सूरदास जी का जीवन परिचय || Surdas ka Jivan Parichay

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सूरदास जी का जीवन परिचय || Surdas ka Jivan Parichay


जीवन परिचय (jivan parichay)


सूरदास


संक्षिप्त परिचय


नाम सूरदास


वास्तविक नाम सूरध्वज


जन्म 1478 ई०


मृत्यु 1583 ई० मृत्यु का स्थान पारसौली


पिता का नाम पंडित रामदास


गुरु आचार्य बल्लभाचार्य


भक्ति कृष्ण भक्ति


ब्रह्मा का रूप सगुण


निवास स्थान श्रीनाथ मंदिर


भाषा ब्रज़


काव्य कृतियां सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी


साहित्य में योगदान कृष्ण की बाल लीलाओं तथा कृष्ण लीलाओं का मनोरम चित्रण किया है।


रचनाएं सूरसागर, साहित्य लहरी, सूरावली


सूरदास जी का जीवन परिचय

जीवन परिचय :- भक्तिकालीन महाकवि सूरदास का जन्म रुनकता नामक ग्राम में 1478 ई० में पंडित राम दास जी के घर हुआ था। पंडित राम दास सारस्वत ब्राह्मण थे। कुछ विद्वान् 'सीही' नामक स्थान को सूरदास का जन्म स्थल मानते हैं। सूरदास जन्म से अंधे थे या नहीं इस संबंध में भी विद्वानों में मतभेद है। विद्वानों का कहना है कि बाल मनोवृत्तियों यों एवं चेष्टाओं का जैसा सूक्ष्म वर्णन सूरदास जी ने किया है, वैसा वर्णन कोई जन्मांध व्यक्ति कर ही नहीं सकता इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि वह संवत बाद में अंधे हुए होंगे। वह हिंदी भक्त कवियों में शिरोमणि माने जाते हैं।


सूरदास जी एक बार बल्लभाचार्य जी के दर्शन के लिए मथुरा के गऊघाट आए और उन्हें सुरक्षित एक पद गाकर सुनाया, बल्लभाचार्य ने तभी उन्हें अपना शिष्यश मान लिया सूरदास की सच्ची भक्ति और पद रचना की निपुणता देखकर बल्लभाचार्य ने उन्हें श्रीनाथ मंदिर का कीर्तन भार सौंप दिया, तभी से वह मंदिर उनका निवास स्थान बन गया सूरदास जी विवाहित थे तथा विरक्त होने से पहले भी अपने परिवार के साथ ही रहते थे।


बल्लभाचार्य जी के संपर्क में आने से पहले सूरदास जी दीनता के पद गाया करते थे तथा बाद में अपने गुरु के कहने पर कृष्ण लीला का गान करने लगे सूरदास जी की मृत्यु 1583 ई० में गोवर्धन के पास पारसौली नामक ग्राम में हुई थी।


साहित्यिक परिचय :- सूरदास जी महान काव्यात्मक प्रतिभा से संपन्न कवि थे। कृष्ण भक्तों को इन्होंने कव्य का मुख्य विषय में बनाया। उन्होंने श्रीकृष्ण के सगुण रूप के प्रति शाखा भाव की भक्ति का निरूपण किया है। इन्होंने मानव हृदय की कोमल भावनाओं का प्रभाव पूर्ण चित्रण किया है। अपने काम में भावात्मक पक्ष और कलात्मक पक्ष दोनों पर उन्होंने अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है।


कृतियां रचनाएं :- भक्त शिरोमणि सूरदास जी ने लगभग सवा लाख पदों की रचना की थी जिनमें से केवल आठ से दस हजार पद ही प्राप्त हो पाए हैं।'काशी नागरी प्रचारिणी सभा के पुस्तकालय में यह रचनाएं सुरक्षित हैं पुस्तकालय में सुरक्षित रचनाओं के आधार पर सूरदास जी की ग्रंथों की संख्या 25 मानी जाती है, किंतु इनके तीन ग्रंथों ही उपलब्ध हुए हैं, जो अग्रलिखित हैं।


