class 11 hindi chapter 5 ghar ki yaad question answer

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Class 11 hindi chapter 5 ghar ki yaad question answer hindi medium//कक्षा 11 पद्य खंड हल 

 

अध्‍याय – 5

                               घर की याद          - भवानी प्रसाद मिश्र

 

1. आज पानी गिर रहा है, बहुत पानी गिर रहा है,

रात भर गिरता रहा है, प्राण मन घिरता रहा है,

बहुत पानी गिर रहा है, घर नज़र में तिर रहा है,

घर कि मुझसे दूर है जो, घर खुशी का पूर है जो,

घर कि घर में चार भाई, मायके में बहिन आई,

बहिन आई बाप के घर, हाय रे परिताप के घर!

संदर्भ – प्रस्‍तुत पद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें आधुनिक युग के महावि भवानी प्रसाद मिश्र की घर की यादनामक कविता से उदधृत है।

प्रसंग – कवि ने बरसात के दिनों में अपने गृह की स्‍मृति को इन पंक्तियों में अंकित किया है।

व्‍याख्‍या – कवि कहता है कि आज बरसात हो रही है, बहुत बरसात हो रही है। रात-भर पानी पड़ा है। कवि का मन अपने घर की स्‍मृति तक चला गया है। वह घर से बहुत दूर है। वह घर जो उसकी सारी खुशी का स्‍त्रोत है। आज बारम्‍बार उसकी नज़र में घूम रहा है। उसके घर में चार भीई हैं और वि‍वाहित बहिन भी आई हुई है। बहिन पिता के घर आई है परंतु वह दु:खी है क्‍योंकि उसका भाई घर से बहुत दूर है।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) कवि का प्रकृति से विशेष अनुराग रहा है। ( 2 ) यथार्थवादी कविता है।

( 3 ) भाषा की सहजता और सरलता मार्मिक है।

2 घर कि घर में सब जुड़े हैं, सब कि इतने कब जुड़े हैं,

चार भाई चार‍ बहिनें, भुजा भाई प्‍यार बहिनं,

और माँ बिन-पढ़ी मेरी, दु:ख में वह गढ़ी मेरी

माँ कि जिसकी गोद में सिर, रख‍ लिया तो दुख नहीं फिर,

माँ कि जिसकी स्‍नेह-धारा, का यहाँ तक भी पसारा,

उसे लिखना नहीं आता, जो कि उसका पत्र पाता।

संदर्भ – प्रस्‍तुत पद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें आधुनिक युग के महावि भवानी प्रसाद मिश्र की घर की यादनामक कविता से उदधृत है।

प्रसंग – कवि ने बरसात के दिनों में अपने गृह की स्‍मृति को इन पंक्तियों में अंकित किया है।

व्‍याख्‍या –  कवि ने घर में सब परस्‍पर प्रेम के सूत्र में जुड़े हुए हैं। घर में चार भाई और चार‍ बहिनें हैं। भाई बहिन की भुजा के समान है। इस प्रकार भाई-बहिन का प्रेम झलकता है। कवि की माँ पढ़ी-लिखी नहीं है। उसे मेरे न होने का दु:ख होगा। वह माँ ऐसी है जिसकी गोद में सिर रखने से ही उसका दु:ख दूर हो जाता था। माँ का स्‍नेह धारा का प्रसार इतना था कि उनकी स्‍मृति कवि को आ रही थी। माँ भी अपने वात्‍सल्‍य को पत्र लिखकर प्रकट कर सकती थी परंतु उसे पढ़ना-लिखना तो आता ही नहीं। फिर यह कैसे संभव होता।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) माँ की ममता का सुन्‍दर वर्णन किया गया है। ( 2 ) शैली प्रतीकात्‍मक। ( 3 ) भाषा कोमल और भावों को अभिव्‍यक्‍त देने में सक्षम है।

