class 11th Political Science chapter 6 न्यायपालिका full solution//कक्षा 11वी राजनीति विज्ञान पाठ 6 न्यायपालिका पूरा हल
NCERT Class 11th Political Science Chapter 6 Judiciary Solution
Class 11th Political Science Chapter 6 NCERT Textbook Question Solved
अध्याय 6
◆न्यायपालिका◆
★ महत्वपूर्ण बिंदु ★
● प्रत्येक समाज में व्यक्तियों, समूहों तथा सरकार के बीच विवाद उत्पादन होते रहते हैं जिनको एक स्वतंत्र संस्था द्वारा अर्थात न्यायपालिका द्वारा हल किया जाता है।
● संवैधानिक रूप से भारतीय प्रणाली एकीकृत है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय सबसे ऊपर है।
● सर्वोच्च या उच्चतम न्यायालय भारत का अंतिम न्यायालय है, जिसके फैसले संपूर्ण भारत में बाद अधिकारी हैं।
● वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के अलावा 30 अन्य न्यायाधीश हैं।
● सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भारतीय राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
● सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति अनिवार्य रूप से मुख्य न्यायाधीश का भी परामर्श लेते हैं।
● हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर रहते हैं लेकिन उनके पद से कदाचार सिद्ध होने तक अथवा आयोग का सिद्ध होने पर संसद विशेष बहुमत द्वारा भी पदच्युत किया जा सकता है।
● सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार में मौलिक क्षेत्राधिकार, रेट संबंधी क्षेत्राधिकार, अपीली क्षेत्राधिकार तथा परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार सम्मिलित हैं।
● सर्वोच्च न्यायालय का एक प्रमुख कार्य संविधान व्याख्या तथा रक्षा करना भी है।
● सर्वोच्च न्यायालय के सभी फैसलों को प्रमाण अथवा दृष्टांत के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
● न्यायिक सक्रियता के न्याय व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाया है तथा कार्यपालिका उत्तरदाई बनने के लिए बाध्य हुई है।
● भारत में न्यायिक सक्रियता का प्रमुख साधन जनहित याचिका अथवा सामाजिक व्यवहार याचिका रही है।
★ पाठान्त प्रश्नोत्तर ★
प्रश्न 1. क्या न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। अपना उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में लिखें।
उत्तर- न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि वह किसी के भी प्रति उत्तरदायी नहीं है । भारत में न्यायपालिका भी संवैधानिक व्यवस्था का ही एक हिस्सा है, जो संविधान के ऊपर कभी भी नहीं हो सकता । न्यायपालिका देश की लोकतांत्रिक राजनीतिक संरचना का अति महत्वपूर्ण अंग है , जो संविधान, लोकतांत्रिक परंपरा तथा जनसाधारण के प्रति उत्तरदायी है। समय-समय पर पर न्यायपालिका को संविधान की व्याख्या एवं सुरक्षा करने मैं अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जहां नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा का दायित्व न्यायपालिका का है वही कानून के शासन की सुरक्षा एवं कानून की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करना ही करना भी उसी का कार्यक्षेत्र है । उक्त से स्पष्ट है कि न्यायपालिका भी संविधान का ही हिस्सा है तथा उसी के अनुसार उसे कार्य भी करना पड़ता है।
प्रश्न 2. न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए संविधान के विभिन्न प्रावधान कौन-कौन से हैं?