1. यह सूरदास जी की एकमात्र प्रमाणिक कृति है। यह एक गीतिकाव्य है, जो 'श्रीमद भगवत ग्रंथ से प्रभावित है। इसमें कृष्ण की बाल लीलाओं, गोपी-प्रेम, गोपी विरह उद्धव गोपी- संवाद का बड़ा मनोवैज्ञानिक और सरस वर्णन है।


"साहित्य लहरी, सूरसागर, सूर् कि सारावली ।

श्री कृष्ण जी की बाल छवि पर लेखनी अनुपम चली "


2. सूरसारावली - यह ग्रंथ सूरसागर का सार भाग है जो अभी तक विवाद इस पद स्थिति में है किंतु यह भी सूरदास जी की एक प्रमाणिक कृति है। इसमें 1107 पद हैं।


3. साहित्यलहरी - इस ग्रंथ में 118 दृष्टि कूट पदों का संग्रह है तथा इसमें मुख्य रूप से नायिकाओं एवं अलंकारों की विवेचना की गई है। कहीं-कहीं श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन तथा एक-दो स्थलों पर महाभारत की कथा के अंशों की झलक भी दिखाई देती है।


नल-दमयंती - सूरदास जी की अन्य प्रसिद्ध रचनाओं में से नल-दमयंती भी एक प्रसिद्ध काव्य है, इसमें सूरदास जी ने कृष्ण भक्ति का उल्लेख नहीं किया है बल्कि महाभारत काल के प्रसिद्ध नल-दमयंती की कथा का वर्णन किया है।


ब्याहलो -  सूरदास जी का एक और प्रसिद्ध ग्रंथ ब्याहलो है, यह कृति भी भक्ति रस से पृथक है, साथ ही सूरदास जी की इस रचना का कोई प्रमाणिक साक्ष्य नहीं है ।


भाषा शैली :- सूरदास जी ने अपने पदों में ब्रज भाषा का प्रयोग किया है तथा इनके सभी पद गीतात्मक हैं, जिस कारण इनमें मधुर गुड़ की प्रधानता है। इन्होंने सरल एवं प्रभाव और शैली का प्रयोग किया है। उनका काव्य मुक्तक शैली पर आधारित है। व्यंग वक्रता और वागिवदग्धता सूर की भाषा की प्रमुख विशेषताएं हैं। तथा वर्णन में वर्णन आत्मक शैली का प्रयोग किया गया है। दृष्टिकूट पदों में कुछ किलष्टता अवश्य आ गई है।


वात्सल्य का वर्णन -


महान कवि सूरदास जी अपनी रचनाओं में श्री कृष्ण वात्सल्य का जिस प्रकार वर्णन करते हैं, वह अनुपम, अद्वितीय है । उन्होंने कान्हा की बाल क्रीड़ाओं को बड़े ही मनोयोग व सहज भाव से रचा है, मानो वे स्वयं बाल कृष्ण की लीलाओं को साक्षात् देखते हुए उनका वर्णन कर रहे हों ।


सूरदास जी के पदों में बाल कृष्ण लीलाओं को देखते हुए माता यशोदा के हर्षित व बलिहारी होने का जो चित्र सूरदास जी प्रस्तुत करते हैं वह अपने आप में एक मां के वात्सल्यपूर्ण मनोभावों को पूर्ण रूप से चित्रित करता है।


श्री कृष्ण की बाल लीलाओं को प्रदर्शित करने वाले पदों में सूरदास जी ने श्री कृष्ण के जन्म, मिट्टी में क्रीडा, चंद्रमा के लिए हठ के अलावा गऊ चराना तथा गोपियों संग रास आदि का बहुत सजीव वर्णन किया है ।


अलंकार :- ने अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनमें कृत्रिमता कहीं नहीं है। इनके काव्य में उपमा, उत्प्रेक्षा, प्रतीप, व्यतिरेक, रूपक, दृष्टान्त तथा अर्थान्तरन्यास आदि अलंकारों के प्रयोग प्रचुर मात्रा में हुए हैं।


भक्ति भाव का वर्णन -


सूरदास जी को उनके गुरु वल्लभाचार्य जी ने पुष्टीमार्ग में दीक्षित करके श्री कृष्ण भक्ति की ओर प्रेरित किया था, अतः उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य देव मानते हुए अपनी रचनाओं में उनकी लीलाओं का वर्णन पुष्टिमार्गीय सिद्धांतों के अनुसार किया है । महाकवि सूरदास जी ने अपनी अधिकांश रचनाओं में प्रेम भक्ति तथा माधुर्य भक्ति का खूब प्रयोग किया है इस हेतु उन्होंने राधा जी को गोपियों में एक माध्यम की तरह प्रस्तुत किया है।