3 पिताजी जिनको बुढ़ापा, एक क्षण भी नहीं व्‍यापा,                     जो अभी भी दौड़ जाएँ, जो अभी भी खिलखिलाएँ,.                  मौत के आगे न हिचकें, शेर के आगे न बिचकें,

  बोल में बादल गरजता, काम में झंझा लरजता,

संदर्भ – प्रस्‍तुत पद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें आधुनिक युग के महावि भवानी प्रसाद मिश्र की घर की यादनामक कविता से उदधृत है।

प्रसंग – कवि ने इन पंक्तियों में पितृ स्‍नेह की झलक प्रस्‍तुत की है।

व्‍याख्‍या – कवि कहता है कि पिताजी यद्यपि वृद्ध हैं फिर भी उनको बुढ़ापा एक क्षण के लिए भी महसूस नहीं होता। अब भी वे दौड़ सकते हैं और खिलखिलाकर हँस सकते हैं।                       मृत्‍यु का डर उन्‍हें नहीं है। शेर के आगे आने पर भय की प्रतीति नहीं होती। उनकी वाणी में बादलों का गर्जन और काम में तुफान का नजारा दिखाई देता था।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) बुढ़ापे में उत्‍साहजनक कार्य में उपदेशात्‍मक वर्णन है। ( 2 ) अलंकार – अनुप्रास, मानवीकरण। ( 3 ) भाषा – सहज और सरल।

4 आज गीता पाठ करके, दंड दो सौ साठ करके,

खूब मुगदर हिला लेकर, मूठ उनकी मिला लेकर,

जब कि नीचे आए होंगे, नैन जल में छाए होंगे,

हाय, पानी गिर रहा है, घर नज़र में तिर रहा है,

संदर्भ – प्रस्‍तुत पद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें आधुनिक युग के महावि भवानी प्रसाद मिश्र की घर की यादनामक कविता से उदधृत है।

प्रसंग – कवि ने इन पंक्तियों में पितृ स्‍नेह की झलक प्रस्‍तुत की है।

व्‍याख्‍या – घर में आज गीता का पाठ हुआ होगा। भाई लोगों ने दण्‍ड-बैठक लगाकर और मुगदर चलाकर तथा उनकी मूठ मिलाकर कसरत का अभ्‍यास किया होगा। इसके पश्‍चात् जब वे घर के नीचे आए होंगे तब उनके नेत्रों में आँसू आ गए होंगे। वर्षा हो रही है, पानी गिर रहा है और नेत्रों में बार-बार घर की यादें उभर कर आ रही हैं।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) मानव मन का घर को लेकर यथार्थ चित्रण किया गया है। ( 2 ) अलंकार – अनुप्रास। ( 3 ) शैली – प्रतीकात्‍मक।

5 चार भाई चार बहिनें, भुजा भाई प्‍यार बहिनें,

खेलते या खड़े होंगे, नजर उनको पड़े होंगे।

पिताजी जिनको बुढ़ापा, एक क्षण भी नहीं व्‍यापा,

रो पड़े होंगे बराबर, पाँचवें का नाम लेकर,

पाँचवाँ मैं हूँ अभागा, जिसे सोने पर सुहागा,

पिताजी कहते रहे हैं, प्‍यार में बहते रहे हैं,

आज उनके स्‍वर्ण बेटे, लगे होंगे उन्‍हें हेटे,

क्‍योंकि मैं उन पर सुहागा बँधा बैठा हूँ अभागा।

संदर्भ – प्रस्‍तुत पद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें आधुनिक युग के महावि भवानी प्रसाद मिश्र की घर की यादनामक कविता से उदधृत है।

