Jiwaji university bsc 1st year open book hindi paper 2021 solution

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Jiwaji university bsc 1st year open book hindi paper 2021 solution


नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका आज के इस नए आर्टिकल में दोस्तों इस आर्टिकल में मैंने आपको बताया है Jiwaji university bsc 1st year open book hindi paper ka solution इस आर्टिकल में आपको पूरा सलूशन मिलने वाला है तो आप इस आर्टिकल को बिल्कुल लास्ट तक जरूर पढ़ें।


 प्रश्न 1. पूस की रात का कथानक स्पष्ट कीजिए।


उत्तर - पूस की रात कहानी में कहानीकार कहता है कि बरसों पुरानी बात है, किसी एक गांव में एक गरीब किसान हल्कू अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसकी पत्नी का नाम मुन्नी था हल्कू किसी अन्य की जमीन पर खेती करता था, लेकिन खेती से कोई विशेष आमदनी नहीं होती थी। इसीलिए उसकी पत्नी हल्कू को खेती करना छोड़ कर मजदूरी करने के लिए कहती थी। हल्कू 'लगान' के तौर पर दूसरों की खेती करता था। खेती से इतनी आमदनी नहीं होती थी कि लगान भी दिया जा सके। इसीलिए खेत के मालिक का बकाया बना रहता था। हल्कू ने ₹3 मांगे, पत्नी ने देने से इनकार कर दिया क्योंकि उसने यह ₹3 जाड़े की रात में ठंड से बचने के लिए कंबल खरीदने के लिए जमा किए थे। मालिक के तगादे और गालियों से डरकर मुन्नी ने हल्कू को ₹3 निकाल कर दे दिए और मालिक रुपए लेकर चला गया। 


पूस का महीना था, रात अंधेरी थी। कड़ाके की सर्दी थी। हल्कू अपने खेत के किनारे ऊख के पत्तों की छतरी के नीचे एक बांस के खटोले पर पुरानी चादर ओढ़े हुए ठिठुर रहा था। खाट के नीचे उसका पालतू कुत्ता जावरा लेटा हुआ कुँ-कुँ कर रहा था, क्योंकि उसे भी ठंडा सता रही थी। हल्कू को उसकी हालत पर तरस आ रहा था। उसने जबरा से कहा- तुम्हें यहां आने की क्या जरूरत थी ? तू भी अब ठंड खा, मैं क्या करूं? इस प्रकार बहुत देर तक वह बेजुबान कुत्ते से एक मित्र साथी की तरह बातें करता रहा और ठंड के कारण नींद ना आने पर उसने जबरा को अपनी गोद में सुला लिया। उसके भीतर की गर्मी से हल्कू को सर्दी से कुछ आराम में लगाया। आहट पाकर जबरा भौंकने लगा, क्योंकि उसे अपने कर्तव्य का पूर्ण भान था।

     

      हल्कू को ठंड के कारण नींद नहीं आ रही थी। इसलिए उसने पास के खेत से अरहर के पौधे उखाड़ कर झाड़ू बनाकर आम के बाग से सूखी पत्तियां इकट्ठा करके सुलगाया। हल्कू और जबरा आग तापने लगे। इस प्रकार हाल को सर्दी पर विजय पाकर चादर ओढ़ कर निश्चिंत भाव से सो गया था। टवेरा होने पर उसकी पत्नी मुन्नी ने उसे जगाकर कहा - तुम यहां रम गए, उधर सारे खेत का सत्यानाश हो गया। मुन्नी ने उदास होकर कहा अब मजदूरी करके ही पेट पालना पड़ेगा। हल्कू ने बड़ी प्रसन्नता से कहा कि उसे अपराध की ठंड में यहां सोना तो नहीं पड़ेगा। इससे यह स्पष्ट होता है कि उस समय हल्कू को लगान पर खेती करने की अपेक्षा मजदूरी करना आरामदायक लगता था, क्योंकि मजदूरी करने में कोई झंझट तो नहीं है। यह कहानी पूरी हो जाती है।


प्रश्न 2. भगवान बुद्ध निबंध के माध्यम से स्वामी विवेकानंद युवा पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहते हैं।


उत्तर - भगवान बुद्ध निबंध के माध्यम से स्वामी विवेकानंद युवा पीढ़ी को यह संदेश देना चाहते हैं कि भगवान बुद्ध की एक ऐसे व्यक्ति थे, जो पूर्णतया तथा यथार्थ निष्काम कहे जा सकते हैं। ऐसे कई महापुरुष थे जो स्वयं को ईश्वर का अवतार कहते थे और लोगों को विश्वास दिलाते थे कि जो उन्हें श्रद्धा रखेंगे, 20 वर्ग को प्राप्त कर सकेंगे। पर, बुध हमेशा कहते थे कि अपनी उन्नति अपने ही प्रयत्न से होगी अर्थात युवा पीढ़ी को सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए तभी भी उन्नति प्राप्त कर सकेंगे। भगवान बुद्ध ईश्वर के संबंध में अज्ञेयवादी थे। वे जाति, भेद के तथा धर्म के नाम पर पुरोहितों द्वारा किए जाने वाले कपट आचरण के घोर विरोधी थे। ऐसे स्वामी जी यह संदेश देते हैं कि हम सभी युवाओं को जाति, धर्म व संप्रदाय के आधार पर नहीं लड़ना चाहिए हम सब एक हैं।


प्रश्न 3. अफसर के तबादले के दृश्य का वर्णन कीजिए।


उत्तर - शरद जोशी ने अपने व्यंग्य लेख 'अफसर' में भारतीय अफसरों के 'तबादले' यानी 'ट्रांसफर' या 'स्थानांतरण' के दृश्य का बड़ा रोचक वर्णन किया है।


जोशी जी लिखते हैं कि 'तबादले' का दृश्य बड़ा रोचक होता है। जब किसी कार्यालय में एक अक्षर की विदाई और दूसरे अफसर की अगुवाई एक साथ होती है तो भाषण देने वाले के सामने धर्मसंकट रहता है। नए अफसर को मक्खन लगाने अर्थात झूठी प्रशंसा करने और जाते हुए के लिए शाब्दिक अफसोस प्रकट करने की मिश्रित अभिव्यक्ति के लिए उसे ढूंढने पर भी शब्द नहीं मिल पाते हैं। अंततः आबे केवल इतना ही कह पाता है कि, " हमें बड़ा अफसोस है कि वर्मा साहब हमारे बीच से जा रहे हैं और दूसरी तरफ हमें खुशी भी है क्योंकि शर्मा साहब हमारे बीच आ रहे हैं।" 


यहां 'अफसोस' और 'खुशी' दोनों की एक साथ अभिव्यक्ति को देखकर या सुनकर ऐसा लगता है कि जैसे यह दोनों भाग बनावटी हैं। इनकी अभिव्यक्ति में किंचित-मात्र भी सच्चाई नहीं है। यह तबादले का दृश्य अफसर और अधीनस्थ लोगों के पारस्परिक संबंधों की उदासीनता और औपचारिकता को प्रकट करता है। लेखक ने ऐसे दृश्य के माध्यम से इसी तथ्य को उजागर किया है।


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