class 11th Political Science chapter 7 संघवाद full solution//कक्षा 11वी राजनीति विज्ञान पाठ 7 संघवाद पूरा हल
NCERT Class 11th Political Science Chapter 7 Federalism Solution
Class 11th Political Science Chapter 7 NCERT Textbook Question Solved
अध्याय 7
★ संघवाद ★
महत्वपूर्ण बिंदु
● जब अनेक समाज मिलकर एक विशाल राज्य का निर्माण करते हैं तथा इसके साथ ही अपना अलग अस्तित्व भी बनाए रखते हैं। इस प्रकार निर्मित विशाल राज्य को शक्तियाँँ तथा इस प्रक्रिया को संघवाद का नाम दिया जाता है ।
● संघात्मक सरकार ने संविधान द्वारा शक्तियाँ केंद्र तथा उसकी प्रांतीय इकाइयों में विभक्त होती हैं तथा दोनों ही अपने अपने कार्य में स्वतंत्र होते हुए परस्पर एक दूसरे के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करते हैं।
● हालांकि संघीय राज्य की शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका से हुई लेकिन जर्मन तथा भारतीय संघवाद से अलग प्रकार का है।
● संघात्मक शासन में विभिन्नता में एकता पाई जाती है।
● संघवाद के वास्तविक कार्य का निर्धारण राजनीति, संस्कृति, विचारधारा तथा इतिहास की वास्तविकता में होता है।
● संविधान की सर्वोच्चता, लिखित एवं कठोर संविधान, शक्तियों का विभाजन, स्वतंत्र न्यायपालिका तथा द्विसदनीय विधायिका संघात्मक व्यवस्था के प्रमुख लक्षण हैं।
● हालांकि भारत के संविधान में कहीं भी संघात्मक शब्द प्रयुक्त नहीं किया गया है, लेकिन देश में संघात्मक शासन है जिसमें संघीय सरकार के अलावा 29 राज्य तथा 7 संघीय क्षेत्र हैं।
● भारतीय संविधान जहां स्वरूप में संघात्मक है, वहीं आत्मा में एकात्मक है।
● संविधान द्वारा संघ सूची में विनिर्दिष्ट विषयों को केंद्र सरकार को तथा राज्य सूची में विनिर्दिष्ट विषयों को राज्य सरकारों को सौंपा गया है जबकि समवर्ती सूची में दिए गए विषयों को केंद्रीय एवं प्रांतीय विधायकाएँ में कानून बना सकती हैं।
● भारतीय संघवाद की सबसे अलग विशेषता यह भी है कि इसमें कुछ राज्यों के साथ थोड़ा अलग व्यवहार किया जाता गया है, जैसे जम्मू कश्मीर के अनुच्छेद 370 द्वारा विनिर्दिष्ट स्वायत्तता प्रदान की गई है।
★ पाठान्त प्रश्नोत्तर ★
प्रश्न 1. भारतीय संविधान की चार विशेषताएं का उल्लेख करें जिनमें प्रदेशिक सरकार की अपेक्षा केंद्रीय सरकार को ज्यादा शक्ति प्रदान की गई है।
उत्तर भारतीय संविधान की निम्नलिखित चार विशेषताओं में प्रदेश सरकार की अपेक्षा केंद्र सरकार को अधिक शक्ति प्रदान की गई हैं-
(1) मूल अधिकार- भारतीय संविधान द्वारा अपने नागरिकों को जो मूल अधिकार प्रदान किए गए हैं उनमें बदलाव करने का अधिकार किसी भी राज्य सरकार को नहीं है। विशेष परिस्थितियों में सिर्फ संसद की मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है । उदाहरणार्थ- 44 वें संविधान संशोधन द्वारा संपत्ति के अधिकार को हटा दिया गया ।
संसदीय प्रभुता- किसी भी राज्य के अस्तित्व एवं उसकी भौगोलिक सीमाओं पर संसद का नियंत्रण है। वह जहां दो अथवा अधिक राज्यों को मिलाकर एक नवीन प्रदेश का निर्माण कर सकती है, वहीं राज्यों के नाम में परिवर्तन करने का अधिकार भी संसद को है। केंद्रीय सरकार के पास राज्य सरकार की अपेक्षाकृत आय के विभिन्न साधन हैं। अनुदान तथा वित्तीय सहायता हेतु राज्य संघीय सरकार पर ही आश्रित है। इसी तरह राज्य सरकार अपने प्रदेश के राज्यपाल तक की नियुक्ति स्वयं नहीं कर सकती है ।
सर्वोच्च एवं स्वतंत्र न्यायपालिका- भारतीय संविधान द्वारा सर्वोच्च एवं स्वतंत्र न्यायपालिका का प्रावधान किया गया है, जिसके न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति ही करता है जिसमें राज्य सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है।
अखिल भारतीय सेवाओं के प्रशासनिक अधिकारी- राज्य के उच्च पदों पर अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है लेकिन वे अपनी प्रशासनिक क्षमता पर का परिचय विभिन्न राज्यों में अपनी सेवा के दौरान देते हैं।
प्रश्न 2. बहुत से प्रदेश राज्यपाल की भूमिका को लेकर नाखुश क्यों हैं?
