class 11 hindi chapter 1 kabir question answer

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class 11 hindi chapter 1 kabir question answer hindi medium//कक्षा 11 पद्य खंड हल

अध्‍याय 1

कबीर  - कबरीदास

1  हम तौ एक एक करि जांनां।

   दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।

   एकै पवन एक ही पानीं एकै जोति समांनां।

   एकै खाक गढ़े सब भांड़ै एकै कोंहरा सांनां।।

   जैसे बाढ़ी काष्‍ट ही काटे अगिनि न काटै कोई।

   सब घटि अं‍तरि तूँही व्‍यापक धरै सरूपै सोई।।

   माया देखि के जगत लुभांनां काहे रे नर गरबांनां।

   निरभै भया कछू नहिं ब्‍यापै कहै कबीर दिवांनां।।

 

संदर्भ प्रस्‍तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहसे लिया गया है। इसके रचियिता कबीर दास जी हैं।

प्रसंग कबीरदास एकही परमात्‍मा तत्‍व की सत्ता स्‍वीकार करते हैं। उनके अनुसार इस संसार का रचयिता एक परमात्‍मा है। संसार के समस्‍त रूपों में उसी एककी सत्ता विद्यमान है। इस भाव को व्‍यक्‍त करते हुए वे कहते हैं

व्‍याख्‍या हम तो उस एकपरमात्‍मा को एक ही मानते हैं। जो लोग उस परम तत्‍व को आत्‍मा-परमात्‍मा, जीव ब्रह्म आदि को अलग-अलग मानमे हैं, उन्‍होंने वास्‍तव में उस परमात्‍मा को जाना नहीं है। उनके लिए संसार नरक है। अज्ञानवश वे एकको दोमान बैठे हैं। पूरी सृष्टि में वायु एक है, जल एक है और उसी एक ही परमात्‍मा की ज्‍योति समस्‍त संसार में व्‍याप्‍त है।

सभी का निर्माण एक ही मिट्टी से हुआ है तथा उन्‍हें एक ही कुम्‍हार ने बनाया है अर्थात् सभी मानवों का निमार्ण जल, नभ, अग्नि आदि पाँच तत्‍वों से हुआ है तथा उनका निर्माता भी एक है। जिस प्रकार बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है किंतु अग्नि को नहीं काट सकता। ठीक इसी प्रकार प्रत्‍येक कण के भीतर तू विद्यमान है, तूने ही विभिन्‍न रूप-स्‍वरूप धारण किए हुए हैं। संसार के माया रूप को देखकर यह सारा संसार लालची हो गया है। यह माया तो झूठी है भला तू इस झूठी माया पर क्‍यों गर्व करता हैं? प्रभु-प्रेम में दीवाने कबीर कहते हैं- जो लोग माया-मोह से मुक्‍त हो जाते हैं, वे निर्भय रहते हैं। उन्‍हें किसी प्रकार का कोई भय नहीं लगता है।

काव्‍य सौन्‍दर्य ( 1 ) कबीर की वाणी में प्रखर आत्‍मविश्‍वास है। वे अपनी बात को पूरे आत्‍मविश्‍वास से कहते हैं। हम तौऔर कहै कबीर दीवांनांकी निर्भीकता दर्शनीय है। ( 2 ) माया-मोह और गर्व की व्‍यर्थता पर प्रकाश डाला गया है। ( 3 ) एक एकमें यमक अलंकार है एक = परमात्‍मा, एक = एक, काष्‍ट ही काटे तथा कहै कबीर दिवांनां में अनुप्रास अलंकार।

2.  संतो देखत जग बौराना।

   साँच कहाँ तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना।।

   नेमी देखा धरमी देखा, प्रात करै असनाना।

   आतम मारि पखानहि पूजै, उनमें कछु नहिं ज्ञाना।।

   बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़ै कितेब कुराना।

   कै मुरीद तदबीर बतावैं, उनमें उहै जो ज्ञाना।।

   आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।

   पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।।

  टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।

  साखी सबदहि गावत भूले, आतम खबरि न जाता।

 

संदर्भ प्रस्‍तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहसे लिया गया है। इसके रचियिता कबीर दास जी हैं।

प्रसंग कबीरदास को धर्म-साधना में आपसी भेदभाव, झूठ, पाखंड और दिखावा सहन नहीं था। पाखंडी, ढोंगियों को सामने देखकर वे क्रुत्र हो उठते थे। ऐसे ढोंगियों पर व्‍यंग्‍य करते हुए वे कहते हैं

व्‍याख्‍या हे सज्‍जनों देखो, सारा जग पागल हो गया है। यदि उनके सामने सच्‍ची बात कही जाए, तो वे नाराज़ होकर मारने दौड़ते हैं और असत्‍य बातों पर विश्‍वास करते हैं।