उत्तर- न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए निम्न संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं-
(1) न्यायाधीशों की नियुक्ति में संसद तथा राज्य विधान मंडलों की कोई भूमिका नहीं है। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के उपरांत करता है।
(2) संविधान में न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु निश्चित योग्यता एवं अनुभव का उल्लेख है है।
(3) न्यायाधीशों का सेवाकाल सुनिश्चित तथा दीर्घकालीन है। हालांकि सिद्ध कदाचार द्वारा इन को प्रदूषित किया जा सकता है लेकिन महाभियोग की प्रक्रिया काफी लंबी एवं जटिल है।
(4) न्यायाधीश अपने वेतन एवं भत्ते तथा अन्य आर्थिक सुख-सुविधाओं हेतु कार्यपालिका अथवा व्यवस्थापिका पर निर्भर नहीं है । उल्लेखनीय है कि उनके विवाह संबंधी बलों पर बहस एवं मतदान नहीं होता है। उनके सेवाकाल में उनको मिलने वाले वेतन में कटौती नहीं की जा सकती है।
5) न्यायपालिका के कार्य एवं फैसलों के आधार पर न्यायाधीशों की व्यक्तिगत आलोचना नहीं की जा सकती शैतान न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय बाध्यकारी होते हैं।
(6) सर्वोच्च न्यायालय के सेनाव्रत न्यायाधीश को भारतीय क्षेत्र में किसी न्यायालय अथवा अधिकारी के समक्ष वकालत करना निषेध है।
(7) न्यायालय के सभी अधिकारी एवं कर्मचारियों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों द्वारा की जाती है। इस प्रकार न्यायपालिका का अपने कर्मचारी वर्ग पर नियंत्रण है।
प्रश्न 3. जनहित याचिका किस तरह गरीबों की मदद करती है?
उत्तर- गरीब, अपंग अथवा सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण से पिछड़े लोगों के बारे में जनसाधारण में कोई भी व्यक्ति न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर कर सकता है। इन जनहित याचिकाओं में न्यायपालिका अपने सभी तकनीकी तथा कार्यवाही संबंधी नियमों की अनदेखी करते हुए एक सामान्य से प्रार्थना पत्र के आधार पर भी कार्यवाही कर सकती है। जनहित याचिकाओं पर तुरंत ही कार्यवाही की वजह से शीघ्रतम फैसला लिया जाता है, जिससे पीड़ित पक्ष को जल्दी ही अत्याधिक राहत मिल सके । क्योंकि जनहित याचिका में याचिका प्रस्तुत करने वाले का बहुत ही कम ब्यय होता है अतः यह निर्धन वर्ग की मददगार सिद्ध होती है। जनहित याचिका में गरीबों को सामाजिक न्याय मिलता है
प्रश्न 4. क्या आप मानते हैं कि न्याय का सक्रियता से न्यायपालिका और कार्यपालिका में विरोध पनप सकता है? क्यों?
उत्तर- हम जानते हैं कि न्यायिक सक्रियता से न्यायपालिका तथा कार्यपालिका में विरोध उत्पन्न हो सकता है। न्यायिक सक्रियता की वजह से न्यायपालिका समय-समय पर कार्यपालिका के कार्य में हस्तक्षेप करती रहती है जो कार्यपालिका को नापसंद होता है। अतः न्यायपालिका तथा कार्यपालिका में सदैव विरोध की प्रबल संभावना बनी रहती है। न्यायिक सक्रियता से विधायिका कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के कार्य के मध्य अंतर धुंधला होता चला जा रहा है। न्यायालय उन समस्याओं के मकड़जाल में उलझ गया है जिसे कार्यपालिका को हल करना चाहिए। न्यायिक सक्रियता की वजह से सरकार के तीनों अंगों में के मध्य पारंपरिक संतुलन लड़खड़ाने लगा है।
प्रश्न 5. न्यायिक सक्रियता मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के किस प्रकार में जुड़ी है? क्या इससे मौलिक अधिकारों के विषय क्षेत्र को बढ़ाने में मदद मिली है?
उत्तर - न्यायिक सक्रियता मौलिक अधिकारों की सुरक्षा में पूर्णरूपेण संबंध है। इसने मौलिक अधिकारों के विषय क्षेत्र को भी अत्याधिक व्यापक कर दिया है। यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन होता है तब न्यायालय अपनी सक्रियता दिखाते हुए और व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करता है। सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु बंदी प्रत्यक्षीकरण , परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण तथा अधिकार पृच्छा जारी करता है, जिससे मौलिक अधिकारों के विषय क्षेत्र को बढ़ाने में सहायता मिलती है।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर
★अति लघु उत्तरीय प्रश्न★
प्रश्न 1. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति किस प्रकार होती है?
