स्वप्रेरण किसे कहते हैं? इसका प्रायोगिक प्रदर्शन कीजिए।
उत्तर -
स्वप्रेरण - जब किसी कुंडली में बहने वाली विद्युत धारा के मान में परिवर्तन किया जाता है तो उस कुंडली से बद्ध चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है। फलस्वरूप उसी कुंडली में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है इस परिघटना को ही स्वप्रेरण कहते हैं।
धारा के मान को बढ़ाने पर प्रेरित धारा मुख्य धारा की विपरीत दिशा में तथा धारा के मान को कम करने पर प्रेरित धारा मुख्य धारा की दिशा में ही प्रवाहित होती है।
स्वप्रेरण प्रायोगिक प्रदर्शन - स्वप्रेरण का प्रायोगिक प्रदर्शन चित्र में प्रदर्शित है जिसमें L एक कुंडली है जो मुलायम लोहे के टुकड़े पर तांबे के विद्युत रोधी तार को लपेटकर बनाई जाती है, E एक सेल Rh धारा नियंत्रक, K कुंजी तथा B बल्ब है। K को दबाने पर मंद प्रकाश से B बल्ब जलने लगता है कुंजी को हटा देने पर बल्ब कुछ क्षण के लिए तेज प्रकाश से जलकर बुझ जाता है परिपत्र भांग करने पर L से गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या में एकाएक कमी हो जाती है। अतः उसमें मुख्य धारा की दिशा में ही प्रबल प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है। जिससे बल्ब कुछ क्षण के लिए तेज प्रकाश से जलता है और फिर बुझ जाता है।
स्वप्रेरण का S.I. मात्रक -
स्वप्रेरण का S.I. मात्रक हेनरी है।
स्वप्रेरण गुणांक -
कुंडली में प्रवाहित की जा रही विद्युत धारा के कारण कुंडली के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र पैदा हो जाता है जिससे कुंडली में चुंबकीय बल रेखाएं या चुंबकीय फ्लक्स गुजरने लगता है। यह फ्लक्स कुंडली में प्रवाहित की गई धारा के समानुपाती होता है। यदि प्रवाहित की गई धारा I ( आई ) हो और चुंबकीय फ्लक्स ( फाई ) हो तो
( फाई ) = LI
यहां एक स्थिरांक है इसे स्वप्रेरण गुणांक या स्वप्रेरकत्व कहते हैं।
