class 11th Political Science chapter 8 स्थानीय शासन full solution//कक्षा 11वी राजनीति विज्ञान पाठ 8 स्थानीय शासन पूरा हल
NCERT Class 11th Political Science Chapter Local Governments Federalism Solution
Class 11th Political Science Chapter 8 NCERT Textbook Question Solved
अध्याय 8
स्थानीय शासन
★ महत्वपूर्ण बिंदु
● शासकीय कार्यकुशलता तथा जनआवश्यकताओं की पूर्ति हेतु शक्तियों का विकेंद्रीकरण होना आवश्यक है।
● शक्तियों के विकेंद्रीकरण के आधार पर स्थानीय शासन की स्थापना की जाती है।
● स्थानीय शासन के अंतर्गत गांव व जिला स्तर के लोग अपने साधनों तथा मामलों का प्रबंध स्वयं अथवा अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से करते हैं।
● हालांकि भारतीय संविधान मैं स्थानीय शासन का उल्लेख नहीं था लेकिन उसको संवैधानिक स्वरूप प्रदान करने हेतु 1992 में 73 वाँ एवं 74 वाँ संवैधानिक संशोधन किया गया।
● 73वे ं संवैधानिक संशोधन द्वारा पंचायती राज को सुदृढ़ बनाने हेतु विभिन्न महत्वपूर्ण व्यवस्थाएं की गई।
● पंचायत राज व्यवस्था त्रिस्तरीय है जिसमें सबसे नीचे ग्राम पंचायत बीच में मंडल प्रखंड तथा तालुका तथा उससे सीट्स पर जिला पंचायत है।
● 74 वे संविधान संशोधन द्वारा शहरी स्थानीय संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने हेतु कदम उठाए गए।
● स्थानीय अवकाश तथा कल्याणकारी जरूरतों से संबंधित 29 विषयों को स्थानीय शासन को सौंपा गया है।
● सभी पंचायती संस्थाओं में महिलाओं हेतु एक तिहाई स्थान आरक्षित हैं। इसी प्रकार अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति हेतु भी समुचित आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
● प्रदेश चुनाव आयुक्त तथा राज्य वित्त आयोग की व्यवस्था में स्थानीय शासन और सुधार हुआ है।
● स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक स्वरूप मिल जाने से स्थानीय संस्थाओं का महत्व अत्याधिक बढ़ गया है।
◆ पाठान्त प्रश्नोत्तर ◆
प्रश्न 1. सामाजिक रुप से कमजोर वर्गों के लिए संविधान के 73वें संशोधन में आरक्षण के क्या प्रावधान हैं ? इन प्रावधानों से ग्रामीण स्थल के नेतृत्व का किस तरह बदला है?
उत्तर- सभी पंचायती संस्थाओं में आरक्षण का उचित प्रावधान करते हुए जहां महिलाओं के लिए एक तिहाई स्थान आरक्षित किए गए हैं वहीं तीनों ही स्तरों पर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए भी निर्वाचन क्षेत्रों में आरक्षण की व्यवस्था की गई है । यह व्यवस्था उनको इनकी जनसंख्या के अनुपात में दी गई है। आवश्यकता समझे जाने पर प्रदेश सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग को भी आरक्षण दे सकती है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि यह आरक्षण केवल सदस्यों की सीटों तक ही सीमित नहीं है बल्कि तीनों ही स्तरों पर अध्यक्ष पद तक आरक्षण की व्यवस्था की गई है । इस प्रकार अब सरपंच का पद कोई दलित अथवा आदिवासी महिला भी ग्रहण कर सकती है। 73वें संवैधानिक संशोधन से कमजोर वर्गों को शक्ति देने से ग्रामीण स्तर के नेतृत्व में आमूलचूल परिवर्तन आया है।
के तवे संवैधानिक संशोधन के प्रावधानों से ग्रामीण स्तर के नेतृत्व में अग्रलिखित बदलाव आया है-
