class 11th Political Science chapter 4 कार्यपालिका full solution

sachin ahirwar
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class 11th Political Science chapter 4 कार्यपालिका full solution//कक्षा 11वी राजनीति विज्ञान पाठ 4 कार्यपालिका पूरा हल

NCERT Class 11th Political Science Chapter 4 Executive Solution 

Class 11th Political Science Chapter 4 NCERT Textbook Question Solved


 अध्याय 4

◆कार्यपालिका◆

★महत्वपूर्ण बिंदु


●सरकार के तीन अंग विधायिका, कार्यपालिका बताना न्यायपालिका हैं।

● कार्यपालिका सरकार का बयान है जिसका कार्य विधायिका द्वारा निर्मित किए गए कानूनों को कार्य रूप में परिणत करना तथा उसी आधार पर प्रशासन का संचालन करना है।

● कार्यपालिका के दो भाग राजनीतिक कार्यपालिका तथा स्थाई कार्यपालिका है।

● अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रपति राज्य एवं सरकार दोनों का ही प्रधान होता है जबकि संसदीय कार्यपालिका में राष्ट्रपति नाम मात्र का अध्यक्ष होता है तथा उसकी वास्तविक कार्यकारी शक्तियां प्रधानमंत्री एवं उसकी मंत्रिपरिषद में निहित होती हैं।

● भारतीय संविधान औपचारिक रूप से संघीय कार्यपालिका शक्तियां राष्ट्रपति को प्रदर्शित करता है परंतु वास्तविक रूप में वह प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्री परिषद के माध्यम से उन शक्तियों का उपयोग करता है।

● भारतीय राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल के नेता को प्रधानमंत्री तथा उसकी अनुशंसा पर मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों को नियुक्त करता है।

● भारतीय उपराष्ट्रपति का चुनाव ही राष्ट्रपति की तरह ही होता है, लेकिन उसके निर्वाचन मंडल में राज्य विधानसभाओं के सदस्य नहीं होते हैं।

● संसदीय कार्यपालिका विधायिका के नियंत्रण तथा देखरेख में रहती है तथा संपूर्ण मंत्री परिषद लोक सदन के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदाई होता है।

● भारतीय प्रधानमंत्री का सरकार में सर्वोपरि स्थान है। वह मंत्री परिषद एवं राष्ट्रपति तथा संसद के बीच एक सेतु का कार्य करता है।


◆पाठान्त प्रश्नोत्तर◆


प्रश्न 1. क्या मंत्रिमंडल की सलाह राष्ट्रपति को हर हाल में माननी पड़ती है? आप क्या सोचते हैं? अपना उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में लिखें।

उत्तर हमारे देश में संपूर्ण प्रशासन संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति द्वारा चलाया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 74 में स्पष्ट प्रावधान है कि राष्ट्रपति को परामर्श तथा सहायता देने हेतु प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक मंत्री परिषद होगी। हालांकि संवैधानिक रूप से इस मंत्री परिषद का कार्य भारतीय राष्ट्रपति को परामर्श एवं सहायता देना है, लेकिन व्यवहारिक रूप से राष्ट्रपति मंत्री परिषद का परामर्श मान्य हेतु बाध्य है। संविधान में हुए 44 वें  संविधानिक संशोधन के पश्चात यह प्रावधान किया गया है कि मंत्री परिषद द्वारा राष्ट्रपति को भेजी गई सलाह को भी पुनर्विचार हेतु वापस लौटा सकता है। परंतु मंत्रिपरिषद फिर से उस अनुशंसा को राष्ट्रपति के पास भेजती है तब राष्ट्रपति से मानने हेतु बाध्य है।



प्रश्न 2. कार्यपालिका की संसदीय व्यवस्था ने कार्यपालिका को नियंत्रण में रखने के लिए विधायिका को बहुत से अधिकार दिए हैं । कार्यपालिका को नियंत्रित करना इतना जरूरी क्यों है ? आप क्या सोचते हैं?

उत्तर- संसदात्मक प्रणाली वाले भारत में कार्यपालिका को नियंत्रण में रखने के लिए भारतीय संसद अनेक उपाय प्रयुक्त करती है। कार्यपालिका को नियंत्रित करना इस कारण आवश्यक है कि वर्तमान परिस्थितियों में कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है, जिससे कार्यपालिका के निरंकुश होने का डर हमेशा ही बना रहता है।

प्रश्न 3. नियुक्ति आधारित प्रश्न की जगह निर्वाचन आधारित प्रशासन होना चाहिए- इस विषय पर 200 शब्दों में एक उल्लेख लिखो।

उत्तर- हमारा मानना है कि नियुक्ति आधारित प्रशासन के स्थान पर निर्वाचन आधारित प्रशासन होना सर्वथा उचित नहीं होगा, क्योंकि विशाल लोकतांत्रिक देश भारत की जनसंख्या अधिक होने के बावजूद यहां की लोकतांत्रिक व्यवस्था अभूतपूर्व है, परंतु प्रशासन कार्यकुशलता की श्रेणी में विश्व के भ्रष्ट देशों की सूची में आता है। निर्वाचन पद्धति को आधार बनाकर नियुक्ति करना औचित्यहीन होता है, क्योंकि इससे सत्तारूढ़ भ्रष्ट नेताओं को अपने अपने चाटूकारों को प्रशासनिक अधिकारी बनाने का अवसर मिल जाएगा जिसके परिणाम स्वरूप व प्रशासनिक मामलों में अधिकाधिक हस्तक्षेप  करने लगेंगे।


प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति एक स्वतंत्र निकाय द्वारा प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से होने से प्रतिभागियों की विभागीय क्षमता तथा प्रशासनिक कार्य कुशलता को भलीभांति जांचा परखा जाता है। इसके साथ-साथ उससे यह भी अपेक्षा की जाती है कि वे विषम से विषम  परिस्थितियों में भी इस विशाल भारत की जनभावनाओं तथा संवेदनाओं का ध्यान रखते हुए अपनी कार्यक्षमता का अधिकाधिक प्रयोग करेंगे। उक्त से स्पष्ट है कि नियुक्ति आधारित प्रशासन विपरीत परिस्थितियों में सुगमता से समस्याओं का समाधान कर सकती है, जो निर्वाचन आधारित प्रशासन द्वारा जरा भी असंभव प्रतीत होता है।


परीक्षापयोगी अन्य प्रश्नोत्तर


अति लघु उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न 1. राष्ट्रपति का चुनाव कौन लोग चुनाव प्रणाली के द्वारा करते हैं ?

उत्तर - राष्ट्रपति का चुनाव संसद एवं विधान सभा की के निर्वाचित सदस्य गुप्त प्रदान स्वरा समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा करते है।


प्रश्न 2. राष्ट्रपति के चुनाव में "कोटा पद्धति" का क्या महत्व है ?

उत्तर-  राष्ट्रपति पद के के प्रत्याशी के लिए निर्वाचन के लिए "कोटा पद्धति" के कारण कुल मतों का 50% अथवा न्यूनतम निर्वाचन कोटा प्राप्त करना जरूरी है।


प्रश्न 3. राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी हेतु कौन सी योग्यताएं होनी चाहिए? किन्ही तीन का उल्लेख कीजिए। 

 उत्तर -(1) वह भारत का नागरिक हो

 (2) वह न्यूनतम 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो तथा 

(3) वह लोकसभा का सदस्य होने की योग्यता रखता हो ।



प्रश्न 4. वर्तमान में भारत के गृहमंत्री कौन हैं ?

