class 11 hindi chapter 3 pathik question answer

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class 11 hindi chapter 3 pathik question answer hindi medium//कक्षा 11 पद्य खंड हल

 

अध्‍याय – 3

                               पथिक         - रामनरेश त्रिपाठी


1. प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।

रवि के सम्‍मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला।

नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन है।

घन पर बैठ, बीच में बिचरूँ यही चाहता मन है।। 


संदर्भ – प्रस्‍तुत काव्‍य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहके पाठ पथिकसे ली गई हैं। इसके रचयिता कविवर रामनरेश त्रिपाठी जी हैं।

प्रसंग – प्रस्‍तुत पद्यांश में प्रकृति के मनोरम सौंदर्य का वर्णन किया गया है। कवि द्वारा सागर किनारे का दृश्‍य प्रदर्शित हो रहा है।

व्‍याख्‍या – कवि अनुभव करता है कि आकाश से गिरती वर्षा की लडि़याँ प्रतिक्षण नया रूप धारण करती हैं और सूर्य के सम्‍मूख रंग-बिरंगी दिखाई दे रही हैं, उसे यह गिरती वर्षा कि लडि़यों का रूप अत्‍यन्‍त मनोहारी प्रतीत हो रहा है। वहाँ खड़ा-खड़ा आनंदित होते हुए कहता है कि कितना सुन्‍दर दृश्‍य है। नीचे नीला सागर व ऊपर नीला आकाश है। उसका मन करता है कि वह बादलों के बीच में बैठकर समुद्र व आकाश के बीच सैर करे।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) कवि ने प्रकृति का अत्‍यन्‍त‍ मनोरम चित्रण किया गया है। ( 2 ) नील गगन, नीचे नील, विस्‍तृत विशाल, रंग-बिरंगे में अनुप्रास, कोने-कोने में पुरुक्ति प्रकाश अलंकार है। ( 3 ) संस्‍कृतनिष्‍ठ कोमल, मधुर शब्‍दावली का प्रयोग हुआ है।

 

2. रत्‍नाकर गर्जन करता है, मलयानिल बहाता है।

हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये! भरा रहता है।

इस विशाल, विस्‍तृत, महिमामय रत्‍नाकर के घर के –

कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरूँ जी भर के।


संदर्भ – प्रस्‍तुत काव्‍य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहके पाठ पथिकसे ली गई हैं। इसके रचयिता कविवर रामनरेश त्रिपाठी जी हैं।

प्रसंग – प्रस्‍तुत पद्यांश में पथिक के द्वारा समुद्र किनारे रहकर वहाँ के उपस्थित दृश्‍य को अपने प्रिय से समक्ष प्रदर्शित किया गया है।

व्‍याख्‍या – क‍वि के अनुसार मेरे सामने खड़ा समुद्र गर्जन-तर्जन कर रहा है। साथ ही मलय पर्वत से निकलने वाली सुगंधित हवाएँ बह रही हैं। हे प्रिय! इन्‍हें देखकर मेरे मन में यह उत्‍साह सदा भरा रहता है कि मैं इस विशाल और महान सागर रूपी घर के कोने-कोने में जाऊँ। इसकी लहरों पर बैठूँ और जी-भर कर उसमें विहार करूँ, विचरण करूँ।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) प्रकृति का रमणीय वर्णन हुआ है। एक ओर समुद्र की गर्जन, दूसरी ओर सुगंधित हवाएँ- इसमें विरोधाभासी सौंदर्य है। ( 2 ) अनुप्रास, उत्‍प्रेक्षा, मानवीकारण अलंकार का सु्ंदर प्रयोग दर्शनीय है। ( 3 ) संस्‍कृतनिष्‍ठ शब्‍दावली युक्‍त खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।

 

3. निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा।

कमला के कंचन-मंदिर का मानो कांत कँगूरा।

लाने को निज-पुण्‍य-भूमि पर लक्ष्‍मी की असवारी।

रत्‍नाकर ने निर्मित कर दी स्‍वर्ण-सड़क अति प्‍यारी। 


संदर्भ – प्रस्‍तुत काव्‍य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहके पाठ पथिकसे ली गई हैं। इसके रचयिता कविवर रामनरेश त्रिपाठी जी हैं।

प्रसंग – प्रस्‍तुत पद्यांश में समुद्र की लहरों में सूर्योदय के प्रतिबिंब को देखकर उठने वाली कल्‍पनाओं को वर्णित किया गया है।