(1) आरक्षण की वजह से महिलाओं में राजनीतिक चेतना विकसित हुई है तथा समाज में उनका सम्मान बढ़ा है। पंचायती राज्य तथा नगरीय स्वशासन में महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हुए अपना पूर्ण योगदान दिया है। इससे ग्रामीण क्षेत्र में पर्दा प्रथा पर काफी प्रभाव पड़ा है।
(2) आरक्षण की व्यवस्था तथा इससे होने वाले लाभों के फल स्वरुप अनुसूचित जातियों एवं तथा अनुसूचित जनजातियों में चेतना का उदय हुआ है। अब यह जातियां अपने प्रति अत्याचार तथा शोषण से मुक्त होती जा रही है।
(3) सामाजिक समानता के लिए आरक्षण द्वारा सकारात्मक पहल की गई है।
(4) ग्रामीण स्तर पर जो शक्तियां पहले सामाजिक रूप से ऊंचे लोगों को प्राप्त थी अब उनमें कमजोर वर्गों कि भी भागीदारी हो गई है।
(5) कमजोर वर्गों की भागीदारी बढ़ने से उच्च वर्ग अपनी मनमानी नहीं कर पा रहा हैं।
प्रश्न 2. संविधान के 73वें संशोधन से पहले और संशोधन के बाद के स्थानीय शासन के बीच मुख्य भेद बताए।
उत्तर- 73 वे संवैधानिक संशोधन से पहले तथा बाद में स्थानीय शासन के बीच प्रमुख रूप से निम्न भेद अथवा अंतर हैं-
(1) 73 वें संविधानिक संशोधन से पहले स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक मान्यता हासिल नहीं थी, लेकिन इस संशोधन के पश्चात स्थानीय स्वशासन को संवैधानिक स्वरूप दिया गया है।
(2) 73वें संवैधानिक संशोधन से पहले इन संस्थाओं का कार्यकाल अनिश्चित लेकिन अब संविधानिक संशोधन के बाद उनका कार्यकाल निश्चित कर दिया गया। अब इनके निर्वाचन भी नियमित समय पर होने लगे।
(3) 73वें संशोधन से पहले महिलाओं तथा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए स्थानों में आरक्षण की व्यवस्था नहीं थी लेकिन अब संवैधानिक संशोधन के उपरांत महिलाओं तथा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों हेतु समुचित आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
(4) 73वें संशोधन से पहले यह संस्थाएं आर्थिक रूप से अत्यंत कमजोर थी लेकिन अब संशोधन के बाद आर्थिक रूप से सुदृढ़ होती चली जा रही हैं।
(5) 73वें संविधान संशोधन से पूर्व इन संस्थाओं के चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से हुआ करते थे लेकिन अब संशोधन के उपरांत यह निर्वाचन प्रत्यक्ष विधि से किए जाने लगे हैं।
◆ परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर ◆
★ अति लघु उत्तरीय प्रश्न ★
प्रश्न 1. स्थानीय शासन की समस्याओं को संविधान में यथोचित महत्व न मिलने के दो कारण लिखो।
उत्तर - (1) भारत विभाजन की वजह से संविधान का झुकाव केंद्र की मजबूती की तरफ था।
(2) डॉक्टर अंबेडकर का मानना था कि ग्रामीण भारत में जाति पाती एवं आपसी फूट चरम पर है अतः ऐसे वातावरण में स्थानीय शासन का उद्देश्य नष्ट हो जाएगा।
प्रश्न 2. पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को लाभान्वित करने वाले दो प्रावधान लिखिए ।
उत्तर-
(1) पंचायती राज की विभिन्न संस्थाओं में कुल स्थानों का एक तिहाई महिलाओं हेतु आरक्षित किया गया है।
(2) पंचायती राज्य के विभिन्न स्तरों के चुनाव क्षेत्रों के अध्यक्षों की कुल संख्या का 33% महिलाओं हेतु आरक्षित है।
प्रश्न 3. खंड विकास अधिकारी बी. डी. ओ. के कोई दो प्रमुख कार्य लिखिए।
उत्तर (1) वह अपने खंड क्षेत्र में आने वाली पंचायती संस्थाओं में के मध्य सामंजस्य अर्थात समन्वय बनाता है।
(2) वह पंचायती संस्थाओं के प्रशासकीय कर्तव्यों का निर्वाहन स्वयं करता है।
प्रश्न 4. राज्य चुनाव आयुक्त का क्या उत्तरदायित्व है?