उत्तर उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से की जाती है।
प्रश्न 2. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यताएं लिखिए।
उत्तर - 65 वर्ष से कम आयु का भारतीय नागरिक जो न्यूनतम 5 वर्ष तक किसी उच्च न्यायालय का न्यायधीश अथवा 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो अथवा राष्ट्रपति के मतानुसार कानून का स्पष्ट ज्ञाता हो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश होने की योग्यताएं रखता है।
प्रश्न 3. उच्चतम न्यायालय के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार में आने वाले किसी एक बाद को बताइए।
उत्तर- केंद्रीय सरकार अथवा एक अथवा एक से अधिक राज्यों के बीच विवाद उच्चतम न्यायालय के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार में आएगा।
प्रश्न 4. उच्चतम न्यायालय मूल अधिकारों की रक्षार्थ कौन-कौन से लेख जारी कर सकता है?
उत्तर - उच्चतम न्यायालय मूल अधिकारों की रक्षार्थ बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण तथा अधिकार परीक्षा लेख जारी कर सकता है।
प्रश्न 5. उच्चतम न्यायालय का एक विशेष अपीलीय अधिकार बताइए।
उत्तर- उच्चतम न्यायालय में एक ऐसी दीवानी विवादों की अपील की जा सकती है, जिसमें उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दें कि इन विवादों में कानूनी व्याख्या से संबंधित सारपूर्ण प्रश्न निहित है।
प्रश्न 6. उच्चतम न्यायालय फौजदारी के किन मुकदमों की सुनवाई कर सकता है।
उत्तर -यदि उच्च न्यायालय में अपील में किसी अपराधी की मुक्ति के आदेश को पलट कर उसे मृत्युदंड दिया है तो उच्चतम न्यायालय ऐसे फौजदारी मुकदमे की सुनवाई कर सकता है।
प्रश्न 7. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने हेतु किसी व्यक्ति में कौन-कौन सी योग्यताएं होनी चाहिए?
उत्तर- 60 वर्ष से कम आयु का भारतीय नागरिक जो न्यूनतम 10 वर्ष तक किसी न्यायालय में न्यायाधीश अथवा 10 वर्ष तक न्यायालय में अधिवक्ता रह चुका हो अथवा राष्ट्रपति के मत में कानून का विशिष्ट ज्ञाता हो, उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होने की योग्यता रखता है।
प्रश्न 8. उच्च न्यायालय का न्यायाधीश अपने पद पर कब तक कार्य कर सकता है?
उत्तर- उच्च न्यायालय का न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक अपने पद पर कार्य कर सकता है । इससे पूर्व स्वेच्छा से अथवा संसद द्वारा महाभियोग द्वारा पद से हट सकता है।
प्रश्न 9. क्या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा सकता है ?
उत्तर- संविधान में महाभियोग शब्द का उल्लेख नहीं है लेकिन संसद द्वारा पारित कदाचार अथवा अयोग्यता के प्रस्ताव पर राष्ट्रपति किसी भी न्यायाधीश को पदमुक्त कर सकता है।
प्रश्न 10. उच्च न्यायालय के किन्ही दो प्रारंभिक क्षेत्राधिकार के मामलों पर उल्लेख कीजिए?
उत्तर- (1) संविधान की व्याख्या तथा मूल अधिकारों की रक्षा संबंधी मामले,
(2) विवाह, तलाक एवं बसीयत संबंधी मामले ।
प्रश्न 11. किस संबंध में उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के प्रारंभिक क्षेत्राधिकार में समानता है?