व्‍याख्‍या – कवि के अनुसार सूर्योदय के समय सूर्य की अधूरी छवि परिलक्षित हो रही है अर्थात् आधा सूर्य समुद्र तल के ऊपर तथा आधा समुद्र की सतह के अंदर दिख रहा है। इस सौंदर्य को देखकर लगता है जैसे लक्ष्‍मी जी के स्‍वर्णिम मंदिर का कँगूरा चमक रहा हो। सूर्य को देखकर ऐसा लग रहा है मानो लक्ष्‍मी जी की सवारी को इस पवित्र धरती पर उतारने के लिए स्‍वयं समुद्र देव ने बहुत सुंदर सोने का मार्ग बना दिया हो।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) कवि ने प्रकृति के नूतन रूप को दर्शाया है। ( 2 ) उत्‍प्रेक्षा अलंकार, मानवीकरण अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है। ( 3 ) संस्‍कृ‍तनिष्‍ठ शब्‍दावली युक्‍त शब्‍दों का कोमल-कमनीय रूप प्रकट हुाअ है।


4. निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है।

लहरों पर लहरों का आना सुंदर, अति सुंदर है।

कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्‍या पा सकता है प्राणी?

अनुभव करो हृदय से, हे अनुराग-भरी कल्‍याणी।।

संदर्भ – प्रस्‍तुत काव्‍य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहके पाठ पथिकसे ली गई हैं। इसके रचयिता कविवर रामनरेश त्रिपाठी जी हैं।

प्रसंग – प्रस्‍तुत पद्यांश में सूर्योदय के समय उत्‍पन्‍न प्राकृतिक शोभा का दृश्‍य पथिक द्वारा अपनी प्रिया को वर्णित किया गया है।

व्‍याख्‍या – कवि के अनुसार – देखो, सामने समुद्र निडर होकर, दृढ़तापूर्वक बड़े गंभीर भाव से गरज रहा है अर्थात् समुद्र की लहरें बहुत गहराई से निकलकर ऊपर की ओर उठ रही हैं, मानो उन्‍हें किसी का भय नहीं है। समुद्र की एक लहर के साथ दूसरी लहर चली आ रही है। यह दृश्‍य बड़ा सुंदर प्रतीत हो रहा है। पथिक अपनी प्रिया से कहता है कि हे प्रेममयी, मंगलमयी प्रिया। तुम इस दृश्‍य को अपने हृदय से अनुभव करो। बताओ,  इस संसार में इस सौंदर्य से बढ़कर भी कोई सुख है? नहीं है। इस प्राकृतिक सौंदर्य का कोई मुकाबला नहीं है।


5. जब गंभीर तम अर्द्ध-निशा में जग को ढक लेता है।

अं‍तरिक्ष की छत पर तारों के छिटका देता है।।

सस्मित-वदन जगत का स्‍वामी मृदु गति से आता है।

तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है।।

संदर्भ – प्रस्‍तुत काव्‍य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहके पाठ पथिकसे ली गई हैं। इसके रचयिता कविवर रामनरेश त्रिपाठी जी हैं।

प्रसंग – प्रस्‍तुत पद्यांश के द्वारा कवि रात्रि के समय आकाशगंगा के सौंदर्य को उद्-घाटित  कर रहा है।

व्‍याख्‍या – कवि के अनुसार जब आधी रात में चारों ओर घनघोर अंधेरा छा जाता है। सारा संसार अंधेरे से ढँक जाता है। यह अंधेरा अं‍तरिक्ष की छत पर जगमग करते तारों को बिखेर देता है अर्थात् अंतरिक्ष में तारे सज जाते हैं। तब अंधकार के पश्‍चात् इस संसार का स्‍वामी धीमी-धीमी मुस्‍काराहट फैलाते हुए कोमल गति से आता है और आकाशगंगा के मीठे स्‍वर में गाता है।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) कवि का प्राकृतिक प्रेम दर्शाया है, कवि प्रकृति में प्रेम-लीला देखकर आनंदित है।

( 2 ) संस्‍कृतनिष्‍ठ भाषा एवं खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है। ( 3 ) अनुप्रास एवं मानवीकरण अलंकार।