उत्तर- प्रदेश अथवा राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है। इस आयुक्त का उत्तरदायित्व पंचायती राज संस्थाओं के निष्पक्ष चुनाव कराना है। उल्लेखनीय है कि राज्य चुनाव आयुक्त का अथवा उसके कार्यालय का संबंध चुनाव आयोग में नहीं होता है ।
◆ लघु उत्तरीय प्रश्न ◆
प्रश्न 1. स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर-(1) स्थानीय क्षेत्र की अनेक जरूरतें एवं समस्याएं होती हैं जिनका हल स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के माध्यम से किया जा सकता है।
(2) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का विचार तथा उसका व्यवहारिक रूप स्थानीय स्वशासन के द्वारा संभव है।
(3) राज्यों द्वारा संविधान प्रदत्त (स्थानीय स्वशासन) को मान्यता देने के लिए नगरीय स्वशासन की जरूरत है।
(4) स्थानीय स्वशासन का मूल लक्ष्य जनता को लोकतांत्रिक प्रशिक्षण देना है, जो स्थानीय संस्थाओं द्वारा ही संभव है।
प्रश्न 2. स्थानीय स्वशासन का लोकतंत्र में क्या महत्व है?
उत्तर- लोकतंत्र में स्थानीय स्वशासन के महत्व को निम्न अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) स्थानीय स्वशासन की संस्थाएं लोकतंत्र की प्राथमिक पाठशालाएँ होती हैं।
(2) स्थानीय स्वशासन में मतदाता एवं प्रतिनिधि के बीच घनिष्ठ संबंध होता है।
(3) स्थानीय स्वशासन के माध्यम से नागरिकों को स्थानीय समस्याओं के संबंध में पर्याप्त जानकारी होती है तथा वे अपनी समस्याओं के समाधान हेतु संवैधानिक साधनों को अपनाते हैं।
(4) स्थानीय स्वशासन में नागरिक अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति संवेदनशील होते हैं। वे मोहल्ले की सफाई एवं सार्वजनिक संपत्ति के संरक्षण पर सदैव जागरूक रहते हैं।
प्रश्न 3. स्थानीय प्रशासन से आप क्या समझते हैं तथा इसका वास्तविक उद्देश्य क्या है?
उत्तर- स्थानीय स्वशासन का आशय ऐसे शासन से है, जो एक सीमित क्षेत्र हेतु कार्य करता है तथा हस्तांतरित अधिकारों का प्रयोग करता है। स्थानीय स्वशासन को परिभाषित करते हुए,
गिलक्राइस्ट ने कहा है कि," स्थानीय संस्थाएं अधीनस्थ संस्थाएं हैं, लेकिन एक सीमित क्षेत्र में उन्हें कार्य करने की स्वतंत्रता होती है।"
एस. गोल्डिन के शब्दों में "स्थानीय स्वशासन की सरलतम परिभाषा यही है कि एक बस्ती के लोगों द्वारा अपने मामलों का स्वयं ही प्रबंध हो।"
वास्तविक उद्देश्य- स्थानीय स्वशासन की संस्थाएं ऐसे कार्य संपादित करती हैं जिनका संबंध क्षेत्र के लोगों की दैनिक जरूरतों तथा संस्थाओं से होता है तथा स्थानीय संस्थाएं स्थानीय लोगों के हितों की पूर्ति के मैं अपनी सार्थक भूमिका का निर्वाह करती हैं
प्रश्न 4. पंचायती राज से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- पंचायती राज स्वतंत्र भारत की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। पंचायती राज वह शासन व्यवस्था है जिसके द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में स्थानीय समस्याओं के हल , विकास तथा स्वशासन का अनुभव प्रदान किया जाता है। पंचायती राज भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था की सबसे छोटी तथा महत्वपूर्ण इकाई है। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि पंचायती राज है, जिसमें जनता द्वारा चुने गए व्यक्ति एक सीमित अथवा पंचायत के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं स्थानीय स्वशासन का संचालन करते हैं। पंचायती राज संस्थाएं गांवों का चहुँमुखी विकास करने हेतु उत्तरदायी हैं।
प्रश्न 5. पंचायती राज की कोई तीन विशेषताएं लिखिए।
उत्तर- पंचायती राज की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
(1) पंचायती राज से गांव की प्रगति होती है तथा वे आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते चलते जाते हैं।
(2) पंचायती राज से ग्रामीण जनता को अपना प्रशासन एवं अपने क्षेत्र का विकास स्वयं करने का अधिकार मिलता है, जिससे प्रत्यक्ष लोकतंत्र की स्थापना होती है।