प्रकृति का वर्णन


अपने काव्य ग्रंथों की रचना में सूरदास जी ने प्रकृति का बहुत ही सजीव और सुंदर तरीके से वर्णन किया है । उन्होंने अपनी रचनाओं में श्री कृष्ण के बाल्यकाल का वर्णन करते हुए उन सभी प्राकृतिक स्थलों का वर्णन किया है जहां श्री कृष्ण अपनी लीलाएं किया करते थे, जैसे- यमुना का किनारा, उनके क्रीडा स्थल, जंगल, नदियां, पर्वत आदि ।


श्रृंगार का वर्णन


सूरदास जी की रचनाओं में व्यापक स्तर पर श्रृंगार रस का वर्णन मिलता है । उन्होंने अपनी रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण की राधा संग प्रेम-प्रसंग व गोपियों संग रास, खेल- ठिठौली के वर्णन के साथ ही राधा- कृष्ण के संयोग-वियोग का श्रंगार रस में अति विशिष्ट प्रयोग किया है ।


सामाजिक पक्ष


महाकवि सूरदास जी ने अपनी रचनाओं में तात्कालिक समाज की रीति-रिवाज, उत्सव व सांस्कृतिक परंपराओं का वर्णन अपनी अधिकांश रचनाओं की कृष्ण लीलाओं में करते हुए तत्कालीन समाज की उत्कृष्ट झांकी प्रस्तुत की है ।


छन्द :- सूर ने अपने काव्य में चौपाई, दोहा, रोला, छप्पय, सवैया तथा घनाक्षरी आदि विविध प्रकार के परम्परागत छन्दों का प्रयोग किया है।


गेयात्मकता (संगीतात्मकता) :- सूर का सम्पूर्ण काव्य गेय है। इनके सभी पद किसी-न-किसी राग-रागिनी पर आधारित हैं।


हिंदी साहित्य में स्थान :- सूरदास जी हिंदी साहित्य के महान काव्यात्मक प्रतिभासंपन्न कवि थे इन्होंने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और प्रेम लीलाओं का जो मनोरम चित्रण किया है। वह साहित्य में अद्धिति है। हिंदी साहित्य में वास्तव वर्णन का एकमात्र कवि सूरदास जी को ही माना जाता है। साथ ही उन्होंने विरह वर्णन का भी अपनी सरचनाओं में बड़ा ही मनोरम चित्रण किया है।


भक्ति-भावना :- सूर की भक्ति सखा-भाव की है। इन्होंने श्रीकृष्ण को अपना मित्र माना है। सच्चा मित्र अपने मित्र से कोई परदा नहीं रखता और न ही किसी प्रकार की शिकायत करता है। सूर ने बड़ी चतुराई से काम लिया है। अपने उद्धार लिए इन्होंने श्रीकृष्ण से कहा है कि मैं तो पतित हूँ ही, लेकिन आप तो पतित पावन है। आपने मेरा उद्धार नहीं किया तो आपका यश समाप्त हो जाएगा। अतः आप अपने यश की रक्षा कीजिए-


कीजै प्रभु अपने बिरद की लाज । 

महापतित कबहुँ नहिं आयी, नैकु तिहारे काज ॥


इस प्रकार सूर की भक्ति भावना में अनन्यता, निश्छलता एवं पावनता विद्यमान हैं।


विषयवस्तु में मौलिकता :- सूर ने यद्यपि 'श्रीमद्भागवत' के दशम स्कन्ध को अपने काव्य का आधार बनाया है, परन्तु इनकी विषयवस्तु में सर्वत्र मौलिकता विद्यमान है। इन्होंने बहुत कम स्थलों पर श्रीकृष्ण के अलौकिक रूप को चित्रित किया है। ये सर्वत्र मानवीय रूप में हो चित्रित किए गए हैं। राधा की कल्पना और गोपियों के प्रेम की अनन्यता में इनकी मौलिकता की अखण्ड छाप दिखाई देती है - 


लरिकाई कौ प्रेम कहौ अलि, कैसे छूटत?