6. उससे ही विमुग्‍ध हो नभ में चंद्र विहँस देता है।

वृक्ष विविध पत्रों-पुष्‍पों से तन को सज लेता है।।

पक्षी हर्ष सँभाल न सकते मुग्‍ध चहक उठते हैं।

फूल साँस लेकर सुख की सानंद महक उठते हैं।।

संदर्भ – प्रस्‍तुत काव्‍य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहके पाठ पथिकसे ली गई हैं। इसके रचयिता कविवर रामनरेश त्रिपाठी जी हैं।

प्रसंग – प्रस्‍तुत पद्यांश में कवि प्रकृति की प्रेम-लीला को मानवीकरण की भावना से परिलक्षित कर रहा है।

व्‍याख्‍या – कवि के अनुसार रात्रि में आकाशगंगा के जगमग सौंदर्य को देखकर आकाश में चंद्रमा प्रसन्‍न हो जाता है। आशय यह है कि चन्‍द्रमा का खिलना भी मानो प्रकृति की प्रेमलीला से मुग्‍ध होना है। यहाँ तक कि इस प्रेम लीला को देखकर विविध तरह-तरह के पत्तों और फूलों से अपने शरीर को सजाकर खड़े हो जाते हैं। पक्षीगण भी अपनी खुशी सँभाल नहीं पाते। वे मुग्‍ध होकर चहक उठते हैं। फूल भी सुख की साँस लेते हैं और आनंदपूर्वक महक उठते हैं।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) कवि ने प्र‍कृति के क्रियाकलाप को प्रेमलीला के रूप में प्रस्‍तुत किया है। ( 2 ) अनुप्रास एवं मानवीकरण अलंकार। ( 3 ) भाषा संस्‍कृतनिष्‍ठ एवं खड़ी बोली है।


7. वन, उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं।

मेरा आत्‍म-प्रलय होता है, नयन नीर झड़ते हैं।।

पढ़ो लहर, तट, तृण, तरु, गिरि, नभ, किरन, जलद पर प्‍यारी।

लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्‍व-विमोहनहारी।।

संदर्भ – प्रस्‍तुत काव्‍य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहके पाठ पथिकसे ली गई हैं। इसके रचयिता कविवर रामनरेश त्रिपाठी जी हैं।

प्रसंग – प्रस्‍तुत पद्यांश में प्रकृति की प्रेमलीला को मानवीय अनुभूति के आधार पर लिया गया है।

व्‍याख्‍या – कवि के अनुसार प्रकृति में चल रही प्रेमलीला को देखकर मेघों से रहा नहीं जाता। वे प्रसन्‍नता प्रकट करने के लिए वनों, उपवनों, पहाड़ों, कुंजों में बरस पड़ते हैं। स्‍वयं पथिक भी भाव-विव्‍हल हो जाता है और उसके नेत्रों से अश्रुधारा झरने लगती है। कवि कहता है कि प्रकृति में होने वाले इस दृश्‍य की कहानी को जो प्रत्‍येक लहर, समुद्र तट, घास वृक्ष, पहाड़, आकाश, सूर्य किरण व बादल पर लिखी हुई है पढ़कर आनंद उठाओ। यह कहानी बहुत मधुर है एवं सारे संसार को मोहित किए हुए है।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) कवि प्रकृति-प्रेमी है। इसका प्रकृति प्रेम मुखरित हुआ है। ( 2 ) अनुप्रास एवं मानवीकरण अलंकार। ( 3 ) संस्‍कृतनिष्‍ठ किंतु सरल भाषा का प्रयोग हुआ है।

 

8. कैसी मधुर मनोहर उज्‍ज्‍वल है यह प्रेम-कहानी।

जी में है अक्षर बन इसके बिनूँ विश्‍व की बानी।।

स्थिर, पवित्र, आनंद-प्रवाहित, सदा शांति सुखकर है।

अहा! प्रेम का राज्‍य परम सुंदर, अतिशय सुंदर है।।

संदर्भ – प्रस्‍तुत काव्‍य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहके पाठ पथिकसे ली गई हैं। इसके रचयिता कविवर रामनरेश त्रिपाठी जी हैं।

प्रसंग – प्रस्‍तुत पद्यांश के द्वारा कवि प्रकृति में चल रही प्रेमलीला में स्‍वयं को लीन करने की इच्‍छा प्रकट कर रहा है।