उत्तर - अमित शाह।


प्रश्न 5 . राष्ट्रपति का कार्यकाल कितना होता है?

उत्तर- राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष है। इस समय अवधि से पूर्व वे स्वेच्छा से त्यागपत्र देकर परित्याग सकता है तथा संसद महाभियोग चला कर भी उसे पदच्युत कर सकती है।


प्रश्न 6. राष्ट्रपति की किन्ही तीन शक्तियों को लिखिए। उत्तर- (1) वह लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री तथा उसकी सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है' (2) वह समय अवधि से पूर्व प्रधानमंत्री के परामर्श पर लोकसभा को भंग कर सकता है तथा (3) संसद द्वारा पारित विधायकों को अपनी स्वीकृति देता है।



प्रश्न 7. भारत का उपराष्ट्रपति कैसे निर्वाचित होता है?

 उत्तर- उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों द्वारा एकल संक्रमणीय मत प्रणाली एवं आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अंतर्गत गुप्त मतदान द्वारा होता है।


प्रश्न 8. उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशी का नाम कितने निर्वाचक द्वारा प्रस्तावित एवं अनुमोदित होना जरूरी है?

 उत्तर -उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशी का नाम न्यूनतम 20 निर्वाचक ओ द्वारा प्रस्तावित तथा इतने ही निर्वाचक ओ द्वारा अनुमोदित होना जरूरी है।


प्रश्न 9. उपराष्ट्रपति को कितना वेतन मिलता है?

 उत्तर- उपराष्ट्रपति को ₹400000 मासिक वेतन तथा केंद्रीय मंत्रियों को मिलने वाली अन्य सभी सुविधाएं प्राप्त होती हैं 1997 में सेवानिवृत्त होने के बाद उपराष्ट्रपति हेतु पेंशन का भी प्रावधान किया गया है।



प्रश्न 11. प्रधानमंत्री की नियुक्ति किस तरह होती है ?

उत्तर- राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है। लोकसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत ना मिलने की स्थिति में राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है जो लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने की क्षमता रखता हो ।



प्रश्न 12 . भारतीय प्रधानमंत्री को वेतन एवं भत्ते के रूप में कितनी धनराशि प्राप्त होती है?

 उत्तर - ₹165000 प्रति माह।


प्रश्न 13. अन्य मंत्रियों की नियुक्ति किस प्रकार की जाती है ?

उत्तर- अन्य मंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री के परमाणु पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। अन्य मंत्रियों की नियुक्ति में राष्ट्रपति स्वतंत्र ना होकर प्रधानमंत्री के परमाणु को मानदेय हेतु बाध्य होता है।


प्रश्न 14. कैबिनेट स्तर के मंत्री को कितना वेतन मिलता है ?

उत्तर- कैबिनेट मंत्री को ₹65000 मासिक वेतन एवं निशुल्क सरकारी निवास तथा यात्रा भत्ता मिलता है।



प्रश्न 15. प्रधानमंत्री को मंत्रिपरिषद की दूरी क्यों कहा जाता है?

 उत्तर- प्रधानमंत्री मंत्रीपरिषद का निर्माता पुनर्गठनतकर्ता, संचालनकर्ता,  संहारक अथवा विघटनकर्ता तथा उसका अध्यक्ष होता है, इसी कारण उसे मंत्री परिषद की दूरी कहा जाता है।



प्रश्न 16. क्या प्रधानमंत्री की स्थिति 'समकक्षो में प्रथम' की है ?

उत्तर - भारत में प्रधानमंत्री की स्थिति मिली-जुली सरकारों में 'समकक्षो में प्रथम' जैसी होती है तथा एक दलीय बहुमत की स्थिति में उसकी स्थिति 'मंत्रीपरिषद्' की दूरी के रूप में हो जाती है।


प्रश्न 17. प्रधानमंत्री के दो प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।

 उत्तर- (1) मंत्रियों के बीच प्रशासनिक विभागों का वितरण करना तथा (2)गृह तथा विदेश नीति का संचालन करना।




प्रश्न 18 नौकरशाही की कोई एक परिभाषा लिखिए।

उत्तर - नौकरशाही उन लोगों के परसोंपान , कार्यों के विशेषीकरण तथा उच्चस्तरीय क्षमता से युक्त संगठन हैं, जिन्हें इन पदों पर कार्य करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।


प्रश्न 19 नौकरशाही के कोई तीन गुण लिखिए?

 उत्तर- (1) नौकरशाही कानूनों एवं नियमों में अटूट विश्वास रखती है ,(2) प्रत्येक नौकरशाही की सत्ता परिभाषित एवं निर्धारित होती है तथा (3) नौकरशाही के कार्य करने का एक विशिष्ट ढंग होता है।


लघु उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न 1. राष्ट्रपति को हटाने की विधि बताइए।

 उत्तर- हालांकि राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष है, लेकिन संविधान का उल्लंघन करने पर उसे महाभियोग द्वारा कार्यकाल पूरा होने से पहले भी पद से हटाया जा सकता है। राष्ट्रपति पर महाभियोग प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन के कुल सदस्यों के न्यूनतम एक चौथाई सदस्यों द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है। राष्ट्रपति को इस प्रस्ताव की सूचना 14 दिन पहले दी जानी जरूरी है । यदि महाभियोग का प्रस्ताव सदन के कुल सदस्यों के दो तिहाई बहुमत को स्वीकृत होता है, तो इस प्रस्ताव को दूसरे सदन के पास जांच एवं निर्णय हेतु भेजा जाता है । यदि संसद का दूसरा सदन भी कुल सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से राष्ट्रपति के खिलाफ इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है तो राष्ट्रपति को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ेगा ।



प्रश्न 2. भारतीय राष्ट्रपति को कौन कौन सी उन्मुक्तियाँ प्राप्त हैं?

उत्तर- संविधान द्वारा भारतीय राष्ट्रपति को कुछ उन्मुक्तियाँ प्रदान की गई हैं। अपने कार्यकाल में अपने पद के अधिकारों एवं कर्तव्यों से संबंधित किसी भी कार्य हेतु राष्ट्रपति को किसी भी न्यायालय के समक्ष उत्तरदाई नहीं ठहराया जा सकता है । उस पर कोई फौजदारी का मुकदमा भी नहीं चलाया जा सकता है। दो महीने पहले लिखित सूचना देकर कि उसके खिलाफ कोई  दीवानी कार्यवाही की जा सकती है लेकिन इस बारे में उसकी अनुमति जरूरी है। राष्ट्रपति को न तो बंदी बनाया जा सकता है और न ही उसे न्यायालय के सामने उपस्थित होने का आदेश दिया जा सकता है।


प्रश्न 3. राष्ट्रपति की शक्तियों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए। 

उत्तर- शासन संबंधी सभी कार्य राष्ट्रपति के नाम से किए जाते हैं । राष्ट्रपति प्रधानमंत्री एवं उसकी मंत्रीपरिषद् के साथ राज्यों के राज्यपाल , महाधिवक्ता , महालेखापरीक्षक, विभिन्न देशों  भारतीय राजदूतों तथा तीनों सेनाओं के अध्यक्षों इत्यादि की नियुक्ति करता है। किसी देश से युद्ध करने तथा उसे रोकने का आदेश भी उसी के द्वारा दिया जाता है । संसद द्वारा पारित विधेयक उसके हस्ताक्षर होने के बाद ही कानून का रूप लेते हैं । राष्ट्रपति लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय से दो तथा राज्यसभा में विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञों से 12 लोगों की सदस्य के रूप में मनोनीत करता है। समयावधि के पूर्व प्रधानमंत्री की सिफारिश पर है लोकसभा को भंग करने की शक्ति भी रखता है । आपात परिस्थितियों में वह देश में आपातकाल की घोषणा कर सकता है। राष्ट्रपति को क्षमादान की शक्ति भी हासिल है।


प्रश्न 4. उपराष्ट्रपति के पद के लिए किसी प्रत्याशी में कौन-कौन सी योग्यताएं आवश्यक हैं?

