भारतीय समाज में नारी का स्थान - निबंध

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 भारतीय समाज में नारी का स्थान - निबंध

नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में हम आपको बताने वाले हैं की भारतीय समाज में नारी का स्थान के निबंध को किस प्रकार लिखा जाता है। इस निबंध में हम आपको बताएंगे कि "भारतीय समाज में नारी द्वारा किन-किन भूमिकाओं को निभाया जाता है तथा उन्हें किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है" और निबंध लेखन के बारे में बताएंगे की एक निबंध में किन-किन बातों का आपको ध्यान रखना होता है और किस प्रकार एक निबंध को लिखा जाता है वह सभी जानकारी आपको इस पोस्ट में मिल जाएगी।


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भारतीय समाज में नारी का स्थान


रूपरेखा - 

1. प्रस्तावना

2. वैदिक काल में नारी

3. प्राचीन काल की नारी

4. मध्य युग में नारी

5. आधुनिक युग और नारी

6. पतन का युग

7. वीरांगनाऐं

8. नारी के विशेष गुण

9. पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव

10. वर्तमान स्वरूप

11. उपसंहार


अपने इस सुने पनकी मैं हूं रानी मतवाली 

प्राणों के दीप जलाकर करती रहती दिवाली

-- महादेवी वर्मा (आधुनिक मीरा)

1. प्रस्तावना -

                    जिस प्रकार तार के बिना बिना और ज्वेलरी के बिना रथ का पहिया बेकार होता है उसी तरह नारी के बिना मनुष्य का सामाजिक जीवन। इस सच्चाई को भारतीय ऋषियों ने बहुत पहले जान लिया था। वैदिक काल में मनु ने यह घोषणा करके कि जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं, नारी की महत्ता प्रतिपादित की है। नारी सृष्टि की आधारशिला है। उसके बिना हर रचना अधूरी है हर काल रंगहीन है। भारत की संस्कृति में नारियों को महिमामय एवं गरिमामय स्थान प्राप्त रहा है।


2. वैदिक काल में नारी -

                                 वैदिक काल में प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान में नारी की उपस्थिति आवश्यक थी। कन्याओं को पुत्रों के बराबर अधिकार प्राप्त थे, उनकी शिक्षा-दीक्षा का समुचित प्रबंध था। मैत्रीय, गार्गी जैसी स्त्रियों की गणना ऋषियों के साथ होती थी। वैदिक काल में परिवार के सभी निर्णय लेने के अधिकार नारी शक्ति को प्रदान किए गए थे।


3. प्राचीन काल की नारी -

                                   कोई भी क्षेत्र नारी के लिए वर्जित नहीं था। वे रणभूमि में जौहर दिखाया करती थी तथापि उनका मुख्य कार्यक्षेत्र घर था। दुर्भाग्य से नारी की स्थिति में धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगा ।


4. मध्य युग में नारी - 

                            आगे चलकर भारतीय समाज में नारी की स्थिति बदलती गई। वह केवल भोग्या हो गई पुरुष के राग-रंग का साधन बनकर उसकी कृपा पर जीवित रहना ही उसकी नियति बन गई। जिन स्त्रियों ने वेद मंत्रों की रचना की थी, उन्हें वेद पाठ के अधिकार से वंचित कर दिया गया। जिन्होंने युद्ध भूमि में अपनी शूरता का परिचय दिया था, उन्हें कोमलांगी कहकर चौखट लांघने तक की इजाजत नहीं दी गई। मुस्लिम युग में स्त्रियों पर और भी बंधन लाद दिए गए, क्योंकि विदेशियों की दृष्टि किसी देश की धन संपदा पर ही नहीं, वहां की स्त्रियों पर भी होती थी।