व्‍याख्‍या – कवि के अनुसार सूरज और समुद्र की यह प्रेम-कहानी बहुत मधुर, मनोरम और उज्‍ज्‍वल प्रतीत हो रही है। इसे देखकर मन करता है कि मैं इसे अपने शब्‍दों में व्‍यक्‍त करूँ। मेरी उस प्रेमपूर्ण वाणी को पूरा संसार सुने। प्रकृति में सदा एक पवित्र, आनंदमयी और सुखकारी शांति छाई रहती है। यहाँ प्रेम का ही राज्‍य छाया प्रतीत होता है। वाह! प्रेम का यह राज्‍य कितना सुन्‍दर है ।

काव्‍य सौंदर्य – ( 1 ) कवि का प्रकृति-प्रेम प्रकट हुआ है। ( 2 ) अनुप्रास अलंकार एवं शान्‍त रस। ( 3 ) संस्‍कृ‍तनिष्‍ठ शब्‍दावली एवं खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।


पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर


कविता के साथ - 


प्रश्न 1. पथिक का मन कहाँ विचरना चाहता है?


उत्तर - पथिक का मन नीले आकाश और नीले समुद्र के बीच विचारना चाहता है।


प्रश्न 2. सूर्योदय वर्णन के लिए किस तरह के बिंबो का प्रयोग हुआ है?


उत्तर - सूर्योदय वर्णन के लिए कवि ने कल्पना की है कि समुद्र के तट पर दिखने वाला आधा सूर्य मानव लक्ष्मी के मंदिर का उज्जवल कँगूरा है। समुद्र पर फैली लाली मानो लक्ष्मी का मंदिर है। सूर्य की रश्मियों से बनी चौड़ी उजली रेखा मानो लक्ष्मी के स्वागत के लिए बनाई गई सोने की सड़क आदि बिंबो का प्रयोग किया गया है।


प्रश्न 3. आशय स्पष्ट करें -

( क ) संदर्भ – प्रस्‍तुत काव्‍य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोह’ के पाठ पथिक’ से ली गई हैं। इसके रचयिता कविवर रामनरेश त्रिपाठी जी हैं।

प्रसंग – प्रस्‍तुत पद्यांश के द्वारा कवि रात्रि के समय आकाशगंगा के सौंदर्य को उद्-घाटित  कर रहा है।


( ख ) संदर्भ – प्रस्‍तुत काव्‍य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोह’ के पाठ पथिक’ से ली गई हैं। इसके रचयिता कविवर रामनरेश त्रिपाठी जी हैं।

प्रसंग – प्रस्‍तुत पद्यांश के द्वारा कवि प्रकृति में चल रही प्रेमलीला में स्‍वयं को लीन करने की इच्‍छा प्रकट कर रहा है।


प्रश्न 4. कविता में कई स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। ऐसे उदाहरणों का भाव स्पष्ट करते हुए लिखें।


उत्तर - निम्नलिखित स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। उनके भाव इस प्रकार हैं - 


( 1 )  प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।

        रवि के सम्मूख थिरक रही है नभ में वारिद-माला।।


भाव - यहां घने बादलों को रंग-बिरंगी वेशभूषा में थिरकते नर्तकी के रूप में दिखाया गया है जो रवि को प्रसन्न करने के लिए नित-नूतन छवियां बना रही है।


( 2 ) जब गंभीर तमअर्द्ध-निशा जग को ढक लेता है।

       अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है।।


भाव - इसमें गहरे अंधेरे का मानवीकरण किया गया है। वह आधी रात को सारे संसार को ढक लेता है तथा आकाश रूपी छत पर तारों को बिखरा देता है।


( 3 ) सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।

       तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है।।


भाव - इसमें साँझ के समय का वर्णन है, जब ढलता हुआ सूरज अपने अंतिम लाली रूपी मुस्कान के साथ आकाशगंगा का सौंदर्य निहारता है।


( 4 ) उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद्र विहँस देता है।

       वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है।

       फूल सांस लेकर सुख की सानंद महक उठाते हैं।।


भाव - इस में चंद्रमा को प्रसन्नता से हंसता दिखाया गया है। वह मानो सूरज और आकाशगंगा की प्रेम-कहानी पर मुग्ध होकर खिल उठता है।

   वृक्षों को भी सजे-धजे प्रसन्न मनुष्य के रूप में दिखाया गया है जो प्रसन्नता प्रकट करने के लिए अपने तन को सजाए खड़े हैं।

 फूलों को सुख की सांस लेते हुए प्राणी की भांति दिखाया गया है।


कविता के आस-पास -


प्रश्न 1. समुद्र को देखकर आपके मन में क्या भाव उठते हैं? लगभग 200 शब्दों में लिखें।