सूरदास का विवाह :- कहा जाता है कि सूरदास जी ने विवाह किया था हालांकि इनके व्यवहार को लेकर कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं। लेकिन फिर भी उनकी पत्नी का नाम रत्नावली माना गया है। कहा जाता है कि संसार से विरक्त होने से पहले सूरदास जी ने अपने परिवार के साथ यह जीवन व्यतीत किया करते थे।


सूरदास के गुरु :- अपने परिवार से विरक्त होने के पश्चात सूरदास जी दिनता के पद गाया करते थे। कवि सूरदास के मुख से भक्ति का एक पद सुनकर श्री वल्लभाचार्य ने अपना शिष्य मान लिया। जिसके बाद वह कृष्ण भगवान का स्मरण और उनकी लीलाओं का वर्णन करने लगे। साथ ही वह आचार्य वल्लभाचार्य के साथ मथुरा के गऊघाट पर स्थित श्री नाथ के मंदिर में भजन-कीर्तन किया करते थे महान कवि सूरदास आचार्य बल्लभाचार्य के प्रमुख शिष्य में से एक थे और एक अष्टछाप कवियों में भी सर्वश्रेष्ठ स्थान रखते हैं।


श्री 'कृष्ण' गीतावली :- कहा जाता है कि कवि सूरदास ने प्रभावित होकर ही तुलसीदास जी ने महान ग्रंथ श्री कृष्ण गीतावली की रचना की थी और इन दोनों के बीच तब से ही प्रेम और मित्रता का भाव बढ़ने लगा था।


सूरदास का राजघराने से संबंध :- महाकवि सूरदास की भक्ति में गीतों की गूंज चारों तरफ फैल गई थी जिसे सुनकर स्वय महान शासक अकबर भी सूरदास की रचनाओं पर मुग्ध हो गए थे जिसने उनके काम से प्रभावित होकर अपने यहां रख लिया था। आपको बता दें कि सूरदास के काव्य की ख्याति बनने के बाद हर कोई सूरदास को पहचानने लगा ऐसे में अपने जीवन के अंतिम दिनों को सूरदास ने ब्रज में वितरित किया जहां रचनाओं के बदले उन्हें जो भी प्राप्त होता उसी से सूरदास अपना जीवन बसर किया करते थे।


सूरदास की काव्यगत विशेषताएं :- सूरदास जी को हिंदी का श्रेष्ठ कवि माना जाता है। उनकी काव्य रचनाओ की प्रशंसा करते हुए हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि सूरदास जी ने अपने प्रिय विषय का वर्णन शुरू करते हैं तो मानो अलंकार शास्त्र हाथ जोड़कर उनके पीछे पीछे दौड़ा करता है और उपमाओं की बाढ़ आ जाती है। और रूपों की बारिश होने लगती है साथ ही सूरदास ने भगवान कृष्ण के बाल रूप का अत्यंत सरल और सजीव चित्रण किया है। सूरदास जी ने भक्तों को श्रृंगार रस से जोड़कर काव्य को एक अद्भुत दिशा की ओर मोड़ दिया था। साथ ही सूरदास जी के काव्य में प्राकृतिक सौंदर्य का भी जीवंत उल्लेख मिलता है इतना ही नहीं सूरदास जी ने काव्य और कृष्ण भक्तों का जो मनोहरी चित्रण शुद्ध किया व अन्य किसी कवि की रचनाओं में नहीं मिलता।


सूरदास की मृत्यु कब हुई

(Surdas ki Mrutyu kab Hui)


मां भारती का यह पुत्र 1583 ईस्वी में गोवर्धन के पास स्थित पारसौली गांव में सदैव के लिए दुनिया से विदा हो गए। सूरदास जी ने कब की धारा को एक अलग ही गति प्रदान की। इसके माध्यम से उन्होंने हिंदी गद्य और पद्य के क्षेत्र में भक्ति और श्रृंगार रस का बेजोड़ मेल प्रस्तुत किया है । और हिंदी कब के क्षेत्र में उनकी रचना एक अलग स्थान रखती हैं। साथ ही ब्रजभाषा को साहित्य दृष्टि से उपयोगी बनाने का श्रेय महाकवि सूरदास को ही जाता है।


क्या सूरदास जन्म से अंधे थे?