5. आधुनिक युग और नारी -

                                       आधुनिक युग में जब हम पश्चात्य जीवन संस्कृति के अधिक निकट आए, तब हमें लगा कि स्त्रियों की आधी जनसंख्या को पालतू पशु-पक्षियों की तरह बांधकर खिलाते रहना मानवता का बहुत बड़ा अपमान है। स्वतंत्रता से पहले भारतीय समाज में नारी को कोई स्थान प्राप्त नहीं था लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात जब हमारे संविधान में पुरुषों और महिलाओं को बराबर के अधिकार दिए गए तब जाकर इस समस्या में सुधार हुआ है। आज के समय भारतीय समाज में नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। आज हम देख रहे हैं कि भारतीय समाज में स्त्रियों में तेजी से जागृति आ रही है। महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए भारतीय सरकार द्वारा भी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं जिनमें मुख्य योजना है 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' इस योजना के कारण भारतीय समाज महिलाओं के प्रति जागरूक होता जा रहा है।


6. पतन का युग -

                        मुस्लिम काल में नारी के सम्मान को विशेष धक्का लगा। वह भोग-विलास की सामग्री बन गई और उसे पर्दे में रखा जाने लगा। उससे शिक्षा व स्वतंत्रता के अधिकार भी छीन लिए गए।


7. वीरांगनाऐं -

                    मुस्लिम युग में पद्मिनी, दुर्गावती, अहिल्याबाई सरीखी नारियों ने अपने बलिदान एवं योग्यता से नारी का गौरव बढ़ाया। सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में झांसी की रानी को कौन भूल सकता है।


8. नारी के विशेष गुण -

                                भारतीय इतिहास की सारी उथल-पुथल के बाद भी भारतीय नारी के कुछ ऐसे गुण उसके चरित्र से जुड़े रहे, जिनके कारण वह विश्व की नारियों से पूरी तरह अलग रही। नर्मता, लज्जा और मर्यादा ये विशेष गुण है, जो भारतीय नारी को गौरवान्वित करते हैं।


9. पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव -

                                         आज के समय में पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंग की हुई भारतीय नारी तितली बन रही है। अपने परिवार के प्रति कर्तव्यों से दूर होती जा रही है। इसके परिणाम स्वरूप परिवार टूटने लगे हैं। जीवन का सुख खत्म होने लगा है। महिला जागरण के नाम पर भारतीय नारी को उत्तरदायित्व से दूर ले जाया जा रहा है । संतान व परिवार के प्रति वह अपने कर्तव्यों को पूरी तरह से नहीं निभा पा रही है। जो कि किसी भी प्रकार से ठीक नहीं है।


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10. वर्तमान स्वरूप -

                             नारी आर्थिक की दृष्टि से स्वतंत्र हो, शिक्षित हो, पुरुष की दासता से मुक्त हो यह अच्छी बात है, किंतु स्वतंत्रता की अति ना पुरुष के लिए अच्छी है और ना ही नारी के लिए। दोनों को एक-दूसरे का सम्मान करते हुए परिवार और समाज में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।


11. उपसंहार -

                    आज विश्व युद्धों से घबराया हुआ है। हर जगह अशांति है। ऐसे कठिन समय में नारी में उन गुणों के विकास की जरूरत है, जो उसे परंपराओं के द्वारा प्राप्त हुए हैं। वह सभी को खुश देखना चाहती है। वह संघर्ष नहीं, त्याग और ममता की एक प्रतिमा है। वह शक्ति भी है, जो समय आने पर दानवों का विनाश भी करती है। 

        भारतीय नारी ने अपने महत्वपूर्ण भूमिका का पालन हर एक युग में किया है। मैं अपने विशेष गुणों के कारण आज के आधुनिक युग में भी पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कर हर क्षेत्र में कार्य कर रही है। यह जरूर हुआ है कि वह बाहरी क्षेत्रों में जितनी प्रगति कर रही है, इतनी कुशलतापूर्वक अपने परिवारिक कर्तव्य में पिछड़ रही है। भारतीय नारी को प्रगति के अनेक पायदान पर चढ़ाने के लिए अभी भी निरंतर प्रयत्न करना है।







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