उत्तर- (1) भारत का नागरिक हो , (2) उसकी आयु 35 वर्ष हो, (2)  वह राज्यसभा का सदस्य निर्वाचित करने की योग्यता रखता हो , (4) वह सरकारी लाभ के पद पर न हो, (5)उसके नाम का प्रस्ताव एवं समर्थन अलग-अलग 20-20 निर्वाचकों को द्वारा किया गया तथा (6) उसने ₹15000 की जमानत राशि जमा की हो ।



प्रश्न 5. प्रधानमंत्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है?

उत्तर- प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। लेकिन वास्तव में राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति में स्वतंत्र नहीं है, क्योंकि जिस व्यक्ति को भी लोकसभा में बहुमत का विश्वास प्राप्त होता है, राष्ट्रपति को उसे ही प्रधानमंत्री नियुक्त करना पड़ेगा । लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है। जब लोकसभा में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है,तब राष्ट्रपति सबसे बड़े राजनैतिक दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है तथा वह निर्धारित समय सीमा में सदन में अपना बहुमत सिद्ध करता है।



प्रश्न 6 लोकसभा के नेता के रूप में प्रधानमंत्री के क्या अधिकार हैं?

 उत्तर- प्रधानमंत्री संसद का नेता होता है तथा वह उसका नेतृत्व करता है। संसद का कार्यक्रम प्रधानमंत्री की इच्छा के अनुरूप ही बनाया जाता है। संसद में सभी महत्वपूर्ण घोषणाएं भी उसी के द्वारा की जाती है । जब भी संसद में कोई महत्वपूर्ण समस्या आ खड़ी होती है तो सभी सदस्य प्रधानमंत्री के नेतृत्व की ओर ही देखते हैं। प्रधानमंत्री की इच्छानुसार ही संसद का अधिवेशन बुलाया जाता है तथा प्रधानमंत्री के परामर्श पर ही राष्ट्रपति लोकसभा को भंग कर सकता है।



प्रश्न 7 केंद्रीय मंत्रीपरिषद् में मंत्रियों की श्रेणी लिखिए।

उत्तर- केंद्रीय मंत्रिपरिषद् में निम्न श्रेणियों के मंत्री होते हैं-

(1) प्रधानमंत्री - केंद्रीय परिषद का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है।

(2) कैबिनेट मंत्री- यह श्रेष्ठ श्रेणी के मंत्री होते हैं तथा महत्वपूर्ण विभाग जैसे रक्षा, गृह, वित्त, रेल तथा विदेश इत्यादि इन्हीं के पास होते हैं। यह अपने दल के वरिष्ठ नेता तथा साधारणतया प्रधानमंत्री के निकट  सहायक होते हैं।

(3) राज्यमंत्री - यह यह कैबिनेट मंत्रियों के सहायक होते हैं लेकिन अनेक बार इनको स्वतंत्र रूप से भी विभागों का  प्रमुख बनाया जाता है।

(4) उप मंत्री-  यह राज्य मंत्रियों एवं कैबिनेट मंत्रियों की सहायता हेतु होते हैं तथा किसी भी विभाग के स्वतंत्र रूप से अध्यक्ष नहीं होते हैं।



प्रश्न 8 मंत्री मंडल तथा मंत्रिपरिषद में अंतर बताइए। 

उत्तर मंत्री मंडल तथा मंत्री परिषद में निम्न अंतर है-

(1) मंत्रिमंडल एक छोटी संस्था है जिसमें प्रायः 15 से 20 तक सदस्य होते हैं जो कि कैबिनेट स्तर के मंत्री कहलाते हैं, जबकि मंत्रीपरिषद एक बड़ी संस्था है जिसके सदस्यों की संख्या 40 से 50 होती है। इसमें प्रधानमंत्री एवं तीनों श्रेणियों के मंत्री सहित संसदीय सचिव भी होते हैं

(2) प्रायः मंत्रिमंडल में सभी वरिष्ठ मंत्री होते हैं , जो कि महत्वपूर्ण विभागों के अध्यक्ष होते हैं जबकि मंत्री परिषद कैबिनेट के सहायक के रूप में कार्य करती है।

(3) मंत्रिमंडल प्रशासन का केंद्र है , जबकि मंत्री परिषद मंत्रिमंडल की सहायक संस्था है।

(4) मंत्रिमंडल की बैठकें नियमित रूप से होती हैं जिनमें सिर्फ कैबिनेट मंत्री ही भाग लेते हैं, जबकि मंत्रीपरिषद बैठकें कभी-कभी होती हैं। राज्य मंत्री एवं उप मंत्री विशेष रूप से बुलाने पर ही मंत्रिमंडल की बैठकों में सम्मिलित होते हैं।


प्रश्न 9. प्रधानमंत्री तथा मंत्रिमंडल के संबंधों की व्याख्या कीजिए। 

उत्तर- प्रधानमंत्री मंत्रीमंडल रूपी मेहराब की आधारशिला है । प्रधानमंत्री की मंत्रिमंडल परिषद् में सर्वोच्च निर्णयक भूमिका है। एक सूर्य पिण्ड है जिसके चारों ओर मंत्री रूपी नक्षत्र घूमते रहते हैं। प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल को बनाता है, विभागों का वितरण करता है, विभागों में बदलाव करता है तथा मंत्रियों को अपदस्थ भी कर सकता है। मंत्रिमंडल के समस्त सदस्य प्रधानमंत्री की इच्छा के अनुरूप ही कार्य करते हैं । मंत्रिमंडल को यह शक्ति प्राप्त नहीं है कि वह प्रधानमंत्री की इच्छा के विरुद्ध कोई भी प्रस्ताव पारित कर दें।