सूरदास के जन्मांध होने के विषय में अभी मतभेद हैं। सुधारने तो अपने आप को जन्मांध बताया है। लेकिन जिस तरह से उन्होंने श्री कृष्ण की बाल लीला और श्रंगार रूपी राधा और गोपियों का सजीव चित्रण किया है। आंखों से साक्षात देखे बगैर नहीं हो सकता । विद्वानों का मानना है कि वह जन्म से अंधे नहीं थे, क्योंकि उन्होंने कृष्ण जी के अलौकिक रूप का बहुत ही मनोनीत रूप से वर्णन किया है। उन्होंने आत्मग्लानिवश, क्या चने रूप से अथवा किसी और कारण अपने आप को जन्मांध बताया हो ।


अंधे होने की कहानी


उनके अंधे होने की कहानी भी प्रचलित है। कहानी कुछ इस तरह है कि सूरदास ( मदन मोहन ) एक बहुत ही सुन्दर और तेज बुद्धि के नवयुवक थे वह हर दिन नदी किनारे जाकर बैठ जाता और गीत लिखता एक दिन एक ऐसा वाक्य हुआ जिससे उसका मन को मोह लिया यूं कि एक सुंदर नवयुग की नदी किनारे कपड़े धो रही थी, मदन मोहन का ध्यान उसकी तरफ चला गया। उस युवती ने मदन मोहन को ऐसा आकर्षित किया कि वह कविता लिखना भूल गए और पूरा ध्यान लगाकर उस वीडियो को देखने लगे। उनको ऐसा लगा मानो जमुना किनारे राधिका स्नान कर बैठी हो । उसने युवती ने भी मदन मोहन की तरफ देखा और उनके पास आकर बोली आप मदन मोहन जी हो ना? तो वे बोले हां मैं मदन मोहन हूं। कविताएं लिखता हूं तथा गाता हूं आपको देखा तो रुक गया। युवती ने पूछा क्यों? तो वह बोले आप हो ही इतनी सुंदर। यह सिलसिला कई दिनों तक चला। और सुंदर युवती का चेहरा और उनके सामने से नहीं जा रहा था, और एक दिन वह मंदिर में बैठे थे तभी वह एक शादीशुदा स्त्री आई । मदनमोहन इसके पीछे पीछे चल दिए। जब है उसके घर पहुंचे तो उसके पति ने दरवाजा खोल तथा पूरे आदर सम्मान के साथ उन्हें अंदर बिठाया। श्री मदन मोहन ने दो जलती हुई सलाये तथा उसे अपनी आंख में डाल दी। इस तरह मदन मोहन बने महान कवि सूरदास ।


सूरदास के 5 प्रसिद्ध दोहे [Surdas ke 10 Prasiddh Dohe]


1. " चरण कमल बंदोहरी राइ | जाकी कृपा पंगु गिरी लांघें अँधे को सब कुछ दरसाई॥

बहिरो नै मूक पुनि बोले टंक चले सर छत्र धराई

सूरदास स्वामी करुणामय बार-बार बंदौ तेहि पाई ॥"

खंजन नैन रूप मदमाते।


2. " अतिशय चाऊ चपल अनियारे, 

      पल पिंजरा न समाते ॥

      चलि - चलि जात निकट स्रवनन के, 

      उलट-पुलट ताटंक फँदाते।

      'सूरदास' अंजन गुन अटके, 

      नत अबहिं उड़ जाते॥”


3. " मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ,

मोसौं कहत मोल कौ लीन्हौ, तू जसुमति कब जायौ।

कहा करौं इहि के मारें खेलन हौं नहि जात, 

पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तेरौ तात । 

गोरे नन्द जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात, 

चुटकी दै-दै ग्वाल नचावत हँसत - सबै मुसकात।

तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुँ न खीझे, 

मोहन मुख रिस की ये बातें, जसुमति सुनि - सुनि रीझै

सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत,

सूर स्याम मौहिं गोधन की सौं, हौं माता तो पूत । "