उत्तर भारतीय संविधान के अनुसार राज्यपाल की दोहरी भूमिका है। एक ओर जहां है राज्य का संवैधानिक अध्यक्ष है, वहीं दूसरी तरफ वह राज्य के केंद्र सरकार का प्रतिनिधि है। हमारे देश की राजनीति में सर्वाधिक चर्चित पद वर्तमान में राज्यपाल का ही है। अधिकांश भारतीय राज्यों को अपने अपने राज्यपालों से किसी ना किसी रूप से शिकायत रहती है। इसका प्रमुख कारण यह है, कि अधिकांश राज्यपाल राजनीतिक पृष्ठभूमि से होते हैं, जिनके आधार पर केंद्र सरकार के सत्तारूढ़ राजनीतिक दल द्वारा उसकी नियुक्ति की जाती है जिसके फल स्वरुप राज्यपाल निष्पक्ष रूप से अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं करते। क्योंकि राज्यपाल की भूमिका केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में होती है, जिसके आधार पर उसका उत्तरदायित्व केंद्र सरकार के हितों की रक्षा करना होता है। लेकिन व्यवहारिक रूप से राज्यपाल केंद्र में जिस दल की सरकार होती है, उसी के रक्षक की भूमिका का निर्माण करने लगते हैं। इससे राज्यों की सरकारों तथा राज्यपालों के समय-समय पर टकराव के हालात उत्पन्न हो जाते हैं।
प्रश्न 3. ज्यादा स्वायत्तता की चाह में प्रदेशों में क्या मांगे उठाई हैं ?
उत्तर- विभिन्न राज्यों ने 1960 से प्रांतीय स्वायत्तता की मांग लगातार उठाई जाती रही है । पश्चिम बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु ,जम्मू कश्मीर तथा कुछ उत्तर पूर्वी राज्यों से स्वायत्तता की मांग समय-समय पर उठती है । राज्य की स्वायत्तता की मांग में प्रमुख रूप से निम्नलिखित मांगे सम्मिलित हैं-
(1) राज्य की शक्तियों पर केंद्रीय हस्तक्षेप की व्यवस्था समाप्त की जाए।
(2) राज्यपाल के पद का दुरुपयोग ना किया जाए तथा उसकी नियुक्ति से संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री का परामर्श भी लिया जाए।
(3) संसद के दूसरे सदन में राज्यों को एक समान प्रतिनिधित्व दिया जाए।
(4) राज्य विधान मंडल द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु भेजने की व्यवस्था समाप्त की जाए।
(5) हिंदी भाषा को ग़ैर हिंदी भाषा ही राज्यों पर जबरदस्ती लागू नहीं किया जाए।
(6) अनुच्छेद 356 को समाप्त किया जाए।
(7) केंद्र में निहित है आप स्वस्थ शक्तियों को राज्य के अधिकार क्षेत्र में लाया जाए ।
(8) राज्य की आय स्त्रोतों में वृद्धि की जाए जिससे वे केंद्र की सहायता पर आश्रित ना हो। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अकाली दल ने राज्यों के लिए और अधिक वित्तीय स्वायत्तता की मांग की।
★ परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर ★
◆ अति लघु उत्तरीय प्रश्न ◆
प्रश्न 1. संघात्मक शासन वाले 4 देशों के नाम लिखिए।
उत्तर -संयुक्त राज्य अमेरिका ,भारत, ऑस्ट्रेलिया तथा कनाडा ।
प्रश्न 2. 'फेडेरलिज्म' शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है?