प्रसंग – कवि ने इन पंक्तियों में पितृ स्‍नेह की झलक प्रस्‍तुत की है।

व्‍याख्‍या – कवि कहता है कि घर में चार भाई और चा‍र बहिनें हैं। भाई-बहिन का प्‍यार एक-दूसरे का सहारा है। खेलते या खड़े होते समय पिताजी की नजर उन पर अवश्‍य पड़ती होगी। पिताजी को बुढ़ापे का अहसास एक क्षण को भी नहीं हुआ। वे अपने पाँचवे बेटे का नाम लेकर रो पड़े होंगे। उनकी ममता का ज्‍वार फूट पड़ा होगा। कवि कहता है कि भाइयों में मेरा पाँचवा स्‍थान है। मेरी स्थिति ऐसी है जैसे सोने में सुहागे की रहती है। दूसरे शब्‍दों में कवि घर का लाड़ला सदस्‍या है। वे मुझसे सम्‍बन्धित बातें करते होंगे और कहते होंगे कि मैंने ( कवि ) जेल में कितने कष्‍ट भोगे होंगे। पिताजी निश्‍चय ही अपने कथन में मेरे प्रति अपने प्रेम को प्रकट करते रहे होंगे और प्रेम के प्रवाह में बहते रहे होंगे।

आज उन्‍हें अपने स्‍वर्ण के समाज चारों बेटे तुच्‍छ जान पड़े होंगे क्‍योंकि उनका सुहागे के समान पाँचवा बेटा उनके पास नहीं है। उसका अभाव उन्‍हें अवश्‍य अखर रहा होगा। वह अभागा आज उनसे कितनी दूर है ?

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) बुढ़ापे में उत्‍साहजनक कार्य में उपदेशात्‍मक वर्णन है। ( 2 ) अलंकार – अनुप्रास, मानवीकरण। ( 3 ) भाषा – सहज और सरल।

6 और माँ ने कहा होगा, दु:ख कितना बहा होगा,

आँख में किस लिए पानी वहाँ अच्‍छा है भवानी,

वह तुम्‍हारा मन समझकर, और अपनापन समझकर,

गया है सो ठीक ही है, यह तुम्‍हारी लीक ही है,

पाँव जो पीछे हटाता, कोख को मेरी लजाता,

इस तरह होओ न कच्‍चे, रो पड़ेंगे और बच्‍चे।

पिता जी ने कहा होगा, हाय कितना सहा होगा,

कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ, धीर मैं खोता, कहाँ हूँ।

संदर्भ – प्रस्‍तुत पद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें आधुनिक युग के महावि भवानी प्रसाद मिश्र की घर की यादनामक कविता से उदधृत है।

प्रसंग – पुत्र की स्‍मृति में जब पिता का स्‍नेह फूट पड़ता है तब माँ के द्वारा उन्‍हें सांत्‍वना प्रदान की जाती है। इस स्थिति का वर्णन कवि ने इन पंक्तियों में किया है।

व्‍याख्‍या – कवि कहता है दकि पिताश्री को दु:खी देखकर निश्‍चय ही माँ प्रभावित हुई होगी। उसने कहा होगा दुर्गा माँ की कृपा से वह अच्‍छा ही होगा। तुम्‍हें आँसू बहाने की क्‍या आवश्‍यकता है।

       अपने पिता के मन को समझ कर और उनकी आज्ञा लेकर ही तो वह गया था। उसका जाना ठीक ही तो है। वह भी तो तुम्‍हारी परम्‍परा पर ही चल रहा है।

  पुत्र ने यदि जाने से पीछे अपने पाँव हटाये होते तो उसने ऐसा कर मेरी कोख को ही लज्जित किया होता। इस तरह दु:ख मनाकर अपने मन को कच्‍चा मत बनाओ। तुम्‍हारी इस स्थिति को देखकर और बच्‍चे भी रो पड़ेंगे। पिताजी ने माँ से यह कहा होगा कि मैं रो नहीं रहा हूँ और न ही धीरज खो रहा हूँ। ऐसा कहकर वे अपने दु:ख को मन ही मन पी गये होंगे।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) माँ का त्‍यागमयी रूप वर्णित है। ( 2 ) रस – वात्‍सल्‍य। ( 3 ) भाषा – सहज और सरल।