प्रश्न 10, नौकरशाही का अर्थ एवं दो परिभाषाएं लिखिए।

 उत्तर -नौकरशाही आंग्ल भाषा के शब्द 'ब्यूरोक्रेसी' का हिंदी अनुवाद हैं 'ब्यूरोक्रेसी' फ्रांसीसी शब्द 'ब्यूरो' से बना है जिसका प्रयोग ड्राँअर बाली मेंज तथा लिखने की डेस्क हेतु किया जाता था। इसके डेस्क पर ढकें कपड़ों को ब्यूरल कहा जाता था तथा इसी आधार पर निर्मित ब्यूरो शब्द शासकीय कार्यों का परिचायक था। आगे चलकर सरकार को निरंकुशता, संकुचित , दृष्टिकोण तथा शासकीय अधिकारियों की स्वेच्छाचरिता को नौकरशाही कहा जाने लगा। रोबर्ट सी. स्टोन के अनुसार," इसका शाब्दिक अर्थ कार्यालय द्वारा शासन अथवा अधिकारियों द्वारा शासन है। सामान्यतया इसका प्रयोग दोषपूर्ण प्रशासनिक संस्थाओं के संदर्भ में किया जाता है।" नौकरशाही को परिभाषित करते हुए कहा जाता है कि एक कार्यकुशल प्रशिक्षित तथा कर्तव्यपरायण कर्मचारियों का विशिष्ट संगठन है जिसमें पदसोपान तथा आज्ञा की एकता के सिद्धांत पर सख्ती से पालन किया जाता है।


प्रश्न 11. "नौकरशाही कानूनों एवं नियमों के अटूट विश्वास रखने वालों का समूह है।" स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- नौकरशाही की कानूनों एवं नियमों में अटूट आस्था होती है। उनका शुरू से ही इस बात पर प्रशिक्षण दिया जाता है कि उनके द्वारा जो भी कार्य किया जाए वह कानूनों एवं नियमों के अनुसार हो। लोकतांत्रिक प्रणाली में कानून सर्वोच्च है, क्योंकि यह माना जाता है कि कानून सर्वजनिक इच्छा का प्रतीक हैं। नौकरशाही जो भी कार्य क्रियान्वित करता है वह कानूनों के अनुसार होते हैं तथा वे अपनी स्वेच्छा से कोई भी कार्य संपादित नहीं कर सकते। कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब कानूनों का  पालन किसी के भी हित में नहीं होता , लेकिन नौकरशाही कानूनों की अवज्ञा कदापि नहीं कर सकती।



प्रश्न 12. नौकरशाही को आजीविका अर्जित करने वालों का समूह क्यों कहा जाता है ?

उत्तर-  नौकरशाही को आजीविका अर्जित करने वाले बालों का समूह इस कारण कहा जाता है। क्योंकि इसके सदस्य समाज सेवा करने लोग सेवा में नहीं आते हैं, बल्कि उनका मुख्य उद्देश्य अपनी आजीविका चलाना होता है, लोक सेवकों ने अपना घर जनसेवा की भावना से प्रेरित होकर नहीं छोड़ा होता बल्कि वे अपना तथा अपने परिवार का पालन पोषण करने हेतु घर से बाहर निकलते हैं । उनके द्वारा किए गए कार्यों हेतु उनको परिश्रमिक अर्थात वेतन का भुगतान किया जाता है ।




प्रश्न 13 नौकरशाही के दोषों को दूर करने के उपाय बताइए ।

उत्तर नौकरशाही के दोषों को निम्न प्रकार दूर किया जा सकता है-

(1) नौकरशाही के दोषों को दूर करने हेतु सत्ता को विकेंद्रित कर दिया जाना चाहिए।

(2) नौकरशाही को नियंत्रित करने हेतु जरूरी है कि योग्य मंत्रियों की नियुक्ति किया जाए क्योंकि योग्य मंत्री सरकारी सेवकों पर साधारण नियंत्रण रख सकते हैं।

(3) नौकरशाही को दोषमुक्त करने हेतु ऐसे प्रशासनिक न्यायाधिकरणों की स्थापना करना जरूरी है जिनमें नागरिक, लोक सेवकों के खिलाफ अपनी शिकायत रख सकें।


दीर्घ उत्तरीय प्रश्न


प्रश्न 1. भारतीय राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया समझाइए।

उत्तर- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 55 में राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया का उल्लेख है। भारत में राष्ट्रपति का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से मतदाताओं द्वारा ना होकर परोक्ष रूप से अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा गुप्त मतदान विधि से होता है।

 भारत में राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है जिसमें संविधान के अनुच्छेद 54 के अनुसार निम्न दो प्रकार के सदस्य होते हैं

 (i) संसद के दोनों सदनों लोकसभा तथा राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य तथा 

(ii) राष्ट्र राज्य की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।


         राष्ट्रपति चुनाव में उक्त निर्वाचक मंडल के प्रत्येक सदस्य का मत एक से अधिक मतों के बराबर माना जाता है । निर्वाचक मंडल के प्रत्येक सदस्य के एक मत का मूल्य निम्नलिखित सूत्र के द्वारा निश्चित किया जाता है-


(I) राज्य विधानसभा के प्रत्येक निर्धारित सदस्य के मत का मूल्य



यदि उक्त विभाजन में शेष पांच सौ से अधिक आता है तो उसे एक वोट माना जाएगा तथा उसे भागफल में जोड़ दिया जाएगा।

(ii) संसद के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मत का मूल्य


विजयी होने हेतु प्रत्याशी को स्पष्ट बहुमत हासिल होना जरूरी है अर्थात राष्ट्रपति चुनाव में विजयी होने हेतु कुल वैध मतों के आधे से अधिक मत्त प्राप्त होने चाहिए। इसके लिए इन न्यूनतम कोटा निम्न सूत्र में निकाला जाता है-


प्रश्न 2 राष्ट्रपति की प्रशासनिक अथवा कार्यपालिका संबंधी शक्तियां की विवेचना कीजिए। 

अथवा 

राष्ट्रपति की नियुक्ति संबंधी शक्तियां लिखिए।


उत्तर- राष्ट्रपति की प्रशासनिक अथवा कार्यपालिका संबंधी शक्तियां निम्नलिखित हैं-

(1) पदाधिकारी की नियुक्ति संबंधी शक्तियां- राष्ट्रपति लोकसभा के बहुसंख्यक दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है तथा उसी के परामर्श से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। तथा उसे विभिन्न राज्यों के राज्यपाल,  महाधिवक्ता, महालेखा, परीक्षक, राजदूत एवं राजनीतिक अधिकारी लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष एवं सदस्यों इत्यादि की नियुक्ति की शक्ति भी हासिल है। योजना आयोग वित्त आयोग , राजभाषा आयोग एवं निर्वाचन आयोग , पिछड़े वर्गों की दशा सुधारने संबंधी आयोग तथा अंतर्राज्यीय परिषद इत्यादि का गठन भी करता है। राष्ट्रपति लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय के दो तथा राज्यसभा मैं कला, विज्ञान, समाज सेवा एवं साहित्य में विशेष योग्यता प्राप्त लोगों में से 12 सदस्य मनोनीत कर सकता है।

(2) अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र संबंधी शक्तियां- विभिन्न देशों के साथ समझौते एवं संध्या करना तथा विदेशी राजदूतों के प्रमाण पत्र स्वीकार करना राष्ट्रपति की शक्तियों में ही आता है। अन्य देशों में भारतीय राजदूतों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा ही होती है।

(3) सैनिक शक्तियां- राष्ट्रपति जल एवं वायु सेना का प्रधान सेनापति है अभय इन तीनों सेनाओं के अध्यक्षों की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति को युद्ध शुरू करने तथा बंद करने की घोषणा करने की शक्ति भी प्राप्त है।

(4) राज्यों के शासन पर नियंत्रण- राष्ट्रपति राज्यों के शासन की भी देखभाल करता है। वह देखता है कि उसका शासन संविधान के अनुसार संचालित हो रहा है अथवा नहीं। यदि किसी राज्य में शासन तंत्र असफल हो जाए तो राष्ट्रपति वहां आपातकाल की घोषणा करके वहां का शासन अपने नियंत्रण में ले सकता है।


प्रश्न 3 राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों की विवेचना कीजिए।

उत्तर राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) संसद के कुछ सदस्यों को मनोनीत करने की शक्ति- राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 तथा लोकसभा आंग्ल भारतीय समुदाय के दो सदस्यों को मनोनीत कर सकता है ?