उत्तर- 'फेडरेलिज्म' शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के 'फोइडस' से हुई है।
प्रश्न 3 संघात्मक शासन व्यवस्था किसे कहते हैं?
उत्तर संघात्मक शासन में है जिसमें शासन शक्ति केंद्रीय सरकार अर्थात संघ सरकार तथा कई राज्यों की सरकारों के बीच विभाजित होती है।
प्रश्न 4. संघात्मक शासन की कोई दो विशेषताएं लिखिए।
उत्तर- के. सी व्हीयर के शब्दों में, "संघात्मक सरकार शक्तियों के विभाजन की प्रणाली है, जिससे केंद्रीय एवं क्षेत्रीय सरकारें अपने क्षेत्र में समान तथा स्वतंत्र रहें।" डायसी के अनुसार , "संघात्मक सरकार एक ऐसी राजनीतिक उपाय के अलावा और कुछ नहीं है जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकता है तथा राज्य के अधिकारों में समाज से स्थापित करना है।"
प्रश्न 5. संघात्मक शासन व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं लिखिए ।
उत्तर- शक्तियों का विभाजन संघात्मक शासन व्यवस्था की प्रमुख विशेषता है।
प्रश्न 6. संघात्मक शासन के 2 गुण समझाइए।
उत्तर- (1) लिखित सर्वोच्च तथा कठोर संविधान तथा (2)द्विसदनीय व्यवस्थापिका।
प्रश्न 7. संघात्मक शासन के दो अवगुण लिखिए ।
उत्तर - (1) एक संघात्मक शासन में शक्तियों के विभाजन की वजह से सरकार कमजोर होती है।
(2) संघात्मक शासन में केंद्र तथा राज्यों के अधिकार क्षेत्र संबंधी विवाद पैदा होते हैं।
प्रश्न 8. भारत में संघीय शासन की आवश्यकता के किंही दो कारणों को लिखिए।
उत्तर - (1) भारत का विशाल भौगोलिक क्षेत्र तथा (2) भारत में विभिन्न धर्मों समुदायों भाषाओं तथा रीति-रिवाजों वाले लोग निवास करते हैं।
प्रश्न 9. भारतीय संविधान की कोई दो एकात्मक विशेषताएं लिखिए
उत्तर- (1) भारत में शक्तियों का बंटवारा केंद्र के पक्ष में किया गया है तथा (2) राज्यों के राज्यपाल केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं।
प्रश्न 10. सहयोगी संघवाद का क्या अभिप्राय है?
उत्तर -सहयोगी संघवाद का आशय संघवाद की उन विशेषताओं से है जो केंद्र तथा राज्य सरकारों के सहयोग उत्पन्न करने करें। उदाहरणार्थ राज्यपाल योजना आयोग तथा वित्त आयोग जारी संस्थाएं केंद्र तथा राज्यों के बीच परस्पर सहयोग उत्पन्न करती हैं ।
प्रश्न 11. प्रांतीय स्वायत्तता का क्या अभिप्राय है?
उत्तर - प्रांतीय स्वायत्तता का अभिप्राय है कि राज्य सरकार ने अपने लिए अधिक सरकारों एवं सुविधाओं की मांग करती है।
प्रश्न 12. संविधान के अनुच्छेद 371 द्वारा किन प्रदेशों के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए कुछ विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं ।
उत्तर असम, अरुणाचल प्रदेश , नागालैंड तथा मिजोरम।
◆ लघु उत्तरीय प्रश्न ◆
प्रश्न 1. भारतीय संविधान संघात्मक होते हुए भी भावना में एकात्मक है। "संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- हालांकि हमारे देश के संविधान का ढांचा संघात्मक है लेकिन भावना में वह एकात्मक है। भारतीय संविधान के संघात्मक लक्षण लिखित एवं कठोर संविधान, शक्तियों का विभाजन, संविधान की सर्वोच्च तथा स्वतंत्र न्यायपालिका इत्यादि विद्यमान है। लेकिन उक्त के अलावा कुछ एकात्मक तत्व भी हैं, जिनकी वजह से यह कहा जाता है कि भारतीय संविधान की आत्मा एकात्मक है। संघ के पक्ष में शक्ति विभाजन में उसका पलड़ा भारी होना केंद्र सरकार के शक्तिशाली होने का परिचायक है। विषम परिस्थितियों में केंद्र सरकार राज्य सूची के विषयों पर भी कानून निर्मित कर सकती है। इसी प्रकार संपूर्ण देश के लिए एक ही संविधान है तथा नागरिकों को एकहरी नागरिकता ही प्राप्त है। राज्यों के राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा वह केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में अपने दायित्वों का निर्वहन करता है । आपातकाल में भारत का संघात्मक ढांचे एकात्मक ढांचे में बिना किसी संवैधानिक संशोधन के बदल सकता है। देश में एकहरी न्याय व्यवस्था तथा पूरे देश के लिए एक ही चुनाव आयोग का प्रावधान है । उक्त से स्पष्ट है कि भारतीय संविधान संघात्मक होते हुए भी भावना में एकात्मक है।
प्रश्न 2. भारतीय संघवाद में शक्ति विभाजन किस प्रकार का है?