7. हे सजीले हरे सावन, हे कि मेरे पुण्‍य पावन,

तुम बरस लो वे न बरसे, पाँचवें को वे न तरसे,

मैं मजे में हूँ सही है, घर नहीं हूँ बस यही है,

किंतु यह बस बड़ा बस है, इसी बस से सब विरस है,

संदर्भ – प्रस्‍तुत पद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें आधुनिक युग के महावि भवानी प्रसाद मिश्र की घर की यादनामक कविता से उदधृत है।

प्रसंग – यहाँ कवि की सोच आशावादी दिखाई देती है।

व्‍याख्‍या – श्रावण मास में सर्वत्र जल ही जल है। हरियाली ही हरियाली है। कवि कहता है कि हे पुण्‍य और पावन सावन तुम चाहे कितना ही बरस लेना परंतु मेरे माता-पिता की आँखों से पानी न बरसने देना। वे अपने पाँचवे पुत्र को याद करने में विवश न हों। कवि निश्‍चय ही आनंद में है। इतना अवश्‍य है कि वह अपने घर पर नहीं है। इसमें वह कुछ कर नहीं सकता, यह तो उसकी विवशता है। इसी विवशता के कारण ही तो सभी दु:खी ( फीके ) हैं।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) कवि के त्‍याग का वर्णन है। ( 2 ) अलंकार – अनुप्रास, रूपक।

( 3 ) भाषा – सरल व सहज।

8. किंतु उनसे यह न कहना, उन्‍हें देते धीर रहना,

उन्‍हें कहना लिख रहा हूँ, उनहें कहना पढ़ रहा हूँ,

काम करता हूँ कि कहना, नाम करता हूँ कि कहना,

चाहते हैं लोग कहना, मत करों कुछ शोक कहना,

संदर्भ – प्रस्‍तुत पद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें आधुनिक युग के महावि भवानी प्रसाद मिश्र की घर की यादनामक कविता से उदधृत है।

प्रसंग –  कवि ने इन पंक्तियों में आत्‍म निवेदन प्रस्‍तुत किया है।

व्‍याख्‍या – कवि सावन से आग्रह करता है कि उसके घर जाकर माता-पिता का उसका कुशलक्षेम बताते हुए धैर्य बँधाते रहना। उन्‍हें बताना कि मैं जेल में भी लिख रहा हूँ। मेरा लेखन और पठन कार्य चल रहा है। उन्‍हें कहना कि मैं निरंतर कार्य करने में लगा हुआ हूँ। मैं पढ़-लिखकर ज्ञानार्जन करते हुए उन्‍हीं के नाम को रोशन कर रहा हूँ। यहाँ के सभी लोग मुझे चाहते हैं। हे सावन ! तुम उनसे जाकर कहना कि वे मेरे दूर होने का दुख न करें। मैं यहाँ कुशलतापूर्वक मजे से जीवन बिता रहा हूँ।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) कवि के त्‍याग का वर्णन है। ( 2 ) अलंकार – अनुप्रास, रूपक।

( 3 ) भाषा – सरल व सहज।

9. और कहना मस्‍त हूँ मैं, कातने में व्‍यस्‍त हूँ मैं,

वजन सत्तर सेर मेरा, और भोजन ढेर मेरा,

कूदता हूँ खेलता हूँ, दु:ख डटकर ठेलता हूँ,

और कहना मस्‍त हूँ मैं, यों न कहना अस्‍त हूँ मैं।

संदर्भ – प्रस्‍तुत पद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें आधुनिक युग के महावि भवानी प्रसाद मिश्र की घर की यादनामक कविता से उदधृत है।

प्रसंग – कवि सावन को अपनी कुशलक्षेम का संदेश देने के लिए घर भेजता है। ये ही भाव कवि ने अंकित किए हैं।

व्‍याख्‍या – कवि कहता है कि हे सावन!  तुम मेरे घर जाकर माता-पिता से कहना कि मैं मस्‍त हूँ। चरखा कातकर अपना समय व्‍यतीत कर रहा हूँ। मैं यहाँ पर ढेर सारा भोजन करता हूँ जिससे मेरा वजन सत्तर सेर हो गया है।