(2) लोकसभा भंग करने की शक्ति- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के परामर्श पर लोकसभा को भंग करने का अधिकार रखता है।

(3) अधिवेशन संबंधी शक्ति- राष्ट्रपति को संसद के दोनों सदनों की बैठक बुलाने एवं बैठकों का समय निश्चित करने का अधिकार है। वह संसद के सत्र को स्थगित कर सकता है। जरूरत पड़ने पर वह बैठक को समय से पहले भी बुला सकता है, इसके अलावा वह किसी भी सदन में भाषण दे सकता है। लोकसभा चुनावों के बाद वह संसद के संयुक्त अधिवेशन में अपना भाषण देता है जिसमें सरकारी नीतियों का खुलासा किया जाता है।

(4) विधेयकों का प्रस्तुतीकरण एवं उसकी स्वीकृति- वित्त विधेयक राष्ट्रपति  की पूर्व स्वीकृति से ही लोकसभा में पेश किया जाता है। संसद द्वारा पारित कोई भी व्यक्ति तब तक कानून का पूर्ण रूप नहीं ले सकता , जब तक कि उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर न हो जाएं। हालांकि राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित विधेयक को पुनर्विचार हेतु संसद को लौटा सकता है, लेकिन यदि संसद अपने पूर्व पारित रूप में ही उस विधेयक को फिर से पारित कर दे तो राष्ट्रपति को उसकी स्वीकृति देनी पड़ती है।

(5) अध्यादेश जारी करने की शक्ति- संसद का अधिवेशन न होने की स्थिति में राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्त है। इस प्रकार के अध्यादेश संसदीय कानूनों के समान ही प्रभावशाली होते हैं। संसद का अधिवेशन शुरू होने के 6 सप्ताह तक इस तरह के अध्यादेश जारी रह सकते हैं। संसद से पारित होने पर यह कानून का रूप ले लेते हैं अन्यथा समाप्त हो जाते हैं।


प्रश्न 4 राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियों को लिखिए।

उत्तर भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को निम्नलिखित वित्तीय शक्तियां प्रदान की है-

(1) बजट प्रस्तुत करने की शक्ति- देश की वर्ष भर की आय एवं व्यय के ब्यौरे को बजट कहा जाता है। इस बजट में आगामी वर्ष हेतु देश की आय एवं व्यय का वितरण होता है। इस बजट को संसद के समक्ष प्रस्तुत करवाने का दायित्व राष्ट्रपति द्वारा ही निर्वाहन किया जाता है।

(2) वित्त विधेयक प्रस्तुत कराने की शक्ति- वित्त संबंधी कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति के बिना संसद में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।

(3) आय के वितरण की शक्ति- संघ तथा उसकी इकाई राज्यों के बीच आए के वितरण का अधिकार भी राष्ट्रपति को ही होता है।

(4) अनुदानों एवं करों पर सिफारिश- राष्ट्रपति नए करों को लगाने की सिफारिश करता है तथा अनुदान की मांगों से संबंधित कोई भी प्रस्ताव राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना संसद में पेश नहीं किया जा सकता है।

(5) आकस्मिक निधि पर अधिकार- राष्ट्रपति सरकार को जरूरत पड़ने पर, संसद से पूर्व अनुमति प्राप्त किए बिना आकस्मिक निधि से धनराशि दे सकता है।

(6) वित्त आयोग का गठन- संविधान के अनुच्छेद 280 के अनुसार राष्ट्रपति प्रति 5 वर्ष बाद वित्त आयोग का गठन करता है, जिसमें अध्यक्ष के अलावा चार अन्य सदस्य होते हैं । इस वित्त आयोग द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि संघ तथा उसकी इकाइयां राज्यों के बीच करों से प्राप्त आय को किस अनुपात में विभाजित किया जाए।



प्रश्न 5 राष्ट्रपति की न्याय संबंधी शक्तियों की विवेचना कीजिए।

उत्तर - भारतीय न्यायपालिका को कार्यपालिका से पूर्णरूपेण अलग रखने का प्रयास किया गया है। इसी कारण राष्ट्रपति को न्याय संबंध में प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप की शक्ति नहीं है लेकिन फिर भी उसे न्याय क्षेत्र में अगृलिखित शक्तियां प्राप्त हैं-

(1) क्षमादान संबंधी शक्ति- राष्ट्रपति को किसी अपराधी के अपराध को कम करने अपराधी को दंड मुक्त करने दंड को स्थगित करने तथा दंड को किसी अन्य सजा में बदलने की शक्ति है। लेकिन यह नियम मुख्य तीन अवस्थाओं में लागू होता है -(1) वह दंड किसी सैनिक न्यायालय ने दिया हो (2) अपराधी को संसदीय कानूनों का उल्लंघन करने के फल स्वरुप दंडित किया गया हो अथवा( 3 )अपराधी को मृत्युदंड दिया गया हो

(2) परामर्श संबंधी शक्ति- संविधान के अनुच्छेद 143 के अनुसार राष्ट्रपति किसी समस्या अथवा कानून का सर्वोच्च न्यायालय में परामर्श लेने की शक्ति रखता है। लेकिन इससे परामर्श को मानना अथवा ना मानना राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर है। अभी तक राष्ट्रपति अनेक बार सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श ले चुका है।

(3) न्यायालय संबंधी शक्तियां-(i) राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों को नियुक्ति करता है।

(ii) उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की संख्या निर्धारित करता है।

(iii) सर्वोच्च न्यायालय अपनी कार्यप्रणाली संबंधी जो भी नियम बनाता है, उन पर राष्ट्रपति की स्वीकृति जरूरी है।

(iv) राष्ट्रपति की स्वीकृति से सर्वोच्च न्यायालय की बैठक दिल्ली के अलावा अन्यत्र भी की जा सकती है।

(V) संसद के प्रस्ताव पर राष्ट्रपति को किसी न्यायाधीश को पदच्युत करने की शक्ति प्राप्त है, लेकिन सिर्फ उसी दशा में जब उसके खिलाफ संसद में आरोप सिद्ध हो जाए।


प्रश्न 6. राष्ट्रपति की सामान्यकालीन शक्तियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर -[दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 3,4 तथा 5 का उत्तर देखें।】



प्रश्न 7. राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों का वर्णन कीजिए । 