(3) पंचायती राज की एक विशेषता यह भी है कि इसमें ग्रामवासी आत्मविश्वास ही बनते हैं। गांव की शक्ति में इजाफा होने से गांव के निवास करने वालों को नव जीवन मिलता है।
प्रश्न 6. बलवंतराय मेहता समिति के अनुसार पंचायती राज की विशेषताएं लिखिए ।
उत्तर- बलवंत राय मेहता समिति के अनुसार पंचायती राज की मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार हैं-
(1) पंचायती राज त्रिस्तरीय ग्राम स्तर का पंचायत, ब्लॉक स्तर का पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद् होना चाहिए।
(2) पंचायत पूर्णरूपेण निर्वाचित इकाई होनी चाहिए।
(3) पंचायत समिति का गठन पंचायतों द्वारा प्रत्यक्ष विधि से किया जाना चाहिए।
(4) जिला परिषद का गठन भी नीचे की इकाई द्वारा किया जाना चाहिए, जिसका अध्यक्ष जिला अधिकारी को बनाया जाना चाहिए।
(5) पंचायतों को अपने-अपने सीमा क्षेत्रों के भीतर होने वाले विकास कार्यों पर पूर्णतः नियंत्रण प्राप्त होना चाहिए।
(6) ग्राम पंचायतों के अनिवार्य कार्यों में जल आपूर्ति, सफाई, प्रकाश व्यवस्था, सड़कों का रखरखाव तथा भूमि प्रबंध इत्यादि निर्धारित किए जाने चाहिए।
◆ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ◆
प्रश्न 1. स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता के पांच कार्य लिखिए।
अथवा
स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता एवं महत्व निरूपित कीजिए।
उत्तर स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता को अग्र प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) शासन के कार्यभार में कमी- स्थानीय शासन की संस्थाओं की वजह से केंद्र अथवा राज्यों का कार्यभार कम हो जाता है। इससे केंद्र को राष्ट्रीय महत्व के तथा राज्य को राज्य स्तरीय कामों को पूरा करने का समय मिल जाता है।
(2) कम खर्चीली व्यवस्था- स्थानीय स्वशासन की वजह से सरकार का काफी धन जाता है। जब कुछ कार्य सिर्फ एक क्षेत्र विशेष के लिए किए जाते हैं तो यह जरूरी है कि इन कार्यों का खर्चा क्षेत्र उठाए । अथः केंद्रीय सरकार इस खर्च से बच जाती है।
(3) शासन में कुशलता- स्थानीय स्वशासन से शासन में कार्यकुशलता आती है। स्थानीय जरूरतों तथा समस्याओं को स्थानीय जनता ही अच्छी तरह समझ सकती है तथा वह उनका उचित समाधान भी खोजती है। स्थानीय शासन की संस्थाओं में जनसाधारण की रूचि होती है जिसके कारण प्रत्येक समस्या का जल्दी एवं सही तरीके से हल निकाला जा सकता है।
(4) प्रादेशिक भिन्नताओं को महत्व- संपूर्ण देश में स्थानीय क्षेत्रों तथा राज्यों की समस्याएं एक जैसी नहीं होती हैं। संपूर्ण देश में प्रशासनिक व्यवस्था के अच्छे बुरे परिणाम निकलते हैं। स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था द्वारा प्रत्येक स्थान की समस्याओं को समुचित समाधान करने का प्रबंध किया जाता है। इससे राज्यों की प्रादेशिक भिन्नताओं को शासन में स्थान दिया जा सकता है।
(5) विकेंद्रीकरण का प्रतीक- स्थानीय स्वशासन की संस्थाएं केंद्रीकरण की प्रतीक मानी जाती हैं। शासन में विकेंद्रीकरण की प्रवृत्ति में राज्य में निरंकुशता, प्रशासनिक भ्रष्टाचार , शासन सत्ता का कुछ लोगों तक सीमित रहने जैसे दुर्गुणों का विकास होता है। विकेंद्रीकरण की भावना से उन प्रवृत्तियों से बचा जा सकता है।
(6) स्थानीय क्षेत्रों का पूर्ण विकास- स्थानीय स्वशासन की संस्थाएं स्थानीय क्षेत्रों का सामाजिक , आर्थिक, भौगोलिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में नागरिकों के चहुँमुखी विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है।
(महत्व के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या दो देखें।)
प्रश्न 2. स्थानीय स्वशासन की प्रमुख विशेषताएं लिखिए।