  मैं जेल में भी उछल-कूद कर लेता हूँ। दुखों को अपने से दूर भगा देता हूँ। किसी प्रकार का क्‍लेश नज़दीक नहीं आने देता। जेल में मैं मस्‍त हूँ, कभी गलती से भी यह न कहना कि मैं अस्‍त हो रहा हूँ।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) भाषा की सहजता एवं सुगमता दृष्‍टव्‍य है। ( 2 ) गाँधीवाद भावना का प्राकट्य है।


10. हाय रे, ऐसा न कहना, है कि जो वैसा न कहना,

कह न देना जगता हूँ, आदमी से भागता हूँ,

कह न देना मौन हूँ मैं, खुद न समझूँ कौन हूँ मैं,

देखना कुछ बक न देना, उन्‍हें कोई शक न देना,

संदर्भ – प्रस्‍तुत पद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें आधुनिक युग के महावि भवानी प्रसाद मिश्र की घर की यादनामक कविता से उदधृत है।

प्रसंग – कवि सावन को अपनी कुशलक्षेम का संदेश देने के लिए घर भेजता है। ये ही भाव कवि ने अंकित किए हैं।

व्‍याख्‍या – सब कुछ कह देना परंतु मेरी यथास्थिति को प्रकट न करना। पिताश्री से यह मत कहना कि मैं जागता ही रहता हूँ, विश्राम नहीं करता या लोगों से मिलने से कतराता हूँ। ऐसा कहने से उन्‍हें दु:ख ही मिलेगा। कवि कहता है कि मेरे पिताश्री से यह न कहना कि मैं मौन होकर अपनी साधना में डूबा हूँ। मैं तो स्‍वयं को भी नहीं समझ पाया हूँ। ध्‍यान रखना कि कहीं कुछ ऐसा मत कह देना जिससे उन्‍हें कोई शक उत्‍पन्‍न हो जाए।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) कवि का समर्पण भाव विदित है। ( 2 ) भाषा – यथार्थवादी।. ( 3 ) अलंकार – अनुप्रास, यमक।

11. हे सजीले हरे सावन, हे कि मेरे पुण्‍य पावन,

तुम बरस लेना वे न बरसें, पाँचवें को वे तरसे,

संदर्भ – प्रस्‍तुत पद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहमें आधुनिक युग के महावि भवानी प्रसाद मिश्र की घर की यादनामक कविता से उदधृत है।

प्रसंग – यहाँ कवि की सोच आशावादी दिखाई देती है।

व्‍याख्‍या – श्रावण मास में सर्वत्र जल ही जल है। कवि कहता है कि हे पुण्‍य और पावन सावन तुम चाहे कितना ही बरस लेना परंतु मेरे माता-पिता की आँखों से पानी न बरसने देना। वे अपने पाँचवे पुत्र को याद करने में विवश न हों।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) भाषा की सहजता एवं सुगमता दृष्‍टव्‍य है। ( 2 ) गाँधीवाद भावना का प्रकाट्य है।


पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

कविता के साथ -


प्रश्न 1. पानी के रात भर गिरने और प्राण-मन के घिरने में परस्पर क्या संबंध है?


उत्तर - रात भर वर्षा होने से संपूर्ण वातावरण नम हो गया। ऐसे सुहावने मौसम में जेल में कैद कवि के प्राण और मन भी भीग गए हैं। उसे घर के सदस्यों के साथ हंसी-खेल करते हुए मनोरम दिन याद आ गए। इस प्रकार रात भर पानी का गिरना और प्राण मन का घिरना दोनों परस्पर संबद्ध हो जाते हैं।


प्रश्न 2. मायके आई बहन के लिए कवि ने घर को परिताप घर क्यों कहा है? 