उत्तर -राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है-

(1) युद्ध अथवा ससस्त्र विद्रोह के कारण उत्पन्न आपातकालीन अवस्था अथवा आज आपातकाल की घोषणा( अनुच्छेद 352)- यदि राष्ट्रपति को पूर्ण विश्वास हो जाए कि देश पर कोई राष्ट्र आक्रमण करने वाला है अथवा देश के अंदर सशस्त्र विद्रोह के बादल मंडरा रहे हैं तो राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के लिखित परामर्श पर आपातकाल की घोषणा करके संपूर्ण देश अथवा संकटग्रस्त प्रशासन भार अपने हाथ में ले सकता है। आपातकालीन घोषणा की स्वीकृति 1 माह के भीतर ही संसद में स्वीकृत होनी जरूरी है। संसद की स्वीकृति के बाद यह निश्चित समय तक लागू रहेगी। वर्तमान में इसे 6-6 माह करके 1 वर्ष तक लागू किया जा सकता है। यदि संसद इसे स्वीकार कर ले तो वह 3 साल तक लागू रह सकती है । राष्ट्रपति इसे दूसरी घोषणा द्वारा समाप्त कर सकता है।

(2) राज्यों मैं संवैधानिक तंत्र के असफल हो जाने से पैदा स्थिति में आपातकालीन घोषणा( अनुच्छेद 356)- किसी राज्य मैं संविधान के अनुसार शासन का संचालन कर पाना असंभव हो जाए तो राष्ट्रपति वहां आपातकाल की घोषणा करके राज्य की शासन व्यवस्था अपने हाथ में लेकर शासन को व्यवहार में संबंधित राज्यों के राज्यपाल को सौंप देता है । इसके लिए यह जरूरी नहीं है, कि राष्ट्रपति संवैधानिक तंत्र की विफलता की सूचना राज्यपाल से प्राप्त होने पर ही आपातकालीन घोषणा करें । यह सूचना अन्य साधनों से भी हासिल कर सकता है। यह घोषणा यदि संसद से दो माह मैं स्वीकृत नहीं होगी तो वह समाप्त हो जाएगी तथा स्वीकृति मिलने पर 1 वर्ष तक बनी रह सकती है।

(3) वित्तीय सफलता की घोषणा( अनुच्छेद 360)- यदि राष्ट्रपति को विश्ववस्त सूत्रों से ज्ञात हो जाए की संपूर्ण देश अथवा देश के किसी हिस्से विशेष की आर्थिक स्थिति या साख खतरे में है , तो संविधान के अनुच्छेद 360 के अंतर्गत वह आर्थिक आपात घोषणा कर सकता है। यह घोषणा भी संसद द्वारा स्वीकृति  होनी जरूरी है।



प्रश्न 8 भारतीय उपराष्ट्रपति का संक्षेप में लेख लिखिए।


उत्तर- 

निर्वाचन - भारतीय राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उसके कार्यों को करने हेतु  उपराष्ट्रपति के पद पर सर्जन की गया है । राष्ट्रपति के बाद सर्वोच्च पदाधिकारी तथा राज सभा का पदेन सभापति होता है । इसका चुनाव संसद के दोनों साधनों द्वारा अलग-अलग एकल संक्रमणीय मत प्रणाली से गुप्त मतदान द्वारा होता है। 

योग्यताएं - कोई भी भारतीय नागरिक जिसकी आयु 35 वर्ष हो राज्यसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो तथा सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर ना हो उपराष्ट्रपति पद का प्रत्याशी हो सकता है।

 कार्यकाल - उपराष्ट्रपति की समयावधि 5 वर्ष है लेकिन जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता तब तक वह पद पर बना रह सकता है । उक्त कार्य विधि से पूर्व वह स्वेच्छा से राष्ट्रपति को त्यागपत्र देकर अथवा राज्य सभा बहुमत से प्रस्ताव पारित करके, जिसे लोकसभा भी स्वीकृत कर ले द्वारा अपदस्थ किया जा सकता है। 

वेतन एवं भत्ते- उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के सभापति के रूप में ₹400000 मासिक वेतन तथा केंद्रीय मंत्रियों को मिलने वाली अन्य सुविधाएं मिलती हैं।


उपराष्ट्रपति के कार्य एवं शक्तियाँ

उपराष्ट्रपति एक ra.one शक्तियों को निम्न दो वर्गों  में दिवस किया जा सकता है-

(1) कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में- राष्ट्रपति की मृत्यु हो जाने अस्वस्थ्य हो जाने, त्याग पत्र दे देने, महाभियोग द्वारा हटा दिए जाने, अवकाश पर होने अथवा देश से कहीं बाहर जाने पर उसके कृत्यों का निर्वहन उपराष्ट्रपति द्वारा किया जाता है । इस दौरान उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति के वेतन , भत्ते तथा अधिकार हासिल हो जाति है । राष्टपति के कृत्यों का निर्वहन करते समय राज्यसभा के सभापति का दायित्व भी नहीं निभाता तथा उसके इस रुप में कार्यों को उपसभापति द्वारा किया जाता है ।

(2) राज्यसभा में सभापति के रूप में- उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है । सभापति होने की वजह से वह सदन में अनुशासन एवं व्यवस्था बनाने का महत्वपूर्ण कार्य करता है । सदन की समस्त कार्यवाही उसी के द्वारा निश्चित की जाती है । वह सदन में सदस्यों को भाषण देने तथा प्रश्न पूछने की अनुमति देना है। वह विधायकों एवं प्रस्तावो का मतदान कराकर उसके परिणाम की घोषणा करता है तथा उसे अपना निर्णायक मत देने का अधिकार भी होता है।



प्रश्न 9. भारतीय मंत्री परिषद की विशेषताएं लिखिए।


उत्तर भारत की मंत्रिपरिषद में मुख्य रूप से निम्नलिखित विशेषताएं हैं


(1) भारतीय मंत्रीपरिषद् की यह विशेषता है कि वह राष्ट्रपति को सहयोग एवं परामर्श देती है लेकिन इसके बावजूद राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् का हिस्सा नहीं होता। हालांकि कि मंत्री परिषद अपना प्रत्येक फैसला राष्ट्रपति के नाम पर लेती है, लेकिन यह निर्णय मैं न तो राष्ट्रपति का कोई योगदान होता है और न ही इनके लिए उसे उत्तरदायी माना जाता है।

(2) भारतीय मंत्रीपरिषद् प्रधानमंत्री के नेतृत्व में अपने कार्यों को क्रियान्वित करती है। राज्य का अध्यक्ष मंत्रीपरिषद् के परामर्शो के के अनुरूप कार्य करता है तथा मंत्रीपरिषद का नेता प्रधानमंत्री होता है। व्यवहार में मंत्रिपरिषद के परामर्श का अभिप्राय प्रधानमंत्री परामर्श ही होता है।

(3) भारतीय मंत्री परीक्षा 10 की एक अन्य विशेषता व्यवस्थापिका के साथ उसके रचित सहयोग एवं समाज से पर आधारित मधुर संबंधों की है। मंत्रिपरिषद का प्रत्येक सदस्य अनिवार्य रूप से संसद के किसी भी सदन का सदस्य होता है। अतः वह संसदीय अधिवेशनों तथा विचार-विमर्श में सहभागिता करके शासकीय नीतियों का औचित्य सिद्ध करता है।

(4) भारतीय मंत्री परिषद अपने कार्यों के लिए लोक सदन अर्थात लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदाई होती है। यदि लोकसभा किसी एक मंत्री में अविश्वास व्यक्त करती है , तो उसका प्रतिफल संपूर्ण मंत्रिपरिषद को अपना त्यागपत्र द्वारा भुगतना पड़ता है।

(5) भारतीय मंत्री परिषद की एक विशेषता यह भी है कि उसके प्रधान अर्थात प्रधानमंत्री के लिखित परामर्श पर राष्ट्रपति लोक सदन या लोकसभा को भंग कर देते हैं। 