उत्तर- भारतीय संविधान की व्याख्या से संबंधित विवाद तथा ऐसे मामले जिनका संबंध मूल अधिकारों की रक्षा से हो।
प्रश्न 12. न्यायिक स्वतंत्रता की कोई तीन शर्ते लिखिए। उत्तर (1) न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक रखा जाए,(2) न्यायाधीशों को पर्याप्त वेतन एवं भत्ते दिए जाएं तथा (3) न्यायाधीशों का कार्यकाल सुनिश्चित हो।
★लघु उत्तरीय प्रश्न★
प्रश्न 1. उच्चतम न्यायालय की रचना किस प्रकार होती है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर- भारत की सर्वोच्च अदालत उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर तथा मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा करता है। मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति से पूर्व राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय तथा राज्य के उच्च न्यायालय के ऐसे न्यायाधीशों से सलाह लेता है, जिन से परामर्श करना वह जरूरी समझता है। अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति उपराष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश के परामर्श पर करता है। भारतीय संसद ने मार्च 2008 में' सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीशों की संख्या अधिनियम 1985' को संशोधित करके उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के अलावा 30 अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की है। संविधान के अनुच्छेद 124 द्वारा न्यायाधीशों की संख्या मैं वृद्धि करने का अधिकार संसद को है। भारतीय संसद ने इस अनुच्छेद का प्रयोग करके समय समय पर न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि की है।
प्रश्न 2. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, अन्य न्यायाधीशों, कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश तथा तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति भारतीय राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर एवं मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा करता है। हालांकि राष्ट्रपति का यह अधिकार सैद्धांतिक है तथा व्यवहार में उसकी शक्ति का प्रयोग केंद्रीय मंत्री परिषद् करती है। मुख्य न्यायाधीश को नियुक्त करते समय वरिष्ठता क्रम का ध्यान रखा जाता है, लेकिन इस बारे में संवैधानिक बाध्यता न होने की वजह से कभी-कभी वरिष्ठता क्रम की उपेक्षा भी कर दी जाती है। उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों को नियुक्त करते समय राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश से जरूर सलाहा लेता है। मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त होने अथवा उसकी अनुपस्थित रहने अथवा उसके असमर्थ होने की स्थिति में राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों में से ही एक कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करता है। जरूरत पड़ने पर मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति से उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में से 'तदर्थ न्यायाधीश' नियुक्त कर सकता है।
प्रश्न 3. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यताएं लिखिए।
उत्तर- उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने हेतु किसी व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताएं होनी जरूरी है-
(1)वह भारत का नागरिक हो।
(2) उसकी आयु 65 वर्ष से अधिक ना हो।
(3) वह किसी उच्च न्यायालय आशीर्वाद दो या दो से अधिक उच्च न्यायालय मैं लगातार 5 वर्ष तक न्यायाधीश रह चुका हो ,
अथवा
वह किसी उच्च न्यायालय या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में कम से कम 10 वर्षों तक अधिवक्ता वकील रह चुका हो
अथवा
राष्ट्रपति की दृष्टि में वह कानून का उच्च कोटि का जानकार हो।
प्रश्न 4. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की पदावधि एवं पदच्युति बताइए।
उत्तर हालांकि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु पूर्ण होने तक अपने पद पर बने रहते हैं। लेकिन यदि संसद के दोनों सदन अलग-अलग अपनी उपस्थिति तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से किसी न्यायाधीश के आयोग अथवा दुराचारी होने का प्रस्ताव पारित करके राष्ट्रपति को भेज दे तो राष्ट्रपति संबंधित न्यायाधीश को पद त्यागने का आदेश दे सकता है। ऐसी परिस्थिति में संबंधित न्यायाधीश को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ता है। यह यह उल्लेखनीय है कि इस आशय का प्रस्ताव संसद के एक ही अधिवेशन में स्वीकृत होना जरूरी है ।
प्रश्न 5. उच्चतम न्यायालय की न्यायिक सक्रियता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- उच्चतम न्यायालय ने सार्वजनिक कल्याण तथा प्रशासनिक विवेक सम्मतता की स्थापना हेतु सामाजिक एवं आर्थिक शोषण तथा प्रशासनिक स्वेच्छाचारिता को आधार बनाते हुए अनुच्छेद 32 के अंतर्गत लोकहित याचिका की स्वीकृति की अनुमति प्रदान करके यह स्थापित किया जाता है कि कानून द्वारा स्थापित कार्यवाही भी विवेक सम्मत श्रेष्ठ तथा न्याय पूर्ण होनी चाहिए। इस तरह की लोक हितकारी याचिकाओं की सुनवाई हेतु मुकदमा न्यायालय के सामने लाकर सुनवाई करते समय विभिन्न कानूनी औपचारिकताओं को एक तरफ रख कर मौलिक मुद्दों पर पहुंचना ही 'न्यायिक सक्रियता ' कहलाता है। विवेकपूर्ण कानून कार्यवाहीयों के आधार पर उच्चतम न्यायालय के अनेक शासकीय आदेशों को अवैधानिक करार दिया है।
प्रश्न 6. किन फौजदारी मुकदमा संबंधी अपील उच्चतम न्यायालय के पास ले जायी जा सकती है ?