उत्तर - बहन बड़ी उमंग से अपने मायके में आई होगी। उसने सोचा होगा कि पिता के घर जाकर अपने भाइयों-बहनों से मिलूंगी। परंतु वहां जाकर उसे पता चला होगा कि उसका छोटा भाई भवानी जेल में है जिसके कारण उसके मायके में दुख और उदासी छाई हुई है तो उसे बहुत दुख होगा। इस कारण उसने 'परिताप का घर' कहा है।


प्रश्न 3. पिता के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं को उकेरा गया है? 

उत्तर - भवानी के पिता की निम्नलिखित विशेषताओं को उकेरा गया है - 


( 1 ) बलिष्ठ शरीर और साहसी - कवि के पिता बड़ी उम्र में भी युवा है। वे डीलडौल में विशालकाय हैं। वे नित्य व्यायाम करते हैं। वे बड़ी उम्र में भी दौड़ सकते हैं, खिलखिला सकते हैं। उनकी वाणी में बादलों जैसी गर्जन और काम में तूफान-सी तेजी है। वे निडर हैं। वृद्ध हैं फिर भी वृद्ध होने का एक भी लक्षण के जीवन में प्रकट नहीं हुआ।


( 2 ) उदार हृदय -  भवानी प्रसाद मिश्र के पिता मन में भी विशाल और उदार हैं। वे अत्यंत सरल, भोले, सहृदय और भावुक हैं। वे अपने परिवार-जनों से गहरा लगाव रखते हैं। यद्यपि उनके पाँच पुत्र हैं, पुत्रवधुएँ हैं, पोते हैं- परंतु वे सबसे गहरे जुड़े हुए हैं। उनसे किसी का थोड़ा सा भी कष्ट नहीं देखा जाता।


प्रश्न 4. निम्नलिखित पंक्तियों में बस शब्द के प्रयोग की विशेषता बताइए।

मैं मजे में हूं सही है

  घर नहीं हूं बस यही है

       किंतु यह बस बड़ा बस है,

       इसी बस से सब विरस है।


उत्तर - यहां 'बस' शब्द का प्रयोग विशिष्ट है। यहां पहली बार 'बस' कहने से कवि का तात्पर्य यह है कि यह मामूली सी बात है कि वह अपने घर पर नहीं है। दूसरी बार 'बस' बड़ा हो जाता है क्योंकि जब उसे अपने घर का स्नेह पूर्ण वातावरण याद आता है तब वह छोटी सी बात उसके लिए महत्वपूर्ण हो जाती है। तीसरी बार 'बस' के कारण सब कुछ निरस हो गया है, अर्थात सारी सुविधाओं एवं आराम के बावजूद घर के स्नेहीजनों का साथ ना होने के कारण सब कुछ व्यर्थ सा हो गया है।


प्रश्न 5. कविता की अंतिम 12 पंक्तियों को पढ़कर कल्पना कीजिए कि कवि अपनी किस स्थिति व मन:स्थिति को अपने परिजनों से छुपाना चाहता है?


उत्तर - कविता की अंतिम 12 पंक्तियां जेल में बंद कवि की मनोदशा व्यक्त करती हैं। कवि जेल में रहकर घर के वियोग से पीड़ित है। उसे घर की बहुत याद आ रही है। अन्य सब लोग उसे बेगाने लगते हैं। इसलिए वह उनसे दूर-दूर भागता है। उनसे बात करने की बजाय वह एकांत में रहना पसंद करता है वह घर की यादों में इतना खोया रहता है कि वह अपने-आप को भूल चुका है। उसकी मन:स्थिति दीवानों जैसी हो चुकी है। वह चाहता है कि घरवाले उसके लिए दुखी ना हों।


कविता के आस-पास - 


प्रश्न 1. ऐसी पांच रचनाओं का संकलन कीजिए जिसमें प्रकृति के उपादानों की कल्पना संदेशवाहक के रूप में की गई है।


उत्तर - छात्र स्वयं करें।


प्रश्न 2. घर से अलग होकर आप घर को किस तरह से याद करते हैं? लिखें।


उत्तर - छात्र अपने अनुभव स्वयं लिखें।

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