उत्तर - समुद्र को देखकर मेरे मन में आश्चर्य के भाव उठते हैं। मैं सोच नहीं पाता कि इतना सारा साफ-स्वच्छ जल कहां से आया। मन में अनेक प्रकार के कौतूहल जगते हैं। यह कितना गहरा होगा। इसके नीचे कितने जीव होंगे; कितनी और कैसी वनस्पतियाँ होंगी। अनंत मछलियां होंगी, भयंकर मगरमच्छ होंगे। वे एक-दूसरे के साथ शिकार-क्रीड़ा करते होंगे। बड़े मगरमच्छ छोटी मछलियों को खा जाते होंगे। तब छोटी मछलियां क्या करती होंगी? वे अपने बचाव के लिए कौन-से उपाय करती होंगी? कैसे छिपती होंगी? फिर भी अपना पेट कैसे भरती होंगी? आदि-आदि प्रश्न मन को मथने लगते हैं।


मैं समुद्र में उछलते ऊंची-ऊंची लहरों को देखता हूं तो मन में उत्साह उमड़ आता है। मेरा मन करता है कि मैं भी इनके बीच जाऊं। इनकी हिलोर का, झकझोर का और गति का आनंद लूँ। मन करता है कि मैं इनकी नुकीली लहरों पर सवारी करूं। परंतु डर भी लगता है। फिर सोचता हूं कि काश,  मेरे पास कोई नौका होती जिस पर पालें चढ़ाकर चप्पू हिलाता हुआ मैं इसकी विस्तृत छाती पर निश्चिंत विहार करता। मैं कोशिश करता कि इसका ओर-छोर जानूँ। इसके अंतिम किनारे तक पहुंचने का प्रयत्न करूँ।


प्रश्न 2. प्रेम सत्य है, सुंदर है-प्रेम के विभिन्न रूपों को ध्यान में रखते हुए इस विषय पर परिचर्चा करें।


उत्तर - प्रेम सत्य है। यही अनुभूति हमें इस बार का बोध कराती है। यही अनुभूति एक आत्मा को दूसरी आत्मा से, जड़ को चेतना से, जीव को दूसरे जीव से जोड़ती है।

 प्रेम सुंदर है अर्थात प्रेम ही मन में मोहिनी जगाता है। इसी के कारण हमें संसार सुंदर प्रतीत होने लगता है। इसी प्रेम अनुभूति के कारण हमें एक-दूसरे जीवन में रस आता है, आनंद आता है।


प्रश्न 3. 'वर्तमान समय में हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं' इस पर चर्चा करें और लिखें की प्रकृति से जुड़े रहने के लिए क्या कर सकते हैं।


उत्तर - यह ठीक है कि आज का मनुष्य प्रकृति से दूर होता जा रहा है। विशेष रूप से नगरों और महानगरों में जीने वाले लोग प्रकृति के संपर्क में नहीं आ पाते हैं। वे हमेशा पथरीले मकानों में सीमित रहते हैं। न तो वे धूप-छाया का आनंद लेते हैं, न खुली वर्षा और ठंड का। उनके घरों-मोहल्लों में न तो पेड़ है, न हरियाली, न खुले मैदान, न खेत, न फसलें। अधिक-से-अधिक वे गमलों में एकाध पौधा लगाए फिरते हैं। उनके नगरवासी तो उसे भी व्यर्थ समझते हैं। वे साज-सज्जा के नाम पर भी प्लास्टिक के फूलों का उपयोग करते हैं।


प्रकृति से जुड़े रहने के लिए हम कुछ नियम बना सकते हैं - 

( 1 ) हर आबादी में खुले पार्क हों। ( 2 ) मोहल्लों के दोनों ओर मकान न हों। एक और हरित पट्टी हो। ( 3 ) हम अपने सार्वजनिक कार्यक्रम प्राकृतिक रमणीय स्थलों पर आयोजित करें। ( 4 ) हम वृक्ष उगाने की ओर ध्यान दें। ( 5 ) स्कूल के बच्चों से पौधे लगवाएं। उन्हें पिकनिक स्थलों पर ले जाकर प्रकृति की धूप-छाया के आनंद से परिचित कराएं। आदि-आदि।


प्रश्न 4. सागर संबंधी दस कविताओं का संकलन करें और पोस्टर बनाएं।


उत्तर - छात्र स्वयं करें।

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