उत्तर उच्च न्यायालय के निम्नलिखित फौजदारी मुकदमों के फैसले के खिलाफ अपील उच्चतम न्यायालय के पास ले जाई जा सकती है-
(1)ऐसा विवाद जिसमें निम्न नए व्यक्ति को रिहा (बरी) कर दिया हो तथा उच्च न्यायालय ने उस को मृत्युदंड दे दिया हो।
(2) उच्च न्यायालय ने किसी ने अदालत में चल रहे मुकदमे को सीधा अपने पास मंगवा लिया हो तथा दोषी को मृत्युदंड दे दिया हो।
(3)उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर दें कि मुकदमा अपील के योग है।
(4) उच्चतम न्यायालय किसी भी फौजदारी मुकदमे की अपील करने की विशेष अनुमति प्रदान कर सकता है।
प्रश्न 7. उच्चतम न्यायालय की किन्ही चार प्रबंध किए शक्तियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- उत्तम न्यायालय की निम्न प्रबंध किए शक्तियां हैं-
(1)एक यह अपने अधीनस्थ न्यायालयों के कार्यों की देखभाल करके कार्यविधि संबंध नियम बनाता है।
(2) उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों के अलावा दूसरे कार्य करने वाले अधिकारियों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जाती है।
(3) उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ताओं हेतु आचार संहिता का निर्माण इसी न्यायालय द्वारा होता है।
(4) यह न्यायालय किसी भी व्यक्ति को अदालत में उपस्थित होने तथा जरूरी प्रमाण पत्र जारी प्रस्तुत करने हेतु आदेशित कर सकता है।
प्रश्न 8. उच्च न्यायालय का का गठन किस प्रकार होता है? स्पष्ट कीजिए?
अथवा
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति कैसे की जाती है?
उत्तर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 217 के अनुसार, राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा संबंधित राज्य के राज्यपाल के परामर्शानुसार करता है। वह अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायाधीश संबंधित राज्य के राज्यपाल एवं राज्य उच्च न्यायालय के प्रमुख न्यायाधीश की सलाह से करता है। लेकिन व्यवहार में राज्य का मुख्यमंत्री उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश के परामर्शानुसार नियुक्ति हेतु नामों की एक सूची तैयार कर के राज्यपाल को सौंपता है। राजपाल इस सूची को राष्ट्रपति के पास भेज देता है, जिस पर राष्ट्रपति अपनी स्वीकृति प्रदान कर देते हैं।
प्रश्न 9. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल कितना होता है?
उत्तर -संविधान के अनुच्छेद 217 (1) के द्वारा उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश (अतिरिक्त एवं कार्यवाहक न्यायाधीश को छोड़कर) 62 वर्ष की आयु पूर्ण करने तक अपने पद पर बना रह सकता है। इसके पूर्व भी यदि वह चाहे तो अपने पद से त्यागपत्र दे सकता है। इसके अतिरिक्त यदि संसद अपने बहुमत से किसी न्यायाधीश के आयोग एवं दुराचारी होने का प्रस्ताव पारित कर दे तो राष्ट्रपति और न्यायाधीश को उसके पद से हटा सकता है।
प्रश्न 10 उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की स्वतंत्रता हेतु संविधान द्वारा कौन-कौन से उपबंध की व्यवस्था की गई है।
उत्तर उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की स्वतंत्रता हेतु संविधान द्वारा निम्नलिखित बंदूक की व्यवस्था की गई है-
(1)न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
(2) न्यायाधीशों के कार्यकाल की सुरक्षा की गई है।
(3) न्यायाधीशों को पर्याप्त वेतन एवं भत्ते के साथ पेंशन की व्यवस्था की गई है।
(4) न्यायाधीशों को आलोचना से मुक्त रखा गया है।
(5) न्यायाधीशों की अवकाश ग्रहण करने के बाद उनकी वकालत पर प्रतिबंध लागू किया गया है।
(6) न्यायाधीशों को संविधान की रक्षा की शक्ति प्रदान की गई है।
★ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ★