4. " अरु हलधर सों भैया कहन लागे मोहन मैया मैया।

      नंद महर सों बाबा अरु हलधर सों भैया ॥

      ऊंचा चढी चढी कहती जशोदा लै लै नाम कन्हैया |

      दुरी खेलन जनि जाहू लाला रे! मारैगी काहू की गैया॥

      गोपी ग्वाल करत कौतुहल घर-घर बजति बधैया |

      सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस को चरननि की बलि जैया ॥”


5." मैया मोहि मैं नहीं माखन खायो ।

     भोर भयो गैयन के पाछे, मधुबन मोहि पठायो।

     चार पहर बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो ॥ 

     मैं बालक बहिन को छोटो, छीको किहि बिधि पायो।

     ग्वाल बाल सब बैर पड़े है, बरबस मुख लपटायो ॥ 

     तू जननी मन की अति भो इनके कहें पतिआयो।

     जिय तेरे कछु भेद उपज है, जानि परायो जायो ॥ 

    यह अपनी लकुटी कमरिया, बहुतहिं नाच नचायों।

    सूरदास तब बिहँसि जसोदा लै उर कंठ लगायो ॥ ”


सूरदास जी की कृष्ण भक्ति :- 

सूरदास जी भक्तिधारा के अग्रणी कवि थे, वे भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे ।उनकी कृष्ण भक्ति के संबंध में बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं, उन कथाओं में से एक कथा इस प्रकार है-


कहा जाता है कि सूरदास जी कृष्ण भक्ति में इतना लीन रहते थे कि एक बार वे ध्यान में रमे हुए एक कुएं में जा गिरे। भगवान कृष्ण ने उन्हे बचाया और उनकी नेत्र ज्योति लौटाकर उन्हें दर्शन भी दिये, इस प्रकार सूरदास ने इस संसार में सर्वप्रथम अपने आराध्य के दर्शन किए। फिर उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर कृष्ण जी ने उनसे वरदान मांगने की बात कही ।


सूरदास जी ने कहा प्रभु ! आपके दर्शनों के बाद मुझे सब कुछ मिल गया है, अब मुझे कुछ और नहीं चाहिए, बस अब आप कुछ देना चाहते हैं तो मझे पुनः अंधत्व प्रदान करें, मैं आप के दर्शन के बाद इन नेत्रों से और कुछ नहीं देखना चाहता ।


1. सूरदास की काव्य भाषा क्या है? 


उत्तर- महाकवि सूरदास हिंदी के श्रेष्ठ भक्त कवि थे। उनका संपूर्ण का ब्रजभाषा का श्रृंगार है, जिसमें विभिन्न राग, रागिनियों के माध्यम से एक भक्त ह्रदय के भावपूर्ण उद्धार व्यक्ति हुए हैं।


2. सूरदास का जीवन परिचय कैसे लिखें? 


उत्तर - रामचंद्र शुक्ल जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत 1540 के सन्निकट और मृत्यु संवत् 1620 ईसवी के आसपास मानी जाती है। श्री गुरु बल्लभ तत्व सुनाएं लीला भेद बताइए। सूरदास की आयु सूट सूरावली के अनुसार उस समय 67 वर्ष थी। वे सांसद ब्राह्मण थे और जन्म के अन्य थे।


3. सूरदास का जीवन परिचय एवं रचनाएं? 


उत्तर -भक्तिकालीन महाकवि सूरदास का जन्म 'रुनकता' नामक ग्राम में 1478 ई० में पंडित राम दास जी के घर हुआ था।


1. सूरसागर - यह सूरदास जी की एकमात्र प्रमाणिक कृति है। यह एक गीतिकाव्य है, जो 'श्रीमद् भागवत' ग्रंथ से प्रभावित है। इसमें कृष्ण की बाल लीलाओं, गोपी-प्रेम, गोपी-विरह, उद्धव- गोपी संवाद का बड़ा मनोवैज्ञानिक और सरस वर्णन है।


2. सूरसारावली - यह ग्रंथ सूरसागर का सारभाग है, जो अभी तक विवादास्पद स्थिति में है, किंतु यह भी सूरदास जी की एक प्रमाणिक कृति है। इसमें 1107 पद हैं।


3. साहित्यलहरी - इस ग्रंथ में 118 दृष्टकूट पदों का संग्रह है तथा इसमें मुख्य रूप से नायिकाओं एवं अलंकारों की विवेचना की गई है। कहीं-कहीं श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन तथा एक-दो स्थलों पर 'महाभारत' की कथा के अंशों की झलक भी दिखाई देती है।


4. सूरदास का जन्म स्थान ?