मुझे नियम, धर्म, दिनचर्या आदि को कठोरता से पालन करने वाले बहुत संत मिले। वे हर प्रात: स्‍वयं को शुद्ध करने के लिए स्‍नान भी किया करते हैं। किंतु अपने भीतर छिपे परमात्‍मा को छोड़कर जो व्‍यर्थ के नियमों, व्रतों में उलझता है और पत्‍थरों की पूजा करता है, उसका ज्ञान थोथा और सारहीन है। कबीरदास हिंदु-मुसलमान-दोनों पर व्‍यंग्‍य कसते हुए कहते हैं मैंने बहुत से पीर-पैगंबर देखे हैं, जो अपने शिष्‍यों को धार्मिक ग्रंथ कुरान आदि पढ़ाते हैं, समझाते हैं, स्‍वयं भी पढ़ते हैं। वे अपने शिष्‍य बनाकर उन्‍हें तरह-तरह के उपाय बताते हैं। वास्‍तव में ऐेसे पाखंडि़यों ने खुदा को जाना नहीं है। यह जो साधक समाधि की मुद्रा में आसन लगाए बैठा है और जिसे साधक होने का मन में अहंकार है, जी पीपल के वृ‍क्ष और पत्‍थर की मूर्तियों की पूजा कर रहा है, तीर्थ और व्रतों का पालन कर रहा है- वह सब छल और भुलावा है, उनके गले में पड़ी हुई माला, टोपी, तिलक-छापा आदि को देखकर ही उनके पाखंड का अनुमान लगाया जा सकता है। वे लोगों को प्रभु-ज्ञान देने के लिए साखी और सब्‍द गाते फिरते हैं, किंतु वास्‍तव में उन्‍हें स्‍वयं अपनी आत्‍मा के तत्‍व का ज्ञान नहीं है।

काव्‍य सौन्‍दर्य ( 1 ) इस पद में धार्मिक आडंबरों पर गिन-गिनकर चोट की गई है। ( 2 ) हिन्‍दू-मुसलमान दोनों पर व्‍यंग्‍य किया गया है। ( 3 ) पीपर पाथर पूजन, साखी सब्‍दहि में अनुप्रास अलंकार है।

 

3 हिंदु कहै मोहि राम पियारा, तुर्क कहै रहिमाना।

  आपस में दोउ लरि लरि मूए, मर्म न काहू जाना।।

  घर घर मन्‍तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।

  गुरु के सहित सिख्‍य सब बूड़े, अंत काल पछिताना।

  कहै कबीर सुनो हो संतों, ई सब मर्म भुलाना।

  केतिक कहौं कहा नहिं मानै, सहजै सहज समाना।।

संदर्भ प्रस्‍तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्‍तक आरोहसे लिया गया है। इसके रचियिता कबीर दास जी हैं।

प्रसंग इस पद में ईश्‍वर के नाम पर लड़ने वालों को सचेत किया है।

व्‍याख्‍या हिन्‍दू कहता है कि मुझे राम प्रिय हैं। मुसलमान कहता है कि मुझे रहीम प्रिय हैं। इस प्रकार राम और रहीम के नाम पर, हिंदू और मुसलमान दोनों लड़ते हैं, झगड़तें हैं। उनके लिए भगवान अलग हैं, वे वास्‍तविकता को नहीं पहचानते। सत्‍य यह है कि न ईश्‍वर को हिंदू ने समझा है, न मुसलमान ने। ऐसे पाखंडी लोग घर-घर जाकर लोगों को गुरु-मंत्र बाँट रहे हैं, यह सब अपनी महिमा बढ़ाने का फेर ही है। ऐसे तथाकथित गुरु अभिमानी हैं। ऐसे पाखंडी गुरु अपने अज्ञानी शिष्‍यों सहित भवसागर में डूब जाएँगे और उन्‍हें अंत में पछताना पड़ेगा।

कबीर कहते हैं हे संतों, सुनो। ये सब पाखंडी उसके स्‍वरूप को भूले हुए हैं। इन्‍हें मैंने कितना कहा, कितना समझाया, किंतु ये मानते नहीं। सच तो यही है कि प्रभु प्राप्ति अत्‍यन्‍त सरल है अर्थात् ईश्‍वर सहज-साधना से मिल सकता है।

काव्‍य सौन्‍दर्य – ( 1 ) प्रभु प्राप्ति अत्‍यन्‍त सरल है, इसे आडम्‍बरों द्वारा नहीं अपितु सरलता से प्राप्‍त किया जा सकता है। ( 2 ) भाषा अत्‍यंत प्रचंड तथा स्‍पष्‍ट है। इसमें व्‍यंग्‍य की पैनी धार है। ( 3 ) लरि-लरिऔर घर-घरमें पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

 


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