है। इसकी लेखिका श्रीमती कृष्णा सोबती है।


प्रसंग - प्रस्तुत गद्यांश में तुनकी रोटी तथा कला की कद्र न करने वालों का उल्लेख किया गया है।


व्याख्या - लेखिका के अनुसार तुनकी एक विशेष प्रकार की रोटी का नाम है। मियां नसीरुद्दीन ने हमें घूरकर कहा- यह पापड़ से अधिक पतली होती है और किसी दिन आपको हम जरुर खिलाएंगे। उनके दिमाग में अचानक एक बात प्रकट हुई। उन्होंने अपनी कुछ पुरानी यादों को ताजा किया और सोचते हुए बोला कि मियां वो जमाने चले गए जब लोग कला की कद्र करना जानते थे। आजकल लोग रोटी बनाने की कला के कद्रदान नहीं रहे। आजकल लोग बस पेट भरने लगे हैं। वे तंदूरी रोटी खा कर संतुष्ट हो जाते हैं।


पाठ के साथ - 


प्रश्न 1. मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा क्यों कहा गया है? 


उत्तर - नानबाइयों का अर्थ है - तरह-तरह की रोटी बनाने एवं बेचने वाले। मियां नसीरुद्दीन को नानबाई का मसीहा इसीलिए कहा गया है क्योंकि वह खानदानी नानबाई थे। उनके पिता बरकत शाही नानबाई गढ़ैया वाले के नाम से बाबा दादासाहेब मियां कल्लन के नाम से प्रसिद्ध थे। वे छप्पन प्रकार की रोटियां बना सकते थे। वे रोटी बनाने को एक कला मानते थे और इस कला के वे उस्ताद थे। अपने काम में आत्मविश्वास से भरे थे।


प्रश्न 2. लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास क्यों गई थी?


उत्तर - लेखिका साहित्यकार हैं। उनकी रूचि ऐसे व्यक्ति को जानने में है जो सामान्य व्यक्ति ना होकर विशेष हो। मियाँ नसीरुद्दीन को रोटी पकाने की कला में महारत हासिल है। वे अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं। ऐसे व्यक्ति के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव को जानने के लिए लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास गई।


प्रश्न 3. बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी?


उत्तर - मियां नसीरुद्दीन ने लेखिका को बताया कि हमारे बुजुर्गों ने ऐसा पकवान बनाया जिसे बादशाह ने खूब खाया और खूब सराहा। तो लेखिका ने पूछा - किस बादशाह सलामत ने बहादुरशाह जफर या फिर……..। इतना सुनते ही मियां को लेखिका की बातों में दिलचस्पी खत्म होने लगे क्योंकि उसे लगा कि लेखिका तो ना जाने कैसे-कैसे प्रश्न पूछने लगे कि उनके मन में संदेह उत्पन्न हो गया, वे सोचने लगे कि ना जाने कौन सी ऐसी-ऐसी बातें पूछने लगे जो मुझे मालूम ना हो।


प्रश्न 4. मियाँ नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अंधड़ के आसार देख यह मजमून न छेड़ने का फैसला किया - इस कथन के पहले और बाद के प्रसंग का उल्लेख करते हुए इसे स्पष्ट कीजिए।


उत्तर - लेखिका ने बहुत से प्रश्नों का जवाब देते-देते जब नसीरुद्दीन में रुक गए तो उन्होंने लेखिका के प्रश्नों के उल्टे-सीधे जवाब देने प्रारंभ कर दिए। जब लेखिका ने अंतिम प्रश्न किया कि आपके वालिद किस बादशाह सलामत के यहां बावर्चीखाने में काम करते थे, तो मियाँ नसीरुद्दीन ने कहा - जहांपनाह बादशाह सलामत के और किसके? लेखिका ने सोचा कि पूछ ले आपके बेटे बेटियां कितने हैं, परंतु मियाँ नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अंधड़ के आसार देख यह मजूमन अर्थात इस विषय को छोड़ने का फैसला किया। लेखिका को लगा कि मियाँ बादशाह सलामत का नाम बताने में हिचक रहे हैं और हमारी सभी बातों या हमारे सभी प्रश्न उन्हें निरर्थक लग रहे हैं। अतः लेखिका ने शेष प्रश्न पूछने का विचार छोड़ दिया और पूछने लगी कि आपकी भट्टी में किस-किस तरह की रोटियां बनती हैं ? मियां ने बाकरखानी, शीरमाल, ताफतान बेसनी, खमीरी, गांव, दीदा, गाजेबान, तुनकी आदि बहुत सी रोटियों के नाम गिनवा डाले।


प्रश्न 5. पाठ में मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र लेखिका ने कैसे खींचा।


उत्तर - मियाँ नसीरुद्दीन ने स्वयं को खानदानी नानबाई बताते हुए पंचहजारी अंदाज में बात करते हैं। नानबाइयों के मसीहा मियाँ नसीरुद्दीन अंदर चारपाई पर बैठे बीड़ी का मजा ले रहे थे। मौसमों की मार से पका चेहरा आंखों में काइयाँ भोलापन और पेशानी पर मंजे हुए कारीगर के तेवर। इस प्रकार लेखिका ने बहुत ही सुंदर शब्दों में मियाँ नसीरुद्दीन का शब्द चित्र खींचा।


पाठ के आस-पास -


प्रश्न 1. मियाँ नसीरुद्दीन की कौन सी बातें आपको अच्छी लगी? 