उत्तर- स्वशासन की प्रमुख विशेषताओं अथवा लक्षणों को संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) राज्य सूची का विषय- स्थानीय स्वशासन राज्य सूची में वर्णित विषय है तथा प्रत्येक राज्य को इसकी भूमिका, कार्यप्रणाली, अधिकारों एवं कर्तव्यों, स्वरूप इत्यादि को निर्धारित करने का अधिकार है।
(2) सार्वभौम वयस्क मताधिकार- स्थानीय स्वशासन की एक विशेषता यह भी है कि इसकी संस्थाएं सार्वभौम वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनी जाती है। पंचायती राज्य तथा नगरीय स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं का चुनाव इसी आधार पर किया जाता है।
(3) एक सुव्यवस्था संगठनात्मक ढाँचा- स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं का एक विधिवत संगठनात्मक स्वरूप होता है। जहां पंचायती राज संस्थाओं का त्रिस्तरीय संगठन है, वहीं दूसरी ओर नगरीय स्वशासन की संस्थाओं का भी सुव्यवस्थित संगठन होता है।
(4) राज्य सरकारों का नियंत्रण- हालांकि स्थानीय स्वशासन की संस्थाएं अपने अधिकार क्षेत्रों में स्वायत्तता रखती हैं, लेकिन राज्य सरकारों का इन पर अंकुश होता है।
(5) स्थानीय निकायों का वित्तीय प्रशासन - ग्रामीण तथा नगरीय स्वशासन की संस्थाओं का कार्य मुख्य केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा किए जाने वाले अनुदान पर चलता है । यह स्वयं भी विभिन्न प्रकार के करों द्वारा अपनी आय को बढ़ाते हैं।
प्रश्न 3. स्थानीय स्वशासन के कार्य लिखिए।
उत्तर - स्थानीय स्वशासन के प्रमुख कार्य निम्न प्रकार है-
(1) जनकल्याण- स्थानीय निकायों का प्रथम महत्वपूर्ण कार्य अपने क्षेत्र में वृद्धा महिलाओं तथा बालकों के लिए विभिन्न प्रकार की जन कल्याणकारी गतिविधियों को उचित प्रकार से संपन्न कराना।
(2) विभिन्न जन सुविधाएं- स्थानीय स्वशासन द्वारा जन शौचालयों, स्नानगारों ,वाहन खड़े करने के स्थानों तथा बस स्टैंड इत्यादि की व्यवस्था की जाती है। रात्रि काल में क्षेत्र में आने जाने के दृष्टिकोण से समुचित प्रबंध कराना भी स्थानीय स्वशासन के निकायों का कार्य है।
(3) मार्ग एवं प्रकाश व्यवस्था- स्थानीय स्वशासन द्वारा लोगों की सुविधा हेतु रास्तों का निर्माण करा कर उस पर समुचित प्रकाश व्यवस्था कराई जाती है। इन मार्गों की देखरेख तथा आवश्यकता अनुसार उनकी मरम्मत का कार्य भी स्थानीय स्वशासन की निकायों द्वारा कराया जाता है।
(4) पर्यावरण संरक्षण- स्थानीय स्वशासन का एक महत्वपूर्ण कार्य पर्यावरण संरक्षण भी है। इसके लिए वृक्षों की कटाई पर रोक लगाता है तथा सीमा क्षेत्र में वृक्ष रोपण कराता है। स्थानीय स्वशासन पार्को एवं उद्यानों की स्थापना करके उनका रखरखाव भी करता है।
(5) पेयजल एवं सफाई व्यवस्था- क्षेत्रीय लोगों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना भी स्थानीय स्वशासन का ही कार्य है । इसके अलावा वह नाली, मल निस्तारण तथा साफ सफाई में संबद्ध सभी व्यवस्थाएं कराना भी सुनिश्चित करता है।
प्रश्न 4 पंचायती राज व्यवस्था के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर- पंचायती राज व्यवस्था के प्रमुख उद्देश्यों को संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) पंचायती राज व्यवस्था का प्रमुख लक्ष्य प्रत्यक्ष लोकतंत्र को स्थापित कर उसे वास्तविक रूप देना और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण करना है।
(2) जनसाधारण में पहल करने की क्षमता को जागृत करके ग्रामीण क्षेत्र को विकेंद्रीकरण की कमियों से बचा कर रखना भी पंचायती राज्य का ही उद्देश्य है।
(3) पंचायती राज्य का एक अन्य उद्देश्य ग्रामीण जन समुदाय में आत्मविश्वास की भावना एवं राजनीतिक चेतना जागृत करना है।
(4) ग्रामीण जनता को व्यवहारिक प्रशासनिक ज्ञान कराकर उनमें नेतृत्व के गुण पैदा करना पंचायती राज का ही उद्देश्य है।
(5) विकासवादी योजनाओं की पूर्ति के लिए एक प्रशासनिक इकाई बनाना तथा अपने गांव का विकास स्वयं करके ग्राम को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करना पंचायती राज व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य है।