प्रश्न 1. उच्चतम न्यायालय की शक्तियां एवं कार्य लिखिए।
अथवा
उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर- उच्चतम न्यायालय को व्यापक क्षेत्र अधिकार प्रदान किया गया है जिसे संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) प्रारंभिक क्षेत्राधिकार- उच्चतम न्यायालय ने प्रारंभिक रूप से निम्न विवादों की सुनवाई की जाती है-
(1)संघीय सरकार तथा एक अथवा एक से अधिक राज्यों के बीच विवाद।
(2) संघीय शासन , संघीय इकाई के किसी राज्य अथवा राज्यों तथा एक से अधिक राज्यों के बीच विवाद।
(3) दो अथवा दो से अधिक राज्यों के बीच संविधानिक विषयों के बारे में पैदा कोई विवाद तथा।
(4) नागरिकों के मूल अधिकार के उल्लंघन से संबंधित कोई विवाद (यह अधिकार उच्च न्यायालय को भी है।)
(2) अपीलीय क्षेत्राधिकार- भारत के अंतिम अपीलीय न्यायालय उच्चतम न्यायालय से उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ निम्न अपील की जा सकती हैं-
(i) संवैधानिक अपीलें - यदि किसी विवाद में संविधानिक व्याख्या का प्रश्न निहित है, तो उसकी अपील उच्चतम न्यायालयों में की जा सकती है।
(ii) दीवानी अपीलें- यदि किसी विवाद में कानून की व्याख्या का प्रश्न महत्व हो तो इस तरह के दीवानी व्यवहारिक मामले की अपील उच्चतम न्यायालय में की जाती है।
(iii) फौजदारी अपीलें फौजदारी अपराधिक विवादों में उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ कुछ शर्तों के साथ उच्चतम न्यायालय में अपील की जा सकती है।
(3) पुनर्विचार संबंधी क्षेत्राधिकार- उच्चतम न्यायालय स्वयं द्वारा दिए गए आदेश अथवा फैसले पर फिर से विचार करके उस में जरूरी बदलाव कर सकता है । उसके द्वारा ऐसा तब किया जाता है , जब उसे यह संदेह हो जाता है कि उसके द्वारा दिए गए फैसले में किसी पक्ष के प्रति न्याय नहीं हुआ है।
(4) परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार- यदि किसी समय राष्ट्रपति को लगे की विधि अथवा तथ्य पर कोई ऐसा प्रश्न पैदा हुआ है जो सार्वजनिक महत्व का है तो वह उस प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय का परामर्श मांगता है, तब उच्चतम न्यायालय अपने इस क्षेत्राधिकार का प्रयोग करता है।
(5) अन्य क्षेत्राधिकार- उच्चतम न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय है जिसके फैसले सुरक्षित रखे जाते हैं तथा समय पड़ने पर उन्हें साक्ष्य के रूप में स्वीकारा जाता है। न्यायालय के कार्य को सुचारू रूप से चलाने हेतु अधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश अथवा उसके द्वारा मनोनीत किसी अन्य न्यायाधीश द्वारा की जाती है।
प्रश्न 2. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या एवं योग्यताएं लिखते हुए अपील क्षेत्राधिकार का वर्णन कीजिए ।
उत्तर- वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश तथा 30 अन्य न्यायाधीश है।
[योग्यता के लिए अति लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 तथा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 1. के उत्तर में "(2) अपीलीय क्षेत्राधिकार "शीर्ष का अध्ययन कीजिए।】
प्रश्न 3. "संविधान के अभिभावक" तथा "मूल अधिकारों के संरक्षक" के साथ में उच्चतम न्यायालय के कार्य एवं शक्तियों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
उच्चतम न्यायालय मौलिक अधिकारों का संरक्षक है। समझाइए ।