प्रश्न 10. लोकसभा के नेता के रूप में प्रधानमंत्री के अधिकारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- भारतीय प्रधानमंत्री की शक्तियों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) मंत्रीपरिषद् का निर्माण करता- प्रधानमंत्री मंत्रियों के चयन हेतु अपनी इच्छित लोगों की सूची राष्ट्रपति के पास भेजता है। प्रायः राष्ट्रपति उस सूची को स्वीकृत कर लेता है। कप्रधानमंत्री ही मंत्रियों के मध्य  विभिन्न विभाग बांटता है। मंत्री परिषद का वही निर्माता है तथा उसे ही  उसको समाप्त करने का अधिकार होता है 

(2) मंत्री परिषद का अध्यक्ष- प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल की बैठकों की अध्यक्षता करता है। इस दौरान जो फैसले लिए जाते हैं तथा नीति निर्धारित की जाती है उस पर प्रधानमंत्री का स्पष्ट प्रभाग होता है। उसकी अनिच्छा पर मंत्रिमंडल द्वारा कोई भी प्रस्ताव पारित नहीं किया जाता। विभिन्न विभागों में समन्वय एवं एकता भी उसी के द्वारा स्थापित की जाती है।

(3) लोकसभा का प्रमुख वक्ता- प्रधानमंत्री लोकसभा का प्रमुख वक्ता है। सदन की समस्त महत्वपूर्ण नीतियां उसी के द्वारा घोषित की जाती हैं । सदन में अनुशासन बनाने में स्पीकर की मदद करना तथा अपने दल के सदस्यों पर नियंत्रण रखना उसका दायित्व है । प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से लोकसभा को भंग करने की सिफारिश भी कर सकता है।

(4)  शासन के विभिन्न विभागों में समन्वय - प्रधानमंत्री शासन के विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित करता है , जिससे कि समस्त शासन एवं इकाई के रूप में कार्य कर सकें।

(5) उच्च स्तरीय नियुक्तियां- भारतीय राष्ट्रपति द्वारा जो भी उच्च स्तरीय नियुक्तियां की जाती हैं, वह असल में प्रधानमंत्री के परामर्श के अनुसार ही की जाती हैं।

(6) शासन का प्रमुख वक्ता- संसद, देश तथा विदेश में प्रधानमंत्री शासन संबंधी नीतियों का प्रमुख एवं अधिकृत प्रवक्ता होता है।

(7) अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में देश का प्रतिनिधित्व- अंतरराष्ट्रीय जगत में प्रधानमंत्री का स्थान काफी महत्वपूर्ण है। विदेशों में उसके वक्तव्य को देश के नीतिगत विचारों के रूप में स्वीकारा जाता है। वह  महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व के रूप में विश्व समस्याओं पर विचार विमर्श करने हेतु हिस्सा लेता है।


प्रश्न 11 केंद्रीय मंत्री परिषद की शक्तियों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर भारतीय मंत्री परिषद के कार्य एवं शक्तियों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) नीतियों का निर्धारण- मंत्री परिषद की सबसे महत्वपूर्ण शक्ति राष्ट्र की घरेलू तथा विदेशी नीति को निश्चित करना है। समय-समय पर मंत्री परिषद को इस प्रकार निर्धारित नीतियों का संसद में अनुमोदन कराना होता है।

(2) राष्ट्रीय कार्यपालिका पर नियंत्रण- संविधान द्वारा संघीय सरकार की कार्यपालिका राष्ट्रपति में निहित है लेकिन भैया बार में शक्ति का उपयोग एवम संचालन मंत्री परिषद द्वारा होता है पूर्णविराम भारत में मंत्री परिषद की आंतरिक प्रशासन एवं संचालन कर्ता है तथा वही प्रशासनिक व्यवस्था पर अंकुश लगाने वाला निकाय निकाय है। युद्ध शांति तथा विदेश मामलों का निर्धारण उसी के द्वारा होता है तथा राष्ट्रपति के अध्यादेश जारी करने की शक्ति का प्रयोग भी मंत्रिमंडल की करता है।

(3) कानून बनाने संबंधी शक्ति- हालांकि मंत्रीपरिषद् कार्यपालिका है लेकिन संसदात्मक शासन व्यवस्था में कानून बनाने मैं भी उस की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रत्येक सरकारी विधेयक संसद में किसी न किसी मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है , जो पारित होने पर ही कानून का रूप धारण करता है। क्योंकि संसद में मंत्री परिषद का ही बहुमत होता है , अतः कोई भी विधेयक उस समय तक पारित नहीं होता जब तक कि उसे मंत्रीपरिषद का समर्थन नहीं हासिल हो जाता है

(4) वित्तीय शक्तियां- देश की आर्थिक नीति का निर्धारण मंत्री परिषद द्वारा ही किया जाता है। वह देश का वार्षिक बजट बनाकर उसे संसद में स्वीकृत कराती है। मंत्री परिषद बजट द्वारा यह निश्चित करती है कि कौन-कौन से नवीन कर लगाए जाएं किन अनावश्यक करो को समाप्त किया जाए तथा किन करों की दरें फिर से निर्धारित हो । मंत्रिपरिषद यह भी तय करती है कि प्राप्त धन को किन किन मदों पर खर्च किया जाए।

(5) संविधान संशोधन संबंधी शक्ति- किसी भी संवैधानिक संशोधन का प्रस्ताव मंत्री परिषद द्वारा ही संसद में पेश किया जाता है। उसे ही यह फैसला भी लेना पड़ता है कि संविधान के किस अनुच्छेद में संशोधन किया जाना है।

(6) आपातकालीन शक्तियां- आपातकाल मैं जब राष्ट्रपति राज्य का शासन अपने हाथ में ले लेता है तो मंत्रिपरिषद को राज्य के कार्यों का संचालन करने की शक्ति मिल जाती है।

(7) दूसरे देशों से संबंध स्थापित करना- मंत्री परिषद अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर आधारित नीति का निर्धारण करती है। किस देश के साथ क्या समझौता करना है उसका निर्धारण मंत्री मंडल द्वारा ही किया जाता है।


प्रश्न 12 नौकरशाही की प्रकृति समझाइए।

 उत्तर- नौकरशाही की अवधारणा को प्रमुख रूप से निम्नलिखित दो दृष्टिकोणों के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) संरचनात्मक दृष्टिकोण- इस दृष्टिकोण के अनुसार नौकरशाही एक ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था है जिसमें पदसोपान , विशेषीकारण तथा योग्य कार्यकर्ता इत्यादि विशेषताएं अथवा लक्षण विद्यमान होते हैं। यहां कार्ल फ्रेडरिक का यह कथन उल्लेखनीय है कि "नौकरशाही उन लोगों के पदसोपान, कार्यों के विशेषीकरण तथा उच्चस्तरीय क्षमता से परिपूर्ण संगठन है, जिन्हें इन पदों पर कार्य करने हेतु प्रशिक्षित किया गया है।"

(2) कार्यात्मक दृष्टिकोण- इस दृष्टिकोण के अनुसार नौकरशाही का अध्ययन सामान्य सामाजिक व्यवस्था की अन्य व्यवस्थाओं पर पड़ने वाले नौकरशाही व्यवहार के प्रभाव का अध्ययन करना है। स्वयं नौकरशाही इस सामान्य सामाजिक व्यवस्था का ही एक हिस्सा होती है।