उत्तर- भारतीय संविधान में दो सरकारों का उल्लेख है- संपूर्ण देश के लिए संघीय सरकार जिसे केंद्र सरकार भी कहते हैं तथा प्रांतीय कहानियां तथा राज्यों के लिए सरकार जिस को राज्य सरकार कहा जाता है। यह दोनों ही संवैधानिक सरकारें हैं तथा इन दोनों के अपने-अपने स्पष्ट कार्यक्षेत्र हैं । यदि कभी इस बात की आवश्यकता होगी कौन सी शक्तियां संग अर्थात केंद्र के पास हैं तथा कौन सी राज्य के पास तो इसका फैसला संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार न्यायपालिका को करने का अधिकार है। भारतीय संविधान में इस तथ्य की भी स्पष्ट व्याख्या है, कि कौन-कौन से अधिकार सिर्फ संघीय सरकार को हैं तथा कौन से केवल राज्यों को हासिल हैं। शक्ति विभाजन का एक पहलू यह भी है कि भारतीय संविधान ने आर्थिक तथा वित्तीय शक्तियां केंद्र सरकार को प्रदान की हैं।
◆ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ◆
प्रश्न 1. संघात्मक शासन व्यवस्था की पांच विशेषताएं लिखिए।
अथवा
संघात्मक शासन व्यवस्था के गुण बतलाइए।
उत्तर- संघात्मक शासन की विशेषताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) लिखित सर्वोच्च एवं कठोर संविधान- संघात्मक शासन में लिखित एवं कठोर संविधान होता है। इस शासन व्यवस्था का संविधान सर्वोच्च भी है , क्योंकि संघ तथा कई राज्यों को संविधान के अनुरूप ही कार्य करने होते हैं तथा दोनों में से कोई भी संविधान के खिलाफ कोई कार्य नहीं कर सकता।
(2) शक्तियों का विभाजन - संघात्मक शासन में सरकार के कार्यों को संघ एवं उसकी इकाइयों के बीच में विभक्त कर दिया जाता है। राष्ट्रीय महत्व के विषय संघीय सरकार के पास होते हैं तथा स्थानीय महत्व के विषयों को राज्यों के अधिकार क्षेत्र में दे दिया जाता है।
(3) द्विसदनीय व्यवस्थापिका- संघात्मक शासन व्यवस्था में ही है जरूरी है कि केंद्रीय विधायिका द्विसदनीय हो। जहां एक सदन में जनसाधारण का प्रतिनिधित्व होता है , वहीं दूसरी सदन में राज्यों का प्रतिनिधित्व होता है।
(4) स्वतंत्र एवं सर्वोच्च न्यायपालिका - संघात्मक शासन में स्वतंत्र एवं सर्वोच्च न्यायपालिका होती है। संविधान की व्याख्या एवं सुरक्षा, केंद्र तथा इकाइयों के आपसी विवादों के समाधान तथा नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा का दायित्व न्यायपालिका का ही होता है। यह न्यायालय संविधान का रक्षक, व्याख्याकार तथा संतुलन चक्र है।
(5) दोहरा संविधान एवं दोहरी नागरिकता- संघात्मक शासन व्यवस्था में केंद्र तथा उसकी इकाइयों के अलग अलग संविधान होते हैं। लेकिन इकाइयों के संविधान किसी भी रूप में संघीय व्यवस्था के विपरीत नहीं होते। इस शासन व्यवस्था में दोहरी नागरिकता होती है। जहां व्यक्ति संपूर्ण संघ राज्य का नागरिक कहलाता है वहीं मैं उस इकाई का भी नागरिक होता है , जिसमें उसने जन्म लिया है तथा रहता है।
प्रश्न 2. आधुनिक समय में संघात्मक शासन में जो प्रवृतियां उभर कर आ रही हैं उस की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर - आधुनिक समय में संघात्मक शासन में निम्न प्रवृतियां उभर कर आ रही हैं-