उत्तर - विद्वान् 'सीही' नामक स्थान को सूरदास का जन्म स्थल मानते हैं।


5. सूरदास का विवाह?


उत्तर - कहा जाता है कि सूरदास जी ने विवाह किया था। हालांकि इनकी विवाह को लेकर कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं लेकिन फिर भी उनकी पत्नी का नाम रत्नावली माना गया है। कहा जाता है कि संसार से विरक्त होने से पहले सूरदास जी अपने परिवार के साथ ही जीवन व्यतीत किया करते थे।


6. सूरदास की मृत्यु कब हुई थी ? 


उत्तर - मां भारती का यह पुत्र 1583 ईस्वी में गोवर्धन के पास स्थित पारसौली गांव में सदैव के लिए दुनिया से विदा हो गए। सूरदास जी ने कब की धारा को एक अलग ही गति प्रदान की। इसके माध्यम से उन्होंने हिंदी गद्य और पद्य के क्षेत्र में भक्ति और श्रृंगार रस का बेजोड़ मेल प्रस्तुत किया है। और हिंदी कब के क्षेत्र में उनकी रचना एक अलग स्थान रखती हैं। साथ ही ब्रजभाषा को साहित्य दृष्टि से उपयोगी बनाने का श्रेय महाकवि सूरदास को ही जाता है।


सूरदास ने कितनी रचनाएं लिखी ?


उत्तर - सूरदास ने कई रचनाएं लिखी किंतु इनमें सबसे प्रमुख रचनाएं निम्न हैं -

इनमें 'सूरसागर', 'सूरसारावली', 'साहित्य लहरी', 'नल-दमयन्ती' और 'ब्याहलों के अतिरिक्त 'दशमस्कंध टीका', 'नागलीला', 'भागवत्', 'गोवर्धन लीला', 'सूरपचीसी', 'सूरसागर सार', 'प्राणप्यारी' आदि ग्रन्थ सम्मिलित हैं।


सूरदास क्यों प्रसिद्ध हैं?

 

उत्तर - सूरदास 16 वीं शताब्दी के महान भक्ति कवि और गायक थे । ये सबसे ज्यादा भगवान कृष्ण की प्रशंसा मे लिखे गए अपने लेखों के लिए प्रसिद्ध है ।


सूरदास कौन से काल के कवि है?


सूरदास भक्ति काल के कवि हैं ।


सूरदास का जीवन परिचय कैसे लिखें?


भक्तिकालीन महाकवि सूरदास का जन्म 'रुनकता' नामक ग्राम में 1478 ई० में पण्डित रामदास जी के घर हुआ था। पण्डित रामदास सारस्वत ब्राह्मण थे। कुछ विद्वान् 'सीही' नामक स्थान को सूरदास का जन्म स्थल मानते हैं। सूरदास जन्म से अन्धे थे या नहीं, इस सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद हैं। विद्वानों का कहना है कि बाल- मनोवृत्तियों एवं चेष्टाओं का जैसा सूक्ष्म वर्णन सूरदास जी ने किया है, वैसा वर्णन कोई जन्मान्ध व्यक्ति कर ही नहीं सकता, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि वे सम्भवतः बाद में अन्धे हुए होंगे।


सगुण भक्ति शाखा में कृष्ण भक्ति धारा के प्रतिनिधि कवि सूरदास जी के जन्म-स्थान एवं जन्म तिथि के विषय में विद्वानों में बहुत मतभेद है। सूरदास का जीवन-वृत्त अभी तक शोध का कार्य बना हुआ है। अनेक साक्ष्यों के अवलोकन के उपरांत कुछ विद्वान् इनका जन्म संवत् 1535 (सन् 1478 ई०) में बैसाख शुक्ल पक्ष पंचमी गुरुवार को सीही नामक स्थान को स्वीकार करते हैं। तथा कुछ विद्वान इनका जन्म आगरा से मथुरा जाने वाली सड़क के निकट रुनकता नामक ग्राम में संवत् 1540 में मानते हैं।

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