उत्तर- उच्चतम न्यायालय संविधान के अभिभावक की भूमिका का निर्वाहन करता है। इसका तात्पर्य यह है कि उसे कानूनों की वैधानिकता की जांच पड़ताल करने की शक्ति हासिल है। संविधान के अनुच्छेद 131 एवं 132 द्वारा उच्चतम न्यायालय को संघीय तथा राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए कानूनों के पुनर्विलोकन की शक्ति प्रदान की गई है। यदि विधायिका कोई ऐसा कानून बनाती है जो संविधान के खिलाफ है अथवा कार्यपालिका कोई ऐसा आदेश जारी करती है जो संविधान के विरुद्ध है, तो उच्चतम न्यायालय उसको असंवैधानिक घोषित करके उसे रद्द कर सकता है। उच्चतम न्यायालय का यह अधिकार शासन को मर्यादित रखने का एक प्रमुख साधन है। उसकी इस प्रमुख शक्ति के कारण ही उसे संविधान का अभिभावक माना जाता है। 1997 में उच्चतम न्यायालय ने 'चंद्रमोहन विवाद' मैं यह फैसला सुनाया था कि 'न्यायिक पूनार्विलोकन ' संविधान के आधारभूत ढांचे का ही एक हिस्सा है।
उच्चतम न्यायालय : मूल अधिकारों का संरक्षक
उच्चतम न्यायालय मूल अधिकारों का संरक्षक भी है। कोई भी सरकार नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकती। यदि किसी राजकीय आदेश अथवा कानून से मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है तो कोई भी व्यक्ति उच्चतम न्यायालय में सीधे याचिका दायर करके अधिकारों की रक्षा की मांग कर सकता है। न्यायालय बंदी ,प्रत्याक्षीकरण ,परमादेश ,प्रतिषेध, उत्प्रेषण तथा अधिकार पृच्छा के आदेश जारी कर के मूल अधिकारों की रक्षा करता है । इस तरह मूल अधिकारों हेतु यह संवैधानिक आश्वासन उच्चतम न्यायालय के माध्यम से पूर्ण किया जाता है।
उक्त से स्पष्ट है कि भारतीय उच्चतम न्यायालय संविधान के अभिभावक तथा मूल अधिकारों के संरक्षक के रूप में महत्वपूर्ण शक्ति रखता है।
प्रश्न 4. उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार की विवेचना कीजिए।
उत्तर उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को तीन भागों में विभक्त करने में प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) लेख क्षेत्राधिकार- संविधान के अनुच्छेद 226 के अनुसार उच्च न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र में स्थित किसी व्यक्ति अथवा अधिकारी के प्रति निर्देश, आदेश अथवा लेख (रेट) जारी कर सकता है। इसके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण तथा अधिकार पृच्छा लेख सम्मिलित हैं।
(2) अपीलीय क्षेत्राधिकार- उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालयों के खिलाफ विभिन्न दीवानी एवं फौजदारी मामले में अपील सुन सकता है। उन दीवानी व फौजदारी मुकदमों की अपीलें उच्च न्यायालय में की जा सकती हैं, जिनमें कानून का कोई महत्वपूर्ण प्रश्न अंतर्ग्रस्त हो । न्यायालय के किसी अभियुक्त को मृत्युदंड दिया जाता हो, तो उस दंड को संपुष्टि उच्च न्यायालय द्वारा अनिवार्य रूप से होना जरूरी है ।
(3) प्रशासकीय क्षेत्राधिकार - उच्च न्यायालय राज्य की न्यायपालिका का नेतृत्व करते हुए उसके प्रशासन का संचालन करता है। इस क्रम में निम्न शक्तियों का प्रयोग करता है-
(i) अधीक्षण की शक्ति- प्रत्येक उच्च न्यायालय को अपने अपने अधिकार क्षेत्र में सभी अधीनस्थ न्यायालयों एवं अधिकारियों के क्रियाकलापों की देखभाल करने की शक्ति है ।
(ii) अभिलेख न्यायालय की- संविधान का अनुच्छेद 215 प्रत्येक उच्च न्यायालय को एक अभिलेख न्यायालय घोषित करता है। अतः ऐसे न्यायालयों को अपनी अवमानना के दोषी को दंडित करने की शक्ति के साथ सभी अधिकार प्राप्त होते हैं। उच्च न्यायालय द्वारा किए गए फैसले अधीनस्थ न्यायालयों हेतु पूर्व फैसले के रूप में बाध्यकारी होते हैं।
(iii) स्व कार्यों के नियमन की शक्ति- उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अपने न्यायालयों के पदाधिकारियों एवं अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकता है। है ऐसी नियुक्तियों हेतु नियमों का निर्माण भी करता है, लेकिन इस संबंध में राज्य का राज्यपाल उसे राज्य लोक सेवा आयोग के परामर्श लेने को कह सकता है।