(1) कार्यपालिका की शक्ति में बढ़ोतरी- आजकल प्रायः सभी देशों की कार्यपालिका की शक्तियां दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं तथा व्यवस्थापिका की शक्तियों का पतन होता चला जा रहा है। कार्यपालिका की शक्तियों में अभिवृद्धि होने की वजह से संपूर्ण देश में महत्वपूर्ण फैसले केंद्रीय केंद्रीय मुख्य कार्यपालिका द्वारा ही लिए जाते हैं तथा राज्य अर्थात इकाइयों को इन फैसलों का अनिवार्य रूप से परिपालन करना होता है।
(2) युद्ध एवं आपातकाल- युद्ध तथा आपात परिस्थितियों के दौरान भी राज्य सरकारों के हाथों से शक्ति छीन कर केंद्र सरकार को हस्तांतरित कर दी जाती है। तब राज्य के नेतृत्व से यह आशा की जाती है कि वह इस अप्रत्याशित संकट से देश को बचाएगा । सामान्य काल में भी इस तरह की स्थिति अनवरत रूप से चलती रहती है।
(3) लोक कल्याणकारी राज्य एवं आर्थिक संकट - प्रायः सभी देशों के संविधान द्वारा लोक कल्याणकारी गतिविधियों के संपादन की पूर्णरूपेण जिम्मेदारी इकाई सरकारों को सौंपी जाती है। इन कल्याणकारी योजनाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त धनराशि की जरूरत होती है। राज्यों के पास पर्याप्त धनराशि ना होने की वजह से उन्हें हमेशा केंद्र का मुंह देखना पड़ता है। कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु जो धनराशि केंद्र द्वारा दी जाती है वह सशर्त होती है। अतः राज्य अपने विषयों के शासन संचालन में भी स्वतंत्र नहीं होते हैं।
प्रश्न 3. संघात्मक शासन की सफलता की जरूरी शर्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर -संघात्मक शासन व्यवस्था की सफलता की जरूरी शर्ते निम्न प्रकार हैं-
(1) इकाइयों की स्थापना- संघात्मक शासन हेतु जरूरी है कि इकाई राज्यों का आकार, जनसंख्या ,आर्थिक समृद्धि तथा सांस्कृतिक स्तर एक समान हो। यदि कोई राज्य इन इकाइयों से अधिक शक्तिशाली है तो सदैव यह आशंका बनी रहेगी की वह कमजोर राज्यों पर हावी होने का प्रयास न करने लगे।
(2) आर्थिक एवं राजनीतिक हितों तथा आदर्शों की एकरूपता- संघात्मक शासन व्यवस्था की सफलता हेतु आर्थिक एवं राजनीतिक हितो तथा आदर्शों की एकरूपता बहुत ही जरूरी है। निरंकुशतंत्रीय अथवा लोकतंत्रीय अथवा पूंजीवादी या समाजवादी राज्यों के संघों का निर्माण नहीं हो सकता यदि हो भी जाए तो वे असफल से कार्यों को नहीं कर सकते। इसकी वजह से यह है कि इन राज्यों के आर्थिक एवं राजनीतिक हितों तथा आदर्शों में एकरूपता न होकर भिन्नता है।
(3) भौगोलिक निकटता- संघात्मक शासन हेतु यह भी जरूरी है कि उसमें शामिल होने वाले राज्य परस्पर एक दूसरे के निकट हो। परस्पर दूर स्थित राज्यों का संघ सफलता से कार्य नहीं कर सकता । इसकी वजह यह है कि परस्पर दूर होने से उनके बीच यातायात की कठिनाई प्रशासन में शिथिलता बिना वजह की देरी तथा विभिन्न हिस्सों की रक्षा करना इत्यादि कठिन होगा।
(4) भाषा एवं संस्कृति इत्यादि की एकता- संघात्मक शासन की सफलता हेतु यह भी जरूरी है कि उनमें शामिल होने वाले राज्यों की भाषा एवं संस्कृति एक ही हो। भाषा एवं संस्कृति की भिन्नता होने पर इकाइयां परस्पर झगड़ते रहेंगे तथा प्रशासन ठीक से नहीं चल पाएगा ।