 नौकरशाही का प्रयोग मुख्यतः निम्न तीन रूपों में हुआ है


(1) नौकरशाही कानून एवं व्यवस्था के शासन की परिचायक है, लेकिन इसमें जनसाधारण का कोई योगदान नहीं होता है।

(2) नौकरशाही सामूहिक क्रियाओं एवं तार्किकीकरण है। इसके लिए उत्पादन की इकाइयों का केंद्रीयकरण और समस्त संगठनों मैं निवैयक्ति नियम विकसित किए जाते हैं जिनके द्वारा विभिन्न पदाधिकारियों के कार्य एवं दायित्व को परिभाषित किया जाता है।

(3) नौकरशाही उस संगठन का परिचायक है जिसमें कार्यों का धीमापन, प्रक्रियाओं की जटिलता, नियमित कार्यविधि,लक्ष्यों के प्रति दुर्भावनापूर्ण प्रतिक्रियाएं, लालफीताशाही, कष्टप्रद प्रभाव तथा विभागीयता का विचार इत्यादि बातें पर एक साथ हासिल होती हैं।


प्रश्न 13. नौकरशाही की परिभाषा लिखते हुए उसके कोई पांच रुप लिखिए ।

 उतर [नौकरशाही की परिभाषा हेतु अति लघु उत्तरीय है प्रश्न 8 का उत्तर देखें]



नौकरशाही का स्वरूप

नौकरशाही के स्वरूप को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

 (1) पदसोपान सिद्धांत पर आधारित- यह पद सोपान सिद्धांत पर आधारित है पूर्णब्रह्म इस सिद्धांत में प्रत्येक निचले स्तर की इकाई पर उच्च इकाई का नियंत्रण होता है अर्थात प्रत्येक उच्च अधिकारी अपने अधीनस्थ अधिकारी को आदेशित करता है और उसके द्वारा उसका परिचालन किया जाता है।

(2) नियमों एवं कानूनों के प्रति समर्पित- नौकरशाही नियमों एवं कानूनों के प्रति आस्थावान रहती है। उसका आचरण सदैव कानून संगत रहता है, चाहे इससे लोकहित की अपेक्षा ही क्यों ना हो जाए।

(3) कार्यों का तार्किक विभाजन- यह कार्य के तर्कसंगत विभाजन पर आधारित है। किसी अधिक पदाधिकारी हेतु उत्तरदायित्व निर्धारित करते समय यह बात दृष्टिगत रखी जाती है कि वे इसके लिए कितना सक्षम है।

(4) निश्चित कार्य क्षेत्र- नौकरशाही में प्रत्येक पद का एक निश्चित नियंत्रण हो क्षेत्र होता है, जिस का उल्लंघन संबंधित अधिकारी द्वारा कदापि नहीं किया जा सकता है।

(5) लालफीताशाही- नौकरशाही में लालफीताशाही प्रवृत्ति सर्वत्र प्राप्त है। लालफीताशाही का अभिप्राय अनावश्यक औपचारिकताएं तथा कार्य में विलंब है।


प्रश्न 14 नौकरशाही के गुण बताइए।

 उत्तर- नौकरशाही के गुणों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।

(1) कानून एवं नियमों में अटूट आस्था- नौकरशाही कानूनों एवं नियमों में अटूट विश्वास रखती है। नौकरशाही सभी काम कानून के अनुरूप ही करती है। उसको शुरू से ही इस बात का प्रशिक्षण दिया जाता है कि जो काम किया जाए वह नियम एवं कानूनों के अनुसार ही हो। स्वेच्छा से कोई कार्य नहीं कर सकते।

(2) प्रत्येक पद हेतु निर्धारित सत्ता- नौकरशाही मैं प्रत्येक नौकरशाह की सत्ता परिभाषित एवं निर्धारित होती है। उस सत्ता से बाहर काम करने कि स्थिति में नहीं होता है।

(3) प्राविधिक विशेषता- नौकरशाही के काज करनी का एक विशेष ढंग होता है। एक शासकीय  कर्मचारी अपना समस्त जीवन विशिष्ट काम में लगा देता है, जिससे उसमें एक तरह की विशेषता का भाव पैदा हो जाता है।

(4) कागजी कार्यवाही- नौकरशाही का एक प्रमुख गुण यह भी है कि आज के आधुनिक युग में कार्यालय की प्रबंध व्यवस्था लिखित दस्तावेजों तथा फाइलों पर आधारित होती है। नौकरशाहों का प्रत्येक कार्य, फैसला तथा आदेश लिखित में होता है।

(5) आजीविका अर्जित करने वाला समूह- नौकरशाहों का उद्देश्य समाज सेवा द्वारा अपनी आजीविका का अर्जन करना होता है। लोकसेवक अपने साथ परिवार के परिपालन हेतु घर से निकलते हैं तथा अपने काम के बदले वेतन लेते हैं।

(6) सत्ता का आधार राज्य एवं शासन का कानून- नौकरशाह जो भी काम करते हैं उन्हें क्रियान्वित करने की शक्ति उनको शासन से हासिल होती है । किसी शासकीय कर्मचारी के काम में रुकावट पैदा करने का अभिप्राय कानून का उल्लंघन करना है । इस स्थिति में शासकीय कर्मचारियों को सुरक्षा एवं एक कवच मिल जाता है, जिसके अंदर रहकर वह निर्भय होकर स्वेच्छा से काम कर सकता है।



प्रश्न 15 नौकरशाही के दोषों का वर्णन कीजिए। 

उत्तर- नौकरशाही के दोषों को निम्न प्रकार वर्णित किया जा सकता है-


(1) जनसाधारण की मांगों की उपेक्षा- नौकरशाही का प्रमुख दोष यह है कि वह लोकहित के संबंध में जनसाधारण की भी उपेक्षा कर देती है। उसके विवेका अनुसार काम करने की वजह से जनसाधारण की मांगों एवं इच्छाओं की उपेक्षा होती है।

(2) आकार में वृद्धि लेकिन कुशलता में कमी- नौकरशाही अपना प्रभाव एवं शक्ति में बढ़ोतरी करने हेतु कार्य अधिक ना होने पर भी अपने आकार को बढ़ाती जाती है । संख्या में लगातार बढ़ोतरी होने पर कर्मचारियों की कुशलता का स्तर गिरता जाता है।

(3) श्रेष्ठता की भावना- नौकरशाही की एक त्रुटि अथवा दोष यह है कि इस व्यवस्था में अधिकारियों में श्रेष्ठता की भावना आ जाती है। सत्ता हाथ में रहने तथा कुछ विशेषाधिकार मिलने से नौकरशाह अपने आप को श्रेष्ठ तथा जनसाधारण को हीन समझने लगते हैं। इसके फलस्वरूप शासकों एवं शासकों के बीच सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता है।

(4) रूढ़िवादी प्रवृत्ति- नौकरशाहों की प्रवृत्ति रूढ़िवादी होती है यथास्थितिबाद के समर्थक होते हैं। में परिवर्तन एवं नवीनता के प्रति विरोधी भावना रखते हैं।

(5) लालफीताशाही- नौकरशाही का अन्य दोष लालफीताशाही है , जिसके फलस्वरुप काम में बिना वजह की देरी होती है।


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