उत्तर - मियाँ नसीरुद्दीन की निम्नलिखित बातें हमें अच्छी  लगी - 1. वे आत्मविश्वास से भरपूर हैं। वे जो भी बात करते हैं पूरे विश्वास से, जोर देकर और अदाकारी के साथ करते हैं।

2. वे पत्रकार या महिला को सामने देखकर भी घबराते या हकलाते नहीं। 3. वे अपने काम में गहरी रुचि लेते हैं। बातें करते हुए भी उनका ध्यान अपने काम पर पूरी तरह लगा रहता है। 4. वे किसी शागिर्द का शोषण नहीं करते। वे उन्हें पूरा सम्मान और वेतन देते हैं।


प्रश्न 2.  तालीम की तालीम ही बड़ी चीज होती है- यहां लेखिका ने तालीम शब्द का दो बार प्रयोग क्यों किया है?  क्या आप दूसरी बार आए तालीम शब्द की जगह कोई अन्य शब्द रख सकते हैं? लिखिए।


उत्तर - यहां लेखिका ने तालिम शब्द का प्रयोग दो बार किया है पहले 'तालीम' का अर्थ है शिक्षा या प्रशिक्षण। दूसरे 'तालीम' का अर्थ है पालन करना या आचरण करना। इसका अर्थ यह है कि जो शिक्षा पाई जाए, उसका पालन करना अधिक जरूरी है।

दूसरी बार आए तालीम शब्द की जगह हम पालन शब्द भी रख सकते हैं।


प्रश्न 3. मियां नसीरुद्दीन तीसरी पीढ़ी के हैं जिसने अपने खानदानी व्यवसाय को अपनाया। वर्तमान समय में प्रायः लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय को नहीं अपना रहे हैं। ऐसा क्यों ? 


उत्तर - वर्तमान समय में लोग प्रायः अपने पारंपरिक व्यवसाय को इसलिए नहीं अपना रहे हैं क्योंकि पारंपरिक व्यवसाय में धन लाभ के अवसर अपेक्षाकृत कम रहते हैं। आज के इस भौतिकवादी युग में सभी लोग ऐश्वर्य का जीवनयापन करना चाहते हैं, अधिकाधिक धनार्जन करके सुखी जीवन की कल्पना करते हैं। आज के समय में माता-पिता का अंकुश सहन नहीं होता क्योंकि सहनशक्ति समाप्त हो चुकी है। पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंग व्यक्ति 'व्यक्तिवाद' की सीमा बंधकर रह गए हैं। मैं केवल 'अपना' और 'स्व' शब्दों से परिचित हैं। उन्हें जहां अधिक धन, अधिक वैभव, अधिक ऐश्वर्य मिलता है, वे वहीं भोगने की चेष्टा करते हैं। स्वतंत्रता का रूप आज स्वच्छंदता ने ले लिया है। स्वच्छंद होकर भी अपने द्वारा चुने गए रास्तों पर चलना ही पसंद करते हैं ना की खानदानी व्यवसाय की तरफ जाना।


प्रश्न 4. मियां कहीं अखबारनवीस तो नहीं हो? यह तो खोजियों की खुराफात है- अखबार की भूमिका को देखते हुए इस पर टिप्पणी करें।


उत्तर - आज पत्रकार अपने अखबार में नया से नया समाचार देने हेतु हर छोटी से छोटी जगह पर जाकर सूचना एकत्र करने में जुटे हैं। जब लेखिका ने मियां नसीरुद्दीन से प्रश्न पूछना चाहा तो मियां ने कहा कि कहीं तुम अखबारनवीस तो नहीं हो? तुम मुझसे प्रश्न पूछो और जाकर अपने अखबार में छाप दो, क्योंकि पत्रकारों की यही शरारत रहती है। पूछते बाद में है, खबर छप पहले जाती है। 


पद्य खण्‍ड 

Chapter - 1 कबीर

Chapter - 2 मीरा

Chapter - 3 पथिक

Chapter - 4 वे आँखें

Chapter - 5 घर की याद

Chapter - 6 चंपा काले अक्षर नहीं चीन्‍हती

Chapter - 7 गज़ल

Chapter - 8 अक्‍कमहादेवी

Chapter - 9 सबसे खतरनाक

Chapter - 10 आओ मिलकर बचाएं


गद्य खण्‍ड 

अध्याय - 1 नामक का दारोगा

अध्‍याय – 2 मियाँ नसीरूद्दीन


अध्याय – 3 अपू के साथ ढाई साल


अध्याय – 4 विदाई-संभाषण 


अध्याय – 5 गलता लोहा 


अध्याय – 6 स्‍पीति में बारिश


अध्याय – 7 रजनी


अध्याय – 8 जामुन का पेड़


अध्याय – 9 भारत माता 


अध्याय – 10 


वितान  

अध्याय - 2 राजस्थान की रजत बूंदें


अध्याय - 3 आलो आंधारि



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